आज के आर्टिकल में हम मुदालियर आयोग 1952( Mudaliar Commission) की चर्चा विस्तार से करेंगे। इस आयोग द्वारा शिक्षा के लिए उठाए गए मुद्दों पर बात करेंगे।
मुदालियर आयोग – 1952
मुदालियर आयोग माध्यमिक शिक्षा के ढाँचे में सुधार लाने के लिए गठित किया गया था। भारत सरकार ने 23 सितम्बर, 1952 को डाॅ. लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में ’माध्यमिक शिक्षा आयोग’ की स्थापना की थी। उन्हीं के नाम पर इसे ’मुदालियर कमीशन’ कहा गया। आयोग ने पाठ्यक्रम में विविधता लाने एक मध्यवर्ती स्तर जोङने, त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने इत्यादि की सिफारिश की।
मुदालियर आयोग के सदस्य – Mudaliyar Aayog ke Sadasya
- प्रिंसिपल जाॅन क्रिस्टी
- डाॅ. केनेथ रस्ट विलियम्स
- श्री मती हंसा मेहता
- श्री जे. ए. तारापोरवाला
- डा. के. एल. श्री माली
- श्री. एम. टी. व्यास
- श्री. के जी. सैयदैन
- श्री. ए. एस. बसु सहायक सचिव
मुदालियर आयोग के उद्देश्य – mudaliyar aayog ke uddeshy
- भारत में तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का अध्ययन कर उसे संबंध में सुझाव देना।
- आदर्श नागरिक तैयार करना।
- मानवीय गुणों का विकास।
- प्रजातंत्रीय नागरिकता का विकास करना।
- बच्चों को व्यावसायिक ज्ञान होना चाहिए।
- बालक के व्यक्तित्व के विकास की सभी संभावनाओं पर विचार करके उनके अनुसार कार्य करना तथा उसे एक अच्छे नागरिक बनने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के गुण – Mudaliyar Aayog ke Gun
(1) पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्त – माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या को व्यापकता, वास्तविक, उपयोगिता और सहसंबंध पर विकसित करने का सुझाव दिया।
(2) स्त्री शिक्षा के सम्बद्ध में सुझाव – इस आयोग ने बालक-बालिकाओं की शिक्षा में असमानता न करने का सुझाव दिया है और बालिकाओं को बालकों की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
(3) शिक्षा के उपयुक्त उद्देश्य – छात्रों का व्यक्तित्व विकास किया जायेगा, जिसमें उनका शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, नैतिक और चारित्रिक विकास होना चाहिए।
(4) व्यवस्थित प्रशासनिक ढांचा – माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था में केंद्र सरकार की भागीदार होनी चाहिए। केंद्र की तरह राज्यों में भी ’राज्यीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ की स्थापना की जानी चाहिए।
(5) शिक्षकों की स्थिति में सुधार – शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव दिये जायेंगे।
माध्यमिक शिक्षा के दोष – Madhyamik Shiksha Aayog ke Dosh
(1) बोझिल पाठ्यचर्या – माध्यमिक स्तर पर तीन भाषाएँ और आठ विषयों का अध्ययन लगता है आयोग बच्चों को एक साथ ही सब पङा देना चाहता है।
(2) अंग्रेजी के बारे में अस्पष्ट सुझाव – आयोग ने अंग्रेजी को अनिवार्य विषयों की सूची में रखा है तथा अंग्रेजी के अध्ययन के विषय में अस्पष्ट सुझाव दिये है।
(3) गैरसरकारी स्कूलों का अस्पष्ट सुझाव – इस आयेाग ने गैरसरकारी माध्यमिक सुझावों में सुधार करने के लिए जो सुझाव दिए है वो सुझाव आज की परिस्थिति में अनुकूलन नहीं है।
(4) अनेक प्रकार के पाठ्यक्रम – आयोग ने माध्यमिक स्तर पर अलग-अलग पाठ्यक्रम बनाया है, यह उपयुक्त नहीं है।
माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन हेतु नया प्रारूप
- माध्यमिक शिक्षा की अवधि 7 वर्ष की होनी चाहिए। इसका प्रारम्भ प्राथमिक शिक्षा (जूनियर बेसिक) की कक्षा 5 उत्तीर्ण के बाद होना चाहिए।
- माध्यमिक शिक्षा की यह अवधि दो भागों में विभाजित होनी चाहिए।
(1) 3 वर्ष तक जूनियर शिक्षा (2) 4 वर्ष तक उच्च माध्यमिक शिक्षा - 11 वीं व 12 वीं कक्षा के इन्टरमीडिएट कक्षा को बदलकर 11 वीं कक्षा को हाईस्कूल तथा 12 वीं कक्षा को विश्वविद्यालय से जोङ दिया जाना चाहिए।
- नेत्रहीन व मूक बधिर व्यक्तियों की शिक्षा के लिए भी विद्यालयों का प्रबन्ध होना चाहिए।
- ग्रामीण विद्यालयों में कृषि-शिक्षा का विशेष प्रबन्ध होना चाहिए। और उद्यान कला, पशुपालन, कुटीर उद्योगों की शिक्षा का प्रबन्धन भी किया जाना चाहिए।
- स्नातक पाठ्यक्रम 3 वर्ष का कर दिया जाना चाहिए और माध्यमिक काॅलेजों से विश्विद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए एक वर्ष का पूर्व- विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम रखा जाना चाहिए।
- कक्षा 11 तक पास होने वाले छात्रों को विभिन्न व्यवसायिक व प्राविधिक संस्थानों में प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए।
- पर्याप्त संख्या में पाॅलीटेकिन्क और टेक्निकल विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
- सरकार द्वारा उद्योगों पर उद्योग-शिक्षा कर लगाकर इससे प्राप्त धन टेक्निकल शिक्षा विस्तार पर व्यय करना चाहिए।
- योग्य छात्रों को छात्रवृत्तियों दी जानी चाहिए।
- माध्यमिक स्तर पर कुछ विशेष आवासीय स्कूल भी खोले जाए, जिनमें बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाए।
- बालक-बालिकाओं की शिक्षा में विशेष अन्तर की आवश्यकता न होने पर भी, बालिकाओं (लङकियों) के लिए ’गृहविज्ञान’ के अध्ययन की समुचित व्यवस्था आवश्यक रूप से होनी चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के पाठ्यक्रम संबंधी सुझाव
भाषाओं को पढ़ाने के लिए 5 भाषा-समूह पर विचार करना चाहिए।
- मातृभाषा
- प्रादेशिक भाषा
- शास्त्रीय भाषाएं जैसे – संस्कृत, अरबी, लेटिन और फारसी
- राष्ट्रभाषा हिंदी
- अंग्रेजी
- सामान्य विज्ञान
- गणित
- सामाजिक विषय
- कला व संगीत
- हस्तशिल्प
- शारीरिक शिक्षा
- त्रिभाषा सूत्र (मातृभाषा, अंग्रेजी और हिन्दी)।
अन्य प्रावधान –
- विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिंदी अनिवार्य विषय होना चाहिए, यह केंद्र की सरकारी भाषा है।
- माध्यमिक शिक्षा आयोग ने पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा को भी शामिल किया है।
- माध्यमिक स्तर पर भी मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा में शिक्षा होनी चाहिए।
- माध्यमिक स्तर पर अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनाया जाएगा, क्योंकि यह राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की भाषा है।
पाठ्यक्रम के विषय
मिश्रित व जूनियर हाईस्कूल के विषय –
(1) भाषा
(2) सामाजिक विज्ञान
(3) सामान्य विज्ञान
(4) गणित
(5) कला व संगीत
(6) शिल्प
(7) शारीरिक शिक्षा
उच्च एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर पर विषय –
(1) भाषाए
(2) सामान्य विज्ञान
(3) सामाजिक विज्ञान
(4) हस्त शिल्प
इन सभी विषयों के अंतर्गत निम्न समूह भी होंगे।
(1) कृषि विज्ञान
(2) मानव विज्ञान
(3) ग्रह विज्ञान
(4) वाणिज्य
(5) ललित कलाएं
(6) प्राविधिक
(7) विज्ञान
पाठ्यपुस्तकें
- एक विषय के लिए कई पाठ्यपुस्तकें निर्धारित होनी चाहिए।
- पाठ्यपुस्तकों का चयन करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का निर्माण किया जाना चाहिए।
- पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन होना चाहिए।
अध्यापकों की नियुक्ति
- सारे विद्यालयों में शिक्षकों के चयन और नियुक्ति की एक ही प्रणाली होनी चाहिए।
- जिन शिक्षकों की समान योग्यता और समान कार्य के लिए उनके लिए समान वेतन होना चाहिए।
- शिक्षकों का प्रशिक्षण काल एक ही वर्ष को होना चाहिए।
- वर्तमान की परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए शिक्षकों के वेतन के संबंध में अपने राय देने के लिए सरकार के द्वारा विशेष समितियाँ नियुक्त की जानी चाहिए।
- शिक्षकों द्वारा प्राइवेट ट्यूशन बंद होना चाहिए।
- अध्यापकों को पेेंशन, जीवन बीमा, निवास स्थान तथा चिकित्सा आदि की सुविधाएं दी जानी चाहिए।
परीक्षाओं एवं शैक्षणिक मूल्यांकन संबंधी सुझाव
- विद्यालयों में केवल एक ही सार्वजनिक परीक्षा होनी चाहिए।
- परीक्षाओं में निबन्धात्मक परीक्षा के स्थान पर वस्तुनिष्ठ परीक्षा को स्थान दिया जाना चाहिए।
- विद्यार्थियों के कार्य का अन्तिम मूल्यांकन करते समय उनके कक्षा कार्य आन्तरिक परीक्षाओं तथा विद्यालय अभिलेखों को समुचित महत्त्व दिया जायेगा।
- प्रत्येक विद्यार्थी का विद्यालय अभिलेख रखा जाना चाहिए।
निर्देशन एवं परामर्श
विभिन्न प्र्रकार के पाठ्यक्रम की योजना को सफल बनाये रखने के लिए माध्यमिक विद्यालयों में निर्देशन तथा परामर्श की व्यवस्था हेतु आयोग ने सुझाव दिये है –
- विद्यालयों में प्रशिक्षित निर्देशन अधिकारियों एवं जीविकोपार्जन शिक्षकों की नियुक्त की जानी चाहिए।
- शिक्षा के अधिकारियों को विद्यार्थियों के शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- विद्यार्थियों की रुचियों, योग्यताओं और भिन्नताओं के आधार पर उनके निर्देशन की व्यवस्था भी की जायेगी।
- केन्द्र सरकार द्वारा अधिकारियों तथा शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र खोल जायेंगे।
प्रशासन एवं वित्त संबंधी सुझाव
- प्रत्येक प्रांत में ’प्रांतीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ की स्थापना की जायेगी, जो समय-समय पर प्रांतीय शिक्षा की व्यवस्था के संबंध में अपने सुझाव दें।
- प्रांतों में ’माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ का गठन किया जायेगा।
- शिक्षा निदेशक का कार्य होगा कि वह शिक्षा मंत्री को शिक्षा के संबंध में सलाह देगा।
चरित्र निर्माण की शिक्षा
- विद्यार्थियों में अनुशासन की स्थापना के लिए शिक्षक एवं छात्र के सम्बन्ध मधुर तथा घनिष्ठ होने चाहिए।
- शिक्षकों पर विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण का उत्तरदायित्व भी होता है। इसलिए शिक्षकों को भी विद्यालय के कार्यों की योजना इस प्रकार करनी चाहिए कि जिससे छात्रों के चरित्र-निर्माण में सहायता मिल सके।
- अगर विद्यार्थी की आयु 17 वर्ष से कम है, तो उसका राजनैतिक प्रचार के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
- विद्यार्थियों को स्वशासन के अवसर प्राप्त होने चाहिए ताकि उनमें आत्मविश्वास, स्वावलम्बन, अनुशासन और नेतृत्व आदि गुणों का विकास हो।
माध्यमिक शिक्षा का प्रशासन
- केन्द्र तथा राज्यों में एक समन्वय समिति गठित की जायेगी जो शिक्षा से संबंधित समस्याओं पर विचार करेगी।
- प्रत्येक राज्य में शिक्षा संचालक की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा परिषद का गठन किया जायेगा।
- एक शिक्षक परिषद् की स्थापना की जायेगी, जिससे शिक्षकों के प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था हो सके।
- एक शिक्षा संचालक होगा, जिसका कार्य प्रशासन से संबंधित समस्याओं पर शिक्षा मंत्री को परामर्श देगा।
- प्रधानाचार्य को विद्यालय के आन्तरिक मामलों में पूरी स्वतन्त्रता भी होगी।
- विद्यालयों का निरीक्षण भी किया जायेगा।
आर्थिक समस्या संबंधी सुझाव
- राज्य तथा केंद्र सरकार के सहयोग से ही कार्य चलना चाहिए। व्यावसायिक शिक्षा के विकास के लिए ‘बोर्ड ऑफ़ वोकेशनल एजुकेशन’ का निर्माण होगा, जिसमें संबंधित मंत्रालयों के चुने हुए प्रतिनिधि होंगे।
- शिक्षा संस्थाओं की समिति और खेल के मैदानों पर संपत्ति कर नहीं लगाया जाना चाहिए।
- केन्द्र सरकार द्वारा माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन की जिम्मेदारी वहन करेंगी।
मुदालियर आयोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्र. 1 माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन कब किया गया ?
उत्तर – 23 सितम्बर 1952
प्र. 2 माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर – डाॅ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर।
प्र. 3 माध्यमिक शिक्षा आयोग के अन्य सदस्य कौन थे ?
उत्तर – डाॅ. श्रीमाली, श्रीमती हंसा मेहता, डाॅ. केनेथ रस्ट विलियम, जाॅन क्रिस्ती, डाॅ. के. जी सैयदन, श्री एम. टी. व्यास।
प्र. 4 स्वतन्त्र भारत का माध्यमिक शिक्षा से संबंधित आयोग कौन सा है ?
उत्तर – मुदालियर आयोग
प्र. 5 मुदालियर आयोग का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर – माध्यमिक शि़क्षा आयोग
प्र. 6 माध्यमिक शिक्षा आयोग का कार्यक्षेत्र क्या था ?
उत्तर – ’भारत की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के सभी पक्षों की जाँच करना एवं उनके विषय में रिपोर्ट देना और उसके विषय में रिपोर्ट देना और उसके पुनर्गठन एवं सुधार के सम्बन्ध में सुझाव देना।’’
प्र. 7 मुदालियर आयोग के अनुसार माध्यमिक शिक्षा किस भाषा में दी जानी चाहिए ?
उत्तर – मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा
प्र. 8 माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को कब प्रेषित की ?
उत्तर – 29 अगस्त 1953
प्र. 9 माध्यमिक शिक्षा आयोग के उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर – व्यक्तित्व का विकास, लोकतन्त्रीय नागरिकता का विकास, नेतृत्व शक्ति का विकास, व्यावसायिक कुशलता का विकास।
प्र. 10 प्रान्तों में तकनीकी शिक्षा बोर्ड स्थापित करने का सुझाव दिया ?
उत्तर – माध्यमिक शिक्षा अयोग
प्र. 11 मुदालियर आयोग ने किस बोर्ड के गठन का सुझाव दिया था ?
उत्तर – प्रांतीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड
प्र. 12 नेत्रहीन या मूकबधिर व्यक्तियों के लिए विद्यालय खोलने का सुझाव किस आयोग द्वारा दिया गया ?
उत्तर – मुदालियर आयोग
प्र. 13 माध्यमिक शिक्षा आयोग ने पाठ्यक्रम में हिन्दी के अलावा और किस भाषा को शामिल किया है ?
उत्तर – संस्कृत भाषा