इस आर्टिकल में राजस्थान कला संस्कृति टॉपिक के अंतर्गत हम राजस्थान के कला व संस्कृति संस्थान(Art and Culture Institute of Rajasthan)को विस्तार से पढेंगे।
राजस्थान के कला व संस्कृति संस्थान
कला एवं संस्कृति विभाग:
राजस्थान में कला एवं संस्कृति के संरक्षण एवं उन्नयन हेतु राज्य सरकार ने पर्यटन, कला एवं संस्कति विभाग का अलग से गठन किया है।
इस विभाग के अधीन पुरे राज्य में कला एवं संस्कृति से सम्बद्ध 9 संस्थायें चलती हैं-
1. पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग जयपुर
2. राजस्थान अभिलेखागार बीकानेर
3. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर
4. मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान टोंक
5. राजस्थान राज्य संगीत नाटक अकादमी जोधपुर
6. राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर
7. जयपुर कत्थक केंद्र जयपुर
8. रवींद्र मंच सोसायटी जयपुर
9, जवाहर कला केंद्र जयपुर
सचिवालय स्तर पर कला एवं संस्कृति विभाग कला के क्षेत्र में रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रवृत्तियों के लिए विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, कलाकारों आदि को आर्थिक सहायता व अनुदान देता है तथा गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित होने वाले राष्ट्रीय समारोह में प्रतिवर्ष झांकी तैयार करके भेजना है जिसमें राज्य की संस्कृति एवं कला का दिग्द्र्शन करवाया जाता है।
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर:
राज्य सरकार के आदेश द्वारा दिनांक 06.09.1957 को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की स्थापना जोधपुर में की गई।
राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर:
राज्य में संगीत शिक्षा की समृद्धि के लिये राजस्थान की 1950 ई. में जयपुर में स्थापना की गई। इस संस्थान के प्रथम निदेशक श्री ब्रह्मानंद गोस्वामी बनाये गये। लगभग तीस वर्ष तक राजस्थान के प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा निदेशालय से जुङे रहने के बाद इस संस्थान को 1980 ई. में काॅलेज शिक्षा निदेशालय को सौंप दिया गया। इस संस्थान में समय-समय पर देश के विख्यात संगीतज्ञों एवं संगीत शिक्षाविदों के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। संस्थान के छात्रों ने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त कर संस्थान को ख्याति दिलायी है।
राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर:
राज्य में कला के प्रचार-प्रसार तथा कलाकारों के स्तर को ऊंचा उठाने तथा नये युवा रंगकर्मियों को प्रोत्साहित करने हेतु सन् 1957 में राजस्थान रवीन्द्र मंच (जयपुर) में की गई। कलात्मक गतिविधियों का संचालन, कला प्रदर्शनियों का आयोजन और लब्ध प्रतिष्ठित कलाकारों को सम्मान एवं फैलोशिप प्रदान करना अकादमी की प्रमुख प्रवृत्तियां हैं। इसके परिसर में आधुनिक कला संग्रहालय का संचालन भी किया जाता है।
जयपुर कत्थक केन्द्र, जयपुर:
कत्थक नृत्य के जयपुर घराने की प्राचीन एवं शास्त्रीय शैली को पुनर्जीवित कर उसे समुन्नत करने के लिए 1978 ई. में राज्य सरकार द्वारा जयपुर कत्थक केंद्र की स्थापना की गयी। जयपुर घराने के कत्थक नृत्य का पारंपरिक प्रशिक्षण देने और नृत्य शिक्षा के प्रति छात्र-छात्राओं और जन साधारण में रूचि जाग्रत करना इस केंद्र के कार्य है।
रवीन्द्र मंच, जयपुरः
रवीन्द्र मंच की स्थापना 15 अगस्त, 1963 ई. को जयपुर में की गई। रवीन्द्र मंच बनने के बाद जयपुर में रंगमंचीय गतिविधियां उत्साहवर्धक ढंग से विकसित हुई हैं। रवीन्द्र मंच में मुख्य सभागार, ओपन एयर थियेटर, अपर हाॅल एवं पूर्वाभ्यास कक्ष हैं जिनमें सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा आये दिन कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
जवाहर कला केन्द्र, जयपुरः
पारंपरिक एवं विलुप्त होती जा रही कलाओं की खोज, उनका संरक्षण एवं संवर्द्धन करने तथा कलाओं को जनाश्रयी बनाकर उनका समन्वित विकास करने के लिए जवाहर कला केन्द्र की स्थापना 1993 ई. में की गयी। इसके भवन के वास्तुविद् ’चार्ल्स कोरिया’ थे। इस केन्द्र में नौ सभागार खण्ड हैं जिसमें मुक्ताकाशी मंच के अलावा ढ़ाई हजार वर्ग फुट का प्रदर्शनी क्षेत्र, थियेटर, पुस्तकालय, कैफेटेरिया तथा स्टूडियो है। केन्द्र परिसर में एक शिल्पग्राम भी है जिसमें ग्रामीण शैली की झौपङियां बनाई गई है। केन्द्र में चाक्षुष कलाओं, संगी एवं नृत्य थियेटर एवं प्रलेखन से संबंधित चार विभाग हैं।
रंगमंच, जयपुरः
सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय जयपुर द्वारा संचालित रंगमंच जयपुर में स्थित हैं। रंगमंच पर राज्य के सांस्कृतिक दलांे द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। एक प्रदर्शनी हाॅल भी है। इसमें राज्य सरकार के विभागों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा समय-समय पर प्रदर्शनियां और मेले आयोजित किये जाते हैं। अब इसे राज्य सरकार ने नीलाम कर दिया है।
भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुरः
प्रदर्शनोपयोगी पारम्परिक लोक कलाओं एवं पुतलियों के शोध, सर्वेक्षण, प्रतिक्षण तथा लोक कलाओं का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से ’पद्मश्री’ देवीलाल सामर द्वारा 1952 ई. में उदयपुर में भारतीय लोक कला मण्डल स्थापित किया गया। यह एक विशिष्ट सांस्कृतिक संस्थान है। इसमें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक संस्कृति संग्रहालय है। यह वार्षिक कठपुतली समारोह, अखिल भारतीय लोक कला संगोष्ठियों, कार्यशालाओं और लोकानुरंजन कार्यक्रमों का आयोजन करता है। यह देश-विदेश के सैलानियांे एवं शोधार्थियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।
नाट्य विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुरः
राजस्थान विश्वविद्यालय में 1977 ई. में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य से नाट्य विभाग की स्थापना की गयी। प्रारंभ में इस विभाग द्वारा एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स संचालित होता था जो बाद में डिप्लोमा व डिग्री कोर्स में परिणित हो गया। विभाग द्वारा डिप्लोमा प्राप्त प्रशिक्षार्थियों से नाटकों के मंचन करवाये जाते है। नाटक के विषय विशेषज्ञों द्वारा समय- समय पर नाट्य संगोष्टियां भी आयोजित की जाती है।
गुरू नानक संस्थान, जयपुरः
यह संस्थान कला, संस्कृति व साहित्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है।
रूपायन संस्थानः
जोधपुर जिले में बोरून्दा गाँव में सन् 1960 में स्थापित संस्था ’रूपायन’ एक सांस्कृतिक व शैक्षणिक संस्था के रूप में कार्यरत है। यह संस्था सहाकारी प्रयास का प्रतिफल है। राजस्थानी लोकगीतों, कथाओं एवं भाषाओं की परम्परागत धरोहर की खोजकर वह संस्था उन्हें क्रमबद्ध संकलन का रूप प्रदान कर रही है। इस संस्थान के पास स्वयं का निजी प्रेस, पुस्तकालय एवं रिकार्ड करने के उपकरण हैं। इसे राज्य एवं केन्द्रीय सरकार से विभिन्न मदों से अनुदान प्राप्त होता है।
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुरः
राजस्थान के कलाकारों को अधिकाधिक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 1986 ई. में उदयपुर में इस केन्द्र की स्थापना की गई। इस केन्द्र के माध्यम से लुप्त हो रही लोक कलाओं के पुनरुत्थान का कार्य किया जा रहा है। वहीं हस्तशिल्पियों को भी संबल मिल रहा है। भारत सरकार ने ऐसे सात केन्द्र स्थापित किए हैं जिनमें उत्तरी भारत में उदयपुर, इलाहाबाद और पटियाला तीन केन्द्र हैं। हस्तशिल्पियों के विकास हेतु उदयपुर के निकट शिल्पग्राम भी स्थापित किया गया है।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेरः
राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के विकास हेतु जनवरी, 1983 ई. में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की स्थापना बीकानेर में की गयी। पत्रिका प्रकाशन, पोथी प्रकाशन, हेतु सहायता और आंचलिक समारोह इस अकादमी की मुख्य गतिविधियां है। अकादमी द्वारा राजस्थान के उत्कृष्ट साहित्यकारों को प्रतिवर्ष पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं जिनमें- सूर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार, गणेशीलाल उस्ताद पद्य पुरस्कार, मुरलीधर व्यास कथा सम्मान, शिवचरण भरतिया गद्य पुरस्का, सांवर दइया पेली पोथी पुरस्कार, बाल साहित्य पुरस्कार आदि प्रमुख है। अकादमी की ’मासिक पत्रिका- ’जागती जोत’ है।’
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुरः
राजस्थानी साहित्य की उन्नति एवं प्रचार-प्रसार के लिए अकादमी की स्थापना 28 जनवरी 1958 को उदयपुर में की गई। अकादमी द्वारा मीरा पुरस्कार, सुधीन्द्र पुरस्कार, डाॅ. रांगेय राघव पुरस्कार, कन्हैयालाल सहल पुरस्कार आदि साहित्य के क्षेत्र में प्रदान किए जाते है। अकादमी द्वारा राजस्थानी भाषा क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार ’मीरा पुरस्कार’ है। प्रथम यमीरा पुरस्कार वर्ष 1959-60 में डाॅ. रामानन्द तिवारी को दिया गया। अकादमी की मासिक पत्रिका ’मधुमति’ है। अकादमी द्वारा प्रकाशन, साहित्यिक समारोहों का आयोजन, युवा व नवोदित लेखों को प्रोत्साहन, राज्य की साहित्यिक संस्थाओं को मान्यता प्रदान करना, पुस्तक मेलों आदि का आयोजन किया जाता है।
राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयुपरः
हिन्दी में विश्वविद्यालय स्तरीय मानक पाठ्य पुस्तकों एवं सन्दर्भ ग्रंथों के निर्माण, प्रकाशन तथा हिन्दी भाषा के उन्नयन एवं विकास हेतु अकादमी की स्थापना 1968 ई. में जयुपर में की गई।
राजस्थान उर्दू अकादमीः
इसका गठन 12 फरवरी 1979 को किया गया। इसके द्वारा त्रैमासिक पत्रिका नखलिस्तान का प्रकाशन किया जाता है। साथ ही उर्दू के विकास एवं साहित्य प्रकाशन का कार्य भी किया जा रहा है।
राजस्थान सिंधी अकादमीः
इसकी स्थापना 1979 में की गई। अकादमी अपने द्विमासिक ’सिन्धु दूत’ बुलेटिन प्रकाशन के साथ-साथ साहित्यकारों के सम्मान के अलावा उन्हें सहायता प्रदान करके विभिन्न प्रवृत्तियों में संलग्न है।
राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी:
इसकी स्थापना 19 जनवरी, 86 को भरतपुर में हुई। इसके द्वारा त्रैमासिक पत्रिका ब्रजशत दल का प्रकाशन किया जाता है। ब्रजभाषा का प्रचार-प्रसार करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
अरबी फारसी शोध संस्थानः
इसकी स्थापना वर्ष 1978 में टोंक में हुई। इसके द्वारा अरबी और फारसी भाषाओं के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अनुसंधान कार्य करवाये जाते हैं। साथ ही प्राच्य शोध, सूचीकरण, सम्पादन, प्रकाशन तथा अन्य साहित्यिक गतिविधियों का भी संचालन किया जाता है।
संस्कृत अकादमी:
वर्ष 1982 से स्थापित यह अकादमी राज्य में संस्कृत साहित्य के प्रचार-प्रसार एवं संस्कृत साहित्यकारांे के सरंक्षण एवं सहयोग के लिए कार्यरत है। इसके द्वारा संस्कृत पत्रिका स्वरमंगला का प्रकाशन किया जाता है। अकादमी की ओर से प्रति वर्ष
1. माघ पुरस्कार- संस्कृत के सर्वोत्कृष्ट काव्य पर
2. आचार्य नवल किशोर कांकर वेद- वेदांग पुरस्कार-अखिल भारतीय स्तर पर संस्कृत में लिखी पुस्तक पर।
3. पण्डित पन्नालाल जोशी पुरस्कार- वेद विषय पर लिखी पुस्तक पर।
4. अम्बिकादत्त व्यास पुरस्कार
5. मधुसूदन ओझा पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं।