चिंतन का अर्थ और इसके प्रकार || मनोविज्ञान || THINKING

आज के आर्टिकल में हम मनोविज्ञान के तहत चिंतन का अर्थ (Chintan Ka Arth) व इसके प्रकारों को विस्तार से समझेंगे ।

चिंतन क्या है

(THINKING)

चिंतन का अर्थ

दोस्तो जैसा कि आप जानते ही होंगे कि मानव जीवन के विविध पक्ष हैं। इसीलिये किसी न किसी पक्ष से जुङी समस्याएँ मानव को प्रतिदिन करती रहती हैं। समस्या पैदा होते ही उसके समाधान हेतु मानव विचार करना प्रारम्भ कर देता है। समस्या का समाधान मिलते ही वह चिंतन करना बन्द कर देता है। इससे स्पष्ट है कि चिंतन वह मानसिक क्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करता है।

नोट : चिंतन प्रक्रिया प्रतीकों व चिन्हों के आधार पर चलती है। भाषा के अभाव में चिंतन नहीं होता है।

⇒ चिंतन मानव मस्तिष्क की एक प्रमुख क्रिया है। इस क्रिया के कारण ही मानव समस्त प्राणियों से पृथक् माना जाता है। चिंतन से विभूषित होने के कारण मानव वातावरण के साथ समायोजन कर पाता है। इस गुण के कारण मानव सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विकास करने में सफल हो सका है।

चिंतन की परिभाषाएं:

राॅस – ’चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पक्ष है।’

गैरेट – ‘चिंतन एक प्रकार से अदृश्य व्यावहार है।’

गिलफर्ड – ’चिंतन प्रतीकात्मक व्यवहार है क्योंकि सभी प्रकार के चिंतन का सम्बन्ध विचारों के प्रतिस्थापन से है।’

कालेसनिक – ’चिंतन प्रत्ययों का पुनर्गठन है।’

वारेन – ’चिंतन किसी व्यक्ति के सम्मुख उपस्थित समस्या के समाधान के लिये आविर्भूत होने वाली समस्या निर्णायक प्रवृत्ति से प्रभावित कुछ अंशों में प्रयत्न एवं भूल से संयुक्त प्रतीकात्मक स्वरूप की प्रत्यात्मक प्रक्रिया है।’

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि चिंतन का आधार विचार है। समस्या समाधान के लिये विचारों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना ही चिंतन है।

चिंतन के साधन

  • बिंब (Image)
  • संप्रत्यय(Concept)
  • प्रतीक(Symbol)
  • भाषा(Language)

चिन्तन के प्रकार – Types of Thinking

जिक्बार्डो तथा रुक ने 1977 ईस्वी में चिंतन को दो भागो में बांटा –

  • स्वली चिंतन
  • यथार्थवादी चिंतन

1. प्रत्यक्षात्मक चिंतन (Perceptual Thinking) – किसी ठोस वस्तु या मूर्त रूप को देखकर चिंतन करना प्रत्यक्षात्मक चिंतन कहलाता है। यह पूर्व अनुभव पर आधारित होता है। ऐसा चिंतन छोटे बालकों में पाया जाता है।

उदाहरण : त्रिशूल को देखकर भगवान की शिव की याद आना।

2. कल्पनात्मक चिंतन (Imaginative Thinking) – किसी वस्तु की अनुपस्थिति में उस वस्तु के बारे में विचार करना कल्पनात्मक चिंतन है। इसमें बालक स्मृति के आधार पर भविष्य के बारे में सोचता है।

3. प्रत्ययात्मक चिंतन/तार्किक चिंतन (Conceptual Thinking) – इस प्रकार के चिंतन में प्रत्ययों का आधार लेना पङता है। अतीत व वर्तमान के अनुभवों के आधार पर भविष्य के बारे में निर्णय लेना प्रत्ययात्मक चिंतन कहलाता है।

4. अमूर्त चिंतन – यह मूर्त चिंतन से श्रेष्ठ होता है प्रतीकों ,शब्दों , चिन्हों के आधार पर चिंतन को इस वर्ग में शामिल किया जाता है। इसमें अपसारी चिंतन पाया जाता है।

उदाहरण : लाल रंग के क्रोस निशान 🏥 को देखकर प्राथमिक सहायता या रेड्क्रोस संस्था के बारे में विचार करना।

5. सृजनात्मक चिंतन: इस प्रकार के चिंतन का उद्देश्य नवीनता का सृजन है। इसमें अपसारी चिंतन पाया जाता है।

6. स्वली चिंतन- स्वली चिंतन उस चिंतन को कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने काल्पनिक विचारों एवं इच्छाओं की अभिव्यक्ति करता है। जैसे – स्वप्न , स्वप्न चित्र

चिंतन और शिक्षक

शिक्षक को बालकों में चिंतन का विकास इस प्रकार करना चाहिये-

(1) अध्यापक को अपने विषय का अच्छा ज्ञान होने पर ही छात्रों को वह उस विषय को ठीक प्रकार समझा सकता है। विषय का ज्ञान देते समय छात्रों की चिंतन शक्ति के विकास पर शिक्षक को ध्यान देना चाहिये।

(2) शिक्षक को परिस्थितियाँ उत्पन्न करके छात्रों को चिंतन के लिये अभिप्रेरित करना चाहिये।

(3) चिंतन को क्रियाशील करने के लिए शिक्षक को समस्या विधि तथा वाद-विवाद विधि का प्रयोग करना चाहिये।

(4) छात्रों को उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यभार सौंपने से भी चिंतन विकसित होता है।

(5) भाषा चिंतन का सशक्त साधन है। अतएव शिक्षक को छात्रों में भाषा विकास पर ध्यान देना चाहिये।

दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने चिंतन का अर्थ व इसके प्रकारों के बारे में चर्चा की ,हम आशा करतें है कि आपने जरुर कुछ सीखा होगा …धन्यवाद

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