Rajasthan Ki Veshbhusha – राजस्थान की वेशभूषा || Rajasthan GK

आज के आर्टिकल में हम ’राजस्थान की वेशभूषा’ (Rajasthan Ki Veshbhusha) के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को पढ़ेंगे, जो परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

राजस्थान की वेशभूषा – Rajasthan Ki Veshbhusha in Hindi

पुरुष वेशभूषा

1. पगङी(Pagri)-

Rajasthan Ki Veshbhusha

  • लङाई में जाते समय केसरिया पगङी पहनी जाती थी।
  • पगङी को पाग, पैंचा, बागा, साफा भी कहते हैं।
  • लाल रंग के लहरियों की पगङी राजशाही पगङी कहलाती है।
  • पंचरंगों की पगङी पहनी जाती है – शुभ अवसरों पर।
  • पंचरंग निम्न होते है –
    1. बहुआ
    2. नीला
    3. पीला
    4. हरा
    5. लाल।
  • जयपुर में पंचरंग पगङी का प्रचलन राजघरानों में अधिक था।
  • विवाह के अवसर पर मोठङे की पगङी बांधी जाती थी।
  • दशहरे पर बाँधी जाती है – मदील पगङी।
  • होली पर बाँधी जाती है – फूल पत्ती वाली पगङी।
  • प्रसिद्ध पगङी है – मेवाङी।
  • मेवाङ के महाराणा पहनते थे – छासदार पगङी।
  • मारवाङ में पगङी को कहते हैं – साफा।
  • मेवाङ में कहते हैं – पगङी।
  • बंधेज के लिए प्रसिद्ध – जोधपुर का साफा।
  • भीलों के साफे को पोतिया कहते हैं।

2. टोपी(Topi)-

राजस्थानी वेशभूषा 1

  • टोपीयों का चलन हुआ – 1801 ई. के बाद।
  • चार टुकङों को जोङकर बनाई गई टोपी कहलाती है – चोखलिया।
  • दो टुकङों को जोङकर बनाई गई टोपी कहलाती है – दुपलिया।
  • विशेष टोपी कहलाती है – खाकसानुमा।
  • एक विशेष प्रकार की टोपी खांखसानुमा टोपी कहलाती थी।
  • यह पगङी की तरह सिर को ढकने वाला वस्त्र है।

3. अगंरखी/अगंरखा-

राजस्थानी वेशभूषा 2

  • मुख्य वस्त्र – आदिवासियों का।
  • अगंरखी का ही उतर रूप राजस्थानी अचकन है।
  • अंगरखी एक पूरी बाहों का कालर व बटन रहित चुस्त कुर्ता था।
  • ग्रामिणों द्वारा श्वेत रंग की अगंरखी पहनी जाती थी।
  • इसमें पुरुष वर्ग काले रंग का अगंवस्त्र पहनता है जिस पर सफेद धागे से कढ़ाई की जाती है।
  • शरीर के ऊपरी भाग में अगंरखी पहनी जाती है।
  • अगंरखी को बण्डी, बुगतरी व बुखतरी भी कहते है।

4. चुगा या चोगा-

राजस्थानी वेशभूषा 3

  • चुगा/चोगा प्रायः रेशमी, ऊनी या किमखाब का बना वस्त्र होता था।
  • दर्जी द्वारा चुगा/चोगा सिलने की कला टुकङे पारचा कहलाती है।
  • राजस्थान में 19 वीं शताब्दी में भङकीली पोशाकों का प्रचलन अधिक होने के कारण चुगा/चोगा में बादले का प्रयोग अधिक हुआ।

5. आतमसुख(Atmsukh)-

  • सर्दी में पहने जाने वाला वस्त्र – आतमसुख
  • राजघराने के लोग इसे अधिक पहनते थे।
  • राजस्थान के जयपुर के महाराजा माधोसिंह इसे शौक से पहनते थे।
  • यह मोटे कम्बल से तैयार किया जाता है।

6. जामा-

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  • शादी ब्याह यह युद्ध के अवसरों पर जामा पहना जाता था।
  • जामे में बांधने के लिए कस्से लगते हैं।
  • यह घुटने तक होता है और नीचे से गोल घेरा होता है।

7. पटका/कमरबन्द (kamarband)-

  • इसे कमर पर बाँधा जाता है।
  • यह जामा या अंगरखी के ऊपर कमर पर बांधा जाने वाला वस्त्र है इसमें तलवार या कटार घुसी होती थी।

8. धोती(Dhoti)-

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  • यह पुरुषों द्वारा कमर तक पहना जाने वाला वस्त्र है जो साधारणत श्वेत रंग की होती है।
  • भीलों की धोती को खोयतू कहते हैं।
  • देपाङा भीलों की तंग धोती को कहते हैं।
    नोट – भीलों का प्राचीन अस्त्र नांदणा कहलाता है।
  • पातिया मुख्यतः सफेद रंग का होता था।
  • पछेवङा सर्दी के बचाव हेतु रेजे का बना चद्दरनुमा शरीर के ऊपर डाला जाने वाला वस्त्र पछेवङा कहलाता है।
  • घूघी एक प्रकार का ऊनी वस्त्र है।
  • इसे साधारणत तेज वर्षा या सर्दी में ओढा जाता है।

स्त्री वेशभूषा

1. घाघरा-साङी-

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  • कछावू भील स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला घाघरा।
  • मुख्य प्रसिद्ध मारवाङ घाघरा – 80 कली का।
  • खूसनी – कंजर स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला विशेष पजामा।
  • फङका-कथौङी जाति द्वारा मराठी अंदाज में बांची जाने वाली साङी।
  • अंगोछा साङी – जिसका रंग सफेद हो और लाल बूँटे छपे हों।
  • भील स्त्रियाँ लाल रंग की साङी पहनती हैं उसे सिन्दूरी कहते हैं।

2. ओढ़नी-

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  • ओढ़नी दो प्रकार की होती है – पीला और पोमचा
  • पीला ओढा  जाता है – लङके जन्मने के बाद।
  • पोमचा ओढा  जाता है – लङके के जन्मने के पहले।
  • चुनरी भांत की ओढ़नी में पशु पक्षी फूल और अन्य अलंकारिक चित्र बनते है।
  • चुनरी के पतला गोटा जमीन में और चीङा गोटा जिसे लप्पा कहते है। यह आंचल में लगाया जाता है।
  • पट्टू – यह पश्चिम राजस्थान में महिलाओं के द्वारा ओढा जाने वाला वस्त्र है।
  • फागण्या – यह होली के अवसर पर महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र है।
  • जामशाही ओढनी – यह आदिवासी महिलाओं द्वारा विवाह के अवसर पर पहना जाने वाला वस्त्र है।
  • इसमें लाल जमीन पर फूल पत्तियों युक्त बेल होती है।
  • ज्वार भांत की ओढ़नी – आदिवासी महिलाओं की ओढ़नी का एक प्रकार है जिसमें ज्वार के दानों जैसी छोटी-छोटी बिन्दी वाली जमीन और लाल काले रंग की बैल बुटिया होती है।
  • लहर भांत की ओढ़नी – इसमें ज्वार भांत जैसी बिन्दियां का बना होता है यह भी आदिवासी महिलाओं की ओढ़नी है।
  • केरी भांत की ओढ़नी – इसमें जमीन लाल रंग की व बिन्दियाँ सफेद व पीले रंग की होती है यह आदिवासी महिलाओं में ओढ़नी का एक प्रकार है।
  • तारा भांत की ओढ़नी – यह आदिवासियों की लोकप्रिय ओढ़नी है इसमें जमीन भूरी लाल तथा किनारों का छोरकाला पर कोणीय आकृति वाले तारों जैसा होता है।
  • कटकी यह आदिवासी युवतियों की ओढ़नी है इसे पावली भांत की ओढ़नी भी कहते है।

विशेष पहलू-

  • कापङी – कापङी भीलवाङा क्षेत्र में प्रसिद्ध है यह मुख्यतः दो टुकङों को जोङ कर बनाई चोली है।
  • सिंदूरी – भील जाति में महिलाओं के द्वारा पहनी जाने वाली लाल रंग की साङी सिंदूरी कहलाती है।
  • पवरी – यह पश्चिमी राजस्थान में महिलाओं के द्वारा ओढा जाने वाला वस्त्र है।
  • लूगङा – यह वस्त्र आदिवासी विवाहित महिलाएं पहनती है।
  • शेखावाटी में मुकुन्दगढ़ और लक्ष्मण गढ़ का ’पाटोदा का लूगङा’ प्रसिद्ध है।
  • जरदोजी – यह महिलाओं का सुनहरे धागे की कढाई किया हुआ वस्त्र है।
  •  रेनशाही लहंगा – यह आदिवासी महिलाओं का लहंगा है।
  • इसमें नीले रंग की छींट होती है।
  • रंगाई छपाई में जिस स्थान पर रंग नहीं चढ़ाना हो, उसे लेई या लुगदी से दबा देते है यही दुगदी या लेई जैसा पदार्थ ’दाबू’ है।
  • राजस्थान में तीन प्रकार का दाबू प्रयुक्त होता है सवाई माधोपुर मोम का दाबू इससे कपङे में बङी अच्छी सुगन्ध आती है।
  • जयपुर के महाराजा जयसिंह ने अपने समय में वस्त्रों की रंगाई-छपाई कला को प्रोत्साहन दिया।
  • वस्त्रों पर छपाई का कार्य लकङी के छापे से किया जाता था जिन्हें ’ठप्पा या भात’ कहा जाता था।
  • गुलाबी रंग की ओढ़नी पहनने वाली युवती को देखकर यह पता लगाया जा सकता था कि वह अभी मां नहीं बनी है।
  • विधवा महिला काले रंग की ओढ़नी पहनती थी जिसे ’चिङ का पोमचा’ कहा जाता था।
  • दुल्हन की ओढ़नी को पवंरी कहा जाता था पवंरी लाल या गुलाबी रंग की होती थी।
  • सूती या रेशमी कपङे पर बादले से छोटी-छोटी बिंदी की कढ़ाई मुकेश कहलाती है।
  • बारां, कोटा एवं बूंदी अपने बारीक बंधेज के लिए प्रसिद्ध है।
  • लाडनू का साफा और चुनरी प्रसिद्ध है।
  • बंधेज की सबसे बङी मण्डी जोधपुर में है परन्तु काम सुजानगढ़ में अधिक होता है।
  • बादले की झालर को किरण कहते है।
  • गोटे के फूलों को बिजिया और इससे बनी बेल को चम्पाकली कहते है।
  • अलवर की ’दोरूखी ओढ़निया’ बङी लोकप्रिय है।
  • टोंक अपने खूबसूरत नमदों व चमङे की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है।
  • ऊन कुटकर उसे जमा कर जो वस्त्र बनाते है, उसे नमदा कहते है।
  • बकरी के बालों से बनने वाली जट्ट ’पट्टियों’ की बुनाई को केन्द्र जसोल है।
  • भील दुल्हनें विवाह के अवसर पर जो वस्त्र धारण करती है उसे ’प्रिया’ कहते है।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमनें राजस्थान की वेशभूषा(Rajasthan Ki Veshbhusha) के बारे में पढ़ा , हम उम्मीद करतें है कि आपने कुछ न कुछ नया सीखा होगा ….धन्यवाद

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