Chittorgarh Fort || चित्तौङगढ दुर्ग-Rajasthan Gk

आज की पोस्ट में हम राजस्थान के दुर्गों में चित्तौङगढ दुर्ग (Chittorgarh Fort) की विस्तार से जानकारी पढेंगे |

Chittorgarh Fort

✔️ यह चित्रकूट नामक पहाङी पर बना, राजस्थान का प्राचीनतम गिरी दुर्ग है।

✔️ निर्माण – 8वीं सदी में चित्रांगद मौर्य (यह मेवाङ शासन है न कि मौर्य) द्वारा। बाद में इस पर अधिकांश निर्माण व आधुनिकीकरण कुंभा ने करवाया- चार दीवारी, सात द्वार, विजय स्तंभ, कुम्भ स्वामी मंदिर, कुंभा के महल, शृंगार चंवरी का मंदिर।

✔️ इस किले के बारे में कहा जाता है कि गढ तो चित्तौङगढ बाकी सब गढैया यह राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी द्वार है।

तीन जौहर एवं साके:

1. 1303 में- शासक रतन सिंह- पद्मिनी द्वारा (रतन सिंह की पत्नी), अलाउद्दीन के आक्रमण के समय
2. 1534 में – शासक विक्रमादित्य – कर्मावती अर्थात् कर्णावती (विक्रमादित्य की माताश्री) इस समय गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौङगढ पर आक्रमण किया तब कर्मावती ने हुमायूँ से सहायता हेतु राखी भेजी पर हुमायूँ सहायतार्थ नहीं आ पाया।

3. 1567 – 68 में उदय सिंह चित्तौङ का शासन जयमल व फत्ता को सौंप कर स्वयं उदयपुर गए। तब अकबर के आक्रमण से जयमल-फत्ता की किले की रक्षा करते हुए वीरगति होने पर राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया।
जौहर: केवल महिलाओं का अग्नि में कूद कर आत्मोत्सर्ग।
साका: जौहर के साथ-साथ पुरुष भी केसरिया बाना पहन कर युद्ध करते हुए अपना आत्मोत्सर्ग करते हैं।

विजयस्तम्भ:

नौ खण्डों वाला यह स्तम्भ 120 फीट ऊँचा है, इसके ये नौ खण्ड नौ निधियों के प्रतीक हैं।
इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।

इसकी सभी मंजिलों पर विभिन्न देवी देवताओं के चित्र उत्कीर्ण है, जो रामायण व महाभारत से सम्बन्धित हैं। इसे हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर कहा जाता है। इसका वास्तुकार जैता था। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है।

History of Chittorgarh Fort in Hindi

पद्मिनी महल

♦️ चित्तौङ दुर्ग में राणा रतन सिंह की प्रसिद्ध सुंदरी रानी पद्मिनी का महल एक सुन्दर जलाशय के मध्य स्थित है। इनके दक्षिण-पूर्वी में गोरा बादल के महल हैं।
♦️ राणा बनवीर ने इस दुर्ग पर लघु दुर्ग के रूप में नौ कोटा मकान या नवलखा बनवाया, जिसका उद्देश्य भीतर किला (अन्तःदुर्ग) बनाना था।

♦️ चित्तौङ दुर्ग की पूर्वी प्राचीर के निकट एक सात मंजिला जैन कीर्तिस्तम्भ है, जिसे आदिनाथ का स्मारक माना जाता है। इसका निर्माण बघेरवाल जैन जीजा द्वारा 11वीं या 12वीं शताब्दी में करवाया गया था।
♦️ चित्तौङ दुर्ग में महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित विष्णु के वराह अवतार का कुम्भश्याम मंदिर उल्लेखनीय है।
♦️ इसी दुर्ग में नीलकंठ का मंदिर तथा मीराबाई का मंदिर भी दर्शनीय हैं।

♦️ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीम ने इस दुर्ग की पहाङी पर घुटने के बल से पानी निकाला था। वह स्थान वर्तमान में भीमतल के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन कर्नल टाॅड के अनुसार यह मौर्यवंशीय राजा भीम था।
♦️ दुर्ग के पूर्व की ओर सूरजपोल का दरवाजा तथा दूसरी ओर लाखोटा बारी स्थित है।

♦️ दुर्ग के प्रथम दरवाजे का नाम पाडलपोल, (पटवपोल) है, जिसके बाहर स्थित चबूतरे पर प्रतापगढ के ठा. बाघसिंह का स्मारक है।
♦️ दूसरा द्वार भैरवपोल कहलाता है जहाँ जयमल राठौङ व कल्ला राठौङ की छतरियाँ है।

♦️ तीसरा द्वार गणेश पोल, चैथा द्वार लक्ष्मण पोल, पाँचवां द्वार जोङन पोल। इसके पश्चात छठा द्वार रामपोल है जो बङा है। रामपोल के पास ही फतेह सिंह सीसोदिया का स्मारक है। इस स्मारक के पास तुलजा माता का मंदिर है।

♦️ इस दुर्ग में बनवीर द्वारा बनवाया गया अन्तः दुर्ग है जिसे कोटा मकान अथवा नवलखा भण्डार कहा जाता है। इसके निकट ही कुम्भा के जैन मन्त्री वैलोक द्वारा बनवाया गया शृंगार चवरी का मंदिर है।

Chittorgarh Fort

♦️ शृंगार चवेरी मूल रूप से शांतिनाथ का जैन मंदिर जिसकी स्थापना खतरगच्छ के आचार्य जिनसेन सूरि द्वारा की गई थी। मन्त्री वैलोक ने वास्तव में इसका जीर्णोद्धार करवाया था।

♦️ दुर्ग का सातवां द्वार त्रिपोलिया कहा जाता है। इसी के पास कुम्भा के महल है।
♦️ चित्तौङगढ़ दुर्ग में जयमल की हवेली है जिसका निर्माण महाराजा उदयसिंह के काल में हुआ था।
♦️ चित्तौङगढ़ दुर्ग में राजस्थान का प्राचीनतम सूर्य मंदिर है जो वर्तमान में कालिका माता का मंदिर है।

♦️ चित्तौङगढ़ दुर्ग में फतेह प्रकाश महल के पास 11 वीं शताब्दी का बना 27 देवरियों का मंदिर है।
♦️ चित्तौङगढ़ दुर्ग में परमार राजा भोज द्वारा बनवाया गया समिद्वेश्वर प्रासाद मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार महाराजा मोकल ने करवाया था। नागर शैली का यह शिवालय बाहर से अलंकृत एवं अन्दर से सादगीपूर्ण है।

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