आज के आर्टिकल में हम पृथ्वी की गतियाँ (Prithvi ki Gatiya) के बारे में विस्तार से पढेंगे, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य भी जानेंगे।
पृथ्वी की गतियाँ – Prithvi ki Gatiya
समस्त आकाशीय पिण्ड अस्थिर हैं। हमारा सौर परिवार भी इससे अछूता नहीं है। सौरमण्डल की धुरी अर्थात् सूर्य (तारा) भी अपनी आकाशगंगा (दुग्ध गंगा) के केन्द्र की परिक्रमा करता है व अन्य सदस्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। इन ग्रहों के उपग्रह, ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ के अनुसार सौरमण्डल में अब 8 ग्रह है (सन् 2006)। प्लूटो चूंकि आकार में काफी छोटा है एवं यह दूसरे ग्रह वरूण की परिक्रमा कक्षा में छलांग लगाता है, अतः ग्रह की श्रेणी में ना मानकर इसे बौना ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। शेराॅन प्लूटो का उपग्रह हैं।
पृथ्वी की गति भूमध्य रेखा पर सर्वाधिक 1670 Km/HR होती है।
’पृथ्वी’ सौरमण्डल का सदस्य ग्रह है जो दो प्रकार की गतियाँ दर्शाती है –
- घूर्णन गति (दैनिक गति)
- परिक्रमण गति (वाार्षिक गति)।
दोनों गतियों में पृथ्वी पश्चिम से पूर्व (घङी की सुई के विपरीत) दिशा में घूमती है।
पृथ्वी की घूर्णन गति
पृथ्वी का सदैव आधा भाग सूर्य सम्मुख व शेष आधा भाग सूर्य विमुख रहता है व प्रत्येक स्थान पर भिन्न-भिन्न अवधि में इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है। इसी कारण पृथ्वी पर दिन व रात होते हैं।
जब पृथ्वी का कोई भाग सूर्य सम्मुख आना शुरू होता है तो सूर्योदय व जब वह स्थान सूर्य विमुख होने लगता है तो सूर्यास्त होता है। सूर्योदय एवं पूर्ण दैनिक प्रकाश के बीच अल्पकालिक समय ’भोर’ व सूर्यास्त एवं पूर्ण रात्रि अन्धकार के बीच का अल्पकालिक समय ’गोधूली’ कहलाता है।
इन दोनों समयों पर पृथ्वी, वायुमण्डल में धूली कणों के कारण, सूर्य का विसरित एवं प्रत्यावर्तित प्रकाश प्राप्त करती है। ध्रुवों की ओर यह अवधि भी बढ़ती जाती है।
पृथ्वी का अक्ष अपनी अण्डाकार भू-कक्षा (परिक्रमण पथ) से 66.50 कोण बनाता है अथवा पृथ्वी अपनी अक्ष पर 23.50 झुकी हुई है जिसके कारण पृथ्वी पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर दिन व रात की अवधि में अन्तर पाया जाता है। यह अवधि भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ती है व अयन वृत्तों (कर्क व मकर रेखा के बीच) में भी सूर्य की उत्तरायण व दक्षिणायन स्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।
- पृथ्वी सूर्य से प्रकाश प्राप्त करती है। पृथ्वी का आकार (लगभग) गोले के समान है, इसलिए एक समय में सिर्फ इसके आधे भाग पर ही सूर्य की रोशनी प्राप्त होती है।
- पृथ्वी को अपने एक अक्ष पर सूर्य के चारों ओर चक्र लगाने में लगभग 24 घंटे का समय लगता है।
- घूर्णन के समय काल को ’पृथ्वी दिन’ कहा जाता है। यह पृथ्वी की दैनिक गति है।
- सूर्य के सामने वाले भाग में दिन होता है, जबकि दूसरा भाग जो सूर्य से दूर होता है, वहाँ रात होती है।
पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव
- पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, तो दिन-रात बनते है।
- सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य खगोलीय पिण्ड पूर्व से पश्चिम की गतिशील दिखाई देते है।
- घूर्णन के कारण ही पृथ्वी सतह पर पवनों का विक्षेपण होता है।
- पृथ्वी पर काॅरियोलिस बल का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण है।
- घूर्णन के प्रभाव के कारण दैनिक ज्वार-भाटा, अर्द्ध दैनिक ज्वार-भाटा की आवृत्ति होती है।
नक्षत्र दिवस –
पृथ्वी को किसी तारे के सन्दर्भ में अपने अक्ष पर पूर्ण घूर्णन में लगा समय अथवा किसी एक मध्याह्न रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के सन्दर्भ में पूर्ण घूर्णन के पश्चात् पुनः लौटने में लगा समय नक्षत्र दिवस कहलाता है। पृथ्वी 23 घण्टे 56 मिनट 4.09 सैकण्ड में किसी निश्चित नक्षत्र (सूर्य) के संदर्भ में यह दूरी पूरी करती है।
सौर दिवस –
सौर दिवस में समय की गणना पृथ्वी पर किसी स्थान से सूर्य के आकाश में अधिकतम ऊँचाई वाली स्थिति पर एक पूर्ण घूर्णन के बाद पुनः लौटने की अवधि से की जाती है। यह समय 24 घण्टे का है। यह नक्षत्र दिवस से लगभग (3 मिनट, 56 सैकण्ड) 4 मिनट अधिक है चूंकि एक पूर्ण घूर्णन में पृथ्वी जितना नक्षत्र समय लेती है उस दौरान परिक्रमण गति के फलस्वरूप सौर दिवस का संदर्भ बिन्दु भी 10 विस्थापित होता है जिसे पूर्ण करने में यह समय लगता है।
अगर पृथ्वी घूर्णन नहीं करे तो क्या होगा ?
- सूर्य के तरफ वाले पृथ्वी के भाग में हमेशा दिन होगा जिसके कारण उस भाग में गर्मी लगातार पङेगी।
- दूसरे भाग में हमेशा अँधेरा रहेगा एवं पूरे समय ठंड पङेगी।
- दैनिक ज्वार भाटा की स्थिति में परिवर्तन आता है।
- ध्रुवों का चपटाकर होना।
- पवन तथा समुद्री धाराएं विक्षेपित होती है।
- इस तरह की अवस्था में जीवन संभव नहीं हो पाएगा।
परिक्रमण गति –
पृथ्वी अपनी अक्ष पर घूर्णन गति के साथ-साथ अपनी अण्डाकार ’भू-कक्षा’ में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। पृथ्वी का एक स्थिर कक्ष में सूर्य के चारों ओर घूमना परिक्रमण कहलाता है। यह चक्कर लगाने में पृथ्वी को 365.234 दिन (लगभग 365 दिन 5 घण्टे व 48 मिनट) समय लगता है। यह गति वार्षिक गति कहलाती है।
परिक्रमण पथ की लम्बाई – 96 करोङ किलोमीटर
परिक्रमण गति – 107000 किलोमीटर प्रति घण्टा (Km/HR)
परिक्रमण काल – 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 46 सैकण्ड या 365 दिन 6 घण्टे
लीप वर्ष – हम देखते है कि सूर्य ऊपर भी 6 महीने रहता है तथा नीचे भी 6 महीने रहता है। हम एक वर्ष 365 दिन का मानते हैं तथा सुविधा के लिए 6 घंटे को इसमें नहीं जोङते हैं। चार वर्षों में प्रत्येक वर्ष के बचे हुए 6 घंटे मिलकर एक दिन यानी 24 घंटे के बराबर हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त दिन को फरवरी के महीने में जोङा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक चोथे वर्ष फरवरी माह 28 के बदले 29 दिन का होता है। ऐसा वर्ष जिसमें 366 दिन होते हैं उसे लीप वर्ष कहा जाता है। यह सदैव 4 के भागफल वाला कलैण्डर वर्ष होता है।
पृथ्वी दीर्घवृत्ताकार पथ पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
पृथ्वी पूरे कक्ष में एक ही दिशा में झुकी हुई है।
पृथ्वी एवं सूर्य के बीच औसत दूरी 14.98 करोङ किलोमीटर है।
कक्ष या कक्षा – पृथ्वी जिस काल्पनिक रेखा पर चलकर सूर्य का चक्कर लगाती है उसे कक्ष या कक्षा कहते है। अर्थात् पृथ्वी का कक्ष एक अंडाकार मार्ग का निर्माण करता है पृथ्वी के इस अंडाकार मार्ग को कक्ष-कक्षा कहते हैं।
कक्षीय समतल – पृथ्वी से होकर जाने वाली कक्षा का समतल को कक्षीय समतल कहते हैं।
ऋतुएँ –
एक वर्ष को चार ऋतुओं में विभाजित किया जाता है।
- ग्रीष्म
- शरद
- शीत
- बसंत
सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण इनमें परिवर्तन होता है।
पृथ्वी की अक्ष, भू-कक्षा से 66.50 का कोण बनाती है अथवा पृथ्वी अपनी अक्ष पर 23.5 झुकी हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष भर की एक परिक्रमा के दौरान सूर्य की स्थिति अयन वृत्तीय भागों अर्थात् कर्क व मकर रेखाओं के बीच में बदलती रहती है। इसी कारण ऋतु परिवर्तन देखने को मिलता है।
पृथ्वी का कक्ष अंडाकार होने की वजह से सूर्य तथा पृथ्वी के बीच दूरी बदलती रहती है। औसत दूरी – 149.6 मिलियन किमी. है।
पृथ्वी की परिक्रमण गति के प्रभाव –
- वर्ष के भिन्न-भिन्न समयों पर किसी स्थान पर मध्यदिन सूर्य की ऊँचाई में भिन्नता पायी जाती है।
- वर्ष में भिन्न भिन्न समयों पर दिन व रात की अवधि बदलती रहती है।
- ऋतु परिवर्तन देखनेे को मिलता है।
- इसी कारण उपसौर एवं अपसौर की घटना होती है।
- परिक्रमण के कारण विषुव की घटना भी होती है।
प्रदीप्ति वृत्त – ग्लोब पर वह वृत्त जो दिन तथा रात को विभाजित करता है, उसे प्रदीप्ति वृत्त कहते हैं। यह वृत्त अक्ष के साथ नहीं मिलता है।
पृथ्वी की भू-कक्षा की अण्डाकार प्रकृति के कारण ही पृथ्वी तथा सूर्य के बीच दूरी वर्षभर एक सी नहीं रहती।
उपसौर – जब पृथ्वी सूर्य से सबसे नजदीक होती है, उस समय उपसौर की स्थिति होती है। यह 3 जनवरी को होता है। इसकी दूरी 14.75 करोङ किलोमीटर होती है।
अपसौर – जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर होती है, उस समय अपसौर की स्थिति होती है। यह 4 जुलाई को होता है। इसकी दूरी 15.26 करोङ किलोमीटर होती है।
उपभू – जब चन्द्रमा तथा पृथ्वी के बीच की न्यूनतम दूरी होती है, उसे उपभू कहते है।
अपभू – जब चन्द्रमा तथा पृथ्वी के बीच की अधिकतम दूरी होती है, उसे अपभू कहते है।
विषुव – जिस दिन सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर सीधी पङती है, उस दिन विषुव कहते हैं। इस समय दिन व रात की लंबाई बराबर (12-12 घण्टे) होती है।
विषुव दो प्रकार का होता है –
- वसंत विषुव (21 मार्च)
- शरद विषुव (23 सितम्बर)
वार्षिक गति एवं ऋतु परिवर्तन –
22 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा के ठीक ऊपर चमकता है। इसी कारण उत्तरी गोलार्द्ध में जून के पास ग्रीष्म व दिसम्बर के पास शीत ऋतु होती है। दक्षिण गोलार्द्ध में ठीक इसके विपरीत पाया जाता है।
21 मार्च व 23 सितम्बर की स्थितियाँ – सूर्य किरणें भूमध्य रेखा पर लम्बवत्, विषुव अथवा सम दिन-रात की क्रमशः ’बसंत विषुव’ व ’शरद विषुव’ की स्थितियाँ पायी जाती है। सर्वत्र दिन व रात की अवधि बराबर होती है।
अयनांत – जब सूर्य की किरणें उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी आखिरी छोर पर होती है, तब अयनांत होता है।
अयनांत दो प्रकार के होते हैं –
- ग्रीष्म अयनांत (21 जून)
- शीत अयनांत (22 दिसम्बर)
(1) ग्रीष्म अयनांत (21 जून) –
कर्क संक्रान्ति, सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। 21 मार्च के बाद सूर्य की उत्तरायण स्थिति के बाद 21 जून के दिन सूर्य अधिकतम स्थिति में पहुँचकर पुनः विषुवत रेखीय भागों की ओर के स्थानों की अवस्थिति लेकर 23 सितम्बर को उत्तरायण स्थिति पूर्ण कर लेता है।
सूर्य की उत्तरायण की स्थिति वाले इस काल में उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की लम्बाई बढ़ती है व 21 जून को अधिकतम हो जाती है। दक्षिणी, गोलार्द्ध में इसके विपरीत दिन छोटे होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म व दक्षिण गोलार्द्ध में शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। इसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में ऊष्मा अधिक प्राप्त होती है। इसे ही ग्रीष्म अयनांत कहते है।
(2) शीत अयनांत (22 दिसम्बर) –
मकर संक्रांति, सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है। 23 सितम्बर के बाद सूर्य की दक्षिणायन के बाद 22 दिसम्बर को सूर्य अधिकतम दक्षिणवर्ती पहुँचकर पुनः विषुवत रेखीय भागों की ओर के स्थानों की अवस्थिति लेता है और व 21 मार्च को दक्षिणायन स्थिति पूर्ण हो जाती है। इस दौरान दक्षिणी गोलार्द्ध में दिनों की लम्बाई बढ़ती है व 22 दिसम्बर को अधिकतम हो जाती है। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म व उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। इसे शीत अयनांत कहते है।
सबसे बङा दिन और सबसे छोटी रात कब होती है ?
उत्तरी गौलार्द्ध में 21 जून को सबसे बङा दिन होता है और सबसे छोटी रात होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में 22 दिसम्बर को सबसे छोटा दिन होता है और सबसे छोटी रात होती है।
दक्षिणी गौलार्द्ध में 22 दिसम्बर को सबसे बङा दिन होता है और सबसे छोटी रात होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन 21 जून को होता है। 23 सितम्बर और 22 मार्च को दिन-रात बराबर होते है।
पृथ्वी की गतियाँ से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Prithvi ki Gatiya
1. पृृथ्वी का अक्ष इसकी कक्षीय सतह से कितने डिग्री का कोण बनाता है ?
उत्तर – 66.50
2. प्रदीप्त वृृत क्या है ?
उत्तर – पृथ्वी पर दिन-रात को विभाजित करता है
3. अपने अक्ष पर पृथ्वी एक चक्कर कितने समय में पूरा करती है ?
उत्तर – 23 घंटे 56 मिनट 4.9 सेकंड
4. पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति को क्या कहा जाता है ?
उत्तर – परिक्रमण गति
5. पृथ्वी की घूर्णन की दिशा क्या होती है ?
उत्तर – पश्चिम से पूर्व
6. पृथ्वी पर दिन-रात पृथ्वी की किस गति के कारण बनते है ?
उत्तर – घूर्णन गति/परिभ्रमण गति
7. पृथ्वी की किस गति के कारण ऋतु परिवर्तन होता है ?
उत्तर – पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण
8. वह खगोलीय घटना जब सूर्य पृथ्वी के सबसे निकट होता है क्या कहलाती है ?
उत्तर – उपसौर
9. वह खगोलीय घटना जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है, उत्तरी गोलार्द्ध में क्या कहलाती है –
उत्तर – ग्रीष्म अयनांत
10. किस तिथि पर दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अयनांत को देखा जाता है ?
उत्तर – 22 दिसंबर
11. पृथ्वी का परिक्रमण पथ कैसा है ?
उत्तर – दीर्घ वृत्ताकार
12. अपसौर की स्थिति कब बनती है ?
उत्तर – 4 जुलाई को
13. पृथ्वी अपने अक्ष पर कितनी झुकी हुई है ?
उत्तर – 23.50
14. पृथ्वी पर दिन-रात की अवधि वर्ष में किस दिन एक समान होती है ?
उत्तर – 21 मार्च
15. किस तिथि पर दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकाल अयनांत को देखा जाता है ?
उत्तर – 21 जून
16. वह कौन सी तिथियाँ है, जब दोनों गोलाद्र्धों में दिन और रात बराबर होते है ?
उत्तर – 21 मार्च और 23 सितम्बर
17. भारत किस गोलार्द्ध में स्थित है ?
उत्तर – उत्तरी और पूर्वी
18. किस दिन पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है ?
उत्तर – 3 जनवरी
19. उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन कब होता है ?
उत्तर – 22 दिसंबर
20. पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में कितना समय लगता है ?
उत्तर – 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 46 सैकण्ड
21. वर्ष भर में कब रात और दिन की अवधि एक समान होती है ?
उत्तर – भूमध्य रेखा पर
22. कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपण केन्द्र कहाँ स्थापित किये जाते हैं ?
उत्तर – भूमध्य रेखा के समीप
23. पृथ्वी की घूर्णन गति कहाँ सर्वाधिक होती है ?
उत्तर – भूमध्य रेखा पर
24. दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन कब होता है ?
उत्तर – 21 जून
25. विषुव की स्थिति कब होती है ?
उत्तर – 21 मार्च 23 सितम्बर
26. उत्तरी गोलाद्र्धों में कब दिन की अवधि लघुतम होती है ?
उत्तर – 22 दिसम्बर
27. दक्षिणी गोलाद्धों में कब रात की अवधि अधिकतम होती है ?
उत्तर – 21 जून
28. सौर दिवस की अवधि क्या है ?
उत्तर – 24 घण्टे
29. उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबा दिन कब होता है ?
उत्तर – 21 जून
30. दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकाल अयनांत को कब देखा जाता है ?
उत्तर – 21 जून
31. दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बङा दिन कब होता है ?
उत्तर – 22 दिसम्बर
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