दोस्तो अगर आप हिन्दी व्याकरण में समास(Samas) को अच्छी तरह से समझना चाहते हो तो आप इस पोस्ट को पूरी पढे और अपने रजिस्टर में नोट कर लेवें ।
समास – Samas
समास की परिभाषा – Samas ki Paribhasha
‘संक्षिप्तीकरण’ और इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम- से- कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समासSamas) कहलाता है।
- समास रचना में दो पद होते हैं |
- समास में पूर्वपद और उत्तरपद क्या होता है ?
आइए जानें ⇓⇓
पहले पद को ‘पूर्वपद ‘ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद ‘ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे :-
- छात्रों के लिए आवास = छात्रावास
- पशुओं के लिए शाला = पशुशाला
- नील और कमल = नीलकमल
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
सामासिक शब्द क्या होता है ?
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास बनने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।
जैसे :-
- रेलभाड़ा
समास विग्रह (Consolidation of grace)
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किये जाते हैं उसे समास- विग्रह कहते हैं।
जैसे :-
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
समास और संधि में क्या अंतर है ?
संधि और समास का अंतर इस प्रकार है-
1. समास में दो पदों का योग होता है, किंतु संधि में दो वर्णों का।
2. समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते है। संधि के लिए दो वर्णों के मेल और विकार की गुंजाइश रहती है, जबकि समास को इस मेल या विकार से कोई मतलब नहीं।
3. संधि के तोङने को ’विच्छेद’ कहते हैं, जबकि समास का ’विग्रह’ होता है। जैसे, ’पीतांबर में दो पद हैं – ’पीत’ और ’अंबर’। संधि विच्छेद होगा -पीत+अम्बर, जबकि समासविग्रह होगा -पीत है जो अंबर या पती है जिसका अंबर – पीतांबर।
यहाँ ध्यान देने की बात है कि हिंदी में संधि केवल तत्सम पदों में होताी है, जबकि समास संस्कृत, तत्सम, हिंदी, उर्दू हर प्रकार के पदों में । यही कारण है कि हिंदी पदों के सामस में संधि आवश्यक नहीं है।
चलो, कुछ सरल भाषा मे भी समझ लेते है ⇓⇓
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है।
संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।
जैसे –
- पुस्तक +आलय = पुस्तकालय।
या (or)
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है।
समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।
जैसे :-
- विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।
दोस्तो उपमान व उपमेय क्या होता है ?
उपमान क्या होता है ⇓⇓
जिससे किसी को उपमा दी जाती है उसे उपमान कहते हैं।
उपमेय क्या होता है ⇓⇓
जिसको उपमा दी जाती है उसे उपमेय कहते हैं।
अब हम समास के भेदों को अच्छी तरह से समझेंगे
समास के भेद – Samas ke Bhed
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास
- बहुब्रीहि समास
प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद⇓⇓
- संयोगमूलक समास
- आश्रयमूलक समास
- वर्णनमूलक समास
अव्ययीभाव समास क्या होता है ?
इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
√ विशेष : इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही माने जाते हैं।
जैसे :-
- यथाविधि – विधि के अनुसार
- यथाक्रम – क्रम के अनुसार
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- यथासंभव – संभावना के अनुसार
- यथासाध्य – साध्य के अनुसार
- आजन्म – जन्म तक
- आमरण – मरण तक
- यावज्जीवन – जब तक जीवन है
- व्यर्थ – बिना अर्थ का
- यथानियम = नियम के अनुसार
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- प्रतिवर्ष =हर वर्ष
- यथासाध्य = जितना साधा जा सके
- प्रति + कूल = प्रतिकूल
- आ + जन्म = आजन्म
- प्रति + दिन = प्रतिदिन
- यथा + संभव =यथासंभव
- अनु + रूप =अनुरूप।
- पेट + भर =भरपेट
- आजन्म – जन्म से लेकर
- यथास्थान – स्थान के अनुसार
- आमरण – मृत्यु तक
- अभूतपूर्व – जो पहले नहीं हुआ
- निर्भय – बिना भय के
- निर्विवाद – बिना विवाद के
- निर्विकार – बिना विकार के
- प्रतिपल – हर पल
- अनुकूल – मन के अनुसार
- अनुरूप – रूप के अनुसार
- यथासमय – समय के अनुसार
- यथाक्रम – क्रम के अनुसार
- यथाशीघ्र – शीघ्रता से
- अकारण – बिना कारण के
- धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
- घर-घर = प्रत्येक घर
- रातों रात = रात ही रात में
- यथाकाम = इच्छानुसार
तत्पुरुष समास क्या होता है ?
इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुड़ा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास(Tatpurush Samas) कहते हैं।
जैसे :-
- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- शर से आहत = शराहत
- राह के लिए खर्च = राहखर्च
- तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
- राजा का महल = राजमहल
तत्पुरुष समास के भेद – Tatpurush samas ke bhed
वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं :-
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
1. कर्म तत्पुरुष समास क्या होता है ?
इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
- सर्वभक्षी – सब का भक्षण करने वाला
- यशप्राप्त – यश को प्राप्त
- मनोहर – मन को हरने वाला
- गिरिधर – गिरी को धारण करने वाला
- कठफोड़वा – कांठ को फ़ोड़ने वाला
- शत्रुघ्न – शत्रु को मारने वाला
- गृहागत – गृह को आगत
- मुंहतोड़ – मुंह को तोड़ने वाला
- कुंभकार – कुंभ को बनाने वाला
2. करण तत्पुरुष समास क्या होता है
जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है । करण कारक का चिन्ह य विभक्ति ‘ के द्वारा ‘ और ‘ से ‘ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे :-
- सूररचित – सूर द्वारा रचित
- तुलसीकृत – तुलसी द्वारा रचित
- शोकग्रस्त – शोक से ग्रस्त
- पर्णकुटीर – पर्ण से बनी कुटीर
- रोगातुर – रोग से आतुर
- अकाल पीड़ित – अकाल से पीड़ित
- कर्मवीर – कर्म से वीर
- रक्तरंजित – रक्त से रंजीत
- जलाभिषेक – जल से अभिषेक
- करुणा पूर्ण – करुणा से पूर्ण
- रोगग्रस्त – रोग से ग्रस्त
- मदांध – मद से अंधा
- गुणयुक्त – गुणों से युक्त
- अंधकार युक्त – अंधकार से युक्त
- भयाकुल – भी से आकुल
- पददलित – पद से दलित
- मनचाहा – मन से चाहा
- स्वरचित =स्व द्वारा रचित
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- भुखमरी = भूख से मरी
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
- मदांध =मद से अँधा
- रसभरा =रस से भरा
- आचारकुशल = आचार से कुशल
- भयाकुल = भय से आकुल
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास क्या होता है
इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ के लिए ‘ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि
- रसोईघर – रसोई के लिए घर
- सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
- हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
- धर्मशाला – धर्म के लिए शाला
- पुस्तकालय – पुस्तक के लिए आलय
- देवालय – देव के लिए आलय
- भिक्षाटन – भिक्षा के लिए ब्राह्मण
- राहखर्च – राह के लिए खर्च
- विद्यालय – विद्या के लिए आलय
- विधानसभा – विधान के लिए सभा
- स्नानघर – स्नान के लिए घर
- डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
- परीक्षा भवन – परीक्षा के लिए भवन
- प्रयोगशाला – प्रयोग के लिए शाला
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- देवालय = देव के लिए आलय
- गौशाला = गौ के लिए शाला
4. अपादान तत्पुरुष समास क्या होता है
इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ से अलग ‘ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- जन्मांध – जन्म से अंधा
- कर्महीन – कर्म से हीन
- वनरहित – वन से रहित
- अन्नहीन – अन्न से हीन
- जातिभ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
- नेत्रहीन – नेत्र से हीन
- देशनिकाला – देश से निकाला
- जलहीन – जल से हीन
- गुणहीन – गुण से हीन
- धनहीन – धन से हीन
- स्वादरहित – स्वाद से रहित
- ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
- पापमुक्त – पाप से मुक्त
- फलहीन – फल से हीन
- भयभीत – भय से डरा हुआ
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- दूरागत =दूर से आगत
- रणविमुख = रण से विमुख
- नेत्रहीन = नेत्र से हीन
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- पदच्युत =पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
5.सम्बन्ध तत्पुरुष समास क्या होता है
इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘ का ‘,’के’,’की’होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- जलयान – जल का यान
- छात्रावास – छात्रावास
- चरित्रहीन – चरित्र से हीन
- कार्यकर्ता – कार्य का करता
- विद्याभ्यास – विद्या अभ्यास
- सेनापति – सेना का पति
- कन्यादान – कन्या का दान
- गंगाजल – गंगा का जल
- गोपाल – गो का पालक
- गृहस्वामी – गृह का स्वामी
- राजकुमार – राजा का कुमार
- पराधीन – पर के अधीन
- आनंदाश्रम – आनंद का आश्रम
- राजपूत्र – राजा का पुत्र
- विद्यासागर – विद्या का सागर
- राजाज्ञा – राजा की आज्ञा
- देशरक्षा – देश की रक्षा
- शिवालय – शिव का आलय
- राजपुत्र = राजा का पुत्र
- गंगाजल =गंगा का जल
- लोकतंत्र = लोक का तंत्र
- दुर्वादल =दुर्व का दल
- देवपूजा = देव की पूजा
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- जलधारा = जल की धारा
- राजनीति = राजा की नीति
- सुखयोग = सुख का योग
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- श्रधकण = श्रधा के कण
- शिवालय = शिव का आलय
- देशरक्षा = देश की रक्षा
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
6. अधिकरण तत्पुरुष समास क्या होता है
इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- रणधीर – रण में धीर
- क्षणभंगुर – क्षण में भंगुर
- पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
- आपबीती – आप पर बीती
- लोकप्रिय – लोक में प्रिय
- कविश्रेष्ठ – कवियों में श्रेष्ठ
- कृषिप्रधान – कृषि में प्रधान
- शरणागत – शरण में आगत
- कलाप्रवीण – कला में प्रवीण
- युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर
- कलाश्रेष्ठ – कला में श्रेष्ठ
- आनंदमग्न – आनंद में मग्न
- गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
- आत्मनिर्भर – आत्म पर निर्भर
- शोकमग्न – शोक में मगन
- धर्मवीर – धर्म में वीर
- कार्य कुशल =कार्य में कुशल
- वनवास =वन में वास
- ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- जलमग्न =जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- क्लाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- आपबीती =आप पर बीती
तत्पुरुष समास के प्रकार (Types of tatpurush margin)
1.नञ तत्पुरुष समास
1.नञ तत्पुरुष समास क्या होता है ?
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- असभ्य =न सभ्य
- अनादि =न आदि
- असंभव =न संभव
- अनंत = न अंत
कर्मधारय समास क्या होता है
इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण -विशेष्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :-
- अधमरा – आधा है जो मरा
- महादेव – महान है जो देव
- प्राणप्रिय – प्राणों से प्रिय
- मृगनयनी – मृग के समान नयन
- विद्यारत्न – विद्या ही रत्न है
- चंद्रबदन – चंद्र के समान मुख
- श्यामसुंदर – श्याम जो सुंदर है
- क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि
- नीलकंठ – नीला है जो कंठ
- महापुरुष – महान है जो पुरुष
- महाकाव्य – महान काव्य
- दुर्जन – दुष्ट है जो जन
- चरणकमल – चरण के समान कमल
- नरसिंह – नर मे सिंह के समान
- कनकलता – कनक की सी लता
- नीलकमल – नीला कमल
- महात्मा – महान है जो आत्मा
- महावीर – महान है जो वीर
- परमानंद – परम है जो आनंद
- चरणकमल = कमल के समान चरण
- नीलगगन =नीला है जो गगन
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- पीताम्बर =पीत है जो अम्बर
- महात्मा =महान है जो आत्मा
- लालमणि = लाल है जो मणि
- महादेव = महान है जो देव
- देहलता = देह रूपी लता
- नवयुवक = नव है जो युवक
कर्मधारय समास के भेद
- विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
- विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास :-
जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।
जैसे :-
- नीलीगाय = नीलगाय
- पीत अम्बर =पीताम्बर
- प्रिय सखा = प्रियसखा
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास :-
इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।
जैसे :-
- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास :-
इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।
जैसे :-
- नील – पीत
- सुनी – अनसुनी
- कहनी – अनकहनी
4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास :-
इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे :-
- आमगाछ
- वायस-दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद
- उपमान कर्मधारय समास
- उपमित कर्मधारय समास
- रूपक कर्मधारय समास
1. उपमान कर्मधारय समास
इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्षण का होता है। उसे उपमान कर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :-
- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
2. उपमित कर्मधारय समास
यह समास उपमान कर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमित कर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :-
- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव
- नर सिंह के समान = नरसिंह।
3. रूपक कर्मधारय समास
जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपक कर्मधारय समास होता है।
जैसे :-
- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।
द्विगु समास क्या होता है ?
द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं । इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे :-
- नवरात्रि – नवरात्रियों का समूह
- सप्तऋषि – सात ऋषियों का समूह
- पंचमढ़ी – पांच मणियों का समूह
- त्रिनेत्र – तीन नेत्रों का समाहार
- अष्टधातु – आठ धातुओं का समाहार
- तिरंगा – तीन रंगों का समूह
- सप्ताह – सात दिनों का समूह
- त्रिकोण – तीनों कोणों का समाहार
- पंचमेवा – पांच फलों का समाहार
- दोपहर – दोपहर का समूह
- सप्तसिंधु – सात सिंधुयों का समूह
- चौराहा – चार राहों का समूह
- त्रिलोक – तीनों लोकों का समाहार
- त्रिभुवन – तीन भवनों का समाहार
- नवग्रह – नौ ग्रहों का समाहार
- तिमाही – 3 माह का समाहार
- चतुर्वेद – चार वेदों का समाहार
- नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर = दो पहरों का समाहार
- त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
- पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
- त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार
- शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
- पंसेरी = पांच सेरों का समूह
- सतसई = सात सौ पदों का समूह
- चौगुनी = चार गुनी
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
द्विगु समास के भेद
- समाहारद्विगु समास
- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
1. समाहारद्विगु समास
समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहार द्विगु समास कहते हैं।
जैसे :-
- तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
- पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
- तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
उत्तरपदप्रधान द्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
(1) बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।
जैसे :-
- दो माँ का =दुमाता
- दो सूतों के मेल का = दुसूती।
(2) जहाँ पर वास्तव में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।
जैसे :-
- पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
- पांच हत्थड = पंचहत्थड
द्वंद्व समास क्या होता है ?
इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
जैसे :-
- अन्न – जल – अन्न और जल
- नदी – नाले – नदी और नाले
- धन – दौलत – धन दौलत
- मार-पीट – मारपीट
- आग – पानी – आग और पानी
- गुण – दोष – गुण और दोष
- पाप – पुण्य – पाप या पुण्य
- ऊंच – नीच – ऊंच या नीचे
- आगे – पीछे – आगे और पीछे
- देश – विदेश – देश और विदेश
- सुख – दुख – सुख और दुख
- पाप – पुण्य – पाप और पुण्य
- अपना – पराया – अपना और पराया
- नर – नारी – नर और नारी
- राजा – प्रजा – राजा और प्रजा
- छल – कपट – छल और कपट
- ठंडा – गर्म – ठंडा या गर्म
- राधा – कृष्ण – राधा और कृष्ण
- जलवायु = जल और वायु
- अपना-पराया = अपना या पराया
- पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
- राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
- अन्न-जल = अन्न और जल
- नर-नारी =नर और नारी
- गुण-दोष =गुण और दोष
- देश-विदेश = देश और विदेश
- अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
द्वंद्व समास के भेद (Dvandv samas ke bhed)
- इतरेतरद्वंद्व समास
- समाहारद्वंद्व समास
- वैकल्पिकद्वंद्व समास
1. इतरेतरद्वंद्व समास
वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।
जैसे :-
- राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
- माँ और बाप = माँ-बाप
- अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
- गाय और बैल =गाय-बैल
- ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
- बेटा और बेटी =बेटा-बेटी
2. समाहारद्वंद्व समास
समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।
जैसे :-
- दालरोटी = दाल और रोटी
- हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
- आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
3. वैकल्पिक द्वंद्व समास
इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।
जैसे :-
- पाप-पुण्य =पाप या पुण्य
- भला-बुरा =भला या बुरा
- थोडा-बहुत =थोडा या बहुत
बहुब्रीहि समास क्या होता है ?
इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर ” वाला ,है,जो,जिसका,जिसकी,जिसके,वह ” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे :-
- चतुरानन – चार है आनन जिसके अर्थात ब्रह्मा
- चक्रपाणि – चक्र है पाणी में जिसके अर्थात विष्णु
- चतुर्भुज – चार है भुजाएं जिसकीअर्थात विष्णु
- पंकज – पंक में जो पैदा हुआ हो अर्थात कमल
- वीणापाणि – वीणा है कर में जिसके अर्थात सरस्वती
- लंबोदर – लंबा है उद जिसका अर्थात गणेश
- गिरिधर – गिरी को धारण करता है जो अर्थात कृष्ण
- पितांबर – पीत हैं अंबर जिसका अर्थात कृष्ण
- निशाचर – निशा में विचरण करने वाला अर्थात राक्षस
- मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाला अर्थात शंकर
- घनश्याम – घन के समान है जो अर्थात श्री कृष्ण
- दशानन – दस है आनन जिसके अर्थात रावण
- नीलांबर – नीला है जिसका अंबर अर्थात श्री कृष्णा
- त्रिलोचन – तीन है लोचन जिसके अर्थात शिव
- चंद्रमौली – चंद्र है मौली पर जिसके अर्थात शिव
- विषधर – विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
- प्रधानमंत्री – मंत्रियों ने जो प्रधान हो अर्थात प्रधानमंत्री
- गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
- त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
- नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)
- लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
- दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
- चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
- पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
- चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
- वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
- स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
बहुब्रीहि समास के भेद – Bahubreehi Samas ke Bhed
- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
- व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
- तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
- व्यतिहार बहुब्रीहि समास
- प्रादी बहुब्रीहि समास
- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास :- इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे :-
- प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
- जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
- दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
- निर्गत है धन जिससे = निर्धन
- नेक है नाम जिसका = नेकनाम
- सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
- व्यधिकरण बहुब्रीहि समास :- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे :-
- शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
- वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
- तुल्ययोग बहुब्रीहि समास :- जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।
नोट : इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।
जैसे :-
- जैसे : जो बल के साथ है = सबल
- जो देह के साथ है = सदेह
- इसका एक और उदाहरण “परिवार के साथ है = सपरिवार”
- व्यतिहार बहुब्रीहि समास :- जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।
जैसे :-
- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
- बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
- प्रादी बहुब्रीहि समास :- जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे :-
- नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
- नहीं है जन जहाँ = निर्जन
(1) संयोगमूलक समास क्या होता है ?
संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।
जैसे :-
- माँ-बाप
- भाई-बहन
- दिन-रात
- माता-पिता।
(2)आश्रयमूलक समास क्या होता है ?
आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण,विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है।
जैसे :-
- कच्चाकेला
- शीशमहल
- घनस्याम
- लाल-पीला
- राजबहादुर
(3)वर्णनमूलक समास क्या होता है ?
इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं।
जैसे :-
- यथाशक्ति
- प्रतिमास
- घड़ी-घड़ी
- प्रत्येक
- भरपेट
- यथासाध्य
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर ( Karmdharay aur bahubrihi समास me antar )
समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं ,इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे – नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पाद के दोनों पादों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है।
इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे – नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका शिव ।.
इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए , कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है , और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
जैसे –
- नीलगगन में – नील विशेषण है , तथा गगन विशेष्य है।
- चरणकमल में – चरण उपमेय है , कमल उपमान है।
अतः यह दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के हैं।
बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है।
जैसे –
- चक्रधर – चक्र को धारण करता है जो , अर्थात श्री कृष्ण।
- नीलकंठ =नीला कंठ , अर्थात शिव
या (OR)
बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है।
जैसे :-
- नीलकंठ = नील+कंठ
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