Rajasthan ki Jalvayu – राजस्थान की जलवायु

आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की जलवायु(Rajasthan ki Jalvayu) के बारे में पढ़ेंगे। जो परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

राजस्थान की जलवायु(Rajasthan ki Jalvayu)

किसी भू-भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विविध मौसमों की औसत अवस्था उस भू-भाग की जलवायु कहलाती है।

🔸 मौसम का तात्पर्य मुख्यतया छोटी अवधि जैसे एक दिन, एक सप्ताह। जबकि जलवायु एक लम्बी अवधि के दौरान किए गए अनुवीक्षणों के द्वारा निर्धारित दशाओं के औसत के साथ संबंधित है। जलवायु के अध्ययन में कई तत्त्व जैसे तापक्रम, दबाव, आर्द्रता, वर्षा, वायुवेग, धूप की अवधि और कई अन्य तत्वों को सम्मिलित किया जाता है।

🔹 राजस्थान की जलवायु को नियंत्रित करने वाले कारकों में अक्षांशीय स्थिति, जल से सापेक्षित स्थिति, पर्वतीय अवरोध, ऊँचाई, प्रचलित हवाएं तथा महाद्वीपता आदि महत्त्वपूर्ण कारक हैं। राजस्थान की जलवायु का अध्ययन करने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है:

1. राजस्थान की स्थिति 2303’ डिग्री व 30012’ उत्तरी अक्षांशों में है। इन्हीं अक्षांशों में उत्तरी अरेबिया, साइबेरिया और मिश्र का कुछ भाग, उत्तरी सहारा और मैक्सिको के भाग स्थित हैं। जहां जलवायु की दशायें राजस्थान की अपेक्षा अधिक कठोर और प्रचण्ड है। भारत के उत्तरप्रदेश व पश्चिमी बंगाल के अधिकांश भाग भी इन्हीं अक्षांशों के मध्य स्थित है।

2. राजस्थान के दक्षिणी भाग, कच्छ की खाङी से लगभग 225 किलोमीटर और अरब सागर से लगभग 400 किलोमीटर दूर है।

3. राजस्थान के अधिकांश भाग समुद्रतल से 370 मीटर से भी कम ऊंचे हैं। हालांकि अरावली प्रदेश के कुछ भागों की ऊंचाई 1375 मीटर तक पाई जाती है।

4. राज्य में अरावली शंृखला दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व में विस्तृत है। राजस्थान के दक्षिणी भागों से होकर कर्क रेखा गुजरती है।

राजस्थान की जलवायु की विशेषताएँ-

🔸 राज्य की लगभग समस्त वर्षा गर्मियों में (जून के अंत में व जुलाई, अगस्त में) दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होती है।

🔹शीतकाल में बहुत कम वर्षा उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभों से होती है, जिसे मावठ कहते हैं। वर्षा का वार्षिक औसत लगभग 58 सेमी है।?

🔸 वर्षा की मात्रा व समय अनिश्चित। वर्षा के अभाव में आए वर्ष अकाल व सूखे का प्रकोप रहता है।

🔹 वर्षा का असमान वितरण है। दक्षिणी-पूर्वी भाग में जहां अधिक वर्षा होती है, वहीं उत्तरी-पश्चिमी भाग में नगण्य वर्षा होती है।

जलवायु के आधार पर राज्य में मुख्यतः तीन ऋतुएं पाई जाती है-

(1) ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक।

(2) शीत ऋतु – नवम्बर से फरवरी तक।

(3) वर्षा ऋतु – मध्य जून से सितंबर तक।

(1) ग्रीष्म ऋतु –

🔸 तापमान सूर्य के उत्तरायण होने के कारण मार्च में तापमान बढ़ने के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है। जून में तापमान बढ़ने के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है। जून में तापमान उच्चतम होते हैं। इस समय सम्पूर्ण राजस्थान का औसत तापमान 38 प्रतिशत के लगभग होता है। परंतु राज्य के पश्चिमी भागों – जैसलमेर, बीकानेर, फलोदी तथा धौलपुर में उच्चतम तापमान 450-480 सेल्सियस तक पहुंच जाता है। अरावली पर्वतीय क्षेत्र में ऊंचाई के कारण अपेक्षाकृत कम तापमान (300 सेल्सियस) तक रहता है।

🔹वर्षा एवं पवनें – तीव्र गर्मी के कारण राजस्थान के उत्तरी व पश्चिमी क्षेत्रों में आगे चली जाती है। इसी कारण राज्य के पश्चिमी भाग में औसतन 20 सेमी वर्षा हो पाती है। राज्य में सर्वाधिक वर्षा (75 से 100 सेमी वार्षिक) दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग में होती है। राज्य के पूर्वी मैदानी भाग में वर्षा सामान्य औसत 50 से 75 सेमी वार्षिक होती है।
अक्टूबर-नवम्बर में राज्य में मानसूनी हवाओं के प्रत्यावर्तन का समय होता है। सूर्य के दक्षिणायन होने के साथ ही तापमान धीरे-धीरे गिरने लगता है एवं इन माहों में राज्य में 200-300 से ग्रेड तापमान हो जाता है। इस अवधि में यहां वर्षा भी नहीं होती है।

(2) शीत ऋतु –

🔸 दिसंबर माह में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लम्बवत् चमकने लगती है। फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान में अत्यधिक कमी हो जाती है। राजस्थान के कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों में रात्रि का तापमान शून्य या इससे भी कम हो जाता है। दिन के तापमान भी बहुत कम हो जाते हैं। कई बार तापमान के शून्य या शून्य से नीचे जाने पर फसलों पर पाला पङ जाने से वे नष्ट हो जाती हैं। शीत ऋतु में राजस्थान में कभी-कभी भूमध्य सागर से उठे पश्चिमी वायु विक्षोभों के कारण वर्षा हो जाती है, जिसे मावट कहते हैं।

🔹 यह वर्षा की रबी की फसल के लिए बहुत लाभदायक होती है। इस ऋतु में कभी-कभी उत्तरी भाग से आने वाली ठण्डी हवाएं शीत लहर का प्रकोप डालती हैं। यहां जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पङती है। निम्न वायुदाब का केन्द्र उत्पन्न हो जाता है। जिससे यहां धूलभरी आँधियां चलती है।

🔸 धरातल के अत्यधिक गर्म होने एवं मेघरहित आकाश में सूर्य की सीधी किरणों की गर्मी के कारण तेज गर्म हवाएं, जिन्हें यहाँ लू कहते हैं, चलती है। यहां चलने वाली आँधियों से कहीं-कहीं वर्षा भी हो जाती है।

(3) वर्षा ऋतु –

🔸 मध्य जून के बाद राजस्थान में मानसूनी हवाओं के आगमन से वर्षा होने लगती है, फलस्वरूप तापमान में कुछ कमी हो जाती है परंतु आर्द्रता के कारण मौसम ऊमस भरा हो जाता है। इस समय राज्य के अधिकांश भागों का सामान्य तापमान 180 से 300 से ग्रेड हो जाता है।

🔹 वायुदाब कम होने के कारण हिन्द महासागर के उच्च वायुदाब क्षेत्र से मानसूनी पवनें-बंगाल की खाङी की मानसूनी हवाएं एवं अरब सागरीय मानसूनी हवाएं राज्य में आती हैं जिनसे यहां वर्षा होती है। ये मानसूनी हवाएं दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाएं कहलाती है। राज्य की लगभग अधिकांश वर्षा इन्हीं मानसूनी पवनों से होती हैं।

🔸 यहां आने वाली बंगाल की खाङी की मानसूनी पवनें गंगा-यमुना के सम्पूर्ण मैदान को पार कर यहां आती हैं। अतः यहां आते-आते उनकी आर्द्रता बहुत कम रह जाती है। इस कारण राजस्थान में वर्षा की कमी रह जाती है। अरावली पर्वत होने के कारण ये राज्य के उत्तर व पश्चिमी भाग में तो वर्षा कर ही नहीं पाती।

🔹 अरब सागर की मानसूनी हवाएं अरावली पर्वत के समानान्तरण चलने के कारण अवरोधक के अभाव में यहां वर्षा किए बिना ही रह जाती है।

Rajasthan Climate In Hindi

राजस्थान को सामान्यतः 5 जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया गया है:

1. शुष्क जलवायु प्रदेश

🔸इस प्रदेश के अंतर्गत जैसलमेर, बाङमेर जिले के उत्तरी भाग, जोधपुर जिले की फलोदी तहसील का पश्चिमी भाग, बीकानेर जिले का पश्चिमी भाग तथा गंगानगर जिले का दक्षिणी भाग शामिल है। इस प्रदेश में शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु की दशाएं पाई जाती हैं। वर्षा बहुत ही कम होती है। धूल भरी आँधियां, भयंकर गर्मी, लू का प्रकोप शुष्क एवं गर्म हवाएं, वर्षा की कमी, वनस्पति की कमी एवं आर्द्रता की कमी इस प्रदेश की प्रमुख विशेषताएं हैं।

2. अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश

🔹 इस जलवायु प्रदेश में सीकर एवं झुंझुनूं जिलों के पश्चिमी भाग, श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ के उत्तरी भाग, जोधपुर, बाङमेर, जालौर एवं नागौर जिलों के पूर्वी भाग सम्मिलित हैं। यहां पर औसत तापमान गर्मियों में 32 डिग्री से 36 डिग्री सेंटीग्रेड तथा सर्दियों में 10 डिग्री से 17 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है तथा वर्षा का वार्षिक औसत 20 से 40 सेंटीमीटर है। हल्की वनस्पति, शुष्क पवनें एवं अर्द्ध मरुस्थलीय वनस्पति यहां की प्रमुख विशेषताएं हैं।

3. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश

🔸 इस प्रदेश के अंतर्गत जयपुर, अजमेर जिले, झुंझुनूं, सीकर, पाली व जालौर जिलों के पूर्वी भाग व दौसा जिला तथा टोंक, भीलवाङा व सिरोही के उत्तरी-पश्चिमी भाग आते हैं। औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 28 डिग्री सेंटीग्रेड से 34 डिग्री सेंटीग्रेड तथा शीत ऋतु में 12 डिग्री से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है तथा वर्षा 40 से 60 सेंटीमीटर के बीच होती है।

4. आर्द्र जलवायु प्रदेश

🔹 इस प्रदेश के अंतर्गत भरतपुर, धौलपुर, दौसा, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, कोटा, बूंदी व राजसमंद जिले, उदयपुर जिले का उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र एवं उत्तरी चित्तौङ जिले का क्षेत्र शामिल है। यहां का औसत तापमान गर्मियों में 32 डिग्री से 34 डिग्री सेंटीग्रेड तथा सर्दियों में 10 डिग्री से 12 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है। यहां वर्षा का वार्षिक औसत 60 से 80 सेंटीमीटर है।

5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

🔸इस प्रदेश में दक्षिणी कोटा, बारां, झालावाङ, प्रतापगढ़ डूंगरपुर, बांसवाङा एवं सिरोही जिले का आबू पर्वत खण्ड शामिल है। यहां पर वार्षिक वर्षा का औसत 80 से 100 सेंटीमीटर तक है। औसत तापमान गर्मियों में 28 उिग्री से 32 डिग्री सेंटीग्रेड तथा सर्दियों में 8 डिग्री से 10 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है। यहां पर सदाबहार वन पाए जाते है।

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