आज के आर्टिकल में हम पाबूजी (Pabuji) के बारे में जानेंगे। इसके अन्तर्गत हम पाबूजी का इतिहास (Pabuji Maharaj History in Hindi), पाबूजी का जीवन परिचय (Pabuji Biography in Hindi), पाबूजी की फङ (Pabuji Ki Phad) के बारे में पढ़ेंगे।
पाबूजी महाराज का इतिहास – Pabuji Maharaj History in Hindi
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लोकदेवता पाबूजी राठौड़
पाबू जी की जीवनी (Pabuji Biography in Hindi) | |
जन्म | 1239 ई. (विक्रम संवत् 1296) |
जन्मस्थान | कोलू/कोलूमंड गाँव(फलोदी जिला) |
मृत्यु | विक्रम संवत् 1233 (37 वर्ष) |
मृत्युस्थान | देचूँ गाँव |
पूरा नाम | वीर पाबूजी महाराज |
अन्य नाम | ऊँटों का देवता, गौ रक्षक देवता, लक्ष्मण जी का अवतार, हाङ-फाङ देवता, मेहर जाति के मुसलमान पीर, प्लेग रक्षक देवता। |
पिता | श्री धाँधलजी राठौङ |
माता | श्रीमती ’कमला दे’ |
राजवंश | राठौङ |
धर्म | हिन्दू |
पत्नी | श्रीमती सुपियार/फुलमदे |
पाबूजी की घोङी | केसर कालमी |
बहनें | सोनल बाई और पेमल बाई |
भाई | बूडोजी |
पांच साथी | सरदार चांदोजी, हरमल जी राइका, सावंतजी, डेमाजी, सलजी सोलंकी। |
प्रसिद्धि | लोक देवता, गौ रक्षक, वीर योद्धा |
पाबूजी का जन्म कब हुआ – Pabuji Ka Janm Kab Hua
राठौङ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म 1239 ईस्वी 13 वीं शताब्दी में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलूमण्ड गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधलजी राठौङ तथा माता का नाम ’कमला दे’ था। ये राठौङों के मूल पुरुष ’राव सीहा’ के वंशज थे। धांधल जी के चार संतानें थी जिनमें से उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। उनके पुत्र – पाबूजी व बूडोजी थे तथा बहनें – सोनल बाई और पेमल बाई थी। आना बघेला जैसे शक्ति संपन्न शासक के भगोङे सात थोरी-भाईयों (चांदा, देवा, खापू, पेमा, खलमल, खंधार और चासल) को पाबू ने आश्रय देकर उनकी रक्षा की।
पाबूजी का विवाह – Pabuji Ka Vivah
पाबूजी का विवाह अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुप्यारदे से हुआ था। पाबूजी के बहनोई नागौर के राजा जिंदराव खींची था। पाबूजी व जिंदराव खींची की आपस में बनती नहीं थी। जब इनका विवाह हो रहा था तब उनके बहनोई जिंदराव खींची ने विवाह में विघ्न डाला।
खींची ने अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने के लिए देवल चारणी की गायों को घेर लिया। देवल चारणी ने गायों को छुङवाने के लिए मदद मांगी थी, जब गाय छुङवाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने पाबूजी से सहायता मांगी। तब पाबूजी अपने चौथे फेरे के बीच से ही उठकर अपने बहनोई जायल के जीन्दराव खींची से देवल चारणी (जिसकी केसर कालमी घोङी ये माँग कर लाए थे) की गायें छुङाने के लिए अपने साथियों के साथ रवाना हुए।
पाबूूजी का राजपूत होने के नाते क्षत्रिय धर्म था, कि वे प्रजा की सेवा करे। पाबूजी और जिंदराव खींची के बीच 1276 ई. में युद्ध हुआ था। देचूँ गाँव में युद्ध करते हुए पाबूजी वीर गति को प्राप्त हो गये तथा उनके सैनिक साथी लोग भी शहीद हो गए। अतः इन्हें ’गौ-रक्षक देवता’ के रूप में पूजा जाता है। पाबूजी को सम्मान देने के लिए राजस्थान में चौथे फेरे के बाद ही विवाह सम्पन्न माना जाता है।
पाबूजी की फड़ – Pabuji Ki Phad
पाबूजी की फङ ’रात्रि जागरण’ की तरह होती है, यह फङ मध्य रात्रि तक चलती है। फङ के मुख्य कलाकार भोपे-भोपियाँ होते हैं जो पाबूजी के भजन गाते हैं व नृत्य करते हैं।
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ऊंटों के देवता – Camel Ka Devta
जब कभी क्षेत्रीय लोगों के ऊँट बीमार हो जाते है तो ऊँट के मालिक पाबूजी के सामने शरणागत होते हैं। बाद में जब पाबूजी के आशीर्वाद से ऊँट स्वस्थ हो जाता है, तो इसी खुशी में क्षेत्रीय लोग पाबूजी की फङ का आयोजन करते हैं। ’प्लेग रक्षक एवं ऊँटों के देवता’ के रूप में पाबूजी की विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि मारवाङ में सर्वप्रथम ऊँट (साण्डे) लाने का श्रेय पाबूजी को ही है। अतः ऊँटों की पालक राइका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है। ग्रामीण लोग पाबूजी को ’लक्ष्मणजी का अवतार’ मानते है तथा पाबूजी को ’ऊँटो के देवता’ के रूप में पूजा जाता है।
मेहर जाति के मुसलमान इन्हें ’पीर’ मानकर पूजा करते हैं। इनका बोध चिह्न ’भाला’ है। पाबूजी से संबंधित गाथा गीत/भजन ’पाबूजी के पवाडे’ माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेबारी जाति द्वारा गाये जाते हैं।
पाबूजी राठौड़ की जन्म कथा – Pabu ji Maharaj
पाबूजी राठौङ राजस्थान के एक प्रसिद्ध लोक देवता है। वह एक राजपूत राठौङ थे। इनकी वीरता, त्याग, शरणागत और प्रतिज्ञा पालन तथा गौ रक्षा के लिए बलिदान के कारण लोग इन्हें ’लोकदेवता’ के रूप में पूजते है। पाबूजी को ऊँटों का देवता, गौरक्षक देवता, हाङ-फाङ देवता, मेहर जाति के मुसलमान ’पीर’, प्लेग रक्षक देवता, लक्ष्मण जी का अवतार आदि नामों से जाना जाता है।
पाबूजी राठौड़ का इतिहास – Pabuji Rathore Bhajan
पाबूजी राठौड़ केवल गौ-रक्षक हो नहीं अपितु अछूतोद्धारक भी थे। इन्होंने म्लेच्छ समझी जाने वाली थोरी जाति के सात भाइयों को न केवल आश्रय ही दिया बल्कि उनको अपने प्रधान सरदारों में स्थान देकर हमेशा उनको अपने पास रखा। पाबूजी के सरदारों में से चार पाँच प्रमुख सरदार थे जिन पर वे अटूट विश्वास रखते थे। ये थे चंदोजी, सांवतजी, डेमाजी, हरमलजी राइका एवं सलजी सोलंकी। थोरी जाति के लोग सारंगी द्वारा पाबूजी का यश गाते हैं, जिसे राजस्थान की प्रचलित भाषा में ’पाबू धणी री वाचना’ कहते हैं।
पाबूजी राठौङ (Pabuji Rathore) के तीन भक्त/सहयोगी है – चांदा, डेरा और हरमल। ये तीनों देचूँ के युद्ध में खींची से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
पाबू प्रकाश – आसियां मोङ
पाबू प्रकाश नामक ग्रन्थ में पाबूजी का जीवन चरित्र वर्णित है। इस ग्रन्थ के लेखक आसियां मोङ है।
पाबूजी की घोड़ी – Pabuji Ki Godi
एक बार की बात है जब पाबूजी की उम्र कम थी तभी वे कहीं रास्ते से गुजर रहे थे। उसी समय एक गायों के झुण्ड के बीच में एक छोटी घोङी चर रही थी और पाबूजी को देखकर वह घोङी प्रफुल्लित हो गयी तथा नाचने लगी। उस घोङी ने पाबूजी का मन मोह लिया। यह घोङी देवल चारणी नामक महिला की थी।
तभी पाबूजी ने देवल चारणी से घोङी मांगी। तब देवल चारणी ने एक वचन पर पाबूजी को घोङी देने को तैयार हो गई थी कि अगर मुझ पर या मेरी गायों पर कोई संकट आयेगा तो आपको हमारी रक्षा करनी होगी। साथ ही देवल चारणी ने यह भी कहा था कि जब मुझ पर कोई संकट आयेगा, तो यह घोङी विचित्र आवाज में हिनहिनाने लगेगी। उसके बाद पाबूजी ये घोङी अपने साथ ले गये।
पाबूजी की घोड़ी का क्या नाम था ?
पाबूजी ने इस घोङी का नाम केसर कालमी रखा। यह घोङी पाबूजी को प्राणों से भी प्रिय थी और वे उसे सदैव ही अपने साथ रखते थे। पाबूजी के अन्तिम समय तक कालमी इनके साथ रही थी।
पाबूजी का मेला कब लगता है – Pabu Ji
लोकदेवता पाबूजी का राजस्थान के फलौदी जिले के कोलूमंड में विशाल मन्दिर है। यहाँ पर चैत्र महीने की अमावस्या को पाबूजी का वार्षिक मेला लगता है। बहुत सारे श्रद्धालु यहाँ अपनी मन्नतें लेकर आते है। इनके यशोगान में पावङे नामक गीत गाया जाता है।
पाबूजी का मंदिर कहां पर है – Pabuji Maharaj
पाबूजी का मंदिर कोलूमण्ड गांव (फलोदी) में बना हुआ है। इस मंदिर में पाबूजी की घोङे पर सवार प्रतिमा है। इस प्रतिमा में पाबूजी की पागङी बायीं ओर झुकी हुई है। पाबूजी ’केसर कालमी’ घोङी एवं बाँयीं ओर झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है।
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पाबूजी की मृत्यु कब हुई – Pabuji Ki Mrityu Kab Hui
पाबूजी राठौङ की मृत्यु 37 वर्ष की आयु में ही विक्रम संवत् 1233 (1276) में राजस्थान में देचूँ गाँव में हुई थी। जब जिंदराव खींची ने देवल चारणी नामक एक स्त्री की गायों को चुरा लिया था। तब देवल चारणी ने अपनी गायों को छुङवाने के लिए पाबूजी से विनती करती है, तब पाबूजी अपने विवाह के चौथे फेर के बीच से उठकर गायों को छुङवाने के लिए रवाना हो गए थे और जिंदराव खींची के खिलाफ युद्ध करते हुए वीरगति हो प्राप्त हो गए थे। पाबूजी की समाधि देचूँ गांव में बनी हुई है।
पाबूजी से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Pabuji Important Question
प्र. 1 पाबूजी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – पाबूजी का जन्म 1239 ई. (विक्रम संवत् 1296) में फलोदी में कोलू/कोलूमंड गाँव में हुआ था।
प्र. 2 पाबूजी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर – श्री धाँधलजी राठौङ
प्र. 3 पाबूजी के माता का नाम क्या था ?
उत्तर – श्रीमती ’कमला दे’
प्र. 4 पाबूजी की प्रिय घोङी का नाम क्या था ?
उत्तर – केसर कालमी
प्र. 5 पाबूजी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर – फूलमदे
प्र. 6 पाबूजी महाराज ने किस औरत को उसकी रक्षा के लिए वचन दिया था ?
उत्तर – पाबूजी महाराज ने देवल चारणी नाम की औरत को अपनी घोङी देने के बदले में उनकी रक्षा का वचन दिया था।
प्र. 7 पाबूजी के पांच साथी कौन-कौन थे ?
उत्तर – पांच साथी – सरदार चांदोजी, हरमल जी राइका, सावंतजी, डेमाजी, सलजी सोलंकी।
प्र. 8 किस लोकदेवता को ’ऊँटों का देवता’ कहा जाता है ?
उत्तर – लोकदवेता पाबूजी राठौङ को
प्र. 9 किसने देवल चारणी की गायों को चुरा था ?
उत्तर – पाबूजी के बहनोई जिंदराव खींची ने
प्र. 10 मारवाङ में सर्वप्रथम ऊँट (साण्डे) को लाने का श्रेय किसको जाता है ?
उत्तर – पाबूजी को
प्र. 11 ’पाबूजी की फङ’ किस वाद्ययंत्र की सहायता से बाँची जाती है ?
उत्तर – पाबूजी की फङ को नायक जाति के भोपों द्वारा ’रावणहत्था’ वाद्ययंत्र के साथ बाँची जाती है।
प्र. 12 पाबूजी का पूजा-स्थल कहाँ है ?
उत्तर – कोलूमण्ड गांव (फलोदी) में
प्र. 13 लोकदेवता पाबूजी को वार्षिक मेला कहाँ लगता है ?
उत्तर – राजस्थान के फलौदी जिले के कोलूमंड में चैत्र महीने की अमावस्या को पाबूजी का वार्षिक मेला लगता है।
प्र. 14 पाबूजी की मृत्यु कब हुई थी ?
उत्तर – पाबूजी की मृत्यु विक्रम संवत् 1233 को देचूँ गाँव(फलौदी) में हुई थी।
प्र. 15 पाबूजी की समाधि कहाँ बनी हुई है ?
उत्तर – पाबूजी की समाधि देचूँ गांव(फलौदी) में बनी हुई है।
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