Kumbhalgarh Durg – कुंभलगढ़ दुर्ग | सम्पूर्ण जानकारी

आज की पोस्ट में हम राजस्थान के चर्चित कुंभलगढ़  दुर्ग(Kumbhalgarh Fort) के बारें में विस्तार से जानेंगे। राजस्थान के इस दुर्ग में बहुत सारी दुर्लभ जानकारी है, जो आप इस आर्टिकल में पढ़ पाएंगे।

Kumbhalgarh Fort – कुंभलगढ़ दुर्ग

Table of Contents

कुंभलगढ़ दुर्ग
निर्माण काल1443 से 1458 तक
संस्थापकमहाराणा कुम्भा
स्थानराजस्थान के राजसमंद जिले में
ऊँचाई3568 फीट
किले की दीवार36 किलोमीटर लंबी, 21 फीट चौड़ी

कुम्भलगढ़ दुर्ग – Kumbhalgarh Durg

कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान का चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण दुर्ग है। महाराणा कुम्भा द्वारा दुर्ग-स्थापत्य के प्राचीन भारतीय आदर्शों के अनुरूप निर्मित कुम्भलगढ़ गिरि दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है। मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गांव के समीप स्थित कुम्भलगढ़ का सतत् युद्ध और संघर्ष के काल में विशेष सामरिक महत्व था। अनेक दुर्गों के निर्माता महाराणा कुम्भा ने गोड़वाड़ क्षेत्र की सुरक्षा के लिए इस विकट दुर्ग का निर्माण करवाया था। यह दुर्ग मेवाड़ के राजाओं का प्रमुख निवास स्थान रहा है।

दुर्गम घाटियों से परिवेष्टित तथा सघन और बीहड़ वन से आवृत्त कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है। समुद्रतल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हुए भी यह किला हरी भरी वादियों के कारण दूर से नजर नहीं आता। यह अविजित दुर्गों की श्रेणी में आता है। यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से सुरक्षित घिरा हुआ है। जो सैनिक उपयोगिता और निवास की आवश्यकता की पूर्ति करता था।

कुम्भलगढ़ किले को प्राचीन किले के ध्वंसावशेषों पर 1448 ई. में बनवाना आरम्भ किया था जिसकी समाप्ति 1458 ई. में हो पायी थी। इसका प्रमुख शिल्पी मण्डन था। इसे ’कुंभलमेर या कुंभलमेरु’ भी कहते हैं। महाराणा कुम्भा ने अपनी पत्नी कुंभल देवी की याद में इस किले का निर्माण करवाया था। इस पर चढ़ने के लिये गोल घुमावदार रास्ता तय करना पड़ता है तथा एक-एक करके ओरठ पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरव पोल, नींबू पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल और गणेश पोल नामक कुल नौ द्वार पार करने पड़ते हैं। कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड में दर्ज है। यह चीन की महान दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महान दीवार है। इसलिए इसे ’भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।

इसकी सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते है। कुम्भलगढ़ दुर्ग कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों को मिलाकर बनाया गया है। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में इन पहाड़ियों का नाम नील, श्वेत, हेमकूट, निषाद, हिमवत्, गन्धमादन आदि दिए गए हैं। यह दुर्ग समुद्र की सतह से 3,568 फीट ऊँचे धरातल पर है।

कुंभलगढ़ का किला –  Kumbhalgarh Ka Kila

वैसे तो कुम्भलगढ़ किले का व्यवस्थित रूप से निर्माण कुम्भा ने करवाया था, परन्तु एक मान्यतानुसार प्रारम्भ में एक जैन राजा सम्प्रति ने इस दुर्ग को बनवाया था। यहां के खण्डहरों से मिलने वाले मन्दिरों के अवशेष इसकी प्राचीनता प्रमाणित करते हैं। दुर्ग में उल्लेखनीय प्रतीक ’वेदी’ है। वेदी अपने आप में एक दुमंजिला भवन है। जिसके ऊँचे गुम्बज के नीचे से धुआँ निकलने के लिए चारों ओर भाग है और साथ ही साथ होताओं (यज्ञ संपादन कर्ताओं) तथा दर्शकों के बैठने की अच्छी व्यवस्था है। राजस्थान में इस प्रकार की वेदी कुम्भलगढ़ में प्राचीन यज्ञ स्मृति के अवशेष के रूप में बची है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के अन्दर की ओर 960 के लगभग मन्दिर बने हुए हैं। दुर्ग के कैम्पस में झालीबाव बावड़ी, कुम्भलस्वामी विष्णु मंदिर, झालीरानी का मालिया, मामादेव तालाब, उड़ना राजकुमार की छतरी (पृथ्वीराज राठौड़) आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक बने हुए हैं। पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर अपने स्वामी उदयसिंह के प्राण इसी दुर्ग में बचाये। यहीं उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ एवं राणा प्रताप का जन्म हुआ। इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास है, जिसे ’कटारगढ़’ कहते हैं। यह ’बादल महल’ के नाम से प्रसिद्ध है जो महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है।

अबुल फजल के अनुसार ’’यदि कोई पगड़ीधारी पुरुष कटारगढ़ की ओर देखे तो उसकी पगड़ी गिर जाएगी। कुंभलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के पर्वतांचल से अनेक विकट पहाड़ी मार्ग या दर्रे मारवाड़, मेवाड़ तथा अन्य स्थानों की ओर गये हैं। इनमें किले के उत्तर की तरफ पैदल रास्ता टूंटया का होड़ा, पूर्व की तरफ हाथिया गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवटा कहलाता है। यह नाल केलवाड़ा के उत्तर से मारवाड़ की ओर गयी है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता टोडाबारी कहलाता है।
अरावली की घाटियों में अवस्थित कुम्भलगढ़ दुर्ग महाराणा प्रतात की जन्मस्थली रहा है।

ध्यान देवें : कुंभलगढ़ दुर्ग की परिधि 36 किमी.लम्बी व चौड़ी है जो भारत की महान दीवार के नाम से प्रसिद्ध है

यह राजस्थान का सुरक्षा की दृष्टि से सर्वप्रमुख दुर्ग है। इसका निर्माण कुंभा ने द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में करवाया। मेवाङ चारों ओर से दुश्मनों से घिरा था। अतः युद्ध की आशंका सदैव रहती थी, अतः सुरक्षित स्थान की आवश्यकता हेतु यह अति आवश्यक जरूरत थी। यह गहरी घाटियों से घिरा हुआ है। इसके अन्दर कटार गढ़ नामक अन्य दुर्ग है, जिसके भीतर कुम्भा का महल है। इसके बाहर पानी के टांके, अन्न भंडार, सैनिक बस्तियाँ आदि है।

कर्नल जेम्स टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना एट्रास्कन से की है। कुंभलगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग कटारगढ़ स्थित है। जिसमें झाली रानी का मालिया महल प्रमुख है। इसमें कुंभ द्वारा निर्मित कुंभस्वामी विष्णु मंदिर है।

ध्यान देवें : कटारगढ़ को मेवाड़ की तीसरी आँख कहा जाता है

कुंभलगढ़ दुर्ग के उपनाम :

  • मत्स्येन्द्र
  • कुम्भलपुर
  • माहोर
  • कुम्भलमेर
  • मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी

कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास – Kumbhalgarh Rajasthan

कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमन्द जिले में सादड़ी गाँव के पास स्थित है, जो कि उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है और यह दुर्ग अरावली की पहाड़ियों में है। इस दुर्ग को ’वर्ल्ड हेरिटेज साईट’ में सम्मिलित किया गया है। कुंभलगढ़ दुर्ग को बनाने में 15 वर्षों का समय लगा। इस दुर्ग का निर्माण मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर 1448 ई. में महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग की नींव रखी। यह प्रसिद्ध वास्तुशिल्प मंडन की देखरेख में 1458 में बनकर तैयार हुआ। वीर विनोद के अनुसार इसकी चोटी समुद्रतल से 3568 फीट और नीचे की नाल से 700 फीट ऊँची हैं।

कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ राजपरिवार का प्रश्रय स्थल रहा है। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में दुर्ग के निकट स्थित पर्वत श्रृंखलाओं के हेमकूट, श्वेत, हिमवत, नील और गंधमादन आदि है। वीर विनोद में कहा गया है कि चित्तौड़ के बाद कुम्भलगढ़ दूसरे स्थान पर आता है।
कुम्भलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा प्रताप का जन्म उदयसिंह का राज्याभिषेक और महाराणा कुम्भा की हत्या का इस किले का साक्षी रहा है।

मालवा और गुजरात के शासकों ने इस किले पर अधिकार करने का बहुत प्रयास किया था, परन्तु वे इस पर अधिकार करने में असफल रहे। 1578 ई. मुगल सेनानायक शाहबाज खां ने इस पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था, परन्तु कुछ समय बाद ही महाराणा प्रताप ने इसे पर पुनः अधिकार कर लिया। इस भव्य किले को कभी भी युद्ध में नहीं जीता गया।

महाराणा कुम्भा ने जब इस दुर्ग का निर्माण करवाया, उसी दौरान सिक्के भी बनवाये थे, जिस पर दुर्ग का नाम अंकित था।
राजस्थान में उदयपुर से 80 किमी. उत्तर में स्थित कुंभलगढ़ को ग्रेट वाॅल ऑफ़ इंडिया कहा जाता है। कुंभलगढ़ किला चित्तौड़गढ़ किले के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है। सुदृढ़ और अभेद्य दुर्ग के रूप में इसकी निराली शान और पहचान है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग की वास्तुकला – Kumbhalgarh Rajasthan

कुम्भलगढ़ किला एक पहाड़ी पर स्थित है, जो समुद्र तल से करीब 1100 मीटर ऊपर है। इस किले के गेट को राम गेट या राम पोल के नाम से जाना जाता है।

कुम्भलगढ़ किले की दीवार विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। इस विशाल दुर्ग की दीवारों की लम्बाई लगभग 36 किलोमीटर तथा चौड़ाई लगभग 15 फीट है। इस किले के अंदर एक लाखोला टैंक मौजूद है, जिसका निर्माण राणा लाखा ने 1382 और 1421 ईस्वी के बीच किया था।
कुंभलगढ़ किला सात विशाल द्वारों के साथ बनाया गया है। इस दुर्ग के चारों ओर 13 विशाल पर्वत है। मेवाड़ के महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राजसिंह तक सभी राजवंशियों की इस दुर्ग ने हमेशा सुरक्षा की है। इस किले के अंदर की मुख्य इमारतें बादल महल, शिव मंदिर, वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और मम्मदेव मंदिर हैं। कुंभलगढ़ किला परिसर में लगभग 360 मंदिर है, जिनमें से 300 जैन मंदिर है और बाकी हिंदू है।

मुख्य किले तक पहुँचने के लिए आपको एक खड़ी रैंप जैसे पथ पर चढ़ने की आवश्यकता है। किले के अंदर बने कमरों के साथ अलग-अलग नाम दिए गए हैं। इस किले में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है, जिसके अंदर एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग की दीवार कुम्भलगढ़ किले का ’आरेठ पोल’ नामक दरवाजा केलवाड़े के कस्बे से पश्चिम में कुछ दूरी पर 700 फुट ऊँची नाल चढ़ने पर बना है।

कुम्भलगढ़ किले के चारों ओर सुदृढ़ प्राचीर है, जो पहाड़ियों की ऊँचाई से मिला दी गई है। प्राचीरों की चौड़ाई सात मीटर है और इसकी दीवारें चिकनी और सपाट है तथा जगह-जगह पर बुर्ज बने हुए है, जो इसे सुदृढ़ता प्रदान करते है।

कुम्भलगढ़ के भीतर ऊँचाई पर एक लघु दुर्ग है, जिसे कटारगढ़ कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल दरवाजों और सुद्ृढ़ दीवार से सुरक्षित है। कटारगढ़ में कुम्भा महल है। इस किले के भीतर कुम्भस्वामी का मंदिर, बादल महल, देवी का प्राचीन मंदिर, झाली रानी का महल आदि प्रसिद्ध इमारतें है।

हल्दीघाटी के युद्ध से पहले महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में ही रहकर युद्ध सम्बन्धी तैयारियां की थी तथा युद्ध के बाद कुम्भलगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया।

कुंभलगढ़ किले के अंदर मुख्य स्मारक

कुंभलगढ़ किले के अंदर कई स्मारक स्थित हैं।

गणेश मंदिर –

कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित गणेश मंदिर सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है। जिसको 12 फीट के मंच पर बनाया गया है। इस किले के पूर्वी किनारे पर नील कंठ महादेव मंदिर स्थित है।

वेदी मंदिर –

राणा कुंभा द्वारा निर्मित वेदी मंदिर हनुमान पोल के पास स्थित है, जो पश्चिम की ओर है। वेदी मंदिर एक तीन-मंजिला अष्टकोणीय जैन मंदिर है जिसमें छत्तीस स्तंभ हैं, जो राजसी छत का समर्थन करते हैं। इस मंदिर को महाराणा फतेह सिंह द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।

पार्श्वनाथ मंदिर –

पार्श्वनाथ मंदिर पूर्व की तरफ जैन मंदिर है और कुंभलगढ़ किले में बावन जैन मंदिर और गोलरा जैन मंदिर प्रमुख जैन मंदिर है।

बावन देवी मंदिर –

बावन देवी मंदिर का नाम एक ही परिसर में 52 मंदिरों से निकला है। इस मंदिर में केवल एक प्रवेश द्वार है। बावन मंदिरों में से दो बड़े आकार के मंदिर हैं जो केंद्र में स्थित है। 50 मंदिर छोटे आकार के है।

कुंभ महल –

कुंभ महल राजपूत वास्तुकला के बेहतरीन संरचनाओं में से एक है। यह एक दो मंजिला इमारत है जिसमें एक सुंदर नीला दरबार है।

बादल महल –

राणा फतेह सिंह द्वारा निर्मित यह कुंभलगढ़ किले का उच्चतम महल है। इस महल तक पहुँचने के लिए संकरी सीढ़ियों से छत पर चढ़ना पड़ता है। यह दो मंजिला इमारत है जिसमें पेस्टल रंगों को चित्रित किया गया है।

कुम्भलगढ़ किले पर हुए आक्रमण

कुम्भलगढ़ किले का निर्माण बहुत मजबूती से किया गया था। यहां सुरक्षा भी बहुत सुदृढ़ थी। इतनी सुरक्षा सुदृढ़ होने के कारण ही कई बार हमला करने के बाद भी कोई भी कुंभलगढ़ दुर्ग पर अधिकार नहीं कर पाया। जब अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर हमला किया, परन्तु वह असफल रहा। दूसरा आक्रमण गुजरात के शासक अहमद शाह ने किया, परंतु वह भी असफल रहा।

अहमद शाह ’बन माता मंदिर’ को तोड़ने में कामयाब हो गया था। ऐसी मान्यता है कि इस किले में मौजूद देवताओं ने किले को अन्य किसी भी प्रकार का नुकसान होने से बचाया। महमूद खिलजी ने 1458, 1459 और 1467 में इस किले पर आक्रमण किया, किंतु वह किले को जीतने में असफल रहा।

इसके अतिरिक्त अकबर, मारवाड़ का राजा उदयसिंह, राजा मानसिंह और गुजरात के मिर्जा ने इस किले पर जोरदार आक्रमण किया था, परंतु राजपूतों की वीरता और साहस के आगे सारे शत्रुओं को पराजित हो गये।

कुंभलगढ़ किले को सिर्फ एक बार युद्ध में हार का सामना करना पड़ता था और इस हार का कारण पानी की कमी होना था। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में 3 बागबान ने धोखाधड़ी की थी। उस युद्ध में शाहबाज खान ने किले को अपने नियंत्रण में कर लिया था। शाहबाज खान अकबर का सेनापति था। 1818 में मराठे कुंभलगढ़ किले पर अधिकार करने में सफल हुई थे।

कुंभलगढ़ किले के इतिहास से जुड़ी कहानी

ऐसा कहा जाता है कि जब महाराणा कुंभा इस किले की दीवार का निर्माण कर रहे थे, तब उन्हें बार-बार इसके निर्माण में बाधा आ रही थी। तब इस बारे में उन्होंने किसी संत से पूछा था। संत ने उनको इसके उपाय में स्वैच्छिक मानव बलि की बात कही।

ऐसी कहा जाता है कि जब बलि के लिए कोई भी नहीं मिला तो उस संत ने स्वेच्छा से अपना बलिदान दिया। संत ने उन्हें कहा की जब मैं पहाड़ी पर चढ़ना शुरू करूंगा, तुम मेरा अनुसरण करोगे।

जिस स्थान पर पहली बार मैं रुकूँगा उस स्थान पर किले का मुख्य द्वार बनवाना। फिर उसके बाद आगे चलकर जहां मैं दूसरी बार रुकूँगा वहाँ मेरा सिर काट कर उस स्थान पर मंदिर बनवा देना। आज भी किले के प्रवेश द्वार ’हनुमान पोल’ के पास उनकी स्मृति में मंदिर निर्मित है।

कुंभलगढ़ किले के पास के 10 प्रमुख पर्यटन स्थल

  • बागोर की हवेली
  • सहेलियों की बाड़ी
  • मोती मगरी
  • शिल्पग्राम
  • कार संग्रहालय
  • लेक पैलेस
  • फतेह सागर झील
  • जगदीश मंदिर
  • पिछोला झील
  • सिटी पैलेस।

कुंभलगढ़ दुर्ग की विशेषताएं

  • कुंभलगढ़ किले की दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। इस किले की दीवार 38 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसकी चौड़ाई इतनी है कि एक साथ 8 घोड़े जा सकते हैं। कुंभलगढ़ दुर्ग की ऊंचाई 3500 फीट है।
  • इस ऐतिहासिक दुर्ग परिसर के अंदर भी एक और गढ़ है जिसे ’कटारगढ़’ कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व मजबूत दीवारों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में स्थित बादल महल तथा कुम्भा महल दर्शनीय है।
  • यहां पर मंदिरों की संख्या 360 से भी अधिक है जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण मंदिर भगवान शंकर का है जहां पर बहुत ही बड़ा शिवलिंग स्थापित है और यहां पर जैन मंदिर भी है।
    कुंभलगढ़ किले में जैन और हिंदू मंदिरों की संख्या काफी ज्यादा है। यह जैन और हिन्दू मंदिर उस समय के राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता को प्रदर्शित करते है।
  • वर्तमान समय में कुंभलगढ़ किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के कारण प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी सैलानी यहां पर कुंभलगढ़ किला घूमने के लिए आते हैं।
  • कुंभलगढ़ किला 13 पहाड़ियों पर बना है, जो समुद्र तल से 1914 मीटर ऊँचा है। इस किले की लंबाई 36 किलोमीटर है।
    कुंभलगढ़ किला राजस्थान के महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ऐतिहासिक जानकारी भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
  • कुंभलगढ़ किले का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15 वीं शताब्दी में सन् 1443 में शुरू करवाया था और 1458 में यह किले का निर्माण पूरा हो गया।
  • कुम्भलगढ़ किले को जून 2013 में पेन्ह में आयोजित वर्ल्ड हेरिटेज साईट की 37 वीं मीटिंग में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग को ’मेवाड़ की आंख’ के नाम से जाना जाता है।

राजसमन्द जिले में अवस्थित पहाङी दुर्ग (जरगा पहाङियाँ)।

Kumbhalgarh kila
Kumbhalgarh kila

कुंभलगढ़ दुर्ग से जुङी कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ – Kumbhalgarh Kila

➡️ राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाङ राजपरिवार की स्वामीभक्त पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन की बलि देकर उदयसिंह को बनवीर से बचाया तथा कुंभलगढ़ भेजा। कुंभलगढ़ के किलेदार आशा देवपुरा के पास उसका लालन-पालन हुआ।
➡️ इसी दुर्ग में उदयसिंह का मेवाङ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक हुआ।
➡️ कुंभलगढ़ दुर्ग में ही वीर शिरोमणि महाराण प्रताप का जन्म 1540 ई. में हुआ।
➡️ कुम्भलगढ़ दुर्ग में जाने के लिए आरटेपोल तथा हल्ला पोल होते हुए दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार हनुमान पोल है।
➡️ हनुमानपोल के पास ही कुम्भा ने माण्डलपुर विजय कर वहाँ से लाकर स्थापित की गई हनुमान की मूर्ति है।
➡️ दुर्ग के महाराणा कुम्भा के द्वारा अपने शिल्पियों मण्डन, जैता, पूजा, नापा से शास्त्रोक विधि से वेदी का निर्माण करवाया था, जो यज्ञस्थल है।
➡️ इस दुर्ग में स्थित झालीबाव व मामदेव कुण्ड हैं तथा इनके पास ही कुंभस्वामी का विष्णुमंदिर है। यहीं कुम्भा के पुत्र ऊदा ने उनकी हत्या कर दी थी।
➡️ इस दुर्ग में कुंवर पृथ्वीराज की 12 स्तम्भों की छतरी है। जिसमें चारों ओर सत्रह सतियों की मूतियों वाला स्तम्भ है। इस छतरी का वास्तुकार श्री घषनपना थे।

कुंभलगढ़ जाने का सबसे अच्छा समय

कुंभलगढ़ देखने जाने के लिए सबसे अच्छा समय जून से मार्च तक होता है। बारिश के मौसम में तो यहां का वातावरण बहुत आकर्षक होता है, इस समय यहां पर बादल ऐसे लगते है जैसे जमीन पर ही बादल उतर रहे हो, इस समय यहां चारों तरफ हरियाली होती है।

सर्दियों के मौसम में यहां पर ठंडा मौसम होता है, इसी वजह से बहुत सारे पर्यटक आते है। गर्मियों के मौसम में यहां पर आपको थोड़ी दिक्कत आ सकती है, क्योंकि इस समय यहां बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है।

कुंभलगढ़ किले का प्रवेश शुल्क

कुंभलगढ़ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए भारतीय लोगों को 40 रुपए का शुल्क देना पड़ता है और विदेशी नागरिकों को 600 रुपए का शुल्क देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त यहां पर्यटकों को लाइटिंग और साउंड शो के लिए अलग से 100 रुपए की टिकट लेनी पड़ती है। इस शो को केवल हिंदी भाषा में ही प्रस्तुत किया जाता है।

कुंभलगढ़ दुर्ग खुलने का समय

कुंभलगढ़ दुर्ग पर्यटकों के लिए सुब 9 बजे से शाम को 6 बजे तक खुला रहता है। अगर आप पूरे किले को देखते है तो आपको आराम से देखने पर 3 से 4 घंटे का समय लग जाता है। इसके अतिरिक्त शाम को 7 बजे लाइटिंग शो होता है।
जिसमें संपूर्ण कुंभलगढ़ दुर्ग पर लाइट का प्रकाश डाल कर दिखाया जाता है और यह बहुत ही खूबसूरत दृश्य होता है। इस शो में संगीत चलता है और किले की संपूर्ण जानकारी दी जाती है।

कुंभलगढ़ किला उदयपुर कैसे पहुंचे ?

कुंभलगढ़ किला जाने के लिए उदयपुर इसके निकट वाला हवाई अड्डा है, यहां से कुंभलगढ़ जाने में डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है। इसका निकट का रेलवे स्टेशन फालना रेलवे स्टेशन है। कुंभलगढ़ रोड़ नेटवर्क के द्वारा भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

हवाई जहाज से कुंभलगढ़ किला उदयपुर कैसे पहुंचे ?

कुंभलगढ़ का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर हवाई अड्डा है। जो कुंभलगढ़ से करीब 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे पर उतरने के बाद कुंभलगढ़ जाने के लिए आप बस, टैक्सी या कार ले सकते हैं।

बस से कुंभलगढ़ किला उदयपुर कैसे पहुंचे ?

उदयपुर की यात्रा सड़क मार्ग से करना बहुत अच्छा होता है। क्योंकि शहर रोड नेटवर्क द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, इंदौर, कोटा और अहमदाबाद अच्छी तरह कनेक्टेड है। राजस्थान और उसके आसपास के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों से कुंभलगढ़ के लिए बस सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। बस के अतिरिक्त आप कार, टैक्सी या कैब किराए पर लेकर कुंभलगढ़ पहुंच सकते हैं।

ट्रेन से कुंभलगढ़ किला उदयपुर कैसे पहुंचे ?

कुंभलगढ़ में अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। इसका निकट का रेलवे स्टेशन फालना रेलवे स्टेशन है, इसके अतिरिक्त विकल्प के रूप में उदयपुर रेलवे स्टेशन भी है। उदयपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है, जो रेल के विशाल नेटवर्क पर स्थित है। यहां के लिए आपको भारत के सभी बड़े शहरों जयपुर, दिल्ली, कोलकाता, इंदौर, मुंबई और कोटा से आसानी से ट्रेन मिल जायेंगी। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आप टैक्सी या कैब और बस की सहायता से कुंभलगढ़ पहुंच सकते हैं।

FAQS – Kumbhalgarh Rajasthan

1. कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण किसके द्वारा करवाया गया था?

उत्तर – महाराणा कुम्भा

2. कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के किस जिले में स्थित है?

उत्तर – राजसमंद जिला में

3. कुम्भलगढ़ दुर्ग किस पहाड़ी पर स्थित है?

उत्तर – जरगा की पहाड़ियों पर

4. महाराणा कुम्भा के द्वारा राजस्थान में किस दुर्ग का निर्माण करवाया गया था?

उत्तर – कुम्भलगढ़ दुर्ग

5. कुम्भलगढ़ दुर्ग को मेवाड़ व मारवाड़ सीमा का प्रहरी किस कारण कहा जाता है?

उत्तर – मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा पर स्थित होने के कारण इस दुर्ग को मेवाड़ व मारवाड़ सीमा का प्रहरी कहा जाता है

6. राजस्थान में स्थित कुम्भलगढ़ दुर्ग दुर्गों की किस श्रेणी में शामिल है?

उत्तर – गिरि दुर्ग

7. कुम्भलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार कौन था?

उत्तर – मण्डन

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