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सूर्य ग्रहण – Surya Grahan
सूर्य ग्रहण किसे कहते है – Surya Grahan kise Kahte hai
जब पृथ्वी तथा सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता हैं, तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह से कुछ हिस्से पर अंधेरा छा जाता है, इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते है।
जब चंद्रमा एक निश्चित वृत्तीय कक्षा तथा समान कक्षीय समतल पर परिक्रमा करता है तो प्रत्येक अमावस्या को सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती है। चंद्रमा का कक्षीय समतल पृथ्वी के कक्षीय समतल से 50 का कोण बनाता है जिसके कारण चंद्रमा की परछाई पृथ्वी पर हमेशा नहीं पङती।
सूर्य ग्रहण कैसे होता है – Surya Grahan kaise hota hai
सूर्य ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर दो परछाइयां बनती हे जिसे छाया तथा उपछाया कहते है।
छाया – पृथ्वी के एक हिस्से पर, तथा इस इलाके में पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई देता है।
उपछाया – पृथ्वी के छाया वाले हिस्से को छोङकर जिस इलाके में सूर्य ग्रहण दिखाई देता है, वहां आंशिक सूर्यग्रहण दिखाई देता है।
जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सरल रेखा में होते हैं तो इस स्थिति को युति वियुति कहते हैं, जिसमें युति सूर्य ग्रहण की स्थिति व वियुति चंद्रग्रहण की स्थिति में बनते है।
सूर्यग्रहण को डेजोन स्केल द्वारा मापा जाता है।
सूर्य ग्रहण के प्रकार – Types of solar eclipse
सूर्यग्रहण तीन प्रकार का होता है।
- पूर्ण सूर्यग्रहण
- आंशिक सूर्यग्रहण
- वलयाकार सूर्यग्रहण।
(1) पूर्ण सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्यग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में हो। इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह अंधेरा छा जाता है। यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करता है इसलिए पृथ्वी से उसकी दूरी में परिवर्तन होता रहता है। सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा की दूरी पृथ्वी से सूर्य की दूरी के मुकाबले 400 गुना कम है और सूर्य का आकार चंद्रमा से 400 गुना अधिक है। पूर्ण-ग्रहण धरती के 250 किलोमीटर क्षेत्र में देखा जा सकता है।
इस क्षेत्र के बाहर केवल खंड-ग्रहण दिखाई देता है। पूर्ण-ग्रहण के समय चाँद को सूरज के सामने से गुजरने में दो घण्टे लगते है। चाँद सूरज को सात मिनट तक ढँकता है। इस समय आसमान में अंधेरा छा जाता है तब ऐसा लगता है कि दिन में रात हो जाती है।
(2) आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्यग्रहण में जब चंद्रमा सूर्य व पृथ्वी में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है।
जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढकने के बजाय एक हिस्से को ही ढके तब आंशिक सूर्यग्रहण होता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
(3) वलयाकार सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है। तब वलयाकार सूर्यग्रहण होता है। इसकी वजह से चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढक पाता और सूर्य एक अग्नि वलय की भांति प्रतीत होता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्यग्रहण कहलाता है।
वलयाकार सूर्यग्रहण के निर्माण के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां अनिवार्य है –
- अमावस्या
- चंद्रमा की स्थिति चंद्र नोड पर या उसके करीब हो ताकि सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में हो।
- चंद्रमा पृथ्वी से दूरस्थ बिंदु पर स्थित हो।
खगोलशास्त्रियों के मतानुसार सूर्य ग्रहण – Suraj Grahan
- खगोलशास्त्रियों के अनुसार 18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्यग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते है। एक वर्ष में 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक हो सकते हैं।
एक वर्ष में 2 सूर्यग्रहण तो होने ही चाहिए। यदि किसी वर्ष 2 ही ग्रहण हुए तो वो दोनों ही सूर्यग्रहण होंगे। यद्यपि वर्षभर में 7 ग्रहण तक संभावित होती है, तथापि 4 से अधिक ग्रहण बहुत कम होते है।
प्रत्येक ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुनः होता है। किन्तु वह अपने के स्थान में ही हो यह निश्चित नहीं है, क्योंकि सम्पात बिन्दु निरन्तर चल रहे है। - साधारणतः सूर्यग्रहण की अपेक्षा चन्द्रग्रहण अधिक देखे जाते हैं, लेकिन चन्द्रग्रहण से अधिक सूर्यग्रहण होते है।
चन्द्रग्रहणों अधिक देखे जाते है इसलिए वे पृथ्वी के आधे से अधिक भाग में दिखाई देते है। जब सूर्यग्रहण पृथ्वी के बहुत बङे भाग में सौ मील से कम चौड़े और दो से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में दिखाई देते है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण – Suraj Grahan
1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक ने सूर्यग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था।
सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 11 मिनट ही हो सकती है उससे अधिक नहीं हो सकती।
चंन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में ही देखा जा सकता है।
ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएँ घटित होती हैं, जिससे कि वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है।
भारतीय वैदिक काल और सूर्य ग्रहण
वैदिक काल से पूर्व भी खगोलीय संरचना पर आधारित कलैन्डर बनाने की आवश्यकता अनुभव की गई। ऋग्वेद के अनुसार अत्रिमुनि के पास यह ज्ञान उपलब्ध था।
वैदिक काल से ग्रहण पर अध्ययन, मनन और परीक्षण होते चले आए हैं। इस पर धार्मिक, वैदिक, वैचारिक, वैज्ञानिक, विवेचन धार्मिक एवं ज्योतिषीय ग्रन्थों में होता चला आया है।
महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे।
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से सूर्य ग्रहण – Suraj Grahan
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में आ जाता है। तब चंद्रमा के पीछे सूर्य का एक परछाई के चलते सूर्य को ढक लेती है इसे ही सूर्यग्रहण कहते है।
जिस तरह से धरती सूर्य की परिक्रमा करती है। उसी तरह से चंद्रमा भी धरती की परिक्रमा करने के साथ-साथ सूर्य की परिक्रमा भी करती है। इसी वजह से सूर्यग्रहण के दौरान पृथ्वी, चंद्रमा और सूरज एक ही सीधी लाइन में आ जाते है। जिसके चलते सूर्य आंशिक या पूरी तरह से ढक जाता है। वह सूरज की कुछ या बहुत ही रोशनी रोक लेता है। जिससे धरती पर अंधेरा फैल जाता है इस घटना को सूर्यग्रहण कहा जाता है। यह घटना अमावस्या को होती है।
ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से सूर्य ग्रहण – Surya Grahan
सूर्यग्रहण प्रकृति का अद्भुत चमत्कार है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्यग्रहण तब होता है, जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चन्द्रमा द्वारा आवृत होता है। पृथ्वी और सूर्य के बीच जब चन्द्रमा आ जाता है तो उस समय सूर्यग्रहण होता है। इस समय पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का आवृत भाग दिखाई नहीं देता।
सूर्यग्रहण होने के निम्न कारण होने आवश्यक है –
- पूर्णिमा या अमावस्या होनी चाहिए।
- चन्द्रमा का रेखांश राहु या केतु के पास होना चाहिए।
- चन्द्रमा का अक्षांश शून्य के निकट होना चाहिए।
सूर्यग्रहण के दिन सूर्य और चन्द्र के कोणीय व्यास एक समान होते है।
सूर्यग्रहण के समय धार्मिक मान्यताएँ – Suraj Grahan
ऋषि -मुनियों की यह मान्यता है कि जब सूर्यग्रहण लगता है तो उस समय भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि सूर्यग्रहण के दौरान बहुत सारे कीटाणु फैल जाते है। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते है। ऋर्षियों की मान्यता है कि सूर्यग्रहण के दौरान पात्रों को कुश डालना चाहिए जिससे सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाते है और उन कीटाणु को सूर्यग्रहण होने के बाद फेंका दिया जाता है।
पात्रों में अग्नि डाली जाती है और उन्हें पवित्र बनाया जाता है। सूर्यग्रहण के बाद स्नान करने की सलाह दी जाती है ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़ता है और इससे अंदर-बाहर के कीटाणु भी नष्ट हो जाते है।
पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चन्द्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की सन्तान हैं। चन्द्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। गर्भवती स्त्री को सूर्यग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योंकि बुरे प्रभाव के कारण शिशु अंगहीन होकर विकलांग हो सकता है।
सूर्यग्रहण के दौरान गर्भपात की सम्भावना भी बढ़ जाती है। गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। सूर्यग्रहण के समय गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और वस्त्र को सिलने से रोका जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल जाते है।
सूर्यग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करना चाहिए। सूर्यग्रहण के दौरान कोई कार्य नहीं करना चाहिए। सूर्यग्रहण के समय मंत्रों का जाप किया जाता है तो इससे सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
इस अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीङा करना, मंजन करना वर्जित माना जाता है। सूर्यग्रहण के बाद स्नान करके ब्राह्मण को दान देना अच्छा कार्य माना जाता है। सूर्यग्रहण के बाद नया भोजन पकाया जाता है और ताजा पानी भरकर पिया जाता है। सूर्यग्रहण के बाद डोम को दान दिया जाना चाहिए, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना जाता है।
ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। सूर्यग्रहण के दौरान वर्जित के दौरान वर्जित कार्य – बाल तथा वस्त्र नहीं निचोङने चाहिए व दंत धावन नहीं करना चाहिये, ग्रहण के समय ताला नहीं खोलना चाहिए, सोना, मल मूत्र का त्याग नहीं करना और भोजन नहीं करना चाहिए। सूर्यग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकङी और फूल नहीं तोङने चाहिए। सूर्यग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमन्दों को वस्त्र दान करने से पुण्य प्राप्त होता है।
सूर्य ग्रहण के समय आध्यात्मिक दृष्टिकोण
सूर्य में अद्भूत शक्तियाँ निहित होती है। जब सूर्यग्रहण होता है तब सूर्य अपनी पूर्ण क्षमता से इन शक्तियों को विर्कीण करता है, इसको ध्यान-मनन के प्रयोगों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु उतना ही जितना कि हमारे शरीर में क्षमता होती है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है – अंगीकार या स्वीकार करना। शास्त्रों के अनुसार सूर्यग्रहण के दौरान उत्तम यौगिक क्रिया, पूजा अनुष्ठान, मन्त्र सिद्धि, तीर्थ स्नान, जप दान आदि का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। कुछ बुद्धिजीवी लोगों की मान्यता है कि ध्यान मनन, जाप, उपवास आदि अन्धविश्वास है, इन सबका कोई औचित्य नहीं है।
सूर्य ग्रहण से जुङे कुछ तथ्य – Surya Grahan
ऐसा माना जाता है कि जब सूर्यग्रहण लगता है या फिर सूतक लगता है, तो दरमियान व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए ना ही कुछ भी खाना चाहिए। प्रेग्रेंट औरतें को ग्रहण काल के दौरान घर से बाहर नहीं दिया जाना चाहिए। क्योंकि ग्रहणकाल के दौरान नेगेटिव एनर्जी अपनी चरम सीमा पर होती है।
अगर कोई महिला घर से बाहर जाती है तो उसके ऊपर केतु और राहु जैसे खराब ग्रहों और नेगेटिव एनर्जी का इफेक्ट पङ सकता है। इसी वजह से प्रेग्रेंट औरत और उसके बच्चे को नुकसान हो सकता है। सूर्यग्रहण के दौरान ऐसा भी माना जाता है कि अगर कोई महिला घर से बाहर जाती है, तो उसका गर्भपात होने की संभावना काफी अधिक हो जाती है। ग्रहण काल के दिन महिलाओं को सिलाई करने से भी मना किया जाता है।
सूर्यग्रहण के दौरान हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार और पंडितोें के अनुसार लोगों को पानी नहीं पीना चाहिए और खाना नहीं खाना चाहिए। पति पत्नी को आपस में संबंध नहीं बनाना चाहिए। दांतों को ब्रश नहीं करना चाहिए, बालों में कंघी नहीं करनी चाहिए और तेल से मालिश नहीं करनी चाहिए।
जब सूर्यग्रहण लगता है तब वैज्ञानिक लोग नंगी आंखों से सूर्यग्रहण को देखने के लिए मना करते हैं क्योंकि अगर व्यक्ति नंगी आंखों से सूर्यग्रहण देखते हैं तो सूरज के अंदर से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें आपकी आंखों को प्रभावित करता है। जिस वजह से व्यक्ति अंधा भी हो सकता है या फिर उसकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
इसी कारण जब सूर्यग्रहण होता है तो उसे हाई-फाई टेलिस्कोप द्वारा देखने की सलाह दी जाती है। सूर्यग्रहण के दौरान महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र जैसे पवित्र मंत्रों का जाप करना चाहिए। क्योंकि इससे पाॅजिटिव एनर्जी आती है जो सूतक और सूर्यग्रहण के खराब इंफेक्ट को कम करती है।
FAQ – Surya Grahan
1. सूर्य ग्रहण किसे कहते है – Surya Grahan kise kahate Hain
उत्तर – जब पृथ्वी तथा सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता हैं, तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहंुच पाता और पृथ्वी की सतह से कुछ हिस्से पर अंधेरा छा जाता है, इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते है।
2. सूर्य ग्रहण कैसे होता है – Surya Grahan Kaise Hota Hai
उत्तर – सूर्यग्रहण सूर्य व पृथ्वी के मध्य चन्द्रमा के आने के कारण होता है। जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में आता है तो पृथ्वी से सूर्य का प्रकाशित भाग दिखाई नहीं देता अर्थात् उस समय पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश न पङकर चन्द्रमा की परछाई पङती है। इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते है। सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को होता है।
3. सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर – सूर्यग्रहण तीन प्रकार का होता है –
(1) पूर्ण सूर्यग्रहण
(2) आंशिक सूर्यग्रहण
(3) वलयाकार सूर्यग्रहण।