राजस्थान के पशु मेले – Rajasthan ke pramukh Pashu Mele

आज के आर्टिकल में हम राजस्थान के पशु मेले (Rajasthan ke pramukh Pashu Mele) टॉपिक को विस्तार से पढेंगे।

राजस्थान के पशु मेले – Rajasthan ke Pashu Mele

राजस्थान के पशु मेले

राजस्थान की धरती चाहे धार्मिक मेलों के कारण चर्चित रहती हो , लेकिन पशु मेलों के कारण भी विशेष चर्चा में रहती है। राज्य के पशु मेले पूरी दुनिया में अपना अनूठा स्थान रखते हैं।राजस्थान में उत्साह एवं उमंग के साथ पशु मेले आयोजित किये जाते हैं। किसान परिवार पशुओं को अपने परिवार के सदस्य की तरह उन्हें पालते है। लोक देवता या धार्मिक उत्सवों के अवसर पर आयोजित होने वाले इन पशु मेलों में भारतीय संस्कृति की दर्शनीय झलक देखने को मिलती है। राजस्थान में 100 से उपर पशु मेले प्रतिवर्ष लगते हैं।

राजस्थान पशु मेले

राजस्थान के प्रमुख पशु मेले
पशु मेलास्थान
1. पुष्करपुष्कर (अजमेर)
2. महाशिवरात्रिकरौली
3. बाबा रघुनाथ पुरी पशु मेलासांचोर (जालौर)
4. सेवडिया पशु मेलारानीवाङा (जालौर)
5. चंद्रभागाझालरापाटन (झालावाङ)
6. बहरोङ पशु मेलाबहरोङ (अलवर)
7. श्री बलदेवमेङता सिटी (नागौर)
8. वीर तेजाजीपरबतसर (नागौर)
9. बाबा रामदेवनागौर
10. जसवंत पशु मेलाभरतपुर
11. गोगामेङीगोगामेङी (हनुमानगढ़)
12. मल्लीनाथतिलवाङा (बालोतरा)
13. गोमतीसागरझालरापाटन (झालावाङ)

राजस्थान के प्रमुख पशु मेले – Rajasthan ke Pashu Mele

 

राजस्थान के प्रमुख पशु मेले

बहरोङ पशु मेला –

  • यह पशु मेला बहरोङ (अलवर) में लगता है।
  • इस मेले में मुर्राह भैंस का व्यापार होता है।
  • यह पशु मेला मुर्रा नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।

जसवंत पशु मेला –

  • यह पशु मेला भरतपुर में लगता है।
  • 1958 में यह प्रारंभ हुआ।
  • यह मेला आश्विन शुक्ल 5, आश्विन शुक्ल 14 तक (अक्टूबर) को लगता है।
  • जसवन्त पशु मेला हरियाणवी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • उत्तरप्रदेश से सटा भरतपुर बृजलोक की संस्कृति और साहित्य के उत्थान में भी अपना अमूल्य योगदान देता रहा है।
  • मेले में खेलकूद प्रतियोगिताएँ एवं विशाल कुश्ती दंगल के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत नौटंकी, कव्वाली एवं कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है।

महाशिवरात्रि पशु मेला –

  • यह पशु मेला करौली में लगता है।
  • करौली में 1959 से प्रारंभ हुआ।
  • यह पशु मेला फाल्गुन कृष्ण 6 तथा फाल्गुन कृष्ण 14 को आयोजित किया जाता है।
  • यह मेला महाशिवरात्रि के पर्व पर आयोजित किया जाता है।
  • यह पशु मेला हरियाणवी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • इसे मेले में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा के व्यापारी बहुत आते है।

श्री बलदेव पशु मेला –

  • यह पशु मेला मेङता (नागौर) में लगता है।
  • बलदेव राम मिर्धा में स्मृति में मेङता सिटी में 1947 से प्रारंभ हुआ।
  • बलदेव पशु मेला चैत्र शुक्ल 1 से पूर्णिमा तक (अप्रैल) लगता है।
  • यह पशु मेला नागौरी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • राज्य सरकार द्वारा 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा मिला।
  • श्री बलदेव पशु मेला यह प्रसिद्ध किसान नेता श्री बलदेव राम जी मिर्धा की स्मृति में अप्रैल 1949 से राज्य का पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है।

श्री वीर तेजाजी पशु मेला –

  • वीर तेजाजी पशु मेला परबतसर (नागौर) में लगता है।
  • यह मेला श्रावण पूर्णिमा से भाद्र अमावस्या (अगस्त) तक लगता है।
  • यह पशु मेला नागौरी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • प्रतिवर्ष 15-30 अगस्त।
  • इस मेले में राज्य सरकार को बहुत अधिक आमदनी होती है।
  • राजस्थान में आमदनी की दृष्टि से वीर तेजाजी पशु मेला सबसे बङा मेला माना जाता है।
  • यह मेला लोक देवता वीर तेजाजी की याद में आयोजित किया जाता है।
  • इस मेले में नागौरी बैलोें एवं बीकानेरी ऊँटों की बिक्री होती है।
  • यह मेला सन् 1949 से पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है।

रामदेव पशु मेला –

  • रामदेव पशु मेला मानासर (नागौर) में लगता है।
  • महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा 1958 में प्रारंभ हुआ।
  • माघ शीर्ष शुक्ल 10, फाल्गुन कृष्ण 5 को, नागौरी बैलों की सबसे अधिक बिकी होती है।
  • मारवाङ के नरेश स्वर्गीय श्री उम्मेद सिंह जी को इस मेले का प्रणेता माना जाता है।
  • यह पशु मेला नागौरी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • नागौर का पशु मेला देशभर में अपना एक अलग ही महत्त्व रखता है।
  • यहाँ श्रद्धालुओं के द्वारा एक छोटा सा मंदिर बनवाया गया है।
  • आजादी के बाद इस मेले की लोकप्रियता देखकर राज्य के पशुपालन विभाग ने इसे राज्यस्तरीय पशु मेलों में शामिल किया।

गोमती सागर पशु मेला –

  • यह पशु मेला झालरापाटन (झालावाङ) मालवी में लगता है।
  • झालरापाटन में यह वर्ष 1958 से प्रारंभ हुआ।
  • यह मेला वैशाख शुक्ल 13 से ज्येष्ठ कृष्ण 5 (मई) तक लगता है।
  • यह मेला सुदी तेरस से जेड बुद्धि पंचम तक लगता है।
  • गोमती सागर पशु मेला मालवी नस्ल से सम्बन्धित है।
  • यह पशु मेला हाङौती अंचल का सबसे बङा मेला है।
  • राज्य पशुपालन विभाग मई 1959 से इस पशु मेले का आयोजन कर रहा है।

चन्द्रभागा पशु मेला –

  • यह पशु मेला झालरापाटन (झालावाङ) में लगता है।
  • यह झालरापाटन में 1958 से प्रारंभ होता है।
  • चंद्रभागा पशु मेला कार्तिक शुक्ल 11 से मार्गशीर्ष कृष्ण 5 (नवम्बर) तक लगता है।
  • यह पशु मेला मालवी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • मेले के संचालन का काम पशुपालन विभाग द्वारा किया जाता है।

श्री मल्लीनाथ पशु मेला –

  • यह मेला तिलवाङा (बालोतरा) में स्थित है।
  • यह मेला वि.सं. 1431 को प्रारंभ हुआ।
  • यह मेला चैत्र कृष्ण 11 से चैत्र शुक्ल 11 (अप्रैल) को लगता है।
  • यह पशु मेला थारपारकर नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • राज्य का सबसे प्राचीनतम पशु मेला मल्लीनाथ पशु मैला है जो लूणी नदी के किनारे पर लगता है।
  • राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा पहली बार वर्ष 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा।
  • इस मेले में ऊँट, घोङा और रथों के सुडौल बैलों की बिक्री होती है।
  • इस पशु मेले में कांकरेज नस्ल के बैल, मलानी नस्ल के घोङे और ऊँटों की बिक्री जोर-शोर से की जाती है।
  • श्री मल्लीनाथ पशु मेला वीर योद्धा रावल मल्लिनाथ की स्मृति में आयोजित किया जाता है।
  • मल्लीनाथ पशु मेला देशी महीनों के अनुसार सबसे पहले आने वाला पशु मेला है।
  • इस पशु मेले में सांचोर की नस्ल के बैलों के और मालानी नस्ल के घोङे और ऊँट की भी बिक्री होती है।
  • विक्रम संवत् 1831 में मल्लीनाथ के गद्दी पर आसीन होने के शुभ अवसर पर एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया था उस समय से यह मेला लगता है।

गोगामेङी पशु मेला –

  • यह पशु मेला गोगामेङी (हनुमानगढ़) में लगता है।
  • गोगामेङी पशु मेला श्रावण पूर्णिमा से भाद्र पूर्णिमा (अगस्त) तक लगता है।
  • यह पशु मेला हरियाणवी नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।
  • राज्य का सबसे लम्बा पशु मेला गोगामेङी पशु मेला नोहर हनुमानगढ़ में लगता है।

सेवङिया पशु मेला –

  • यह पशु मेला रानीवाङा (जालौर) में लगता है।
  • यह राजस्थान का प्रसिद्ध मेला है।
  • यहाँ कांकरेज व मुर्रा नस्ल का क्रय-विक्रय होता है।
  • यह राजस्थान राज्य की सबसे बङी दुग्ध डेयरी है।

ब्रह्माणी माता का मेला –

  • यह पशु मेला सोरसण (बारां) में लगता है।
  • यह पशु मेला गधों के मेले के रूप में प्रसिद्ध है।

बसंती पशु मेला –

  • यह पशु मेला रूपवास (भरतपुर) में लगता है।

गधों का मेला (खलकाणी माता का मेला) –

  • यह पशु मेला लूणियावास में वर्ष 1993 से राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया।
  • आश्विन शुक्ल 7 से 11 तक।
  • यह पशु मेला गधों के लिए प्रसिद्ध है।

आमेट का पशु मेला –

  • यह मेला आमेट (राजसमंद) में लगता है।

कार्तिक पशु मेला –

  • यह पशु मेला पुष्कर (अजमेर) में लगता है।
  • यह पुष्कर के शहर में आयोजित होने वाला एक वार्षिक बहु-दिवसीय पशुधन मेला और सांस्कृतिक उत्सव है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेला।
  • यह मेला कार्तिक माह में आयोजित होता है।
  • राजस्थान का रंगीन मेला।
  • इस मेले में बङी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं।
  • अजमेर में 1963 से प्रारंभ।
  • राजस्थान राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्त्व देता है।
  • कार्तिक पशु मेला गिर नस्ल के लिए प्रसिद्ध है।

चंद्रसेन पशु मेला –

  • यह पशु मेला टोंक में लगता है।

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