आज के आर्टिकल में हम भारतीय इतिहास के अंतर्गत माउण्टबेटेन योजना (Mountbatten Yojna) के बारे में,लॉर्ड माउंटबेटन योजना क्या है – विस्तार से पढेंगे ।
माउंटबेटन योजना – Mountbatten Yojna
सत्ता के निर्बाध हस्तान्तरण की व्यवस्था करने के लिए वेवेल के स्थान पर लार्ड माउण्टबेटेन को वायसराय के रूप में भाारत भेजा गया। लार्ड माउंटबेटेन की अध्यक्षता में बनी विभाजन परिषद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पं. जवाहर लाल नेहरू तथा सरदार पटेल ने किया था। 3 जून 1947 को माउण्टबेटेन ने अपने नीति विषयक बयान जारी किया जिसे ’माउण्टबेटेन योजना’ कहा जाता है। इसे ’3 जून योजना’ के नाम से भी जाना जाता है।कैबिनेट मिशन योजना के तहत पं. जवाहर लाल नेहरू को अन्तरिम सरकार हेतु आमंत्रित किये जाने के विरोध में मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को ’प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया।
जिससे पूर देश में भीषण साम्प्रदायिक दंगे हुए। बाद में अन्तरिम सरकार में शामिल होकर उसने गतिरोध उत्पन्न किया तथा संविधान सभा की प्रथम बैठक से अनुपस्थित रहकर यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय एकता बनाये रखना अब सम्भव नहीं है। अतः तत्कालीन परिस्थितियों में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी 1947 को यह घोषणा किया कि ब्रिटिश सरकार 30 जून 1948 के पूर्व सत्ता भारतीयों को सौंप देगी।
माउण्टबेटेन योजना
ध्यातव्य है कि इस योजना की पुष्टि के लिए आचार्य जे. बी. कृपलानी की अध्यक्षता में 14 जून 1947 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की नई दिल्ली में बैठक हुई, जिसमें गोविन्द बल्लभ पंत ने भारत विभाजन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार पटेल, और जवाहर लाल नेहरू ने उसका समर्थन किया।
ज्ञातव्य है कि ’खान अब्दुल गफ्फार खाँ’ ने इस बैठक में प्रस्ताव में विपक्ष में मतदान किया था। कांग्रेस द्वारा विभाजन प्रस्ताव अनुमोदित किये जाने को ’डाॅ. सैफुद्दीन किचलू’ ने ’राष्ट्रवाद का संप्रदायवाद के पक्ष में समर्पण’ कहा था।
योजना के तहत प्रावधान था कि ब्रिटिश भारत को दो सम्प्रभु राष्ट्रों भारत तथा पाकिस्तान में विभक्त किया जायेगा पंजाब तथा बंगाल के विभाजन को लेकर जनमत संग्रह कराया जायेगा, देशी रियासतों को अपनी इच्छानुसार भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होने की छूट होगी तथा भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को त्यागने का अधिकार होगा।
कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलों ने योजना को मंजूर कर लिया। अतः ब्रिटिश संसद ने इस योजना को मूर्तरूप देने के लिए भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम – 1947 पारित किया।