आज की पोस्ट में हम जैसलमेर के किले(Jaisalmer Fort History) के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे ,इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य पढेंगे |
जैसलमेर का सोनार किला (धान्वन दुर्ग)-Jaisalmer Fort History
महारावल जैसल सिंह ने 12 जुलाई, 1155 को जैसलमेर किले की आधारशिला रखी थी। यह त्रिकूट आकृति का दुर्ग सात वर्ष में बनकर तैयार हुआ।
1155 ई. में ही जैसल सिंह ने जैसलमेर बसाया व राजधानी बनायी। इससे पूर्व लोद्रवा राजधानी थी। यह दुर्ग अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इसमें चूने का प्रयोग नहीं कर पत्थरों में खाँचा बनाकर आपस में जोङा गया।
इस दुर्ग में जैसलू कुआं है जिसका निर्माण किंवदन्तियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से किया था।
भाटी राजपूत अपने को कृष्ण का वंशज ही मानते हैं।
दुर्ग का प्रवेश द्वार अक्षयपोल कहलाता है। इसके बाद क्रमशः सूरजपोल, गणेशपोल, हवापोल से दुर्ग में पहुँचा जाता है।
जैसलमेर का यह दुर्ग पीले पत्थरों से निर्मित है। प्रातः काल एवं सन्ध्या काल में यह स्वर्णिम आभा लिए होता है। इसीलिए इसे सोनार किला कहते हैं।
इस दुर्ग में जैन मंदिर तथा लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर आस्था एवं स्थापत्य दोनों ही दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
सोनार का किला राजस्थान में चित्तौङगढ के बाद दूसरा सबसे बङा ’लिविंग फोर्ट’ है।
जैसलमेर दुर्ग की कदाचित् सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें हस्तलिखित ग्रथों का एक दुर्लभ भंडार है। हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बङा संग्रह जैन आचार्य जिनद्रसूरी के नाम पर ’जिनद्रसूरी ग्रन्थ भंडार’ कहलाता है।
जैसलमेर दुर्ग में कुल निन्यानवें बुर्ज हैं। यह दुर्ग ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है।
Jaisalmer Fort History in hindi
दुर्ग के प्रमुख मंदिर-
टीवमरायजी का मंदिर-
महारावल जयशाल द्वारा इसका निर्माण करवाया गया। दुर्ग में स्थित वैष्णव मंदिरों में सबसे प्राचीन मंदिर है। महारावल जसवन्त सिंह ने इसका जीर्णाद्धार करवाया था। इसमें आदिनारायण देव तथा मेघाडम्बर छत्र देवी की मूर्तियाँ हैं।
महारावल वैरिसिंह के काल में जैसलू कुएँ के पास लक्ष्मीनाथ मंदिर स्थित है। प्रतिहार शैली का बना यह मंदिर भगवान विष्णु का है। नथमल तवारीख के अनुसार यह मूर्ति मेङता में स्वतः ही पृथ्वी में से प्रकट हुई थी।
जैसलमेर के महारावल लक्ष्मीनाथ जी को जैसलमेर का मालिक मानते थे।
रत्नेशवर महादेव का मंदिर –
महारावल वैरिसिंह ने अपनी रानी रत्ना के नाम पर इस शिव-पार्वती मंदिर का निर्माण करवाया था।
सूर्य मंदिर –
महारावल वैरिसिंह ने अपनी रानी (दूसरी रानी सूर्यकंवर) की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण 1441 ई. में करवाया था।
खुशाल राज राजेश्वरी का मंदिर –
ठाकुर राज खुशाल सिंह की रानी के द्वारा इस मंदिर का निर्माण पत्थरों को जोङकर करवाया था।
आदिनाथ का मंदिर-
भाटी शासकों की कुलदेवी आदिनाथ जिन्हें स्वांगिया देवी भी कहा जाता है, भाटी शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर आस्था एवं उपासना का केन्द्र है।
जैसलमेर के सोनारगढ दुर्ग के भाट शासकों को उत्तरी भट किवाङ भाटी की उपाधि से नवाजा गया है।
जैसलमेर के ढाई साके-
प्रथम शाका-
महारावल मूलराज के समय जब अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था तब हुआ था।
द्वितीय- महारावल दूदा के काल में फिरोजशाह तुगलक ने आक्रमण किया तब हुआ।
तृतीय (अर्द्धसाका)- कंधार के अमीर अली ने विश्वासघात से भाटी शासक महारावल लूणकरण सहित रातपूत तो वीरगति को प्राप्त हुए रानियों का जौहर नहीं हो सका था। इसलिए इसे अर्द्धसाका कहा जाता है।
महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने इसी दुर्ग पर आधारित सोनार किला, नामक प्रसिद्ध फिल्म बनाई थी।
दुर्ग के पश्चिमी द्वार के पास स्थित बादल विलास महल का निर्माण सिलावटों द्वारा करवाया गया था।
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