आज की इस पोस्ट में कोशिका सिद्धांत (The Cell Theory) के बारे में जानकारी दी गई है तथा विभिन्न वैज्ञानिको के कोशिका सिद्धांत के सिद्धांत भी दिए गए है
कोशिका सिद्धान्त (The Cell Theory)
सरल सूक्ष्मदर्शी की खोज ने वैज्ञानिकों को विभिन्न प्रकार के जीवधारियों के गहन अध्ययन का अवसर प्रदान किया। एम. श्लीडेन (M. Schleiden 1804-1881) नामक जर्मन वनस्पति शास्त्री ने अनेक प्रकार के पादप ऊतकों का अध्ययन किया। उन्होंने 1838 में निष्कर्ष निकाला कि सभी पादप ऊतकों की संरचनात्मक इकाई कोशिका है।
इसी समय जर्मनी के प्राणिविज्ञानी थियोडोर श्वान (Theodore Schwann 1810-1882) विभिन्न प्रकार के जन्तुओं के अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कोशिका भित्ति को छोङकर सभी पादप व जन्तु कोशिकाओं में अत्यधिक समानता होती है।
श्लीडेन व श्वान ने एक-दूसरे के निष्कर्षों का अध्ययन किया व मिलकर 1838-1839 में कोशिका सिद्धान्त(Cell Theory) की अवधारणा प्रस्तुत की। उनके अनुसार सभी जन्तुओं व पादपों का शरीर कोशिकाओं या कोशिकाओं के उत्पादों का बना होता है। इसी को कोशिका सिद्धान्त कहा गया।
यह सिद्धान्त इस तथ्य की व्याख्या करने में सक्षम नहीं था कि नई कोशिकाओं की उत्पत्ति किस प्रकार होती है।
रूडोल्फ वरचो(Rudolf Virchow)
यह रूडोल्फ वरचो (Rudolf Virchow 1855) थे जिन्होंने पहली बार बताया कि कोशिकाएँ विभाजित होती है तथा नई कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती (pre existing) कोशिकाओं से होती है। उन्होंने अपनी अवधारण ओम्निस सेल्युला ए सेल्युला (Omnia Cellula-e-Cellula) के रूप में प्रस्तुत की। यह उदाहरण बताता है कि कैसे संकल्पना (hypothesis) एक सिद्धान्त (theory) में बदल जाती है।
नेगेली (Nageli) व रूडोल्फ वरचों द्वारा संशोधित करने के पश्चात् कोशिका सिद्धान्त बदले रूप में प्रस्तुत हुआ। आज इसे इस प्रकार समझा जाता है-
✔️ सभी जीव कोशिकाओं व उनके उत्पादों के बने होते है।
⇒ नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिकाओं के विभाजन से होता है।
✔️ कोशिका सजीव शरीर की संरचनात्मक व कार्यात्मक इकाई (Structural and functional unit) है।
कोशिका सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु है।
कुछ अन्य(Cell Theory)
कुछ अन्य बिन्दु भी जोङे जा सकते है। जैसे-
✔️ सभी कोशिकाएँ रासायनिक संघटन व उपापचयों क्रियाओं व अन्तर क्रियाओं का परिणाम होते है।
✔️ कोशिका में जीव के आनुवंशिक गुण निहित होते है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन की निरन्तरता (perpetuation) कोशिकाओं द्वारा ही नियंत्रित होती है।
विषाणुओं (Viruses) को कोशिका सिद्धान्त का अपवाद कहा जाता है क्योंकि विषाणुओं में कोशिकीय संरचना नहीं होती है। इनमें स्वतंत्र विभाजन की क्षमता नहीं पायी जाती। यह ऐसे अविकल्पी अन्तः कोशिकीय परजीवी (obligate intracellular parasites) है जो केवल पोषक कोशिका की कोशिकीय कार्य प्रणाली (cellular machinery) का प्रयोग कर गुणन (multiplication) कर पाते हैं। वास्तव में विषाणुओं को सजीव व निर्जीव के बीच की कङी माना जाता है।
सजीव कोशिकाओं के विपरीत विषाणुओं में केवल एक प्रकार का ही नाभिकीय अम्ल (डी. एन. एन अथवा आर. एन. ए.) पाया जाता है।
कोशिका एक स्वायत्तशासी इकाई (autonomous unit) के रूप में कार्य कर सभी मौलिक क्रियाओं को सम्पन्न करती है। अपनी स्वयं की गतिविधियों का नियमन करके यह कोशिका के लिए आवश्यक भौतिक रासायनिक परिस्थितियों को बनाये रखती है।
अन्य जानकारी
सभी जीवों की कोशिकाएँ मौलिक रूप से समान होती है। इनमें आनुवांशिक पदार्थ डी. एन. ए होता है। कोशिका कला की मौलिक संरचना व कार्य लगभग समान होते है। वायवीय श्वसन की क्रिया सभी जीवधारियों में समान होती है। नाभिकीय अम्ल व प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया भी समान होती है। लेकिन इसके बावजूद जीवों की कोशिकाएँ भिन्न-भिन्न कार्यों को करने के लिए अनुकूलित हो जाती है।
यह अनुकूलन ही उनमें पायी जाने वाली विभिन्नताओं का कारण है। पेङ-पौधे प्रायः अचल व स्वपोषी होते है। जबकि जन्तु चलायमान (motile) होते है, तथा विषमपोषी प्राणिसम (Heterotrophic holozoic) पोषण प्रदर्शित करते है।
स्वभाव की इस विविधता के कारण उनकी कोशिकाओं में अन्तर पाये जाते है।