भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है? – इसे हटाना गलत या सही?

आज के आर्टिकल में हम भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(Article 30 in Hindi) पुरे विस्तार से पढेंगे। इसे हटाने से होने वाले फायदे व नुकसान के बारे में चर्चा करेंगे।

भारतीय संविधान का आर्टिकल 30

एक्ट 30 क्या है

’अल्पसंख्यक’ शब्द को भारत के संविधान में परिभाषित नहीं किया गया। भारत के राजपत्र (27 जनवरी 2014) के अनुसार सिख, ईसाई, मुस्लिम, पारसी बौद्ध धर्म और जैन धर्म के लोगों को भारत में अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला हुआ है।

अनुच्छेद 30 चर्चा में क्यों है ?

कैलाश विजयवर्गीय ने संविधान में अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थान संचालित करने का विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 30 के औचित्य पर सवाल उठा दिया था। साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्वीट भी किया – ’’देश में संवैधानिक समानता के अधिकार को ’आर्टिकल 30’ सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा रहा है। ये अल्पसंख्यकों को धार्मिक प्रचार और धर्म शिक्षा की इजाजत देता है, जो दूसरे धर्मों को नहीं मिलती। जब हमारा देश धर्मनिरपेक्षता का पक्षधर है, तो ’आर्टिकल 30’ की क्या जरुरत है।

इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर इस पर जमकर बहस हुई और ट्वीटर पर भी आर्टिकल 30 हटाओ की मांग उठ रही है। सोशल मीडिया यूजर इस धारा को समानता के अधिकार (अनु.14) के खिलाफ बता रहे है और इसे तुरंत हटाने की सरकार से मांग कर रहे है।

विजयवर्गीय के बयान पर मध्यप्रदेश के बड़े नेता के.के. मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा, ’’देश-दुनिया में कोरोना के कारण इंसान, इंसानियत खतरे में है, ऐसे में भाजपा का ’आर्टिकल 30’ हटाने का प्रायोजित खेल!! ’नफरत के वायरस’ कथित हिंदूवादियों की अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश है यह मोदी सरकार आर्टिकल 30 हटाने का माहौल बना रही है और यह इसकी शुरूआत है।

साथ ही आर्टिकल 30 पर इस तरह के सोशल मीडिया में काॅमेंट भी किये जा रहे है।

’’आर्टिकल 30 मदरसों में कुरान, हदीस पढ़ाई जायेंगी।
आर्टिकल 30क स्कूलों या गुरुकुलों में भगवद्गीता, वेद, पुराण, ग्रंथ नहीं पढ़ाए जायेंगे।
क्या यही है ’भारत की धार्मिक स्वतंत्रता।
इसमें बदलाव जरूरी है।’’

एक्ट 30 क्या है ?

वर्तमान समय में ’आर्टिकल 30’ को हटाने की मांग काफी उठ रही है। सोशल मीडिया और भारतीय जनता द्वारा मोदी सरकार को आर्टिकल 30 हटाने की ओर इशारा किया जा रहा है। दावा यह है कि वर्तमान में मोदी सरकार भी आर्टिकल 30 को हटाने के पूरे पक्ष में है और इसकी तैयारी कर रही है।

भारतीय संविधान का आर्टिकल 30 देश में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों को कई अधिकार देता है यह आर्टिकल ही इन अल्पसंख्यकों को देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अधिकार भी देता है।

आर्टिकल 30 के तहत दी गई सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित है और इसे देश के सभी नागरिकों तक विस्तारित नहीं किया जाता है।

आर्टिकल 30 अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार देता है कि वे अपने बच्चों को अपनी ही भाषा में शिक्षा प्रदान करा सकते हैं इसका मतलब है कि मुसलमान समुदाय चाहे तो अपने बच्चों को उर्दू और ईसाई चाहे तो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा सकता है।

अनुच्छेद 30 में प्रावधान – ”देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार देता है।”

आर्टिकल 30 (1) – ’’धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को देश में अपनी पसंद (रुचि) के शैक्षिक संस्थानों को स्थापित और संचालित करने का अधिकार होगा।’’

आर्टिकल 30 (1A) – ’’अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शैक्षणिक संस्थान की किसी भी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के लिए कोई कानून बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसा कानून, अल्पसंख्यकों के अधिकारोें को ना तो रोकेगा और ना ही निरस्त करेगा।’’

आर्टिकल 30 (2) – ’’शैक्षणिक संस्थानों को सहायता देने के दौरान, राज्य किसी भी संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।’’

अल्पसंख्यक शब्द को भारतीय संविधान में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। इसका अंग्रेजी शब्द “माइनोरिटी” लैटिन शब्द ‘माइनर’ और प्रत्यय (सफिक्स) ‘इटी’ से बना है जिसका अर्थ कम संख्या में होना है। अनुच्छेद 30 भारतीय संविधान के भाग III के तहत परिभाषित किया गया है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को परिभाषित करता है जो उसे उसके धर्म, जाति, और लिंग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के दिए जाते है। इसे ‘शैक्षिक अधिकारों का चार्टर’ भी कहा जाता है। अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदायों को उनकी पसंद के शिक्षण संस्थान की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकारों की पुष्टि करता है।

भारत के संविधान में कहीं भी ’अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। अंग्रेजी शब्द ’माइनॉरिटी’ लैटिन शब्द ’माइनर’ और प्रत्यय ’इटी’ से बना है, जिसका अर्थ है – ’कम संख्या में होना’। अनुच्छेद 30 को भारत के संविधान के भाग 3 में परिभाषित किया गया है और जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को परिभाषित करता है जो उसे उसके धर्म, जाति, और लिंग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के दिए जाते है। इसे ‘शैक्षिक अधिकारों का चार्टर’ के नाम से जाना जाता है। इसमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की गारंटी दी गई है।

भारतीय समाज विविध समुदायों का मिश्रण है और इसकी विविधता ही इसकी ताकत है। हमारा संविधान अल्पसंख्यक समुदायों को देश की विविधता को संरक्षित करने और उनकी संस्कृति का विस्तार करने के लिए इन अधिकारों की गारंटी देता है। यह अनुच्छेद संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के सिद्धांत) के तहत सभी के लिए समानता प्रदान करता है और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। यह अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देने का अधिकार भी देता है।

संविधान सभा में अल्पसंख्यकों को केवल भाषाई आधार पर सीमित करने पर बहस हुई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और इसे धर्म के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए। विधानसभा के एक अन्य सदस्य ने प्रस्तावित किया कि अल्पसंख्यकों की आबादी के अधीन उनकी अपनी भाषा और लिपि में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है।

संविधान सभा ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और अल्पसंख्यकों को दो भागों में विभाजित कर दिया –

धार्मिक अल्पसंख्यक – धार्मिक अल्पसंख्यकों को समुदाय के आकार से परिभाषित किया जाता है। भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं और सरकार के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। चूंकि भारत एक बहु-धार्मिक देश है, इसलिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (आयोग) 1992 के अनुच्छेद 2(ब) के तहत छ: समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। वे मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, जैन और पारसी हैं। इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है।

भाषाई अल्पसंख्यक – जिन लोगों की मातृभाषा बहुसंख्यकों की मातृभाषा से भिन्न होती है, उन्हें भाषाई अल्पसंख्यक माना जाता है। भारत का संविधान सभी के लिए समानता के सिद्धांत के माध्यम से इन अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 350 शिक्षा के प्राथमिक विद्यालय स्तर पर भाषा के मातृभाषा में अनुवाद करने के लिए उचित शर्तें प्रदान करने के लिए राज्य पर दायित्व थोपता है।

टी.एम.ए.पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के लिए दिशा निर्देश निर्धारित किए थे। धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण राष्ट्रीय आधार के बजाय प्रत्येक राज्य के अनुसार किया जाता है। छात्रों और शिक्षकों के समुचित कार्य और स्वास्थ्य के लिए सरकारी नियम बनाए जा सकते हैं। सरकार मानक कानून लागू कर सकती है, लेकिन उन्हें संस्थानों के अल्पसंख्यक चरित्र को नष्ट नहीं करना चाहिए और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में सरकार का हस्तक्षेप बहुत सीमित होना चाहिए।

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के प्रकार –

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के तीन प्रकार होते हैं।

  • राज्य से मान्यता और समर्थन चाहने वाले संस्थान।
  • ऐसी संस्थाएँ जो राज्य से मान्यता चाहती हैं, और मदद नहीं करतीं।
  • राज्य से न तो मान्यता और न ही सहायता चाहने वाले संस्थान।

आर्टिकल 30 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज केस (2007) के मामले में दिये  गये एक फैसले में  सर्वोच्च न्यायालय ने यह  कहा है कि –

अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दिए गए अधिकारों का उद्देश्य केवल बहुसंख्यकों के साथ समानता सुनिश्चित करना है और इसका उद्देश्य बहुसंख्यकों की तुलना में अल्पसंख्यकों को ऊपर उठाना नहीं है।

इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अल्पसंख्यकों को कानून से बाहर कोई भी गैर-कानूनी अधिकार दिया गया है।
अल्पसंख्यक भी राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि, कल्याण, कराधान, स्वास्थ्य, स्वच्छता, नैतिकता आदि से संबंधित सामान्य कानूनों के अधीन हैं।
तो इससे पता चलता है कि अनुच्छेद 30 भारत के संविधान में मौजूद नहीं है। इसका अस्तित्व नहीं है और सोशल मीडिया पर किए गए पोस्ट पूरी तरह से निराधार हैं। यह भारत के पवित्र और मजबूत संविधान को बदनाम करने की साजिश है।

अनुच्छेद 30 की विशेषताएँ

  • समानता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, अनुच्छेद 30 में भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान सम्मिलित किया गया हैं।
  • राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि संपत्ति के अधिग्रहण के लिए आवश्यक राशि समुदाय के बजट से अधिक न हो। इसलिए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अनुच्छेद के तहत प्रत्याभूत अधिकार प्रतिबंधित या रद्द नहीं किया गया है।
  • अनुच्छेद 30 में एक स्तरीय खेल का मैदान बनाने के लिए एक उपधारा भी शामिल है। इस अनुच्छेद के अनुसार, देश की सरकार अल्पसंख्यक समूहों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को अनुदान देते समय धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती है।
  • सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के अनुसार धर्म और भाषा के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित और प्रबंध करने का अधिकार है।

अनुच्छेद 30 की आलोचना

अनुच्छेद 30 में भारत में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रावधान हैं, लेकिन इसमें कुछ कमियाँ भी हैं।
भ्रष्टाचार का उद्भव और प्रबंधन नियंत्रण के कारण होने वाले भ्रष्टाचार के मामले में, सरकार के पास हस्तक्षेप करने और स्थिति को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपनी 25 प्रतिशत सीटें गरीबों के लिए आरक्षित करने की स्वतंत्रता देता है, जो भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के विपरीत है।

अल्पसंख्यकों का स्थापित शैक्षणिक संस्थानों पर व्यक्तिगत नियंत्रण है, इसका मतलब है कि सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 30 की धारा 1 (ए) के अनुसार, अल्पसंख्यक संस्थानों को पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीतियों को लागू करने की बाध्यता नहीं है। यह भारतीय संविधान में पिछड़े वर्गों के अधिकारों का खंडन करती है। हालाँकि इस प्रावधान का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करना है और यह गैर-अल्पसंख्यकों को नकारते हुए अपने संस्थानों को “स्थापित और प्रशासित” करने का एक मौलिक अधिकार है।

अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के प्रति सरकार के सहिष्णु रवैये का प्रावधान करता है, लेकिन इसे हल्के में लिया जाना चाहिए और इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 30 के आधार पर अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को अलग करना संविधान के संपूर्ण उद्देश्य और नागरिक स्वतंत्रता की भावना की अवहेलना करता है।

जबकि अल्पसंख्यक संस्थान पूर्ण स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, हिंदू संस्थान सरकारी हस्तक्षेप और गैर-अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव के अधीन हैं। हालाँकि इस अनुच्छेद का उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है, लेकिन यह समाज में असंतुलन पैदा कर सकता है।

निष्कर्ष  – Conclusion

आज के आर्टिकल में हमनें भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(Article 30 in Hindi) पुरे विस्तार से पढ़ा। हम उम्मीद करतें है कि आपको यह टॉपिक अच्छे से समझ आ गया होगा ….धन्यवाद ।

FAQ

1.अनुच्छेद 30 क्या है और इसे हटाना क्यों जरूरी है?

उत्तर  –

अनुच्छेद 30 के अनुसार छोटे समुदाय के लोगो को अपनी भाषा और धर्म के आधार पर शिक्षा के संस्थान बनाने का अधिकार है। इसके तहत राज्य को ऐसे समुदाय के लोगो की आर्थिक मदद के समय मे भेदभाव का त्याग करना चहिये।

Minority यानी जैन, बौद्ध पारसी, सिख और अन्य , को पूरा अधिकार है अपने धर्म को बढ़ाने के लिए शिक्षण संस्थान खोलने का। लेकिन अगर हकीकत में राज्य सरकारे इस अनुच्छेद का गलत इस्तेमाल करती आई है, आजतक उन्होंने सिर्फ मुसलमान को ही Minority माना है ,और उनके मदरसे और स्कूल खोलने में मदद की है।

वही दूसरी और अब पांच स्टेट में हिन्दू भी माइनॉरिटी में है लेकिन, उनके लिए राज्य सरकारें ऐसा कुछ नही करती इसलिए इस अनुच्छेद को हटाना जरुरी है ।

2. संविधान का आर्टिकल 30 क्या है?

उत्तर – भारतीय संविधान का आर्टिकल 30 भारत देश में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों को एक्स्ट्रा अधिकार देता है। यह आर्टिकल ही अल्पसंख्यकों को देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अधिकार देता है।

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