अधिगम निर्याेग्यताएँ/कठिनाइयाँ
(learning difficulties)
अधिगम की अयोग्यताएं | |
एफासिया | वाचन, लेखन, भाषा में अयोग्यता |
सेन्सरी एफासिया | समझने की शक्ति की हानि |
मोटर एफासिया | बोलने/विचार-विमर्श की हानि |
अलेक्सिया | वाचन योग्यता की हानि (शब्द दृष्टिहीनता) |
एकालकूलिया | गणितीय योग्यता की कमी |
एग्राफिया | लेखन की अयोग्यता |
डिस्कालकूलिया | गणितीय विकार |
डिस्लेक्सिया | पठन/वाचन विकास |
डिस्ग्राफिया | लेखन विचार |
डिस्आर्थोग्राफिया | वर्तनी विकार |
डिस्प्रेक्सिया | लिखने संबंधी व्यतिक्रम |
विद्यार्थियों में कुछ चीजों को सीखने की योग्यताओं का अभाव पाया जाता है। ऐसे अनेक बालक पाये जाते है,जो बात करना देर से सीख पाते हैं या बात करने में पिछड़े होते हैं। कुछ छात्रों को वाचन, वर्तनी, लिखना या गणित की समस्याओं में गणना करना सीखने में काफी कठिनाई होती है। लेकिन ध्यान रहे कि सभी बालकों का सीखने में पिछड़ापन केवल सीखने की अयोग्यता के कारण ही नहीं होता है। अपितु यह अन्य कारणों से भी हो सकता है।
उदाहरण के लिये अन्य और बहरे बालक विचारों के आदान-प्रदान में पिछड़े होते है। यह पिछड़ापन अन्धे और बहरेपन के कारण है न कि सीखने की अयोग्यता के कारण। इसी प्रकार वाचन या अन्य विद्यालय विषयों में पिछड़ापन सीखने के अवसरों की कमी या खराब शिक्षण के कारण हो सकता है।
अधिगम अयोग्यता को इस प्रकार समझा जा सकता है-
अधिगम अयोग्यता से आशय वाणी, भाषा, वाचन, वर्तनी, लेखन या गणित की एक या अधिक प्रक्रियाओं में पिछड़ापन, व्यतिक्रम या विलम्बित विकास है। यह मस्तिष्क के कार्य न करने या सांवेगिक या व्यवहारात्मक बाधा का परिणाम है न कि मानसिक पिछड़ेपन, ज्ञानेन्द्रियों की कमी या सांस्कृतिक और शिक्षण संबंधी कारकों के कारण। शिक्षा में एक बालक वाचन सीखने की बौद्धिक क्षमता रखता है। लेकिन पर्याप्त शिक्षण के बाद भी सीख नहीं पाता है। तो इसको ‘वाचन अयोग्यता’ में वर्गीकृत किया जाता है। इसी प्रकार के वर्गीकरण वर्तनी अयोग्यता, लेखन अयोग्यता तथा गणित अयोग्यता के रूप में किये जाते हैं। जिसमें से कुछ की चर्चा हम यहाँ करेंगे।
अधिगम की अयोग्यताओं के प्रकार(Types of learning disabilities)
अधिगम की कठिनाइयों के अलग-अलग प्रकार होते हैं। एक छात्र कई क्षेत्रों में अयोग्यता प्रदर्शित कर सकता है।
एफासिया (Aphasia):- इस शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में सिरेब्रेल अकार्यता से उत्पन्न वाचन, लेखन, बोलने तथा बोले या लिखित शब्दों का अर्थ निकालने में अयोग्यता के लिये होता है। वाचाघात (Aphasia) मस्तिष्क की ऐसी विकृति है जिसमें व्यक्ति के बोलने, लिखने तथा बोले एवं लिखे हुए शब्दों को समझाने या प्रकट करने में अनियमितता, अस्पष्टता एवं स्थायी विकार उत्पन्न हो जाता है। ऐसा वाचाघात जिसमें विद्यार्थी (रोगी) लिखे हुए एवं बोले गए शब्दों को समझता है और जानता हे कि वह क्या कहना चाहता है परन्तु वह शब्दों का उच्चारण नहीं कर सकता।
एफासिया के कारण(Causes of Aphasia)
वाचाघात का मुख्य कारण मस्तिष्क का आम्बोसिस, रक्त स्रोत शोधन (Embolism), अर्बुद (Tumour), फोड़े (Abscess), इत्यादि हैं, जो यदि मस्तिष्क के दाहिने गोलार्द्ध में हो तो शरीर का बायां भाग और यदि मस्तिष्क के बाएं गोलार्द्ध में हो, तो शरीर का दाहिना भाग आक्रांत होता है। सिल्वियन धमनी का आम्बोसिस रक्त स्रोत रोधन रोगात्पत्ति में अधिक सहायक होता है। अर्बुदजन्य वाचाघात एकाएक उत्पन्न होता है। धीरे-धीरे वाचाघात की उत्पत्ति मिर्गी, रक्तमूल विषाक्तता, उन्मादी का व्यापक पक्षाघात जो उपदंश की चतुर्थ अवस्था में गंभीर स्वरूप होता है तथा मस्तिष्क शोध, तंद्रा इत्यादि कारणों से होती है।
वाचाघात का वर्गीकरण(Classification of aphasia)
विशिष्ट एफासिया अयोग्यताएँ वर्गीकृत करने के प्रयास किये गये हैं। लक्षणों के आधार पर वाचाघात का वर्गीकरण इस प्रकार हुआ है:
1. ज्ञानात्मक एफासिया (Sensory aphasia) – ज्ञानात्मक एफासिया से आशय बोले गये शब्दों, संकेतों या छपी हुई सामग्री को समझने को शक्ति की हानि है। ट्रांसस्कोर्टिकल सेन्सरी एफासिया (TSA) वाचाघात (एफासिया) का एक प्रकार है जिसमें मस्तिष्क के टेम्पोरल लोब्स के विशिष्ट क्षेत्र की हानि होने से उत्पन्न होता है। इसके तहत जैसे वर्तमान अर्थ, पेराफासिया के साथ कमजोर श्रवण बूझ, अपेक्षाकृत बरकरार पुनरावृत्ति और धारा प्रवाह भाषण (बोलने) आदि के नुकसान शामिल है;
2. गामक एफेसिया (Motor aphasia) – गामक एफेसिया से आशय बोलने या दूसरे के साथ विचार-विमर्श की योग्यता की हानि से है। प्रेरक वाचाघात (aphasia motor) में रोगी केवल स्पष्ट रूप से बोल नहीं सकता, पर बोलते समय काम में आने वाली मांसपेशियों में किसी प्रकार का विकार नहीं होता। इस अवस्था में रोगी केवल छोटे-छोटे शब्दों का ही सही उच्चारण कर सकता है।
3. अलेक्सिया (Alexia) – इसमें आशय वाचन की योग्यता की हानि से है। इसको ‘शब्द दृष्टिहीनता’ (Word blindness)भी कहते है।
4. एकाल कूलिया (Acal culia) – गणितीय योग्यता की कमी एकाल कूलिया कहलाती है। यह नाम ग्रीक ‘ए’ से आया है जिसका अर्थ है ‘गिनती करना’ एकाल कूलिया की डिस्काल कूलिया (Dyscalculia) से भिन्नता है। एकाल कूलिया से ग्रसित (रोगियों की कठिनाई यह होती है कि) रोगी सामान्यत गणितीय कार्य, प्रदर्शन जैसे जोड़, गुणा, बाकी और यहां तक कि दो नम्बरों में बड़ा कौन-सा है आदि के संदर्भ में एक अधिग्रहीत हानि है। अकाल कूलिया में मस्तिष्क संबंधी गहरी चोट के कारण हो जाता है, जबकि ‘डिस्काल कूलिया’ पहली बार गणितीय ज्ञान के दौरान एक विशिष्ट विकासात्मक विकार है।
5. एग्राफिया (Agraphia) – लेखन सीखने की अयोग्यता या लेखन शक्ति हृास एग्राफिया कहलाती है। यह मस्तिष्क क्षति से उत्पन्न एक भाषा विकार के रूप में लिखने की असमर्थता है।
6. सांकेतिक वाचाघात (Nominal aphasia) में रोगी पहचानी हुई वस्तु का सही नाम बतलाने में असमर्थ रहता है।
7. दूषित शब्दोच्चारण वाचाघात (Anathna aphasia) में रोगी शब्दों का उच्चारण स्पष्ट नहीं कर सकता।
8. मिश्रित वाचाघात (Mixed aphasia) में वाचाघात के साथ-साथ रोगी के सामान्य बुद्धि विकास में भी शिथिलता आ जाती है।
9. चेष्टा अक्षमता (Apraxia) तथा प्रत्यक्ष अक्षमता वाचाघात (agnoxia ) में चेष्टा अक्षमता के अंतर्गत रोगी कुछ क्लिष्ट कार्य, जैसे बटन लगाना इत्यादि, नहीं कर पाता तथा प्रत्यक्ष अक्षमता में रोगी सामान्य चीजों का ठीक व्यवहार नहीं कर पाता।
निदान एंव उपचार(Diagnosis and treatment)
1. वाचाघात के निदान के लिए नाड़ीमंडल की पूर्ण परीक्षा करनी चाहिए तथा इस बात का पता लगाना चाहिए कि रोगी दाहिने हाथ से काम करता है अथवा बाएँ हाथ से। इसके अलावा रोगी से प्रश्नों द्वारा उसकी बुद्धिक्षमता का एवं वाचाघात की तीव्रता आदि का पता लगाते हैं।
2. इस रोग की साध्यासाध्यता इस पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क का कौन-सा और कितना भाग आक्रांत हुआ है। अर्बुद और रक्तस्रावजन्य वाचाघात को छोड़कर अन्य कारणों से उत्पन्न वाचाघात में रोग के अच्छे होने की अधिक संभावना रहती है, परंतु प्रत्येक अवस्था में रोग का पुनराक्रमण हो सकता है। वाचाघात के समुचित उपचार के लिए वाक प्रशिक्षक (Speech instructor) की मदद लेनी चाहिए तथा कारणों के अनुसार रोग का उपचार करना चाहिए।
अंकगणितीय विकार (Arithmetic disorder)
इसे ‘डिस्कालकूलिया’(Dyscalculia) कहते हैं। डिसकैल्क्यूलिया एक स्नायविक स्थिति है जिसमें आदमी को कुछ सीखने में या संख्याओं के साथ कठिनाई होती है। अक्सर इससे ग्रस्त लोग गणित की जटिल अवधारणाओं और सिद्धांतों को तो समझ लेते हैं किन्तु फार्मूला समझने या साधारण गुणा-भाग करने में उनको दिक्कत आती है। यह आमतौर पर एक विकासात्मक विकार है। अंकगणित विकास में सामान्यतः सीखने में या गणित को समझने में कठिनाई होती है। डिस्कालकूलिया एक तरह से सीखने में समस्या या संख्याओं को समझने में कठिनाई, संख्याओं को मेनीपुलेट करने की समस्या, गणितीय तथ्यों में अधिगम की कठिनाई से संबंधित है। इसके अंतर्गत एक विद्यार्थी की समझने और संख्या रचना या स्वयं द्वारा संख्या की समझने की योग्यता प्रभावित होती है। इसके तहत एक विद्यार्थी के साथ अनेक मुश्किलें आती हैं। वह पेज पर संख्याओं के आयोजन, संख्याओं को लाइन में खड़ा करना, बाएं से दायें का भेद, गणितीय गणना में संकेतों के उपयोग में भ्रमित आदि अनेक समस्याओं का सामना करता है।
लेखन विकार (Writing disorder)
इसे ‘डिस्ग्राफिया’ (Dysgraphia) कहते हैं। लेखन विकार आम तौर पर पूरी तरह निर्देशन के बावजूद विकृत लेखन की विशेषता है। लेखन विकार के साथ एक विद्यार्थी निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करता है। असंगत और कभी-कभी अस्पष्ट लेखन, मिक्सिंग और घसीट लेखन, ऊपरी और नीचले मामले, अक्षरों का अनियमित आकार, अक्षरों की आकृति या तिरछा मिश्रण, अधूरा शब्द या अक्षर, छोड़े गए शब्दों और वर्तनी की अनेक गलतियां, अच्छे कौशल की कठिनाई, लिखते समय दर्द या मांसपेशियों में ऐठन। डिसग्राफिया विकार जो मुख्यतः लेखन या टाइपिंग के दौरान ही व्यक्त होता है, हालांकि कुछ मामलों में यह आँखों और हाथों के समन्वय को भी प्रभावित कर सकता है, गांठ बांधने या दोहरावदार जैसे दिशापरक या अनुक्रम संबंधित कार्यों को करने में।
डिस्ग्राफिया डिसप्राॅक्सिया से भिन्न है, इसमें ऐसा संभव है कि ग्रस्त व्यक्ति अपने दिमाग में तो लिखने वाले शब्दों या कदमों के उचित क्रम के बारे में स्पष्ट हो, किन्तु उन्हें करते वक्त गलती कर देता हो। जब व्यक्ति लेखन संबंधी व्यतिक्रम (Over lapping) करता है तो ऐसी स्थिति को ‘‘डिस्प्रेक्सिया’’ कहते हैं।
वर्तनी विकार (Spelling disorder)
इसे ‘डिस्आर्थोग्राफिया’ कहते हैं। वर्तनी संबंधी विकार आमतौर पर वर्तनी के साथ कठिनाइयों की विशेषता है। वे भाषा संरचना और शब्दों में अक्षर की कमजोर स्मृति या जानकारी में कमजोर होते हैं। एक वर्तनी विकार में एक विद्यार्थी अक्सर पढ़ने या गणित में कमजोर कौशल के रूप में होते हैं। ऐसी कठिनाइयों में शब्द रचना में चूक, मनमाने ढंग से गलत वर्तनी या प्रतिस्थापन स्वरों या अक्षरों का उत्क्रमण, कमजोर लेखन अभिव्यक्ति, विकार और व्याकरण में त्रुटि आदि होती है।
वाचन विकार (Reading disorder)
इसे ‘डिस्लेक्सिया’ (Dyslexia) कहते हैं। पठन विकार आमतौर पर वर्णमाला, शब्द मान्यता, डिकोडिंग, वर्तनी और समझ के साथ कठिनाइयों की विशेषता है। पठन विकार के समय एक विद्यार्थी अनेक कठिनाई अनुभव करता है – जैसे नामकरण के अनुभव सीखने और वर्णमाला मुद्रण, गैर-ध्वन्यात्मक शब्द याद रखना, गलतियों को दहराना और विराम चिह्न के बिना जोर से पढ़ना, घटनाओं के अनुक्रम में कहानी कहना, शब्द कोष में शब्दों की खोज, वर्ष के सप्ताह के दिनों और महिनों के नामकरण, अनुमान, चुटकुले या व्यंग को समझाना। वाचन परिशुद्धता, गति तथा बोध की समस्याएं लिखने की धीमी गति, छपे हुए शब्दों को सीखने और याद करने की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
डिसलेक्सिया (Dyslexia)
डिस्लेक्सिया एक स्नायविक अंतर का परिणाम माना जाता है, यह एक बौद्धिक विकलांगता नहीं है।
यहां विकासात्मक डिस्लेक्सिया से संबंधित वर्णन किया जा रहा है न कि एक्वार्ड डिस्लेक्सिया के बारे में। डिस्लेक्सिया एक अधिगम बाधा/विकार/विकलांगता है जिसका प्रकटीकरण मुख्य रूप से वाणी या लिखित भाषा के दृश्य अंकन की कठिनाइयों के रूप में होता है, विशेष तौर पर मनुष्य-निर्मित लेखन प्रणालियों को पढ़ने में। यह देखने या सुनने की गैर-नयूरोलोजिकल कमी, या बेकार अथवा अपर्याप्त पाठन निर्देशों जैसे अन्य कारकों से उत्पन्न पाठन कठिनाइयों से अलग है, यह इस बात का सुझाव देता है कि बुद्धि द्वारा लिखित और भाषित को संसाधित करने में अंतर के कारण डिस्लेक्सिया होती है अर्थात् ‘मस्तिष्क की संरचना तथा कृत्यों में विभेदों का परिणाम होता है।’
इतिहास: 1881 में ‘ओसवाल्ड बरखान’ ने इसे पहचाना और ‘रुडोल्फ बर्लिन’ ने 1887 में इसे ‘डिस्लेक्सिया’ नाम दिया। 1890 में जेम्स हिन्शेल्वूद ने पैदाईशी शब्द अंधेपन के इसी तरह के मामलों का वर्णन करते हुए चिकित्सा पत्रिकाओं में लेखों की एक शृंखला प्रकाशित की। 1917 में अपनी किताब ‘जन्मजात शब्द दृष्टिहीनता’ में हिन्शेल्वूद ने इस बात पर जोर दिया कि प्राथमिक विकलांगता शब्दों और अक्षरों के लिए दृश्य स्मृति में है और उन्होंने इसमें अक्षर रिवर्सल, तथा वर्तनी और पाठन की दिक्कतों जैसे लक्षणों का भी वर्णन किया है।
1925 शमूएल टी. औटर्न के अनुसार मस्तिष्क की क्षति से असंबंधित एक सिंड्रोम है जो पाठन सीखने में दिक्कत पैदा करता है। और्टन के सिद्धांत ‘स्ट्रेफोसिम्बोलिया’ के अनुसार डिस्लेक्सिया वाले रोगों को शब्दों के दृश्य रूपों को उनके भाष्य रूपों के साथ संबंध स्थापित करने में कठिनाई आती है।
और्टन ने पाया कि डिस्लेक्सिया में पाठन की कमियां केवल दृष्टि की कमियों की वजह से उत्पन्न नहीं हो रही थी। उनका विश्वास था कि मस्तिष्क में हेमीस्फेरिक प्रभुत्व की स्थापना में विफलता इसका कारण है। और्टन नेे बाद में मनोवैज्ञानिक और शिक्षक ऐना गिलिंघम के साथ एक शैक्षिक हस्तक्षेप का विकास किया जिसमें ‘साइमलटेनिअस मल्टी संेसरी इंसट्रक्शन’ के प्रयोग की शुरुआत की।
इसके विपरीत, डियरबोर्न, बेनेट, तथा ब्लाऊ के अनुसार इसका कारण देखने की प्रणाली का एक दोष था। उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि आँखों की स्वतः होने वाली बांये से दांये की क्रिया उसके विपरीत दिशा की तरफ ध्यान केन्द्रित करने के लिए, डिस्लेक्सिया विकार में दिखने वाले तथ्यों को समझाने में सहायक में सहायक होगा क्या, खासकर उल्टा पढ़ लेने की क्षमता का।
1949 के तहत की गयी शोध और आगे चली गयी। यह फिनोमिना स्पष्ट रूप से दृष्टि की गतिशीलता से जुड़ा हुआ है। जब अक्षरों के बीच की जगह बढ़ाई जाती है तो यह गायब हो जाती है और पाठन को वर्तनी में बदल देती है। यही अनुभव आइने में पढ़ने की क्षमता पर भी प्रकाश डालता है।
1979 में गलाबुर्दा ओर केम्पर और गलाबुर्दा इतं अल 1985, डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क के ऑकटोप्सी पश्चात् परिक्षण द्वारा एक डिस्लेक्सिक मस्तिष्क के भाषा केन्द्र में देखे गए संरचनात्मक भेद, इन अध्ययनों और कोहेन (1989) इत अल, के अध्ययनों ने सुझाया कि डिस्लेक्सिया का कारण भू्रण मस्तिष्क के विकास के छठे महीने के दौरान असामान्य कोर्टिकल विकास हो सकता है।
1993 में कासल्स और कोल्टहार्ट ने विकास डिस्लेक्सिया को अलेक्सिया के उपप्रकारों का इस्तेमाल करते हुए दो प्रचलित और भिन्न किस्मों के रूप में वर्णित किया, सतही और ध्वनिकृत डिस्लेक्सिया। मानिस इत अल 1996 में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संभवतः डिस्लेक्सिया के दो से अधि उपप्रकार है जो कई अंतर्निहित कमियों से सम्बद्ध हैं।
1994 में पोस्ट आॅटोप्सी स्पेसिमेन द्वारा गालाबुर्दा इत अल, ने यह रिपोर्ट किया: डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों में असामान्य आॅडीटरी प्रेसेसिंग यह दर्शाता है कि आॅडीटरी सिस्टम में सरंचनात्मक असामान्याताएँ संभवतः मौजूद रही होंगी, डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के बांये हेमीस्फियर स्थित ध्वनि दोष के निष्कषों का समर्थन किया।
1999 में वाइदेल और बटरवथ्ज्र्ञ ने एक अंग्रेजी-जापानी द्विभाषी व्यक्ति के एक मामले का वर्णन किया। यह सुझाया कि कोई भाषा जिसमें ओर्थोग्राफी से फोनोलोजी का मानचित्रण पारदर्शी अथवा अपारदर्शी हो, या कोई भाषा जिसकी ध्वनी का प्रतिनिधित्व करने वाली ओर्थोग्राफिक इकाई अपरिष्कृत हो (पूर्ण अक्षर या अक्षर के स्तर पर) उनमें डिस्लेक्सिया के ज्यादा मामले नहीं आने चाहिए और ओर्थोग्राफी के लक्षणों को प्रभावित कर सकती है।
2003 में कोलिन्स और रूकें के रिव्यू ने यह निष्कर्ष निकाला कि मस्तिष्क और डिस्लेक्सिया के संबंधों के वर्तमान माॅडल आमतौर पर मस्तिष्क विकास के किसी दोष पर ध्यान केन्द्रित करते है।
2007 में लितिनेन इत अल अनुसंधानकर्ता, स्नायविक और आनुवंशिक निष्कर्ष तथा पाठन विकारों के बीच एक कड़ी ढूढ़ने के कोशिश कर रहे हैं।
2008 में एस.हीम इत अल ने अपने लेख ‘कोगनिटिव सबटाइप्स आॅफ डिस्लेक्सिया’ में वर्णन किया है कि कैसे उन्होंने डिस्लेक्सिया के विभिन्न उप-समूहों की तुलना एक नियंत्रित समूह से की है। यह अपने प्रकार का पहला अध्ययन है जिसने न केवल डिस्लेक्सिक और गैर डिस्लेक्सिक समूहों की तुलना की है, बल्कि और आगे बढ़ते हुए इसने विभिन्न संज्ञानात्मक उप समूहों की तुलना गैर डिस्लेक्सिक नियंत्रण समूह से की है।
मस्तिष्क स्कैन तकनीकों का प्रयोग करने वाले शोध: ‘‘फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग’’ (FMRI) और ‘‘पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी’’ (PET) जैसी आधुनिक तकनीकों ने पाठन की कठिनाइयों से ग्रस्त बच्चों के मस्तिष्क के संरचनात्मक भेदों के स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं। ऐसा पाया गया है कि डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क के बांये हिस्सों (जो पाठन क्रिया में सहायक होता है) में विकार होता है, इन हिस्सों में शामिल हैं इन्फीरियर फ्रंटल गाइरस, इन्फीरियर पेरिटल लोब्युला और मिडल तथा वेंट्रल टेम्पोरल कोर्टेक्स।
भाषा अध्ययन हेतु (PET) का प्रयोग करती हुई मस्तिष्क सक्रियण अध्ययनों ने भाषा के तंत्रिका आधार की हमारी समझ में पिछले दशक के मुकाबले भारी बढ़ोतरी की हैं दृश्य कोश और श्रवण मौखिक लघु अवधि स्मृति घटकों के लिए एक तंत्रिका आधार प्रस्तावित किया गया है। तात्पर्य यह है कि विकासात्मक डिस्लेक्सिया में देखी गयी तंत्रिका अभिव्यक्ति कार्य-विशेष के साथ संबंधित है (अर्थात् संरचनात्मक की बजाय कार्यात्मक)
हांगकांग विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार डिस्लेक्सिया बच्चों के मस्तिष्क के विभिन्न संरचनात्मक हिस्सों पर उनके द्वारा पढ़ी जाने वाले भाषा के आधार पर प्रभाव डालता है। अध्ययन ने अंग्रेजी और चीनी भाषाओं के पाठन के साथ बढ़े हुए बच्चों की तुलना की है।
विविधताएं और संबंधित स्थितियां
श्रवण प्रसंस्करण विकार (Auditory processing disorder):
श्रवण प्रसंस्करण विकार तरीका मस्तिष्क प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले विकारों की एक किस्म का वर्णन करता है या वह पर्याप्त सुनता है लेकिन उसकी व्याख्या क्या करता है।
श्रवण प्रसंस्करण विकार, श्रवण जानकारी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली एक स्थिति है। श्रवण प्रसंस्करण विकार, सुनने की विकलांगता है। यह श्रवण स्मृृति और श्रवण अनुक्रमण की समस्याओं को जन्म दे सकती है। डिस्लेक्सिया ग्रस्त कई लोगों में श्रवण प्रक्रमण समस्या होती है। जिसमें शामिल है श्रवण पलटाव, और इस अभाव की पूर्ति के लिए वे स्वयं के लोगोग्राफिक संकेतों का विकास कर सकते हैं। श्रवण प्रसंस्करण विकार को डिस्लेक्सिया के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है। कुछ बच्चों में श्रवण प्रसंस्करण विकार एफ्यूजन के साथ ओटिटिस मीडिया (सरेस कान, चिपचिपा कान और ग्रोमिट्स) और कान की अन्य गंभीर स्थितियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकता है।
संवेदी एकीकरण विकार (Sensory integration disorder):
स्फोटोपिक संवेदनशील संवेदनशीलता सिंड्रोम, इर्लेन सिंड्रोम के नाम से भी ज्ञात, प्रकाश की कुछ वेवलेंथ्स जो दृश्य प्रसंस्करण के साथ हस्तक्षेप करती हैं, उनके प्रति संवेदनशीलता का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त होता है। संवेदी एकीकरण विकार शरीर की संवेदी प्रणाली दृश्य आगमन, श्रवण इनपुट, घ्रान इनपुट, स्पर्श इनपुट, वेस्टीब्यूलर इनपुट (संतुलन या हिलना) और प्रोप्रियोसेप्टिव इनपुट (स्थिति) से जानकारी एकीकृत करने की क्षमता के साथ जुड़ा हुई है।
संठनात्मक अधिगम विकार (Organizational learning disorder):
एक संगठनात्मक अधिगम विकार कार्यकारी कार्यों के साथ चुनौतियों का सामना करने के लिए संबंधि अयोग्यता अधिगम का एक प्रकार हैं संगठनात्मक अधिगम विकार एक समय में बहुत ज्यादा उत्तेजनाओं या जानकारी से निपटने के लिए एक व्यवस्थित और तार्किक तरीके से सोच, दिशा भेद या सामग्री और समय के आयोजन में कठिनाइयां शामिल हो सकती है।
सामाजिक क्यू विकार (Social cue disorder):
सामाजिक क्यू विकार के साथ व्यक्तिगत कठिनाई एक स्वचालित तरीके से व्यवहार करती है।
विकार डिसप्राक्सिया एक स्नायविक स्थिति है जिसमें संतुलन से संबंधित रोजमर्रा के कार्यों जैसे फाइन-मोटर नियंत्रण, काइनेसथेटिक समन्वय, भाषण ध्वनियों के इस्तेमाल में कठिनाई, अल्पकालिक स्मृति तथा संगठन की दिक्कतें शामिल हैं।
विशिष्ट भाषा विकार एक भाष संबंधित विकार है जो भाषा को प्रकट करने और समझने, दोनों को प्रभावित करता हैं एसएलआइ को एक ‘‘विशुद्ध’’ भाषा विकार के रूप में परिभाषित किया जाता है, अर्थात् यह अन्य किसी विकासात्मक विकार जैसे श्रवण शक्ति का खत्म होना या मस्तिष्क की चोट, से संबंधित या उनके कारण नहीं होता है।
क्लटरिंग भाषण के प्रवाह का एक विकार है जिसमें दर और लय दोंनों शामिल हैं, इसके परिणामस्वरूप उनके भाषण को समझना मुश्किल होता है। भाषण बेतरतीब और बिना लय के होता है, जिसमें शब्दों का जल्दी जल्दी और झटकेदार तरीके से बोला जाता है और वाक्य दोषपूर्ण होते है। क्लटर करने वाले के व्यक्तित्व में अधिगम विकलांगता वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व से काफी समानता होती है।
डिस्लेक्सिया के अभिलक्षण(Characteristics of dyslexia)
बोलने/सुनने के अभावों तथा डिस्लेक्सिया के कुछ साझा लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. पहले/बाद में, बांये/दांये, आदि के भेद को समझने में दिक्कत
2. वर्णमाला सीखने में कठिनाई
3. शब्दों या नामों को याद रखने में कठिनाई
4. तुकबंदी वाले शब्दों को पहचानने या बनाने, तथा शब्दों के सिलेबस (शब्दांश) की गिनती में दिक्कत (ध्वनि जागरूकता)
5. शब्दों की ध्वनियों को सुनने या जोड़-तोड़ करने में कठिनाई (फोनेमिक जागरूकता)
6. शब्द की विभिन्न ध्वनियों में अंतर करने में कठिनाई (श्रवण भेदभाव)
7. अक्षरों के ध्वनियों को सीखने में दिक्कत
8. शब्दों का उनके सही अर्थ के साथ संबंध बिठाने में कठिनाई
9. समय बोध और समय के कांसेप्ट को समझने में कठिनाई
10. शब्दों के संयोजन को समझने में दिक्कत
11. गलत बोलने के डर से, कुछ बच्चे अंतर्मुखी और शर्मीले बन जाते है और बच्चे अपने सामाजिक परिपेक्ष्य तथा वातावरण को ठीक से न समझ पाने के कारण दबंग (धौंस दिखाने वाला) बन जाता है।
12. संगठन कोशल में कठिनाई
कई प्रयोगों में शोध के दौरान डिस्लेक्सिक बच्चों के पैटर्न के अध्ययन के परिणामस्वरूप के कारक सामने आये हैं। ब्रिटेन में, थाॅमस रिचर्ड मिल्स ने इस विषय में महत्वपूर्ण काम किया था और अपने कार्य के निष्कर्षों के आधार पर उन्होंने डिस्लेक्सिया का पता लगाने के लिए ‘बांगोर टेस्ट’ का विकास किया।
डिस्लेक्सिया भाषण के दृश्य अंकन से संबंधित एक समस्या है, जो कि यूरोपीय मूल की उन अधिकांश भाषाओं की समस्या है जिसमें वर्णमाला लेखन प्रणालियों में ध्वन्यात्मक निर्माण है। भाषण अधिग्रहण में देरी तथा भाषण और भाषा की दिक्कतें, श्रवण इनपुट को, अपनी वाणी में प्रकट करने से पहले, ठीक से न समझ पाने के कारणवश हो सकती है, परिणामस्वरूप व्यक्ति में हकलाने, क्लटर करने और भाषण में संकोच जैसी दिक्कतें दिखाई दे सकते हैं।
ये समस्याएँ डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के वर्तनी और लेखन की कठिनाइयों की साझा घटक हो सकती हैं।
डिस्लेक्सिया के निदान
डिस्लेक्सिया का औपचारिक निदान तंत्रिका विज्ञानी या एक शैक्षिक मनोवैज्ञानिक जेसे योग्य पेशेवर द्वारा किया जाता हैं आमतौर पर इसके मूल्यांकन में पाठन क्षमता के साथ अन्य कुशलताओं, जैसे की लघु अवधि स्मृति और अनुक्रमण कौशल का मूल्यांकन करने हेतु जल्दी-जल्दी नाम लेने का टेस्ट तथा ध्वनि कोडन कौशल के मूल्यांकन हेतु गैर शब्दों का पाठन, की टेस्टिंग शामिल होती है। मूल्यांकन में आमतौर पर एक आइक्यू टेस्ट भी शामिल होता है, सीखने की शक्तियों और कमजोरियों के एक प्रोफाइल को स्थापित करने के लिये। हालांकि, पूरे पैमाने पर आइक्यू तथा पाठन स्तर के बीच की एक विसंगति’’ को, जिसका इस्तेमाल रोग की पहचान के एक घटक के रूप में होता है, हाल के शोध के नकार दिया है। इसमें अक्सर कई अन्य संभव कारकों को बाहर करने के लिये, जैसे दिखाई या सुनाई पड़ने की दिक्कत।
डिस्लेक्सिया के कई अंतर्निहित कारक हैं जिनके बारे में ऐसा माना जाता है कि वे तंत्रिका विज्ञान की वह स्थितियां हैं जो लिखित भाषा को पढ़ने की क्षमता को प्रभावित करती हैं।
डिस्लेक्सिया का प्रबंधन
डिस्लेक्सिया को कोई इलाज नहीं है। लेकिन उचित शैक्षिक सहायता के साथ डिस्लेक्सिक व्यक्ति लिखना पढ़ना सीख सकता हैं।
वर्णमाला लेखन प्रणाली की लिए, मूलभूत उद्देश्य बच्चे में ग्राफीम और फोनीम के आपसी संबंधों के प्रति जागरूकता पैदा करना है ताकि इनकी सहायता से वह लिखने-पढ़ने में निपुण बन सके। ऐसा पाया गया है कि दृश्य भाषा और इमलों पर केन्द्रित प्रशिक्षण लम्बी अवधि में मात्र मौखिक ध्वनि प्रशिक्षण के अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। सर्वोत्तम तरीके का निर्धारण डिस्लेक्सिया लक्षणों के अन्तर्निहित अन्यूरोलोजिकल कारकों द्वारा होता है।
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