आज के आर्टिकल में हम गरीबी (Garibi) के बारे में पढ़ेंगे। इसके अन्तर्गत में हम गरीबी का अर्थ (Poverty Meaning in Hindi), गरीबी की परिभाषा (Garibi Ki Paribhasha), गरीबी के प्रकार (Garibi Ke Prakar), गरीबी के कारण (Garibi Ke Karan), गरीबी के परिणाम (Garibi Ke Parinaam), भारत में गरीबी उन्मूलन योजनाएँ (Bharat Me Garibi Unmulan Yojanay) के बारे में जानेंगे।
गरीबी का अर्थ – Poverty Meaning in Hindi
गरीबी (garibi) से अभिप्राय जीवन के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति का ना होना है। यदि किसी व्यक्ति या समूह को रोटी, कपङा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती तब उस व्यक्ति या वर्ग समूह को गरीब कहेंगे।
गरीबी क्या है – Garibi Kya Hai
सामान्य रूप से एक व्यक्ति को न्यूनतम जीवनस्तर को बनाये रखने के लिए जितनी आय की आवश्यकता है, उससे कम आय होने पर उसे गरीब माना जाता है अर्थात् जिस व्यक्ति की आय अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे खाना, वस्त्र, मकान, चिकित्सा आदि की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है, वह व्यक्ति गरीब कहलाता है। इसका मुख्य कारण आय-सृजक सम्पत्तियों व रोजगार के अवसरों की कमी है।
गरीबी किसे कहते हैं – Garibi Kise Kahate Hain
जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम दयनीय जीवन बिताने की स्थिति गरीबी (Poverty) कहलाती है।
गरीबी की परिभाषा – Garibi Ki Paribhasha
गिलिन और गिलिन के अनुसार, ’’निर्धनता वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति या तो अपर्याप्त आय अथवा मूर्खतापूर्ण व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को उतना ऊँचा नहीं रख पाता, जिससे उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता बनी रह सके और उसको तथा उस पर आश्रितों को अपने समाज के स्तरों के अनुसार उपयोगी ढंग से कार्य करने के योग्य बनाए रख सके।
गोडार्ड के अनुसार, ’’निर्धनता उन वस्तुओं की अपर्याप्त पूर्ति की दशा है, जिसकी एक व्यक्ति को अपने स्वयं तथा अपने आश्रितों के स्वस्थ एवं शक्ति को बनाए रखने के लिए अवश्य होती है।
एडम स्मिथ के अनुसार, ’’मनुष्य की अमीरी तथा गरीबी को मानव जीवन की आवश्यक वस्तुओं, आराम व मनोरंजन के साधनों की प्राप्त मात्रा से आका जा सकता है।’’
वीवर के अनुसार, ’’निर्धनता एक ऐसे जीवन स्तर के रूप में परिभाषित की जा सकती है, जिसमें स्वास्थ्य और शरीर सम्बन्धी दक्षता नहीं बनी रहती।’’
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के प्रथम निदेशक लाॅर्ड बाॅयड ओर पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1945 में गरीबी रेखा की अवधारणा प्रस्तुत की थी। उन्होंने 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से कम उपभोग करने वाले व्यक्ति को गरीब माना।
निर्धनता अनुपात – निर्धन व्यक्तियों का कुल जनसंख्या से अनुपात निर्धनता अनुपात कहलाता है।
निर्धनता अनुपात का सूत्र – देश में निर्धन व्यक्तियों की कुल संख्या/देश की कुल जनसंख्या
गरीबी (Poverty) के मापन हेतु नीति आयोग ने विभिन्न समूहों व समितियों – टास्क समूह, 1962, डाॅ. वाई.के. अलघ समिति 1977, डी.टी. लकङवाला टास्क समूह 1989, तेंदुलकर समिति 2005 का गठन किया।
गरीबी के प्रकार – Garibi Ke Prakar
गरीबी दो प्रकार की होती है –
- सापेक्ष गरीबी/तुलनात्मक गरीबी
- निरपेक्ष गरीबी/संपूर्ण गरीबी
सापेक्ष गरीबी क्या है – Sapeksh Garibi Kya Hai
सापेक्ष गरीबी (Sapeksh Garibi) आय में पाई जाने वाली असमानता को प्रकट करती है। सापेक्ष गरीबी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक असमानता अथवा क्षेत्रीय आर्थिक असमानता का बोध कराती है। दूसरे शब्दों में, विभिन्न वर्गों विभिन्न प्रदेशों अथवा विभिन्न देशों की तुलनात्मक आय का प्रदर्शन सापेक्ष गरीबी का बोध कराता है यदि कहा जाए कि भारत में प्रति व्यक्ति आय अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय से कम है तब यह सापेक्ष गरीबी दर्शाने वाला कथन है। सापेक्ष गरीबी का मापन विकसित देशों में किया जाता है। सापेक्ष गरीबी को तुलनात्मक गरीबी कहते है।
सापेक्ष गरीबी का मापन दो विधियों से किया जाता है –
- लाॅरेन्ज वक्र विधि
- गिनी गुणांक विधि।
निरपेक्ष गरीबी क्या है – Nirpeksh Garibi Kya Hai
निरपेक्ष गरीबी (Nirpeksh Garibi) देश की उस जनसंख्या को सूचित करती है जो न्यूनतम उपभोग स्तर नहीं प्राप्त कर पाती और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। निरपेक्ष गरीबी का मापन कैलोरी के आधार, उपभोग व्यय के आधार पर या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर किया जा सकता है। निरपेक्ष गरीबी को संपूर्ण गरीबी कहते है। विकासशील देशों में निरपेक्ष गरीबी होती है।
भारत में नीति आयोग ने गरीबी की निरपेक्ष अवधारणा पर बल दिया है। भारत में निर्धनता की सामान्य स्वीकृत परिभाषाएँ उचित जीवन स्तर की अपेक्षा न्यूनतम जीवन स्तर को प्राप्त करने पर बल देती है। योजना आयोग ने गरीबी रेखा का आधार कैलोरी ऊर्जा को माना है।
गरीबी का मापन – Garibi Ka Mapan
भारत में निर्धनता के मापन के निम्न दो आधार निर्धारित किए गए हैं –
- न्यूनतम कैलोरी उपभोग
- प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोग व्यय
न्यूनतम कैलौरी उपभोग
- नीति आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी का पोषण प्राप्त न कर सकने वाला व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे अर्थात् गरीब माना जाता है।
- जुलाई, 2014 में जारी रंगराजन समिति की सिफारिशों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 2155 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2090 कैलोरी का पोषण प्राप्त न कर सकने वाला व्यक्ति निर्धन माना गया है।
प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोग व्यय
- NSSO के 68वें चक्र तथा तेंदुलकर समिति की सिफारिशों के अनुसार वर्ष 2011-12 में अखिल भारत स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 816 रु. व शहरी क्षेत्रों के लिए 1000 रुपए मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना गया है। इसके अनुसार वर्ष 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी रेखा सर्वाधिक क्रमशः पुडुंचेरी (1309) व नागालैंड (1302) में थी।
- रंगराजन समिति की सिफारिशों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 972 रु. मासिक (32 रु. प्रतिदिन) तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 1407 रुपए मासिक (47 रु. प्रतिदिन) प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना गया है।
- तेंदुलकर समिति के अनुसार 2011-12 में देश में निर्धनता अनुपात 21.9 प्रतिशत तथा निर्धनों की संख्या 269.8 मिलियन थी।
गरीबी के कारण – Garibi Ke Karan
(1) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या
- भारत की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है इसका कारण पिछले कई सालों में जन्म दर का कम तथा जन्म दर का स्थिर बने रहना है। जनसंख्या की वृद्धि दर का स्थिर बने रहना है। जनसंख्या की वृद्धि दर 1941-51 में 1.0 प्रतिशत थी, जो 1991-2001 में 2.1 प्रतिशत हो गई है, जिससे समय के साथ-साथ निर्धनता और अधिक हो गई है। बढ़ती जनसंख्या गरीबी को बढ़ावा देती है। जिस गति से जीवन-यापन के लिए साधनों और सुविधाओं में वृद्धि नहीं होती, परिणामस्वरूप लोगों को बेरोजगारी तथा भूखमरी का सामना करना पङता है। माल्थस बढ़ती जनसंख्या के लिए गरीबी को उत्तरदायी मानते है।
(2) कीमतों में वृद्धि
- उत्पादन में कमी तथा जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण भारत जैसे अल्पविकसित देशों में कीमतों में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण गरीब व्यक्ति और गरीब हो जाता है।
(3) बेरोजगारी
- भारत देश में कई प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है जैसे – मौसम बेरोजगारी, शहरी बेरोजगारी, छिपी बेरोजगारी आदि ये सभी बेरोजगारी गरीबी को बढ़ावा देती है।
(4) विकास की धीमी गति
पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में औसत वार्षिक दर में वृद्धि बहुत कम रही GDP की विकास दर 4 प्रतिशत होने पर भी यह लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि करने में असफल रही। जनसंख्या में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने पर प्रति व्यक्ति आय मात्र 2.4 प्रतिशत रही। प्रति व्यक्ति आय में कमी गरीबी का मुख्य कारण है।
(5) पूँजी की अपर्याप्तता
- धारणीय विकास के लिए पूँजी का स्टाॅक तथा पूंजी निर्माण अभी भी कम है, निम्न पूंजी निर्माण का अर्थ है कम उत्पादन क्षमता और निर्धनता से है।
(6) राष्ट्रीय उत्पादन की धीमी वृद्धि
- भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पाद जनसंख्या की तुलना में काफी कम है। इस कारण भी प्रति व्यक्ति आय में कमी के कारण गरीबी बढ़ी है।
(7) अशिक्षा
- गरीबी का कारण व्यक्तियों की अज्ञानता और अशिक्षा भी है, आज प्रत्येक कार्य के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता आवश्यक है। कृषि, यांत्रिकी, उद्योग, अध्ययन, आयुर्वेद आदि सभी क्षेत्रों में प्रशिक्षण को महत्त्व दिया जाता है। अतः गरीबी का एक महत्त्वपूर्ण कारण अशिक्षा भी है।
(8) सामाजिक कारण
- इसमें जाति व्यवस्था, संयुक्त परिवार व्यवस्था, दहेज प्रथा, मृत्युभोज अन्य प्रकार के भोज, सामाजिक कुरीतियाँ आदि भी गरीबी लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(9) औद्योगीकरण
- उत्पादन के परंपरागत साधनों का स्थान मशीनों ने लिया तो फैक्ट्री प्रणाली अस्तित्व में आई। बङे-बङे उद्योग स्थापित हुए, ग्रामीण कुटीर उद्योग प्रायः नष्ट हो गए। परिणामस्वरूप जो लोग कार्य करके आर्थिक उत्पादन कर रहे थे, उनके सामने संकट खङा हो गया।
(10) कृषि का पिछङापन
- भारत में कृषि मोटेतौर पर मानसून पर आधारित है। कभी मानसून अति सक्रिय तो अभी अति निष्क्रिय होने पर कृषि उत्पादन पर असर पङता है। कृषि की गिरी हुई दशा, संसाधनों की कमी, उन्नत खाद, बीजों तथा सिंचाई सुविधाओं के अभाव भी गरीबी को बढ़ाते हैं।
गरीबी के परिणाम – Garibi Ke Parinaam
गरीबी समाज के लिए एक अभिशाप है, जिसने प्रत्येक व्यक्ति को किसी ने किसी रूप में प्रभावित किया है। गरीबी के परिणाम निम्नलिखित है-
(1) शारीरिक प्रभाव
- गरीबी शारीरिक कमियों को जन्म देती है। क्षय रोग को गरीबों की बीमारी माना है। लम्बी बीमारी और कार्य न करने की क्षमता भी लोगों को गरीब बनाती है और धन के अभाव में गरीब चिकित्सा की सुविधा नहीं जुटा पाते। शरीर क्षीण होना, मृत्युदर का बढ़ना, कुपोषण आदि समस्याओं का सामना करना पङता है।
(2) मानसिक प्रभाव
- गरीबी कुपोषण व छूत के रोगों को जन्म देती है, जिनका मानसिक स्थिति पर प्रभाव पङता है। इससे बौद्धिक स्तर निम्न रहता है।
(3) सामाजिक प्रभाव
- गरीब व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा व भूमिका आदि को भी प्रभावित करती है।
(4) अपराधों में वृद्धि
- गरीबी लोगों को अपराध की ओर उन्मुख करती है। अपराध व बाल अपराध के अध्ययन से यह तथ्य सामने आए हैं कि प्रायः गरीबी लोगों को चोरी, डकैती, व सैंधमारी से जोङती है।
(5) पारिवारिक विघटन
- गरीबी के कारण परिवार के सभी सदस्यों को काम करना पङता है। माता-पिता के काम पर चले जाने से बच्चों पर नियंत्रण शिथिल हो जाता है। सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होने से परस्पर तनाव, मनमुटाव और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
(6) भिक्षावृत्ति
- गरीबी (Garibi) भिक्षावृत्ति के लिए भी उत्तरदायी है। पर्याप्त धन व साधन नहीं होने से आर्थिक उत्पादन का एक मार्ग भिक्षावृत्ति को भी अपना लेते हैं।
(7) दुर्व्यसनों में वृद्धि
- गरीबी (Poverty) के कारण लोग मानसिक चिन्ता एवं निराशा से ग्रस्त हो जाते हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए नशा लेना प्रारंभ करते हैं।
(8) बाल अपराधों में वृद्धि
- जो निर्धन एवं अनाथ बच्चे वो अपना पेट भर के लिए चैरी, डकैती जैसा कार्य करने लगते है, जिससे बाल अपराधों में वृद्धि होती है।
(9) आत्महत्याओं में वृद्धि
- जब व्यक्ति अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पाता है एवं परिवार का भार उस पर ज्यादा हो जाता है तो वह व्यक्ति निराश होकर आत्महत्या कर लेता है। गरीबी के कारण अधिकांश लोग आत्महत्या जैसी प्रवृत्ति को अपना रहे है।
गरीबी दूर करने के उपाय – Garibi Dur Karne Ke Upay
(1) जनसंख्या नियंत्रण
- भारत का अनुभव यह दिखाता है कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण ही राष्ट्रीय आय में वृद्धि लोगों के अच्छे जीवन स्तर के रास्ते में रुकावट है। इसी के कारण प्रति व्यक्ति आय कम बनी हुई है। निर्धनता को दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि को कम किया जाए ताकि GDP में वृद्धि का प्रतिबिंब प्रति व्यक्ति GDP में वृद्धि के रूप में दिखलाई दे।
(2) GDP में वृद्धि
- गरीबी की समस्या के समाधान के लिए GDP में वृद्धि करना एक मूलभूत उपाय है। जब GDP में वृद्धि की गति तीव्र होती है। तब रोजगार के नए अवसर बनते है। खेतो तथा कारखानों में अधिक से अधिक मजदूरों को रोजगार उपलब्ध होगा।
(3) आय के वितरण में सुधार
- राजकोषीय उपाय – सरकार प्रगतिशील कर संरचना को अपनाए। इससे हमारा मतलब है धनी वर्ग की आय पर कर की ऊँची दर का लगना और गरीब वर्ग की आय पर को कर न लगना। गरीब वर्ग द्वारा खरीदी जाने वाले वस्तुओं में आर्थिक सहायता देना चााहिए।
- कानूनी उपाय – यहाँ कानूनी उपाय से अभिप्राय न्यूनतम मजदूरी अधिनियम से है। जिसके अनुसार मालिकों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपने कर्मचारियों को अनुबंधित न्यूनतम मजदूरी दे।
(4) कृषि का विकास
- गरीबी को दूर करने के लिए कृषि का विकास करने का विशेष प्रयत्न किया जाना चाहिए। उन्नत बीज, सिंचाई के साधनों को उपलब्ध करना चाहिए। कम्पोस्ट खाद का विशेष प्रयोग किया जाना चाहिए। छोटे किसानों को उचित प्रकार की वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए। भूमिहीन किसानों को भूमि दी जानी चाहिए।
(5) कीमत स्तर में स्थिरता
- यदि कीमतों में निरंतर वृद्धि होती रहेगी तो निर्धन लोगों का जीवन स्तर और भी नीचा होता जाएगा कीमतों में स्थिरता तभी लाई जा सकती है जब खाद्य तथा अन्य आम वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
(6) गरीबों की न्यूनतम आवश्यकताओं का प्रावधान
- सरकार को गरीबों की न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे – पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा, प्राथमिक शिक्षा इन सभी को संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए। इस उद्देश्य के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक से अधिक व्यय करना चाहिए।
भारत में गरीबी उन्मूलन योजनाएँ – Bharat Me Garibi Unmulan Yojanay
अन्त्योदय योजना – Antyodaya Yojana
- अन्त्योदय योजना की शुरूआत 1977-78 ई. को हुई।
- जनता पार्टी सरकार द्वारा राजस्थान में गरीबों में से भी निर्धनतम लोगों के उत्थान के लिए शुरू की गई।
- जिसमें उन्हें ऋण व अनुदान देकर आय सृजक सम्पत्तियाँ उपलब्ध कराई गई।
इंदिरा आवास योजना – Indira Awas Yojana
- ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों में निर्धनतम लोगों की आवास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु मई, 1985 को इंदिरा आवास योजना चलाई गई।
- यह योजना केन्द्र व राज्य की 75ः25 की भागीदारी से शुरू की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति के निर्धन परिवारों, मुक्त किए गए बंधुआ मजदूरों और ग्रामीण इलाकों में गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे अन्य व्यक्तियों को भी मुफ्त आवास इकाइयाँ प्रदान करना है।
- वर्तमान समय में इस योजना के दौरान ग्रामीण परिवारों को मकान बनाने के लिए 45 हजार की धनराशि दी जाती है।
- यह योजना का लाभ उन्हीं के लिए है जो BPL राशन कार्ड प्रयोग करते है। यह धनराशि परिवार की महिला के नाम पर दी जाती है।
प्रधानमंत्री रोजगार योजना – Pradhan Mantri Rojgar Yojana
- 2 अक्टूबर, 1993 को केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री रोजगार योजना प्रारम्भ की गई।
- इस योजना में 18-35 वर्ष की आयु के 8 वीं कक्षा उत्तीर्ण युवाओं, जिनके परिवार की समस्त स्रोतों से आय 40000 रुपये वार्षिक से अधिक नहीं है तथा वह उस स्थान का 3 वर्ष से स्थायी निवासी हो, को स्वयं का व्यापार/उद्योग या सेवा स्थापित करने हेतु एक लाख/दो लाख रु. तक का ऋण बिना समानान्तर ऋण गारन्टी के उपलब्ध कराया जाता है।
- इसमें स्वीकृत प्रोजेक्ट का 15 प्रतिशत राशि (अधिकतम 7500 रुपये) का अनुदान दिया जाता है।
- यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा जिला उद्योग केन्द्रों के माध्यम से संचालित की जा रही है।
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना – Swarna Jayanti Shahari Rozgar Yojana
- श्रम जयंती शहरी रोजगार योजना की शुरूआत 1 दिसम्बर, 1997 को हुई।
- इसमें नेहरू योजना, शहरी, गरीबों के लिए मूलभूत कार्यक्रम, प्रधानमंत्री का समन्वित शहरी गरीबी उपशमन कार्यक्रम का समावेश किया गया है।
- इसका उद्देश्य शहरी गरीबों के उन्नयन हेतु उन्हें रोजगार प्रदान करना है।
- इस योजना में 75 प्रतिशत भारत सरकार व 25 प्रतिशत राशि राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। इसमें शहरी गरीबों के चयनित परिवारों की महिलाओं की त्रिस्तरीय सामुदायिक संरचना (पङौसी समूह, परिवेश समिति एवं सामुदायिक विकास समिति) के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण कर उनकी सहभागिता व सिफारिशों के आधार पर कार्य कराए जाते हैं।
इस योजना के 5 मुख्य भाग हैं –
- शहरी स्वरोजगार कार्यक्रम।
- शहरी मजदूरी रोजगार कार्यक्रम।
- शहरी महिला स्वयं सहायता कार्यक्रम।
- शहरी गरीबों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने हेतु कौशल प्रशिक्षण देना।
- शहरी समुदाय विकास नेटवर्क।
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना – Swarnajayanti Gram Swarozgar Yojana
- स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की शुरूआत 1 अप्रैल, 1999 को हुई।
- इस योजना का कार्य ग्रामीण क्षेत्रों से निर्धनता को दूर करना है।
- इस योजना के अन्तर्गत गाँव में भारी संख्या में छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना की जाएगी।
- इनकी स्थापना के लिए इन्हें ऋण और आर्थिक सहायता दी जाएगी।
- केन्द्र व राज्य सरकार की 75: 25 भागीदारी की इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों को साख और अनुदान द्वारा आय सृजक सम्पत्तियाँ उपलब्ध करवाकर उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है।
- इस योजना में सामान्य वर्ग हेतु 30 प्रतिशत, अजा/अजजा के लिए 50 प्रतिशत की समान दर पर अनुदान देय है।
- अनुदान की अधिकतम सीमा-सामान्य वर्ग 7500, अजा/अजजा के लिए 10,000 हैं।
इस योजना में गरीबी उन्मूलन के और कार्यक्रम भी जोङे गए है, जैसे –
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम।
- ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण योजना।
- ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजार-किट आपूर्ति योजना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम।
- गंगा कल्याण योजना।
- दस लाख कुओं की योजना।
अन्नपूर्णा योजना – Annapurna Yojana
- अन्नपूर्णा योजना केन्द्र सरकार द्वारा अप्रैल, 2000 से प्रारंभ की गई है।
- इसमें असहाय वृद्ध व्यक्ति, राष्ट्रीय/राज्य वृद्धावस्था के पात्र हैं लेकिन दोनों में से कोई भी पेंशन नहीं मिल रही है उन्हें प्रति वृद्ध प्रतिमाह 10 किलो गेहूं निःशुल्क दिया जाता है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना – Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana
- प्रधानमंत्री ग्राम सङक योजना की शुरूआत 25 दिसम्बर, 2000 को हुई।
- ये केन्द्र सरकार की योजना है।
- जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों की ऐसी बस्तियों को, जो सङकों से जुङी हुई नहीं है लेकिन जुङने के लिए पात्र हैं, हर मौसम से सङकों से जुङने की सुविधा प्रदान करना है।
- इसका निधिपोषण मुख्य रूप से केन्द्रीय सङक निधि में डीजल उपकर की प्राप्तियों से किया जाता है।
अन्त्योदय अन्न योजना – Antyodaya Anna Yojana
- अन्त्योदय अन्न योजना की शुरूआत 6 मार्च, 2001 को हुई।
- इसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों में से निर्धनतम परिवारों का चयन कर प्रति परिवार 35 किलो अनाज (2 रुपये प्रतिकिलो गेहूं और 3 रुपये प्रतिकिलो चावल) उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है।
सम्पूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना – Sampoorna Grameen Rozgar Yojana
- सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना की शुरूआत 25 सितंबर 2001 को हुई।
- इसमें जवाहर ग्राम समृद्धि योजना व सुनिश्चित ग्राम योजना का समावेश किया गया।
- यह भारत सरकार व राज्य की 75ः25 के अनुपात में भागीदारी की योजना है।
- 1 अप्रैल, 2008 से नरेगा में जोङा गया है।
- इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य के साथ-साथ दिहाङी रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए स्थाई सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना है।
- इसमें समाज के कमजोर वर्ग, विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों पर विशेष ध्यान दिया गया।
- इसमें समाज के सभी वर्गों को रोजगार उपलब्ध करवाया जाता है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन – Rashtriya Gramin Swasthya Mission
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत 12 अप्रैल 2005 को हुई।
- निर्धनतम परिवारों को सुलभ स्वास्थ्य उपलब्ध करवाना।
भारत निर्माण योजना – Bharat Nirman Yojana
- भारत निर्माण योजना की शुरूआत 16 दिसम्बर, 2005 को हुई।
- इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं तथा ग्रामीण आधारिक संरचना को सुदृढ़ बनाना है। इसमें कुछ क्रियाओं को शामिल किया गया है। जैसे – सिंचाई, सङके, घर का निर्माण, पानी की सुविधा आदि।
- इस कार्यक्रम के घटक – गाँवों में आवास, सिंचाई क्षमता, पेयजल, गाँवों में सङकें, विद्युतीकरण व गाँवों टेलीफोन व्यवस्था।
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण कार्यक्रम – Jawaharlal Nehru Rashtriya Shahari Navinikaran Mission
- जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण कार्यक्रम की स्थापना 2005-06 में की गई।
- यह कार्यक्रम 6 से 7 वर्ष के लिए प्रारम्भ किया गया है।
इसके दो मुख्य घटक हैं –
- शहरी निर्धनों को बुनियादी सेवाएँ (BSUP) कार्यक्रम।
- समेकित आवास और गंदी बस्ती विकास कार्यक्रम (IHSDP)।
BSUP देश के 65 चुनींदा शहरों में शहरी निर्धनों के लिए आवास और आधारभूत ढाँचे की सुविधाएँ शुरू करने में सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। गंदी बस्ती उन्नयन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना – Rashtriya Swasthya Bima Yojana
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरूआत 1 अक्टूबर, 2007 को हुई।
- इसमें असंगठित क्षेत्र के गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी के सभी कामगारों और उनके परिवारों को इस योजना में शामिल किया गया है।
- इस योजना में लाभानुभोगियों को स्मार्ट कार्ड जारी करने का भी प्रावधान है जिससे वे उपचार आदि के लिए नकदी रहित लेन-देन कर सकें।
- प्रति परिवार कुल बीमित राशि 30000 रुपए प्रतिवर्ष होगी जिसमें 750 रुपए की अनुमानित वार्षिक प्रीमियम राशि में 75 प्रतिशत केन्द्र सरकार का अंशदान होगा।
- स्मार्ट कार्ड की लागत भी केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाएगी।
इंदिरा गांधी वृद्धा पेंशन योजना – Indira Gandhi Vridha Pension Yojana
- इन्दिरा गाँधी वृद्धा योजना की शुरूआत 19 नवम्बर, 2007 को हुई।
- इस योजना के तहत 65 वर्ष से अधिक आयु के गरीब वृद्ध को 400 रुपये डाकघर या बैंक के माध्यम से दिये जायेंगे।
- केन्द्र व राज्य का अनुपात – 50ः50 है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) – Mahatma Gandhi Rashtriy Gramin Rojgar Guarantee Yojana (Mgnrega)
- ग्रामीण परिवार को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कुल 100 दिवस का सुनिश्चित रोजगार प्रदान करने की केन्द्र प्रवर्तित योजना है, जिसका शुभारम्भ 2 फरवरी, 2006 को आंध्रप्रदेश के अनन्तपुर जिले के नरपाला मंडल की बंदलापल्ली ग्राम पंचायत में किया गया।
- योजना के प्रथम चरण में 200 जिलों व द्वितीय चरण (1 अप्रैल 2007 से) में अन्य 130 जिलों में लागू की गई है।
- इस योजना को 1 अप्रैल, 2008 से पूरे देश में लागू कर दिया गया है।
- केन्द्र व राज्य का अंशदान- 90:10 है।
- इसका मूल उद्देश्य – ग्रामीण क्षेत्रों के अकुशल श्रम करने के इच्छुक ’प्रत्येक परिवार’ के वयस्क सदस्यों को एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम कुल 100 दिवस का गारंटीशुदा रोजगार प्रदान करना।
- इसका अन्य उद्देश्य – सम्पदाओं का निर्माण, पर्यावरण की रक्षा, ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण, गाँवों से शहरों की ओर पलायन को रोकना ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाना तथा सामाजिक समानता सुनिश्चित करना।
- इस योजना के क्रियान्वयन हेतु केन्द्र द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, (NREGA) 2005 लागू किया गया है।
- यह योजना ऐसी पहली विकास/रोजगार योजना है जिसे कानूनी आधार प्रदान किया गया है।
निष्कर्ष – गरीबी एक विश्वव्यापी समस्या है। सरकार अनेक योजनाओं के माध्यम से गरीब लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रही है, जिससे गरीबी की समस्या को दूर किया जा सके।
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