Rajasthan ki Hastkala – राजस्थान की हस्तकलाएँ – GK

आज की पोस्ट में हम ’राजस्थान की हस्तकलाएँ’(Rajasthan ki Hastkala) के बारे में पढ़ेंगे। जो परीक्षा की दृष्टि महत्त्वपूर्ण है।

राजस्थान की हस्तकलाएँ(Rajasthan ki Hastkala)

🔸 राजस्थान प्राचीनकाल से हस्तशिल्प के क्षेत्र में विश्व विख्यात रहा है, राज्य में निर्मित कलात्मक वस्तुएँ देश विदेश में बङे चाव से खरीदी जाती हैं। हस्तकला से अभिप्राय हाथ से बनाई जाने वाली कलात्मक वस्तुओं एवं कलाकृतियों से है जो इस कार्य में दक्ष हस्तशिल्पियों अथवा कारीगरों द्वारा बनाई जाती है।

राज्य की प्रमुख हस्तकलाएँ-

🔹 राज्य में कोटा एवं मांगरोल की मसूरिया, मलमल व कोटा डोरा साङियाँ प्रसिद्ध हैं।
🔸 राज्य में बाङमेर का अजरक प्रिन्ट प्रसिद्ध है।

🔹 राज्य में शाहपुरा व नाथद्वारा की फङ पेंटिग्स व पिछवाई, जैसलमेर के कंबल, डूँगरपुर व उदयपुर के लकङी के खिलौने, जयपुर के मूल्यवान एवं अर्द्धमूल्यवान रत्न, मीनाकारी व नक्काशी की वस्तुएँ, पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के खिलौने, ब्ल्यू पोटरी व नागरी जूतियाँ, जोधपुर की काशीदादार जूतियाँ (मोजङिया), बटवे, मोठङे, बादला व बन्धेज की ओढ़नियाँ, नाथद्वारा की मीनाकारी व सलमा सितारों व कोटा किनारों से युक्त काम, सवाई माधोपुर के लकङी के खिलौने, खस के पायदान, सांगोनेर व बगरू की हाथ से छपाई, बीकानरे के नमदे, लहरिये व मोण्डे (हथियार के ऊपर का आवरण) प्रसिद्ध हैं।

🔸 प्रतापगढ़ की मीनाकारी  थेवा कला कहलाती है।
🔹राज्य में मथानियां (जोधपुर) की मलमल, अकोला के छपाई के घाघरे, जोधपुर की काली, हरी व लाल धारियों की चूङियाँ, चितौङगढ़ की जाजम छपाई, मेङता के खिलौने, जयपुर के पशु-पक्षियों के सैट, बीकानेर व शेखावटी के लकङी के नक्काशीदार सजावटी किवाङ, बीकानेर के उत्तम श्रेणी के ऊन से बनाये गये वियना और फारसी डिजायनों के गलीचे, जोधपुर की जस्ते की मूर्तियाँ, अलवर के पतली परत वाले कागजी बर्तन, जयपुर, उदयपुर व सवाई माधोपुर की लकङी, कुट्टी मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस के खिलौने प्रसिद्ध है।

🔸 राज्य में पाली, बगरू व बाङमेर की ब्लाक पेंटिग्स, मालपुरा (टोंक) की ऊनी चकमा व घुघी, बीकानेर के ऊनी सर्ज, नागौर के लोहे के औजार, सिरोही की तलवार, उदयपुर, जयपुर तथा भरतपुर की हाथी दाँत की खुदाई व कटाई युक्त कलात्मक वस्तुएं, जोधपुर की हाथी दाँत की चूङियां, जयपुर की पाव रजाई, जयपुर, जोधपुर व टाटगढ़ (अजमेर) के कलात्मक कम्बल, चक (सीकर) की रेजी, सांगानेर (जयपुर) व सवाई माधोपुर का हाथ से बना कागज, जोधपुर की ओढ़नियां व चूनङियां व घूंघट (डूंगरपुर) की डूँगरशाही ओढ़नियाँ ओढ़नियाँ प्रसिद्ध है।

🔹 सोपस्टोन को तराश कर बनाये गये खिलौनों का काम रमकङा उद्योग कहलाता है, के लिए गलियाकोट (डूंगरपुर) प्रसिद्ध है।
🔸जयपुर के पद्मश्री कुदरत सिंह के पुत्र इन्दर सिंह सोने-चांदी के आभूषणों पर कलात्मक मीनाकारी करते हैं।
🔹जोधपुर के पूनाराम आधे घण्टे मेें पोट्रेट तैयार करने के लिये विख्यात है।
🔸 राज्य में कांसे के बर्तन भीलवाङा में तथा घोसुण्डा (चित्तौङगढ़) में हाथ से कागज बनाने का कारखाना स्थित है।
🔹 लाख से बनी चूङियाँ मोकङी कहलाती है।

🔸 पोमचा बच्चे के जन्म पर शिशु की माँ के लिए मातृ पक्ष की ओर से आता है, यह मूल रूप से पीले रंग का होता है।
🔹 ब्ल्यू पोटरी का जन्म ईरान में हुआ, इसमें चीनी मिट्टी के बर्तनों पर नीले रंग से रंगीन एवं आकर्षक चित्रकारी की जाती है।

🔸 जयपुर में ब्ल्यू पौटरी प्रारम्भ करने का श्रेय मानसिंह (प्रथम) को है, जबकि सवाई रामसिंह के समय इस कला का विकास हुआ।
🔹जयपुर के कृपाल सिंह शेखावत को ब्ल्यू पोटरी हेतु पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
🔸 बर्तन बनाने की कला को पोटरी कहते हैं, अलवर की पोटरी को कागजी कहते हैं।
🔹पोकरण (जैसलमेर) की पोटरी में लाल व सफेद रंगों का तथा बीकानेर की पोटरी में लाख के रंगों का प्रयोग होता है।

🔸16 वीं शताब्दी में आमेर के तत्कालीन शासक महाराज मानसिंह (प्रथम) 5 कारीगरों को जयपुर लाये थे, ये कारीगर पद्मश्री कुदरत सिंह के पूर्वज थे।
🔹 जयपुर में मीनाकारी का काम सोने व चाँदी के आभूषणों तथा ताँबे के बर्तनों पर होता है।
🔸 नाथद्वारा (राजसमंद) राज्य में मीनाकारी का केन्द्र है, यहाँ चाँदी पर तथा प्रतापगढ़ में काँच व सोने पर मीनाकारी होती है।
🔹 राज्य में जोधपुर के लकङी के झूले तथा बाङमेर की लकङी पर खुदाई प्रसिद्ध है।
🔸 बगरू (जयपुर) में स्याह बगैर (काली लाल) छपाई की जाती है।

🔹 जयपुर विश्व की सबसे बङी पन्ने की अन्तर्राष्ट्रीय मण्डी हैं।
🔸 विश्व का सबसे बङा चाँदी का पात्र सिटी पेलेस (जयपुर) में रखा हुआ है।
🔹 सिटी पैलेस (जयपुर) में एक विछावत है जो अपने बारीक काम के कारण सुई से बना चित्र कहलाती है। जयगढ़ (जयपुर) में सुरक्षित एक परतला भी इसी शैली का काम है।
🔸 शेखावटी में नाना रंग के कपङों को विविध डिजायनों में काटकर कपङे पर सिलाई युक्त कार्य पेचवर्क कहलाता है।

🔹 टुकङी मारवाङ के देशी कपङों में सर्वोत्तम गिनी जाती है तथा यह जालौर तथा मारोठ (नागौर) कस्बों में बनाई जाती है।
🔸 नाथद्वारा (राजसमंद) व जयपुर में चाँदी के बारीक तारों से जेवर बनाये जाते है, जिन्हें तारकसी के जेवर कहते हैं।
🔹 बसन्तगढ़ में स्थित छठी शताब्दी की कांस्य प्रतिमाएँ राज्य में धातु के काम की सबसे प्राचीन प्रमाण समझी जाती है।

🔸 जैसलमेर के राजमहल में हाथ से बनाया हुआ पाँच मंजिल का ताजिया रखा हुआ है।
🔹 अकोला (उदयपुर) में बङे पैमाने पर छपाई होती है, यह कस्बा छीपों का अकोला कहलाता है।
🔸अमोवा एक रंग की रंगतों में खाकी रंग से मिलती-जुलती रंगत है, जिसे प्राचीन समय से शिकारी शिकार करते समय पहनते थे।
🔹 जयपुर स्थित आमेर महल के सुहाग मन्दिर में चन्दन के किवाङों पर हाथी दांत की पच्चीकारी का काम 17वीं शताब्दी का माना जाता है।

🔸 उस्ता कला – ऊंट का चमङा और उस पर बेहद उम्दा काम, ऊपर नीचे लकङी के बेहद खूबसूरत कलात्मक फ्रेम्स, बीच में सीसे का चमकदार और झिल्ली सा महीन पारदर्शी, ऊंट की खाल का साफ किया कागज-उस पर राजपूत और मुगलशैली की मिली-जुली चित्रकारी, नक्काशी, सुनहरी कलमकारी-यही है बीकानेर ’उस्ताकला’ या सुनहरी कलम से ऊंट की खाल पर नक्काशी। स्वर्गीय हिसामुद्धीन उस्ता इस कला के प्रमुख कलाकार थे।
🔹 राजकीय संग्रहालय जयपुर में इराक के शाह अब्बास द्वारा मिर्जा राजा जयसिंह को भेंट किया गया गलीचा रखा हुआ है, जिसमें एक बगीचा बना हुआ है। यह संसार के अद्वितीय गलीचों में से एक है।

राजस्थान के प्रमुख हस्तशिल्प (Rajasthan ki Hastkala)

राजस्थान के प्रमुख हस्तशिल्प
बादलेजोधपुर
ब्ल्यू पोटरीजयपुर
बंधेजजयपुर, जोधपुर
पोमचाजयपुर
मसूरिया साङीकोटा
अजरक प्रिन्टसबाङमेर
थेवा कलाप्रतापगढ़
टेराकोटामोेलेला
उस्ताकलाबीकानेर
मीनाकारीजयपुर, नाथद्वारा (राजसमंद)
बणीठणीकिशनगढ़ (अजमेर)
पिछवाईनाथद्वारा (राजसमंद)
फङ पेंटिंगशाहपुरा (भीलवाङा)
नमदेटोंक
कालीनजयपुर
मुरादाबादी सामानजयपुर
लकङी के खिलौनेबस्सी (चित्तौङगढ़)
पाव रजाईजयपुर
लाख का सामानजयपुर, जोधपुर
छपाईबगरू, सांगानेर, अकोला, मांगरोल, पाली

🔸 महाराजा सवाई मानसिंह (द्वितीय) के संग्रहालय-जयपुर में सुरक्षित रखा हुआ 1799 का छपा हुआ साफा सांगानेरी छपाई का सबसे पुराना व प्रामाणिक उदाहरण है।
🔹राष्ट्रीय शिल्पी पुरस्कार कपङा मंत्रालय द्वारा हस्तशिल्प के क्षेत्र में दिया जाता है।
🔸 राज्य में हस्तशिल्प उद्योगों के संरक्षण हेतु सर्वाधिक प्रयास राजस्थान लघु उद्योग निगम द्वारा किये गये हैं।

🔹 राज्य में काँसे के बर्तन भीलवाङा में तथा सूंघनी नसवार ब्यावर में बनती है।
🔸 थेवा कला – शंकरलाल सोनी को थेवा कला के लिये 1970 में राष्ट्रपति वी.वी. गिरी द्वारा और 1973 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा सम्मानित किया गया। इनके पुत्र रामनिवास को 1979 में भारत सरकार से ’दक्षता प्रमाण-पत्र’ और 1982 में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी द्वारा सम्मानित किया गया। शाह ईरान की पत्नी शाहबानो के राजस्थान आगमन पर तत्कालीन राज्यपाल श्री रघुकुल तिलक ने उन्हें थेवा आर्ट की डिब्बियां भेंट की थी।
🔹 हथकरघा उद्योग भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण लघु स्तर का उद्योग है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य –

🔸 1983 में भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय उद्यम विकास बोर्ड तथा राष्ट्रीय उद्यमशीलता एवं लघु व्यापार विकास संस्थान लघु उद्योगों से सम्बन्धित नीति निर्धारण का कार्य करता है।
🔹लघु उद्योग विकास संगठन लघु उद्योगों को प्रबंधकीय तकनीकी एवं आर्थिक सहायता की उपलब्धि तथा उत्पादित माल के विपणन में मदद करता है।
🔸 राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम की स्थापना 1955 में, लघु उद्योगों की किराया-खरीद योजना के अन्तर्गत मशीन उपलब्ध कराने तथा सरकारी क्रयादेश प्राप्त करने में सहयोग देने के उद्देश्य से की गई।

🔹भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की सहायक संस्था के रूप में 1989 में की गई।
🔸 सिडबी ने 2 अप्रेल, 1990 को कार्यारम्भ किया तथा प्रमुख कार्य लघु एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों की स्थापना एवं विकास हेतु कार्य करना है।

🔹राज्य में जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना भारत सरकार की औद्योगिक नीति के अन्तर्गत की गई, किन्तु इनका संचालन राजस्थान सरकार द्वारा किया जाता है।
🔸 राज्य में जिला उद्योग केन्द्र 4 श्रेणियों में विभक्त हैं यथा स्पेशल श्रेणी, ए श्रेणी, बी श्रेणी, सी श्रेणी।
🔹 लघु उद्योग सेवा संस्थान की स्थापना राज्य के उद्यमियों को विभिन्न उद्योगों के सम्बन्ध में जानकारी देने तथा आवश्यक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से की गई।

राजस्थानी हस्तकलाओं सम्बन्धी तथ्य
गंगा-जमुनीसोने-चांदी की जरी से की गयी बुनाई या कढ़ाई।
मीनाकारीछोटे-छोटे आभूषणों से भिन्न-भिन्न रंग के रेशमी वस्त्रों की गयी टंकाई।
कशीदारेशमी धागों से की गयी कढ़ाई।
कलाबत्तुरेशमी या सूती धागों पर सोने या सुनहरे पानी युक्त धागों से की गयी कढ़ाई।
उत्तूऐसी कढ़ाई जिसमें उभार या उठान हो।
जरदोजी’जर’ फारसी शब्द है अर्थात सोना-चांदी। चांदी के तारों पर सोने को चढ़ाकर भांति-भांति की डिजाइनें बनवायी जाती है। जयपुर कारखाने में तारकशी-गोटा किनारी का अलग कारखाना था जिसमें बदला, कलाबत्तु, सलमा, कटोरी, सितारा, टिक्की और उल्टी कटोरी आदि डिजायनें सूती, रेशमी, ऊनी कपङों पर बनायी जाती हैं।
गोटागोटा मोती और लप्प गोटा।
कारचोबसुनहरे रूपहले तारों में की गई उभारदार सजावट।

🔸राजस्थान राज्य हथकरघा विकास निगम की स्थापना राज्य में हथकरघा उद्योग को तकनीकी एवं विपणन सम्बन्धी सहयोग प्रदान करने के उद्देश्य से मार्च 1984 में की गई। निगम द्वारा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में 12 इकाईयाँ एवं अहमदाबाद में शोरूम के माध्यम से वस्त्रों की बिक्री की जाती है। निगम ने विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र (जयपुर) में एक विधायन गृह की स्थापना की है।
🔹 राज्य में गंगानगर जिले में धान की भूसी से तेल निकालने के लघु उद्योग कार्यरत है।

🔸 राज्य का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र, उदयपुर एवं कोटा संभाग की मिट्टी व जलवायु रेशम उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
🔹राज्य में उदयपुर, कोटा व बाँसवाङा जिलों में कृत्रिम रेशम (टसर) के उत्पादन हेतु अर्जुन के वृक्ष लगाये गये हैं।

🔸 संयुक्त राष्ट्रसंघ विकास कार्यक्रम व खादी तथा ग्रामोद्योग आयोग के संयुक्त प्रयासों से सांगानेर (जयपुर) में हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की गई है।
🔹ग्रामीण दस्तकारों एवं लघु उद्यमियों द्वारा तैयार उत्पाद को बाजार मुहैया कराने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने प्रदेश के दस जिलों में ग्रामीण हाट खोलने का निर्णय लिया है। योजना के पहले चरण में जिन दस जिलों में हाट खुलेंगे उनमें झुंझुनूं, चित्तौङगढ़, भीलवाङा, माउण्ट आबू (सिरोही) उदयपुर, बीकानेर, कोटा, राजसमन्द, जैसलमेर और भरतपुर शामिल हैं।

इनमें से प्रत्येक हाट बाजार पर 70 लाख रुपये व्यय किये जायेंगे। पर्यटकों तथा शहरी उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए इन बाजारों में समय-समय पर ऋतुओं के आधार पर लोक उत्सव आयोजित किये जायेंगे, जिनके नाम राजस्थान के तीज-त्यौहारों, वीर पुरुषों तथा प्रमुख दर्शनीय स्थलों पर आधारित होगा।

🔸राजस्थान सरकार राज्य के छोटे एवं हस्तशिल्प आधारित उद्योगों को विकसित करने के लिए दो नई योजनाएं शुरु करेगी। अरबन हाट योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमियों को अपने उत्पाद की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराया जाएगा। इसके अलावा बाबा साहब अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना के तहत हस्तशिल्पियों को अपनी कलाकृतियों की बिक्री के लिए भी एक अलग से बाजार विकसित कराने की योजना है।

🔹केन्द्रीय विदेश व्यापार नीति में हस्तशिल्प के निर्यात को बढ़ावा देने की घोषणा से उत्साहित राजस्थान सरकार ने प्रदेश में हस्तशिल्प संवर्धन बोर्ड स्थापित करने का फैसला लिया है। राजस्थान का हस्तशिल्प उद्योग वर्तमान में प्रतिवर्ष पन्द्रह सौ करोङ रुपये का निर्यात करता है।

राजस्थानी हस्तकला(Rajasthan ki Hastkala)

राजस्थानी हस्तकला
हस्तकलाप्रधान केन्द्रविशेष तथ्य
उस्ताकलाबीकानेरकुप्पों पर सोने एवं चाँदी से कलात्मक चित्रांकन
अजरख प्रिंटबाङमेरनीला एवं लाल रंग अधिक प्रयुक्त
ब्लैक पाटरीजयपुरभारत में यह कला फारस (ईरान) से आयी
मथैरण कलाबीकानेरदेवी-देवताओं के आकर्षक भित्ति चित्र
मीनाकारीजयपुरमानसिंह प्रथम द्वारा 16वीं शताब्दी में लाहौर से लायी गई
मलीर प्रिंटबाङमेरकत्थई एवं काला रंग अधिक प्रयुक्त
बादलाजोधपुरधातु (जिंक) से निर्मित पानी के बर्तन
पिछवाईनाथद्वारा (राजसमंद)कृष्ण प्रतिमा के पीछे दीवारों पर लगाये गये कपङे पर चित्रण
कोफ्तगिरीजयपुरयह कला दमिश्क से भारत में आयी
फङ चित्रणशाहपुरा (भीलवाङा)कपङे पर लोक देवी-देवताओं का जीवन चित्रण
ब्ल्यू पाटरीजयपुरभारत में यह कला फारस (ईरान) से आयी
कागजीअलवरपतली परत के बर्तन
जाजम प्रिंटअकोला (चित्तौङगढ़)लाल, काले एवं हरे रंग का अधिक प्रयोग
थेवा कलाप्रतापगढ़ काँच पर सोने का सूक्ष्म चित्रांकन

26 अगस्त, 1957 को शीर्ष सहकारी संस्था के रूप में राजस्थान राज्य बुनकर सहकारी संघ लि., जयपुर का गठन किया है। संघ के मूल उद्देश्य हैं-

1. प्राथमिक सदस्य सहकारी समितियों को कच्चा माल (सूत) उपलब्ध कराकर बुनकरों को रोजगार उपलब्ध कराना।
2. सदस्य समितियों द्वारा संघ के सूत या स्वयं के सूत से उत्पादित कपङे के विपणन की व्यवस्था करना।
3. आधुनिक तकनीकी एवं डिजाईन का बुनकरों को प्रशिक्षण देना एवं उच्च मूल्य के उत्पादों का उत्पादन करवाना।
4. प्राथमिक बुनकर सहकारी समितियों का बुनकर बाहुल्य क्षेत्र में गठन तथा उनके विकास हेतु योजनाएँ तैयार करना।
5. सदस्य प्राथमिक सहकारी समितियों से निर्धारित मापदण्ड अनुसार उत्पादन करवाना, उत्पादित माल का संग्रहण करना तथा बिक्री का प्रबन्ध करना।
6. हाथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतियोगिता एवं प्रदर्शनियों का आयोजन करना।

 राजस्थान स्टेट हैण्डलूम डवलपमेन्ट काॅर्पोरेशन लिमिटेड की स्थापना कम्पनीज एक्ट 1956 के अन्तर्गत मार्च 1984 में की गई थी:

1. राजस्थान प्रदेश में हाथकर्घा उद्योग के उन्नति, सहायता, पुर्नजीवन, बढ़ावा एवं विकास हेतु कार्य करना।
2. हाथकर्घा उद्योग से सम्बन्धित एक अथवा अनेकों को सहायता प्रदान कराने हेतु कार्य करना।
3. हाथकर्घा उद्योग को बढ़ाने के लिए उत्पादन, आपूर्ति, प्रोसेसिंग, भण्डारण, वितरण, बिक्री एवं अन्य आवश्यक कार्यों को हाथ में लेकर कार्य करना।
4. हाथकर्घा वस्त्रों की थोक, खुदरा बिक्री, कमीशन के आधार पर देश एवं देश के बाहर के लिए आवश्यक कदम उठाना।
5. हाथकर्घा उद्योग से सम्बंधित विषयों जैसे – कताई, बुनाई, रंगाई, प्रोसेसिंग, पैटर्न, डिजाइन, कशीदाकारी, छपाई, विपणन, लेखा एवं प्रबन्ध के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिलाना और क्षेत्र की उन्नति हेतु सहायता करना।

🔸हाथकरघा विकास योजना में ग्रामीण क्षेत्र में 7,000 रु. एवं शहरी क्षेत्र में 10,000 रु. का अनुदान स्वीकृत किया जाता है। हैल्थ पैकेज, करघा घर, नई बीमा योजना एवं दीनदयाल हाथकरघा प्रोत्साहन योजना जैसी कई योजनायें हाथकरघा श्रमिकों को मदद पहुँचाने हेतु लागू की गई।

🔹 हथकरघा बुनकरों के लिए धागों की कीमतों की स्थिरता हेतु 65 लाख रुपये की लागत से यार्न बैंक स्थापित।
🔸 जवाहर कला केन्द्र – यह राजस्थान सरकार का एक बहुउद्देशीय कला केन्द्र है जो कला एवं संस्कृति के बहुआयामी स्थल के रूप में कार्यशील है, इसका प्रमुख उद्देश्य राजस्थान संदर्भित विभिन्न कलाओं को प्राथमिकता देते हुए, शोधपरक अध्ययन, प्रलेखन, कलाओं के संवर्द्धन तथा प्रसार में योगदान करना है।

🔹 जोधपुर निवासी समता शर्मा चमङे पर स्वर्ण चित्रांकन (नक्काशी) की प्रसिद्ध कलाकार है। यह विश्व की सबसे कम आयु की हस्तशिल्पी मानी गई है।
🔸भारत सरकार ने सूर्यनगरी (जोधपुर) में राष्ट्रीय स्तर का वुड डिजाइनिंग प्रशिक्षण केन्द्र खोलने का काम शुरू कर दिया है। ’नेशनल ट्रेनिंग सेन्टर फाॅर वुड टेक्नोलाॅजी एंड डिजाइनिंग’ नामक इस केन्द्र में प्रशिक्षण के काम आने वाली आयातित मशीनें स्थापित कर दी गई है।

🔹 राजस्थान में बस्सी गाँव (चित्तौङगढ़) की काष्ठ कला प्रसिद्ध है। इस कला के जन्मदाता प्रभातजी सुथार माने जाते हैं।

🔸 बिछाने की वस्तु को लोककला में राली कहा जाता है। इसमेें कशीदाकारी का काम बारीकी से किया जाता है। यह कशीदाकारी जैसलमेर की प्रसिद्ध है।
🔹जैसलमेर में जरीभांत के ओढ़ने रेस्ति छपाई तकनीक से बनते हैं।

🔸नागौर जिले का टांकला गांव सुन्दर, आकर्षक एवं मजबूत दरियों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
🔹चन्दन की काष्ठ पर अति सूक्ष्म उत्कीर्ण कार्य करने के लिए चूरू जिले के मालचंद जांगिङ को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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