Read: Rajasthan New Map 2023 राजस्थान के 50 जिलों सहित, आज के आर्टिकल में आपको राजस्थान के सभी जिलों के मैप (Rajasthan Map) की जानकारी नक़्शे द्वारा दी गयी है ,आप प्रत्येक जिले पर क्लिक कर जानकारी प्राप्त कर सकतें हैl हम राजस्थान के 50 जिलों के नाम,राजस्थान के नए 19 जिलों के नाम,राजस्थान के नए जिले,राजस्थान के 50 जिलों का मानचित्र,rajasthan new district 2023,rajasthan new map 2023,rajasthan new district,राजस्थान के 50 जिले,rajasthan,rajasthan ke 50 jile,rajasthan ke 50 district,राजस्थान में नए जिलों की घोषणा,rajasthan new map,राजस्थान के 50 जिलों की नई लिस्ट,new district in rajasthan,राजस्थान के नए 50 जिले,राजस्थान के 50 जिलों के नाम,rajasthan map के बारे में विस्तार से पढेंगे l
दोस्तो जैसा कि आप जानते है कि राजस्थान में पूर्व में 33 जिले हुए करते थे , लेकिन गहलोत सरकार में जिलो में बड़ा फेरबदल हुआ और नए 19 जिलों का गठन कर दिया है। अब राजस्थान में कुल 50 जिले हो गये है। जिलों की संख्या बढ़ने के साथ ही संभागो की संख्या भी 7 से बढ़कर 10 हो गयी है। अगर हम किसी भी विषय की जानकारी मानचित्र द्वारा करेंगे तो इससे बेहतर और विकल्प नही हो सकता। इसलिए आप सभी के लिए हमने राजस्थान के सभी जिलों की जानकारी मैप द्वारा दी है । आप प्रत्येक जिले पर क्लिक करके उस जिले की जानकारी ले सकतें है।
राजस्थान के 19 नये जिलों की लिस्ट
- अनूपगढ़
- केकड़ी
- डीग
- डीडवाना-कुचामन
- दूदू
- गंगापुरसिटी
- जयपुर
- जयपुर ग्रामीण
- जोधपुर
- जोधपुर ग्रामीण
- खैरथल-तिजारा
- ब्यावर
- फलौदी
- नीम का थाना
- सलूंबर
- सांचौर
- कोटपूतली-बहरोड
- बालोतरा
- शाहपुरा
राजस्थान के 19 नए जिलो के नाम और किस जिले से अलग हुये उसके नाम
नए जिले का नाम | किस जिले से अलग हुआ |
अनूपगढ़ | श्री गंगानगर |
केकड़ी | अजमेर और टोंक |
डीग | भरतपुर |
डीडवाना-कुचामन | नागौर |
दूदू | जयपुर |
गंगापुरसिटी | सवाईमाधोपुर और करौली |
जयपुर | जयपुर |
जयपुर ग्रामीण | जयपुर |
जोधपुर | जोधपुर |
जोधपुर ग्रामीण | जोधपुर |
खैरथल-तिजारा | अलवर |
ब्यावर | अजमेर, पाली, राजसमंद और भीलवाड़ा |
फलौदी | जोधपुर |
नीम का थाना | सीकर और झुंझनु |
सलूंबर | उदयपुर |
सांचौर | जालोर |
कोटपूतली-बहरोड | जयपुर व अलवर |
बालोतरा | बाड़मेर |
शाहपुरा | भीलवाडा |
राजस्थान के सभी 50 जिलों की सारणी – Rajasthan New Map 50 District List
क्रम संख्या | जिले का नाम |
1 | अजमेर |
2 | अनूपगढ़ |
3 | अलवर |
4 | उदयपुर |
5 | करौली |
6 | केकड़ी |
7 | कोटपुतली |
8 | कोटा |
9 | खैरथल |
10 | गंगानगर |
11 | गंगापुर सिटी |
12 | चित्तौड़गढ़ |
13 | चुरु |
14 | जयपुर उत्तर |
15 | जयपुर दक्षिण |
16 | जालौर |
17 | जैसलमेर |
18 | जोधपुर पश्चिम |
19 | जोधपुर पूर्व |
20 | झालावाड़ |
21 | झुंझुनू |
22 | टोंक |
23 | डीग |
24 | डीडवाना-कुचामन |
25 | डूंगरपुर |
26 | दूदू |
27 | दोसा |
28 | धौलपुर |
29 | नागौर |
30 | नीम का थाना |
31 | पाली |
32 | प्रतापगढ़ |
33 | फलोदी |
34 | बांरा |
35 | बांसवाड़ा |
36 | बाड़मेर |
37 | बालोतरा |
38 | बीकानेर |
39 | बूंदी |
40 | ब्यावर |
41 | भरतपुर |
42 | भीलवाड़ा |
43 | राजसमंद |
44 | शाहपुरा |
45 | सलूंबर |
46 | सवाई माधोपुर |
47 | सांचौर |
48 | सिरोही |
49 | सीकर |
50 | हनुमानगढ़ |
राजस्थान भौगोलिक स्थिति से जुड़े बदलाव:
⇒ 28 जिले सीमावर्ती और 22 जिले आंतरिक
⇒ पाकिस्तान के साथ लगने वाले जिलों की संख्या – 5
- अनूपगढ़
- गंगानगर
- बीकानेर
- बाड़मेर
- जैसलमेर
राजस्थान के नए जिलों से जुड़े प्रश्न :
1. राजस्थान का सबसे छोटा जिला कौनसा है?
उत्तर – राजस्थान में सबसे छोटा जिला दूदू है। यह जिला 2023 में जयपुर जिले से अलग होकर बना है। दूदू जिले का क्षेत्रफल 1,108 वर्ग किमी है और इसकी आबादी 3 लाख से अधिक है। दूदू जिला जयपुर से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। दूदू जिले में कई ऐतिहासिक स्थल हैं।
- दूदू किला,
- दूदू बावड़ी
- दूदू जैन मंदिर
दूदू जिला एक प्रमुख कृषि क्षेत्र है और यहां गेहूं, चना, सरसों और कपास की खेती होती है। दूदू जिले में कई उद्योग भी हैं, जिनमें ऑटोमोबाइल, खनन और कपड़ा उद्योग शामिल हैं।
2. राजस्थान के 3 नए संभागों की अधिसूचना कब जारी हुई?
उत्तर – 6 अगस्त ,2023
3. राजस्थान के 3 नए संभागों की अधिसूचना कब प्रभावी हुई ?
उत्तर – 7 अगस्त 2023
4. राजस्थान में नए जिलों के गठन के लिए किस कमेटी का गठन किया गया था?
उत्तर – रामलुभाया कमेटी (21 मार्च 2022)
5. राजस्थान में कुल कितने जिले है?
उत्तर – अभी हाल ही में राजस्थान में जिलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। राजस्थान में वर्तमान में 19 नए जिलों के निर्माण से अब कुल जिलों की संख्या 50 हो गयी है।
- अजमेर
- अनूपगढ़
- अलवर
- उदयपुर
- करौली
- केकड़ी
- कोटपुतली
- कोटा
- खैरथल
- गंगानगर
- गंगापुर सिटी
- चित्तौड़गढ़
- चुरु
- जयपुर उत्तर
- जयपुर दक्षिण
- जालौर
- जैसलमेर
- जोधपुर पश्चिम
- जोधपुर पूर्व
- झालावाड़
- झुंझुनू
- टोंक
- डीग
- डीडवाना-कुचामन
- डूंगरपुर
- दूदू
- दोसा
- धौलपुर
- नागौर
- नीम का थाना
- पाली
- प्रतापगढ़
- फलोदी
- बांरा
- बांसवाड़ा
- बाड़मेर
- बालोतरा
- बीकानेर
- बूंदी
- ब्यावर
- भरतपुर
- भीलवाड़ा
- राजसमंद
- शाहपुरा
- सलूंबर
- सवाई माधोपुर
- सांचौर
- सिरोही
- सीकर
- हनुमानगढ़
उदयपुर(Rajasthan Map)
🔷 ह्यूमन एनाटोमी पार्क – देश का इस तरह का पहला पार्क उदयपुर में स्थापित किया जायेगा।
🔶डे केयर सेंटर – मोहनलाल सुखाङिया विश्वविद्यालय में राज्य का पहला डे केयर सेंटर निर्माणाधीन है।
🔷 सेई बाँध परियोजना – जवाई नदी (पश्चिमी राजस्थान की गंगा) पर निर्मित। यह बाँध भराव क्षमता को बढ़ाने के कारण चर्चित है।
🔶महाशीर मछली – उदयपुर में स्थित बङे तालाब में राजस्थान का पहला मत्स्य अभयारण्य बनाया जायेगा जिसमें महाशीर मछलियों को संरक्षण प्रदान किया जायेगा।
🔷 उदयपुर के उपनाम – सितारों का शहर, झीलों की नगरी, राजस्थान का कश्मीर व ह्वाइट सिटी।
🔶जिले में प्राप्त होने वाले खनिज – सीसा-जस्ता, चांदी, मैगनीज, लौहा, फास्फेट, ऐस्बेस्टोस, लाइमस्टोन (चूना पत्थर) तथा संगरमरमर प्रमुख है।
🔷 अभयारण्य – जयसमन्द वन्य जीव अभयारण्य तथा सुन्दरमाता अभयारण्यों में नवीन प्रजातियों का पता चला है।
🔶 गुहिल वंश का संस्थापक गुहिल था।
🔷 माछला मगरा – पिछोला झील (उदयपुर) के पास स्थित एक पहाङी का नाम है। इस पहाङी पर एकलिंगगढ़ नामक प्राचीन दुर्ग स्थित है।
🔶 फतेहसागर – पिछोला के उत्तर में स्थित फतेहसागर झील का निर्माण 1678 ई. में महाराणा जयसिंह ने करवाया था। इस झील में नहर द्वारा आहङ नदी से पानी लाया जाता है।
🔷 मोती मगरी (महाराणा प्रताप स्मारक) – फतेहसागर झील के किनारे स्थित मोती मगरी पहाङी को महाराणा प्रताप स्मारक के रूप में विकसित किया गया है। महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नगर बसाने से पूर्व इस पहाङी पर मोती महल बनवाया था।
🔶 बागोर की हवेली – पिछोला झील के पास स्थित इस हवेली का निर्माण ठाकुर अमरचंद बङवा ने अठारहवीं शताब्दी में करवाया। अब यह हवेली रजवाङी संस्कृति के संग्रहालय में बदल दी गई है।
🔷 दरीखाना – वह स्थान जहां रानी अपनी सखियों के साथ बैठकर मन बहलाने वाली बातें किया करती थीं, उसे दरीखाना कहते हैं।
🔶 हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड – देबारी (उदयपुर) में स्थित है। हिन्दुस्तान जिंक कम्पनी केन्द्र सरकार द्वारा संचालित उपक्रम है। यह उपक्रम सीसा, जस्ता एवं चांदी का उत्खनन करने वाला भारत का एकमात्र उपक्रम है।
🔷 सौर वैद्यशाला – इसकी स्थापना 1975 ई. में उदयपुर में फतेहसागर झील के बीच स्थित टापू पर की गई। सूर्य के केन्द्र पर डेढ़ करोङ डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान है। सूर्य के बाहरी भाग का तापमान लगभग 6000oC है।
🔶 शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान – राजस्थान में विद्यालयी शिक्षा के गुणात्मक समुन्नयन के लिए 11 नवम्बर 1978 को उदयपुर में राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई।
🔷 आहङ – में गंगोभव नामक एक प्राचीन तीर्थ रूप चतुरस्न कुण्ड है जिसके बीच में एक प्राचीन छतरी बनी हुई है जो उज्जयिनी के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के पिता गंधर्वसेन का स्मारक बताई जाती है।
🔶 हवाला गांव – उदयपुर से आठ किमी. की दूरी पर 1989 ई. में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा ग्रामीण शिल्प एवं लोककला परिसर शिल्प ग्राम का सृजन किया गया।
🔷 एकलिंग जी – उदयपुर से 22 किमी. उत्तर में एकलिंग जी का प्रसिद्ध मंदिर है। जिस गांव में यह मंदिर बना है उसको कैलाशपुरी कहते हैं।
🔶 100 श्लोकों वाली प्रशस्ति – एकलिंगजी मंदिर में महाराणा रायमल की 100 श्लोकों वाली प्रशस्ति लगी है, जो मेवाङ के इतिहास तथा इस मंदिर के वृतांत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
🔷 मीरां बाई का मंदिर – एकलिंग जी मंदिर के निकट ही महाराणा कुंभा ने एक विष्णु मंदिर बनाया था, जिसको लोग मीरां बाई का मंदिर कहते हैं।
🔶 नागदा – मेवाङ के राजाओं की प्राचीन राजधानी नागदा एकलिंग जी मंदिर से थोङी दूरी पर स्थित है। सास-बहू का प्रसिद्ध मंदिर नागदा में स्थित है।
🔷 जावर – सीसा-जस्ता की खानों के लिए सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।
🔶 ऋषभदेव – यहां की मूर्ति पर केसर बहुत चढ़ाई जाती हैं, जिससे इसको केसरिया जी या केसरिया नाथ जी कहते है। काले पत्थर की मूर्ति होने के कारण भील लोग ऋषभदेव को कालाजी कहते हैं।
🔷 महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित सुप्रसिद्ध विजय स्तम्भ (चित्तौङगढ़) की दीवारों पर तीन-तीन बार अल्लाह शब्द अरबी अक्षरों में अंकित है।
🔶 कलीला दमना- पंचतंत्र के अरबी अनुवाद पर आधारित लघु चित्र केवल मेवाङ शैली में बने है।
🔷 फुलवारी की नाल- उदयपुर से 160 किमी. पश्चिम में स्थित है।
सीकर (Rajasthan Map)
🔷 सप्तगोमाता मंदिर – रैवासा ग्राम में निर्मित। यह राजस्थान का प्रथम और देश का चैथा मंदिर है।
🔶 शहीद स्मारक स्थल – राजस्थान का अकेला शहीद स्मारक।
🔷 बास्केटबाॅल अकादमी – सीकर में स्थापित की जायेगी।
🔶 सीकर जिला जयपुर, नागौर, चूरू, झुन्झुनूँ और हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ से घिरा हुआ है।
🔷 पीथमपुरी – यह सीकर जिले की एकमात्र झील है।
🔶 हर्षनाथ जी मंदिर – यह मंदिर हर्ष पहाङी पर स्थित शिव मंदिर है जिसे 11 वीं शताब्दी में चौहान शासक विग्रहराज-चतुर्थ ने बनवाया गया था।
🔷 चाँदनी प्रथा – कटार भोंककर प्राण त्याग देना।
🔶 लाग-बाग – राजाओं द्वारा लगाये जाने वाले कर।
🔷 रैवासा – यह सीकर शहर से 18 किमी. दूर स्थित है। रैवासा जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। रैवासा का पुराना नाम रतिवास था जहाँ चंदेल राजा राज्य करते थे। वर्तमान में अग्रपीठ के पीठाधीश्वर महान् वेदांती श्री राघवाचार्य हैं। श्री राघवाचार्य वेदांती राजस्थान संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष हैं।
🔶 जीणमाता – सीकर से 29 किमी. तथा गोरियां रेलवे स्टेशन से 12 किमी. दूर तीन पहाङियों के बीच में जीणमाता का मंदिर बना हुआ है।
🔷 फतेहपुर – सीकर जिला मुख्यालय से 48 किमी. दूर फतेहपुर कस्बा कायमखानी नवाब फतेह खाँ ने संवत् 1508 ई. में बसाया था।
🔶 पील खाना में किस पशु को रखा जाता है – हाथी।
🔷 संत बुद्धगिरि की मढ़ी – यह फतेहपुर कस्बे के निकट एक बालूका टीले पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर स्थित है। यह स्थल संत बुद्धगिरि की तपोस्थली है। यहाँ हिंगलाज देवी की पूजा भी की जाती है।
🔶 दाँतारामगढ़ – दाँता और रामगढ़ एक ही नदी के किनारे बसे दो गाँव हैं। दोनों गाँव सीकर से 52 किमी. दूर हैं।
🔷 रोहिला गढ़ेश्वर – नीमकाथाना में स्थित हाल ही में इस क्षेत्र में यूरेनियम के भंडार मिले हैं।
🔶 खंडेला – यह सीकर से 50 किमी. दूर स्थित है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में धीरगढ़, उदलगढ़, सौनगिरि बावङी, चारोङा तालाब तथा घोङे का चबूतरा प्रसिद्ध है। खंडेला का गोटा उद्योग प्रसिद्ध है। खंडेला की स्थापना लगभग 1000 वर्ष पूर्व शिशुपालवंशी डाहलिया राजा द्वारा की गई थी।
🔷 गणेश्वर – नीमकाथाना से 10 किमी. दूरी पर स्थित। काँटली नदी के उद्गम पर स्थित गणेश्वर टीले से ताम्रयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में गणेश्वर सबसे प्राचीन है।
– गणेश्वर को ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी कहा जाता है। गालव गंगा झील गणेश्वर में ही स्थित है।
🔶 शांकभरी – सीकर से 50 किमी. दूर स्थित शाकंभरी में शांकभरी माता का एक पुराना मंदिर है।
– इस मंदिर को चह्वाण राजा दुर्लभ राज के शासनकाल में शिवहरि के लङके व भतीजे द्वारा बनवाया गया था। शांकभरी अरावली की पहाङियों में सीकर-झुन्झुनूँ सीमा पर स्थित है।
🔶 खाटूश्यामजी – सीकर से 48 किमी. दूर खाटूश्यामजी श्यामजी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। यह स्थान महाभारत से संबंध रखता है।
🔷 तांत्या टोपे – तांत्या टोपे 21 जनवरी, 1859 को सीकर पहुँचे। नरवर के एक राजपूत जागीरदार मानसिंह ने विश्वासघात के द्वारा 7 अप्रैल, 1959 को अंग्रेजों के हवाले कर दिया।
– तत्पश्चात् 18 अप्रैल, 1859 को ब्रिटिश सरकार ने इन्हें फाँसी दे दी। तांत्या टोपे का स्मारक सीकर शहर में बना हुआ है।
– सीकर के राव को भी गिरफ्तार कर लिया गया और 20 अगस्त, 1862 को उन्हें भी फाँसी दे दी गई।
🔶 केन्द्र सरकार द्वारा घोषित सीकर जिले का संरक्षित स्मारक – हर्षनाथ मंदिर।
🔷 राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक – फतेहपुर दुर्ग।
कोटा (Rajasthan Map)
🔷 भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन का राजस्थान में पहला टर्मिनल पाॅइंट कोटा में स्थापित होगा।
🔶 अभेङा महल – राज्य सरकार द्वारा पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है।
🔷 तकनीकी विश्वविद्यालय – राज्य का प्रथम तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा में खोला जा रहा है।
🔶 तिपटिया – यहाँ से प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र मिले हैं।
🔷 बीसलपुर परियोजना – इस परियोजना को कोटा के चम्बल सिंचित क्षेत्र परियोजना में शामिल किया गया है।
🔶 भील शासक कोटिया ने कोटा बसाया था। कोटा हाङौती प्रदेश का प्रमुख शहर है। कोटा को मेडिकल एवं इंजीनियरिंग शिक्षा का भारत का सबसे बङा गढ़ कहा जाता है।
🔷 कोटा के साथ सीमा बनाने वाले राजस्थान के जिले – बूँदी, चित्तौङगढ़, झालावाङ, बाराँ तथा सवाई माधोपुर। मध्यप्रदेश का मंदसौर जिला भी कोटा से सीमा बनाता है।
🔶 कोटा में बहने वाली नदियों के नाम – चम्बल (बारहमासी), कालीसिंध, पार्वती, परवन, अंधेरी, बाणगंगा, उजाङ, सूकली, कुल एवं कुन्नो।
🔷 दर्रा अभयारण्य किस जिले में स्थित है – कोटा। इस अभयारण्य में चित्तल, हिरण, रोज, बंदर, मोर खरगोश, तथा बघेरे पाये जाते हैं।
🔶 कोटा चम्बल के किनारे बसा है। कोटा शहर में दाद देवी का मंदिर दर्शनीय है। कोटा का दशहरा उत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मसूरिया डोरिया साङियां कोटा के निकट ही स्थित कैथून में बनती हैं।
🔷 कोटागढ़ महल किसने बनवाया – कोटा के महाराजा भीमसिंह ने।
🔶 क्षारबाग की छतरियाँ – कोटा में स्थित क्षारबाग में कोटा रियासत के शासकों का दाह-संस्कार किया जाता था। उनकी स्मृति में बनाये गये स्मारक छतरियां कहलाते हैं। ये छतरियाँ हिन्दू स्थापत्य कला का बहुत ही सुंदर उदाहरण हैं।
🔷 छत्र विलास उद्यान – 200 एकङ क्षेत्र में फैले इस उद्यान का निर्माण महाराजा छत्रसाल ने करवाया था। महाराव भीमसिंह द्वारा इसका विकास करवाया गया।
🔶 चम्बल उद्यान – 1972 ई. में 10 एकङ भूमि में निर्मित यह उद्यान चट्टानी भूमि पर विकसित किया गया है। कोटा आने वाले विशिष्ट व्यक्ति इस उद्यान में पौधे लगाते हैं।
🔷 गडगच के मंदिर – अटरू (कोटा) – ये मंदिर कोटा से 96 किमी. दूर स्थित है।
🔶 चारचोमा का शिवालय – यह कोटा जिले का सबसे प्राचीन मंदिर व भवन हैं।
🔷 गेपर नाथ (गपङनाथ) – यह मंदिर गुप्तकालीन माना जाता है। कोटा-रावतभाटा मार्ग पर रथकांकरा गाँव के निकट चम्बल घाटी में लगभग 350 फुट गहराई में स्थित गेपर नाथ शिवालय के आसपास का वातावरण आकर्षक है।
🔶 अबली मीणी का महल – कोटा के राव मुकुन्दसिंह ने अपनी प्रेमिका अबली मीणी के लिए दर्रे की पहाङियों में इस महल का निर्माण करवाया था।
🔷 दशहरा – कोटा का दशहरा मेला पूरे देश में प्रसिद्ध है। दशहरे के अवसर पर हथियारों तथा शमी (खेजङी वृक्ष) की पूजा की जाती है।
🔶 न्हाण – साँगोद का न्हाण प्रसिद्ध है। न्हाण का प्रारम्भ नवीं शताब्दी से माना जाता है। इस न्हाण में न रंग होता है, न पानी और न ही गुलाल।
🔷 वीरवर साँगा गुर्जर की पुण्य भूमि में प्रथम बार साँगोद में न्हाण प्रारंभ हुआ था।
🔶 गणगौर – गणगौर पर युवतियों मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए तथा स्त्रियाँ सुहाग और मनोकामना के लिए गौरी और ईसर की पूजा करती हैं।
🔷 नेहर खां की मीनार – कोटा में स्थित है।
जालौर (Rajasthan Map)
🔷 पथमेङा – राष्ट्रीय कामधेनु विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है।
🔶 भीनमाल – गैस खोज हेतु रिलायंस समूह को यहाँ ब्लाॅक आवंटित किया गया है।
🔷 कामधेनु महोत्सव – वर्ष 2005 में आयोजित किया गया।
🔶 नसौली – वर्ष 2004 में यहाँ पीले संगमरमर के भंडार पाए गए।
🔷 जालौर – यहाँ 400 के.वी.ए. का ग्रिड सब स्टेशन स्थापित किया जायेगा।
🔶 जालौर राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित है। जालौर जाबालिपुर के नाम से विख्यात अति प्राचीन नगर है। जालौर को स्वर्णगिरि या कंचनगिरि के नाम से भी पुकारा जाता है। जालौर मध्यकाल में जालंधर के नाम से विख्यात हुआ।
🔷 जालौर में बहने वाली नदियाँ – लूनी, जवाई, खारी, बाँडी, सुकली व सागी। जवाई नदी खारी नदी में मिलने के बाद सूकङी कहलाती है।
जैसलमेर (Rajasthan Map)
🔶 सिविल एयरपोर्ट – पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निर्माणाधीन एयरपोर्ट।
🔷 पोकरण – भारत का 8 वाँ व राजस्थान का पहला विलेज रिसोर्ट सेंटर स्थापित किया जायेगा।
🔶 इरान आई – जैसलमेर में प्रथम बार तेल की खोज करने वाली कंपनी।
🔷 कुंडा – यहाँ से सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
🔶 वेनेजुएला – बाघेवाला क्षेत्र में देश के पहले भारी ऑयल कुएं की खुदाई इस देश के सहयोग से की गई।
🔷 जैसलमेर पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुङा हुआ है। जैसलमेर शब्द जैसल और मेरु नामक दो शब्दों से बना है जिसका अर्थ जैसल द्वारा बनाया गया दुर्ग है।
🔶 जैसलमेर क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बङा जिला है किंतु यहाँ का जनसंख्या घनत्व सबसे कम 13 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
🔷 जैसलमेर जिले की जनसंख्या वृद्धि दर राजस्थान में सर्वाधिक (47.45 प्रतिशत) है। थार मरुस्थल का भाग होने के कारण संपूर्ण जिला रेतीना, सूखा तथा पानी की कमी वाला क्षेत्र है। थार मरुस्थल का भाग होने के कारण संपूर्ण जिला रेतीला, सूखा तथा पानी की कमी वाला क्षेत्र है।
🔶 खङीन – वर्षा ऋतु में जैसलमेर के निचले हिस्से पानी से भर जाते हैं, जिन्में खङीन कहा जाता है। खङीन का जल सिंचाई के काम आता है।
🔷 जीवाश्म उद्यान (वुड फाॅसिल पार्क) – इस उद्यान में 1800 करोङ वर्ष पूर्व के पेङों के जीवाश्म मिले हैं। यहाँ समुद्री जीवाश्म भी प्राप्त हुए हैं। इससे ज्ञात होता है कि पहले यहाँ समुद्र था।
🔶 सेवण घास – यह पौष्टिक घास जैसलमेर क्षेत्र में खूब पायी जाती है। जैसलमेर क्षेत्र में धामण, करङ व ग्रामणा नामक पौष्टिक वनस्पतियाँ भी पायी जाती हैं।
🔷 सालिमसिंह की हवेली – जैसलमेर में स्थित इस सात मंजिली हवेली को राजा सालिमसिंह ने अपने निवास हेतु बनवाया था। यह हवेली शिल्प सौंदर्य की दृष्टि से बेजोङ है।
🔶 पटुओं की हवेली – यह हवेली पाँच मंजिला है। पटुओं की हवेली पीले पत्थरों से बनी हुई है जो शिल्प कला की दृष्टि से अद्वितीय है।
🔷 नत्थमल की हवेली – जैसलमेर में स्थित यह हवेली पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है।
🔶 गोल्डन सिटी (स्वर्ण नगरी) – सुनहरे रंगों के बालूका स्तूप (टीले) तथा पीले पत्थरों के कारण जैसलमेर को स्वर्ण नगरी के नाम से पुकारा जाता है।
🔷 डेजर्ट फेस्टिवल (मरु महोत्सव) – राजस्थान पर्यटन विभाग 1979 से हर वर्ष होली से पहले पूर्णिमा पर डेजर्ट फेस्टिवल का आयोजन करता है।
🔶 सोनारगढ़ – सोनारगढ़ का निर्माता जैसल था। 1155 ई. में जैसल ने यह दुर्ग त्रिकुटाचल नामक पहाङियों पर बनवाया। यह सुनहरा दुर्ग विश्व के मरुस्थलीय दुर्गों में सर्वश्रेष्ठ है। इस दुर्ग का निर्माण पीले पत्थरों से बिना चूने के ही किया गया है। स्वर्णिम आभायुक्त होने के कारण यह दुर्ग सोनारगढ़ या सोनगढ़ कहलाता है।
🔶 तणोट देवी का मंदिर – भारत-पाक सीमा पर जैसलमेर से 115 किमी. दूर तणोट देवी का मंदिर महारावल तन्नुजी ने बनवाया था। इस मंदिर की पूजा बी.एस.एफ. के पुजारी करते हैं।
🔷 खेतपाल डाडी – जैसलमेर के जैतसर गाँव में बना यह स्थान स्थानीय लोगों की अटूट आस्था व विश्वास का केन्द्र है। यह आस्था स्थल एक हजार साल पुराना है। इस इमारत की निचली चार इमारतें वर्गाकार तथा ऊपरी व अंतिम पाँचवीं मंजिल गुम्बदाकार गोल संरचना वाली है।
🔶 लोद्रवा – जैसलमेर से 16 किमी. दूर अत्यंत प्राचीन नगरी लोद्रवा स्थित है। इस क्षेत्र में प्राप्त ब्राह्मीलिपि के लेख के अनुसार यह स्थान रुद्र क्षेत्र कहलाता था जो कालांतर में लोद्रवा कहलाने लगा। इस स्थान से कुछ ही दूरी पर मूमल का महल स्थित है।
🔷 गजरूप सागर – इसका निर्माण महारावल गजसिंह तथा महारानी रूपकँवर की स्मृति में ठाकुर केसरीसिंह ने करवाया था। गजरूप सागर जैसलमेर से 3 किलोमीटर दूर जैठवाई मार्ग पर स्थित है।
🔶 रामदेवरा – जैसलमेर से 250 किमी. बीकानेर से 200 किमी. तथा पोकरण से 13 किमी. दूर जोधपुर-पोकरण रेलमार्ग पर रामदेवरा स्थित है।
🔷 पोकरण – 1974 ई. तथा 1998 ई. में यहाँ भारत सरकार ने परमाणु विस्फोट किए। इस कारण पोकरण ने अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।
🔶 कूमट गोंद – कूमट एक वृक्ष है जो गर्म-शुष्क जलवायु क्षेत्र में पाया जाता है। अतः यह वृक्ष रेगिस्तानी क्षेत्र विशेषतः जैसलमेर में खूब उगता है।
🔷 पवन ऊर्जा फार्म – राज्य पाॅवर काॅरपोरेशन द्वारा 2 मेगवाट पवन विद्युत परियोजना 14 अगस्त 1999 से प्रारंभ हो गई।
– यह परियोजना जैसलमेर शहर से 5 किमी. दूर अमरसागर गाँव में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि. द्वारा लगाई गई है।
Districts of Rajasthan
झुन्झुनूँ (Rajasthan Map)
🔷 शीशराम ओला – वर्तमान केन्द्रीय खनिज मंत्री।
🔶 श्योदान सिंह धाबाई – स्वतंत्रता सेनानी, वर्ष 2006 में निधन हुआ। आजाद हिन्द फौज के सिपाही रहे।
🔷 सुमित्रा सिंह – राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष। इन्हें ग्लोरी ऑफ अवार्ड दिया गया।
🔶 जनरल कुंदन सिंह – 1966 में चीन द्वारा प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग नाथूला के दर्रे पर कब्जे की कोशिश को विफल किया।
🔷 बिट्स – पिलानी में स्थित है।
जोधपुर (Rajasthan Map)
🔷 प्रथम पेनसिटी – जोधपुर में स्थापित की गई है।
🔶 पहली फुटबाॅल अकादमी – जोधपुर में स्थापित की गई है।
🔷 कारकस प्लांट – दिल्ली व जयपुर के बाद तीसरा इस तरह का प्लांट जोधपुर में स्थापित किया जायेगा।
🔶 प्रो.ए.के.कौल – राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जोधपुर के नये कुलपति।
🔷 लालसिंह भाटी – गैंडे की खाल से बनी ढाल पर नक्काशी करने वाले कलाकार। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित।
🔶 जोधपुर पश्चिमी राजस्थान में स्थित एक मरुस्थलीय जिला है। इसके चारों ओर बीकानेर, जैसलमेर, बाङमेर, पाली व नागौर जिलों की सीमा लगती है।
🔷 लूनी नदी – यह जोधपुर की प्रमुख बरसाती नदी है। मीठङी, खारी, जोजरी, सूकली, गोलसमी तथा बाँडी आदि लूनी की सहायक नदियाँ हैं।
🔶 हाकङा – प्राचीन काल में घग्घर नदी की एक धारा बीकानेर और जोधुपर राज्य के प्रदेश से होती हुई सिंधु नदी में मिलती थी। इसे मारवाङ में हाकङा कहा जाता था।
🔷 आंवल-बांवल सीमा – मारवाङ और मेवाङ के बीच राणा कुंभा और राणा जोधा के द्वारा अपने क्षेत्र में बनायी गई सीमा।
🔶 घुङला तृतीया कब मनायी जाती है – चैत्र शुक्ला तृतीया को कन्याओं द्वारा मारवाङ क्षेत्र में घुङला तृतीया मनायी जाती है। कन्याएँ सिर पर खाली मटकी में छेद करके उसमें दीपक रखती हैं। मटकी में छेद घुङले के सिर के घाव माने जाते हैं।
🔷 जोधपुर शासक मालदेव के पिता का नाम – गंगा। गंगा को मालदेव ने ही छत से गिरा कर मार डाला था।
🔶 मतीरे की राङ (युद्ध) – यह राङ जोधपुर शासक अमरसिंह और बीकानेर राज्य के बीच 1644 ई. में हुई।
🔷 एक थम्बिया महल – जोधपुर में इस महल का निर्माण राजा अजीतसिंह ने करवाया था।
🔶 जवाई बाँध – पाली में स्थित इस बाँध को मारवाङ का अमृत सरोवर कहा जाता है। इसकी नींव जोधपुर के महाराज उम्मेद सिंह ने रखी थी।
🔷 मेहरानगढ़ – राव जोधा ने 1459 ई. में इस दुर्ग को पंचेटिया पर्वत पर बनवाया था। इस गढ़ की नींव में राजिया भांभी नामक एक जीवित व्यक्ति को चिनवाया गया था। यह गढ़ मिहिर गढ़ के नाम से भी प्रसिद्ध है। मिहिर का अर्थ सूर्य होता है। इसकी आकृति मयूर की पूँछ के समान है, अतः इसे मयूरध्वज दुर्ग भी कहते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से मेहरानगढ़ एक बेजोङ कृति है। वर्ष 2006 में ब्रिटिश राजकुमार प्रिंस और उनकी प्रेमिका कैमिला पारकर बाउल्स ने चोखेलाव महल का भ्रमण किया था।
🔶 तीजा भांजी का मंदिर – यह मंदिर जोधपुर नरेश मानसिंह की तीसरी रानी भटियाणी ने बनवाया था।
🔷 खरानना देवी मंदिर – गर्दभ मुँह वाली खरानना देवी भीनमाल क्षेत्र में निवास करती थी। खरानना माता श्रीमाली ब्राह्मणों, दवे तथा गोधाओं की कुलदेवी है।
🔶 अधरशिला रामदेव मंदिर – बाबा रामदेव के मंदिरों में सबसे विस्मयकारी मंदिर जोधपुर शहर में स्थित अधरशिला मंदिर है।
🔷 मामा-भांजा की छतरी – जोधपुर की यह छतरी धन्ना और भीयां वीरों की छतरी के नाम से जानी जाती है। धन्ना और भीयां ने अपने स्वामी की स्वामीभक्ति में प्राण उत्सर्ग कर दिए। धन्ना और भीयां मामा-भांजा थे। इनकी याद में यह छतरी बनवाई गई।
🔶 काजरी – इसकी स्थापना 1959 ई. में केन्द्र सरकार ने मरुस्थल में वनारोपण एवं भू-संरक्षण हेतु की। काजरी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन कार्य करती है।
Rajasthan district Map
झालावाङ (Rajasthan Map)
🔷 खेल संकुल – झालावाङ में निर्माणाधीन है।
🔶 पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र – झालावाङ में प्रस्तावित है।
🔷 अश्वगंधा – कृषि जिंसो में शामिल की गई औषधि।
🔶 डाॅ. हरीशकुमार जैन – अस्थिरोग विशेषज्ञ, बेस्ट सिटीजन ऑफ इंडिया – 2005 घोषित किए गए।
🔷 हीरामन तोता – हाल ही में अत्यधिक मात्रा में शिकार होने के कारण चर्चित पक्षी।
🔶 चंद्रावती – हाल ही में 11 वीं से 12 वीं सदी के अनेक मंदिरों के ध्वस्त अवशेष पाए गए हैं।
🔷 झालावाङ नगर झाला जालिमसिंह-प्रथम ने बसाया था।
🔶 झालावाङ जिले की प्रमुख नदियाँ – परवन, अंधेरी, नेवज, आहू, पिपलाज, क्यासरा, कंताली, रेवा, कालीसिंध, चन्द्रभागा, उजाङ तथा घोङापछाङ। इन सभी नदियों का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश का मालवा पठार है।
हनुमानगढ़ (Rajasthan Map)
🔷 इंडो-डच जल निकासी परियोजना – नीदरलैंड के आर्थिक सहयोग से सेम प्रभावित क्षेत्रों में शुरू की गई योजना।
🔶 हनुमानगढ़ जिला मध्यकाल में भटनेर क्षेत्र में आता था।
🔷 हनुमानगढ़ के चारों ओर स्थित राज्य व जिले – राज्य-पंजाब व हरियाणा। जिले – चूरू, बीकानेर व श्रीगंगानगर।
🔶 घग्घर नदी हनुमानगढ़ की प्रमुख बरसाती नदी है।
🔷 प्राचीन काल में हनुमानगढ़ क्षेत्र पर भाटी शासकों का साम्राज्य था।
🔶 भटनेर दुर्ग – अरबी व फारसी भाषा के अक्षर खुदी हुई ईटों से बना भटनेर का दुर्ग अति प्राचीन एवं सुदृढ़ हैं। इस दुर्ग में स्थित मूर्तियाँ मिट्टी को पकाकर बनाई गई है।
🔷 कालीबंगा – पीलीबंगा तहसील से 5 किमी. दूर हङप्पा पूर्व व हङप्पा कालीन सभ्यता का अवशेष स्थल कालीबंगा है।
– खुदाई में मिली काली चूङियों के टुकङों की बहुतायत को देखते हुए इस जगह का नाम कालीबंगा पङा। कालीबंगा का अर्थ – काले रंग की चूङियाँ।
– कालीबंगा की खोज – बी. बी. लाल व बी. के. थापर द्वारा। कालीबंगा में अग्नि वेदियाँ, यज्ञ वेदियाँ व जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
🔶 गोगामेङी मेला – यह मेला लोकदेवता पीर गोगाजी के नाम पर गोगा नवमी को लगता है। गोगामेङी मेला पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित गोगाजी मंदिर में 11 महीनें मुस्लिम पुजारी पूजा करता है तथा शेष 1 महीने (भाद्रपद महीने) हिन्दू पुजारी पूजा करता है। गोगाजी गोरखनाथजी के शिष्य थे।
🔷 गोगाजी का जन्म चूरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था।
🔶 पीलीबंगा – वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले में स्थित पीलीबंगा हङप्पाकालीन सभ्यता का एक नगर है। यहाँ से प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
🔷 स्वामी केशवानंद – शिक्षा के क्षेत्र में जागृति लाने वाले स्वामी ने साँगरिया (हनुमानगढ़) में इस क्षेत्र का पहला विद्यालय बनवाया। केशवानंद जी का जन्म गाँव मंगलूणा (सीकर) में हुआ था।
🔶 रंगमहल – रंगमहल सूरतगढ़ से 30 किमी. दूर स्थित है। रंगमहल किसी समय यौधेय गणराज्य की राजधानी था। यहाँ मोहनजोदङो-हङप्पा सभ्यता के समकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। आज भी रंगमहल सभ्यता मिट्टी के टीलों के नीचे दबी पङी है।
Rajasthan Map Hd
जयपुर (Rajasthan Map)
🔷 सिलोरा – राज्य के पहले आधुनिक टैक्सटाइल पार्क की स्थापना किशनगढ़ के पास की जा रही है।
🔶 डिफेंस कोर्स – पहली बार राजस्थान विश्वविद्यालय में यह पाठ्यक्रम शुरू किया गया।
🔷 जबरो दोस्त अपाणो – जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा शुरू की गई हैल्पलाइन।
🔶 साइंस सिटी – जयपुर में विकसित की जायेगी।
🔷 बायोटेक वेली – राजस्थान को बायो तकनीक मित्र बनाने के लिए जयपुर में स्थापित की जायेगी।
🔶 आमेर के राजा सवाई जयसिंह ने जयनगर के नाम से जयपुर की स्थापना की। सवाई जयसिंह कछवाह वंश के शासक थे।
🔷 बैराठ – वर्तमान नाम – विराटनगर। बैराठ को मानव सभ्यता का प्रभात माना जाता है। बैराठ में आदिम सभ्यता के पाषाण उपकरण मिले हैं। ये उपकरण डेढ़ लाख वर्ष पुराने है।
🔶 मोमिनाबाद – मुगल बादशाह बहादुरशाह ने आमेर का नाम मोमिनाबाद (इस्लामाबाद) रखा।
🔷 जयसिंह-द्वितीय ने जयनगर बसाया जिसके डिजाइनकार एक बंगाली ब्राह्मण विद्याधर भट्टाचार्य थे। बाद में इसी नगर को जयपुर कहा जाने लगा। जयपुर की नींव 1727 ई. में प्रसिद्ध ज्योतिषी पं.जगन्नाथ सम्राट् ने रखी थी।
🔶 जयपुर के शासक जयसिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा तथा बनारस में वैधशालाओं का निर्माण करवाया।
🔷 सर्वप्रथम जयपुर प्रजामंडल की स्थापना हुई थी।
🔶 जयपुर – जयपुर को गुलाबी नगरी/पिंक सिटी, भारत का पेरिस व आइलैंड ऑफ ग्लोरी के उपनाम से जाना जाता है।
🔷 जयपुर की स्थापना 18 नवंबर 1727 में आमेर के शासक सवाई जयसिंह-द्वितीय ने की थी।
🔶 ईश्वर सिंह (दुर्भाग्यशाली राजा) की छतरी किसने बनवायी – माधोसिंह ने।
🔷 हवामहल – निर्माण सवाई प्रतापसिंह ने 1799 ई. में करवाया। यह महल पाँच मंजिल का है। हवामहल की पाँचों मंजिलों के नाम – शरद् मंदिर, रतन मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर तथा हवा मंदिर है।
🔶 लक्ष्मीनारायण मंदिर – बिङला मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर का निर्माण गंगाप्रसाद बिङला ने करवाया। यह एशिया का पहला वातानुकूलित मंदिर है। बी.एम.बिङला संग्रहालय भी मंदिर का आकर्षण है।
🔷 रामबाग – इसे केसर बङारण का बाग भी कहा जाता है।
🔶 विश्ववृक्ष उद्यान – झालाना डूंगरी पर्वतीय क्षेत्र के पास स्थित यह प्राकृतिक, सुरम्य उद्यान विश्ववानिकी दिवस 21 मार्च को 1986 में स्थापित किया गया। इस उद्यान में सारे राजस्थान की वनस्पतियाँ पनपायी जा रही हैं। यहाँ विश्व के लगभग 160 देशों की वनस्पतियाँ उगी हुई है।
🔷 वनौषधि उद्यान – उदयपुर के आयुर्वेद महाविद्यालय के अधीन राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान परिसर (जयपुर) में ’चरक उपवन’ के नाम से यह वनौषधि उद्यान स्थापित किया गया है।
🔶 राजस्थान संस्कृत अकादमी – संस्कृत को देव भाषा भी कहते हैं। संस्कृत अकादमी की स्थापना 1981 में की गई थी।
🔷 राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी, राजस्थान सिंधी अकादमी व राजस्थान उर्दू अकादमी की स्थापना 1979 में की गई जो जयपुर में स्थित है।
🔶 स्कूल ऑफ आर्ट्स (जयपुर) –इसकी स्थापना राजा रामसिंह के शासनकाल में 1857 में हुई।
🔷 जयगढ़ – जयपुर रियासत का सबसे दुर्गम गढ़। इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया। इस दुर्ग में स्थित शस्त्रों का भंडार विजयगढ़ी कहलाता है। यहाँ जयबाण तोप स्थित है। यह एशिया की सबसे बङी तोप है।
🔶 आलगीला (फ्रेस्को) क्या है – वास्तु चित्रों को सजाने की पद्धति। इसे शेखावाटी में पणा कहा जाता है।
🔷 नाहरगढ़ – यह दुर्ग जयपुर के उत्तर में एक दुर्गम पहाङी पर स्थित है। प्रारंभ में नाहरगढ़ का नाम सुदर्शनगढ़ था।
श्रीगंगानगर (Rajasthan Map)
🔷 स्ट्रेटेजिक बफर रिजर्व – हनुमानगढ़ तथा गंगानगर जिलों में सेना के लिए स्थापित किया गया है।
🔶 छठा शुष्क बंदरगाह – गंगानगर में स्थापित किया गया है।
🔷 महरदीन – पहलवान, रूस्तम ए हिंद, भारत भीम और भारत केसरी उपनामों से प्रसिद्ध हाल ही में निधन हुआ।
🔶 सूरतगढ़ ताप विद्युत गृह – आधुनिक तीर्थ स्थल कहलाता है।
🔷 संघ शक्ति – वर्ष 2006 में सेना द्वारा किया गया युद्धाभ्यास।
🔶 केजङीवाला आयोग – वर्ष 2005 में राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर.एस. केजङीवाल की अध्यक्षता में गठित किया गया जाँच आयोग।
🔷 श्रीगंगानगर जिले का नाम बीकानेर नरेश गंगासिंह के नाम पर प्रसिद्ध है। गंगानगर का पहले नाम रामनगर था। थार मरुस्थल के उद्भव से पूर्व यहाँ द्रुमकुल्य नामक व बीकानेर।
🔶 1927 ई. में महाराजा गंगासिंह ने इस क्षेत्र में सिंचाई हेतु गंग नहर का निर्माण करवाया था। वर्तमान में गंग नहर से सर्वाधिक सिंचाई श्रीगंगानगर जिले में होती है।
🔷 श्रीगंगानगर थार मरुस्थल का एक भाग है। श्रीगंगानगर की 204 किमी. लम्बी सीमा पश्चिम में स्थित पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा का निर्माण करती है।
🔶 वैदिक काल में श्रीगंगानगर क्षेत्र को ब्रह्मावर्त कहा जाता था। यह क्षेत्र सरस्वती, दृशद्वती घाटी क्षेत्र में आता था। प्राचीन सरस्वती नदी अब लुप्त हो चुकी है।
🔷 मोहनजोदङो एवं हङप्पा की समकालीन सभ्यताओं के अवशेष गंगानगर क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं जिनमें रंगमहल, थेङी, बङोपल, कालीबंगा (हनुमानगढ़) आदि प्रमुख है।
🔶 अनूपगढ़ – 16 वीं और 17 वीं शताब्दियों में अनूपगढ़ का नाम चूंडेर था।
– 1678 ई. में यहाँ एक नवीन दुर्ग का निर्माण करवाया गया। जिसका नाम बीकानेर महाराजा अनूपसिंह के नाम पर अनूपगढ़ रखा गया।
🔷 सूरतगढ़ – यह एक प्राचीन कस्बा है जो श्रीगंगानगर से 78 किमी. दूर दक्षिण में स्थित है। बीकानेर नरेश सूरतसिंह के नाम पर कस्बे का नाम सूरतगढ़ रखा गया।
– सूरतगढ़ का पुराना नाम सोढ़ल था। सूरतगढ़ में दो आधुनिक कृषि फार्म पूर्व सोवियत संघ की सहायता से स्थापित किए गए।
– अब सूरतगढ़ में तापीय विद्युत परियोजना स्थापित हो गई है जिससे 1000 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जाती है। यहाँ राजस्थान की सर्वाधिक तापीय विद्युत उत्पादित की जाती है।
🔶 गुरुद्वारा बुढ़ा जोहङ – सिक्खों का परम धार्मिक स्थल बुढ़ा जोहङ गुरुद्वारा गंगानगर जिला मुख्यालय से 85 किमी. दूर स्थित है। बुढ़ा जोहङ गुरुद्वारे का निर्माण संत फतहसिंह ने करवाया था। इस गुरुद्वारे में प्रतिवर्ष अगस्त माह की अमावस्या को मेला भरता है।
– स्वर्ण मंदिर के बाद यह सिक्खों का सबसे बङा गुरुद्वारा है।
🔷 डाडा पम्पाराम का डेरा – यह पावन स्थल विजयनगर (गंगानगर) कस्बे में स्थित है। पम्पराम जी की समाधि स्थल पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में सात दिवसीय मेला लगता है।
🔶 शेख फरीद – ये सूफी संत अपनी दिव्य आत्मा और आध्यात्मिक उत्थान के लिए जााना जाता है। शेख फरीद को थेङी वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है।
धौलपुर (Rajasthan Map)
🔷 धौलपुरी – हारमोनियक वादक, वर्ष 2006 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
🔶 धौलपुर पाॅवर परियोजना – गैस आपूर्ति हेतु ओएनजीसी द्वारा स्थापित।
🔷 धौलपुर – यहाँ स्पेशल इकाॅनोमिक जोन स्थापित करने की घोषणा की गई है।
🔶 शोभाबाई – 2002 के नगर पालिका उपचुनावों में विजेता प्रथम किन्नर।
🔷 तहरीक-ए-मिल्लत – कोटा से प्रकाशित विवादित पुस्तक, धौलपुर जिला प्रशासन द्वारा इस पर रोक लगा दी गई।
🔶 तोमर वंशी राजा ध्वलदेव ने धौलपुर बसाया था।
🔷 धौलपुर राजस्थान के पूर्वी भाग में अंतरर्राज्यीय सीमा पर स्थित जिला है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश राज्यों के साथ यह सीमाएँ बनाता है। क्षेत्रफल के आधार पर यह राजस्थान का दूसरा सबसे छोटा जिला है। इसका क्षेत्रफल 3034 वर्ग किमी. है।
🔶 प्रमुख नदियाँ – चम्बल, गंभीरी व पार्वती नदी।
🔷 राजस्थान का एकमात्र जिला जो कभी हर्षवर्द्धन द्वारा शासित था – धौलपुर।
🔶 धरमत (घरमट) का युद्ध – यह युद्ध धौलपुर से 5 किमी. पूर्व में 1658 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब तथा उसके भाई दारा शिकोह के बीच लङा गया। इस युद्ध में दारा शिकोह की हार हुई।
🔷 नमक की संधि – यह संधि 1876 ई. में अंग्रेजों व धौलपुर रियासत के मध्य हुई।
🔶 मुगल सम्राट बाबर ने तुर्की भाषा में रचित अपनी आत्मकथा बाबरनामा (तुजुक-ए-बाबरी) में धौलपुर की सुंदरता का बखान किया है।
🔷 मचकुंड – धौलपुर से 5 किमी. दूर पहाङी की तलहटी में स्थित मुचुकुंद तीर्थ स्थल हिन्दूओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इसे तीर्थस्थलों का भाँजा भी कहा जाता है।
डूँगरपुर (Rajasthan Map)
🔶 बरबूदानियां – जनजाति क्षेत्र का पहला व देश का तीसरा महिला सहकारी मिनी बैंक स्थापित किया गया है।
🔷 डूंगर का अर्थ होता है पहाङ। डूंगरपुर शहर के पास डूंगर होने के कारण यह डूंगरपुर कहलाया।
🔶 डूंगरपुर को 1358 ई. में महारावल डूंगर सिंह ने बसाया था।
🔷 डूंगरपुर के चारों ओर स्थित जिले – उदयपुर, बांसवाङा तथा डूंगरपुर के दक्षिण पश्चिम में गुजरात राज्य की सीमा भी लगती है।
🔶 प्रमुख नदियां – माही व सोम (बारहमासी)। माही डूंगरपुर और बांसवाङा की सीमा पर बहती है। माही नदी का उद्गम स्थल महू (मध्यप्रदेश) का क्षेत्र है।
– माही नदी – डूंगरपुर, बाँसवाङा में बहने के बाद यह नदी गुजरात में प्रवेश करती है और अंत में खंभात की खाङी में गिर जाती है।
– सोम नदी – उदयपुर जिले के दक्षिण पश्चिम से निकलकर बांसवाङा जिले में प्रवेश करती है तथा बांसवाङा के निकट माही में मिल जाती है।
🔷 वागङ – डूंगरपुर तथ बांसवाङा का उपनाम वागङ है। वागङ की पुरानी राजधानी बङौदा (बङौदा डूंगरपुर जिले का एक गांव है) थी। गुजराती में वागङ का अर्थ जंगल होता है।
🔶 गैबसागर तालाब के निर्माता – महारावल गोपाल।
🔷 एडवर्ड समुद्र नामक तालाब डूंगरपुर के निकट स्थित है।
🔶 एक थम्बिया महल – गैब सागर के तट पर।
🔷 गवरी बाई का मंदिर – गवरी बाई को वागङ की मीरां कहते हैं। गवरी बाई प्रसिद्ध पंडवानी गायिका थी। पंडवानी गायन शैली छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध गायन शैली है। वर्तमान में तीजनबाई प्रसिद्ध पंडवानी गायिका है।
🔶 डंडा मंदिर (मामा-भानजा का मंदिर) – ये दोनों मंदिर भारतीय सभ्यता व संस्कृति की श्रेष्ठता का उद्घोष करते हैं। डूंगरपुर के मुख्य बाजार में स्थित डंडा मंदिर स्वामी नेमिनाथ जी का मंदिर है।
🔷 पूंजपुर – डूंगरपुर से 37 किमी. दक्षिण पूर्व में स्थित यह कस्बा रावल पूंजा का बसाया हुआ था।
🔶 गलियाकोट – डूंगरपुर से 37 मील दूर स्थित माही नदी के तट पर पुराने गढ़ के खण्डहर विद्यमान है। गलियाकोट दाऊदी बोहरा मुसलमानों का तीर्थ स्थान है क्योंकि यहाँ फखरूद्दीन नामक पीर की दरगाह है। यहाँ का रमकङा उद्योग विख्यात है।
🔷 वसुंधरा का मंदिर – यह मंदिर डूंगरपुर से 28 मील दूर वसुंधरा गांव में स्थित है। वसुंधरा मंदिर में प्राप्त शिलालेख डूंगरपुर जिले में प्राप्त शिलालेखों में सबसे प्राचीन हैं।
🔶 बेणेश्वर मेला – बेणेश्वर में लगने वाला बेणेश्वर मेला आदिवासियों का कुंभ कहलाता है। फाल्गुन माह में शिवरात्रि के अवसर पर यहां पन्द्रह दिन तक बङा मेला लगता है। बेणेश्वर डूंगरपुर शहर से 65 किमी. दूर है।
🔷 बोरेश्वर – सोलज गांव के निकट बोरेश्वर महादेव का मंदिर है। प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है।
🔶 नानाभाई व कालीबाई बाग – त्याग-तपस्या और बलिदान की गाथा से युक्त नानाभाई खांट व कालीबाई के नाम पर बना यह उद्यान स्वाधीनता हेतु बलिदान का साक्षी है। अंग्रेजों ने जब पाठशाला बंद कराओ अभियान चलाया, तब नानाभाई खांट ने अपनी पाठशाला बंद नहीं की तो नानाभाई, उनकी शिष्या कालीबाई व शिक्षक सेंगा को गोलियों से भून दिया गया।
🔷 गलालेंग गाथा – गलाल सिंह राजपूत लाल सिंह का बङा पुत्र था, जो आसलगढ़ का शासक था। कडाणा की लङाई में गलाल सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। कालू कडाणियां की बेटी फूल उसकी वीरता पर मंत्रमुग्ध होकर सती हो गई। फूल के आग्रह पर ही जोगियों ने गलालेंग की गाथा को गीतबद्ध किया।
🔶 गवरी – वागङ क्षेत्र में आदिवासियों (भीलों) द्वारा उत्सवों पर किया जाने वाला मुख्य नृत्य गवरी है। यह नृत्य वर्षा ऋतु में किया जाता है।
दौसा (Rajasthan Map)
🔷 नीमना राइसेला – यहां स्थित खानों से लौह अयस्क निकाला जाता है।
🔶 आभानेरी – 8-9 वीं शताब्दी की कलात्मक मूर्तियों के लिए विख्यात है।
🔷 15.8.1992 को सवाई माधोपुर की महुआ तहसील को दौसा में शामिल किया गया।
🔶 दौसा देवगिरि पहाङी की तलहटी में बसा हुआ है जिसके नाम पर यह नगर देवास, धौसा तथा दौसा कहलाया। दौसा राजस्थान के ढूंढाङ क्षेत्र का हिस्सा है। भारत गजट – 2006 के अनुसार यह वर्तमान में राजस्थान का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे छोटा जिला है।
🔷 दौसा की प्रमुख नदियाँ – बाणगंगा, मोरेल तथा सनवान।
🔶 दौसा पर चौहानों, बङगुजरों तथा कछवाहों का शासन रहा है।
🔷 दौसा का दुर्ग – 1000 वर्ष पुराना यह दुर्ग बङगुजरों ने बनवाया था। बङगुजर स्वयं को राम के पुत्र लव से अपनी उत्पत्ति मानते हैं।
🔶 गेटोलाव – गेटोलाव सुंदरदास जी की दीक्षा स्थली है। यहाँ दादूदयाल जी का प्रसिद्ध मंदिर भी है।
🔷 मेहंदीपुर बालाजी – जयपुर-आगरा मार्ग पर महुआ के पास यह सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं।
🔶 मस्तहाल बालाजी का मंदिर – यह मंदिर भंडारेज बावङी के पास स्थित है।
🔷 बणजारे की छतरी – लालसोट (दौसा) में स्थित यह छःस्तम्भों पर बनी हुई छतरी है।
🔶 आलूदर का बुबानियाँ कुंड – दौसा के पास ऐतिहासिक आलूदा गाँव का यह कुंड स्थापत्य कला की दृष्टि से दर्शनीय है।
🔷 कुण्डामात मंदिर, गुढ़ाकटला व रेडिया बालाजी – ये दौसा के दर्शनीय स्थल हैं।
🔶 लवाण – दौसा से 14 किमी. दूर स्थित लवाण महत्त्वपूर्ण एवं दर्शनीय स्थल है। आमेर के कछवाहा राजाओं ने इसे सौलहवीं शताब्दी में बसाया था। विख्यात लोकतीर्थ नयी का नाथ लवाण के पास ही स्थित है।
🔷 हेला ख्याल – लालसोट में गणगौर पर्व पर हेला ख्याल गायकी दंगल होते हैं। हेला ख्याल कार्यक्रम करौली, सवाई माधोपुर क्षेत्र के तुर्रा कलंगी ख्याल गायकी की तर्ज पर चलता है। तुर्रा कलंगी से पहले हेला ख्याल गायकी को कन्हैया कहा जाता था।
चूरू (Rajasthan Map)
🔷 देवेन्द्र झाझङिया – पैरा ओलम्पिक स्पर्धा की जेवेलियन थ्रो प्रतिस्पर्धा में विश्व रिकाॅर्ड कायम किया। पहली बार भारत को स्वर्ण पदक प्रदान करवाया। इन्हें वर्ष 2005 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
🔶 कन्हैयालाल सेठिया – 2004 में पद्म श्री से सम्मानित किए गए।
🔷 डाॅ. मीना शर्मा – वर्ष 2006 में स्टिंग ऑपरेशन के तहत भू्रण हत्या में लिप्त प्रदेशभर में डाॅक्टरों का पर्दाफाश किया।
🔶 महिला शिक्षण विहार – बजट 2006-07 में निजी सहभागिता के जरिये इसकी स्थापना की जा रही है।
🔷 चूरू की स्थापना 1620 में चूहरू (चूहङ) नामक जाट ने की थी। चूरू जिले के साथ लगने वाली अन्य जिलों की सीमाएँ – हनुमानगढ़, झुन्झुनूँ, सीकर, नागौर व बीकानेर।
चित्तौङगढ़ (Rajasthan Map)
🔶 चंदेरिया – यहाँ एशिया का सबसे बङा सुपर जिंक सल्फेट संयंत्र ब्रिटेन की सहायता से स्थापित हुआ।
🔷 रावतभाटा – यहाँ भारी जल संयंत्र स्थित है। इसे राजस्थान की अणु नगरी कहा जाता है।
🔶 थेवाकला – सोने का सूक्ष्म चित्रांकन किया जाता है। इसके लिए प्रतापगढ़ विख्यात है।
🔷 अकोला – दाबू प्रिंट के लिए विख्यात है। काले, लाल तथा हरे रंगों का प्रयोग किया जाता है।
🔶 चितौङगढ़ का पुराना नाम चित्रकोट था। मौर्य राजा चित्रांग ने अपने नाम पर चित्रकोट नामक दुर्ग का निर्माण किया जो बाद में चित्तौङगढ़ कहलाया।
🔷 चितौङगढ़ की प्रमुख नदियां – बनास, बेङच, गम्भीरी, चम्बल, वागन, ब्राह्मणी, गुंजाल, जाखम व शेवना हैं।
🔶 बप्पा रावल – चितौङगढ़ का शासक, जिसने सोने के सिक्के चलाये थे। बप्पा रावल को काल भोज के नाम से भी जाना जाता है।
🔷 पिछोला झील – इस झील का निर्माण महाराजा लाखा के समय करवाया गया।
🔶 महाराणा कुम्भा की माता का नाम सौभाग्यवती देवी था। कुम्भा की हत्या 1468 ई. में उसके बेटे उदा ने कर दी थी। कुम्भा की दादी का नाम हंसा बाई था। मेवाङ के शासकों में कुम्भा सबसे ज्यादा उपाधि – धारक शासक था, उसे महाराजाधिराज, रायराज, राणेराज, राणेराय, महाराणा, राजगुरू, दानगुरू, शैलगुरू, परमगुरू, चापगुरू, टोडरमल, अभिनवभरताचार्य और हिन्दुसुरत्राण आदि नामों से जाना जाता है।
🔷 महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) – राणा सांगा के पिता का नाम महाराणा रायमल था।
🔶 खातोली का युद्ध – महाराणा सांगा व इब्राहिम लोदी के मध्य 1517 ई. में हुआ। खातोली हाङौती की सीमा पर स्थित एक गांव है, जहां यह युद्ध हुआ।
🔷 मीरां का विवाह – सांगा के बङे लङके भोजराज के साथ हुआ। मीरां मेङता के राव बीरम देव के छोटे भाई रतनसिंह की पुत्री थी। मीरा के दादा का नाम राव दूदा था।
🔶 खानवा का युद्ध – खानवा का युद्ध बाबर तथा राणा सांगा के मध्य 17 मार्च, 1827 को शुरू हुआ। इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ। विजयी बाबर ने गाजी (अर्थात् हिन्दुओं पर गाज गिराने वाले) की उपाधि धारण की। खानवा के युद्ध में राणा सांगा के शरीर पर 80 से अधिक घाव लगे। अतः कर्नल टाॅड ने राणा सांगा को सैनिक भग्नावशेष के नाम से पुकारा। बाद में राणा सांगा को उसके सेनापति ने विष देकर मार दिया था।
🔷 राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी, 1528 ई. को कालपी नामक स्थान पर हुई।
🔶 पन्नाधाय राजकुमार उदयसिंह की धाय माँ थी। पन्ना ने अपने पुत्र को बनवीर के हाथों मरवाकर राजकुमार उदयसिंह को बचाया।
🔷 रानी कर्मवती का जौहर – इतिहास में यह दूसरे साके के नाम से जाना जाता है।
🔶 जयमल और पत्ता – उदयसिंह के बहादुर सेनापति, इन्होंने चित्तौङ की रक्षा में अपना बलिदान दिया। इनकी वीरता से मंत्रमुग्ध होकर अकबर ने आगरा में हाथियों पर चढ़ी हुई उनकी मूर्ति बनवाकर किले के द्वारा पर खङी करवाई। जयमल और पत्ता का बलिदान इतिहास में तीसरा शाका कहलाता है।
🔷 चित्तौङगढ़ जिले के प्रमुख स्थल – चित्तौङगढ़ दुर्ग का दूसरा नाम चित्र दुर्ग है। इस दुर्ग में तुलजा माता का मंदिर, भामाशाह की हवेली तथा शृंगार चंवरी के मंदिर बने हुए हैं। कुंभा के महल भी इसी दुर्ग के एक भाग में है। कुंभा द्वारा निर्मित विजय स्तंभ 9 मंजिला है। कुंभा ने यह दुर्ग मालवा के सुलतान महमूद शाह खिलजी को परास्त करने की स्मृति में बनवाया था। इसे भारतीय मूर्तिकला का शब्दकोष कहा जाता है। चित्तौङगढ़ दुर्ग में जैन कीर्ति स्तम्भ स्थित है जो 11-12 वीं सदी में जीजा ने बनवाया था।
🔶 सतबीस देवरी – यह 11 वीं शताब्दी में बना एक जैन मंदिर है, जिसमें 27 देवरे होने के कारण सतबीस देवरी कहलाता है। मंदिर के अंदर छत व खम्भों पर की गई खुदाई देलवाङा जैन मंदिर (माउण्ट आबू) से मिलती जुलती है। यह मंदिर चित्तौङगढ़ में स्थित है।
🔷 मातृकुण्डिया – राजस्थान के हरिद्वार के रूप में प्रसिद्ध है। मातृकुण्डियां चित्तौङ से 60 किमी. उत्तर-पूर्व मे स्थित है।
🔶 बस्सी अभयारण्य – चित्तौङगढ़ शहर से 22 किमी. दूर स्थित इस वन क्षेत्र को सरकार ने 1988 ई. में अभयारण्य घोषित कर दिया। यह अभयारण्य बाघों के लिए प्रसिद्ध है। इस अभयारण्य में 12 गांव बसे हुए हैं, जिनमें भील और मीणा जाति के लोग निवास करते हैं।
🔷 भैंसरोङगढ़ – चित्तौङ से 110 किमी. दूर ब्राह्मणी एवं चम्बल नदियों के संगम पर बसा हुआ है। कर्नल टाॅड के अनुसार भैंसरोङगढ़ का नाम भैंसा नाम के व्यापारी और रोङा नामक बंजारे के नाम पर पङा। यह एक जलदुर्ग है जिसे राजस्थान का वैल्लोर कहा जाता है।
🔶 चूलिया – चूलिया गांव में 60 फीट की ऊँचाई से आकर पानी का झरना गिरता है, उसे चूलिया जल प्रपात कहते है। यह जल प्रपात चम्बल नदी पर स्थित है।
🔷 मेनाल – चित्तौङगढ़ से 142 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित इस स्थल पर मेनाल का झरना प्रसिद्ध है।
बाराँ
🔶 छीपाबङौद – सरकार द्वारा यहाँ कृषि उत्पादों का उचित मूल्य दिलवाने हेतु विशेष मंडियों की स्थापना की गई है।
🔷 छबङा बिजली परियोजना – इसके पूरा होने पर यह राजस्थान का तीसरा सबसे बङा बिजली घर होगा।
🔶 शेरगढ़ अभयारण्य – परवन नदी के तट पर स्थित अभयारण्य। हाल ही में इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने हेतु एक योजना का काम शुरू किया गया है।
भरतपुर
🔷 केवलादेव नेशनल पार्क – स्वर्ण त्रिकोण पर स्थित भरतपुर का वन्य जीव अभयारण्य।
🔶 पाँचना बाँध – करौली जिले के पाँचना बाँध को घना पक्षी विहार को पानी देने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है।
🔷 इंटरप्रेटेशन सेंटर – घना पक्षी विहार में निर्माणाधीन सेंटर। इसमें वन्य जीवों से संबंधित जानकारियों को एकत्रित किया जायेगा।
🔶ऑपरेशन राजहंस – घना पक्षी विहार में लुप्त हो रहे सफेद सारसों को बचाने के लिए चलाया गया अभियान।
🔷 गंभीर सिंह – करोङों वर्षों की गणना करने वाले एक पृष्ठीय कैलेंडर के जन्मदाता। इस हेतु इनका नाम लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में शामिल किया गया है।
🔶 भरतपुर नगर की स्थापना ईक्ष्वाकुवंशी शासक दशरथ के पुत्र भरत के नाम पर हुई।
🔷 भरतपुर की सीमाएँ उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश से लगी हुई हैं।
🔶 भरतपुर राजवंश के कुलदेवता – राम के भाई लक्ष्मण।
🔷 लौहागढ़ दुर्ग – यह एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसे आज तक किसी भी शत्रु ने नहीं भेदा है। इसका निर्माण 1733 ई. में महाराजा सूरजमल ने करवाया था। लौहागढ़ मिट्टी से बना हुआ दुर्ग है। मैदानी दुर्गों की श्रेणी में यह विश्व का पहला दुर्ग है। इसका निर्माण भारतीय दुर्ग निर्माण पद्धति पर किया गया है।
🔶 सूरजमल – भरतपुर के जाट राजा। अन्य नाम – जाट अफलातून व जाट जाति का प्लूटो।
🔷 भरतपुर की मुख्य नदियाँ – बाणगंगा, गंभीर, काकूंड, पार्वती व रूपारेल।
🔶 भरतपुर जिले में चार प्रमुख झीलें हैं – मोती झील, केवलादेव झील, मादल झील तथा झील का बाङा।
🔷 नोह – भरतपुर से 6 किमी. दूर भरतपुर में खुदाई में विभिन्न कालों की 5 सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ ईसा से 1200 वर्ष पूर्व के अवशेष भी मिले हैं।
🔶 वसुंधरा की मूर्ति भरतपुर जिले के किस स्थल पर खुदाई से प्राप्त हुई है – नोह से।
🔷 जाख बाबा की मूर्ति – यह मूर्ति नोह में खुदाई से प्राप्त हुई है।
🔶 खानवा गाँव भरतपुर की रूपवास तहसील में स्थित है।
🔷 राष्ट्रीय केवलादेव उद्यान – इसे घाना पक्षी विहार के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ शीतकाल में यूरोपिय, अफगानिस्तान, चीन, मंगोलिया तथा रूस आदि देशों से पक्षी आते हैं। 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इस उद्यान को यूनेस्को अपनी विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर चुका है। यह ट्यरिस्टों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। दुर्लभ साइबेरियाई सारस भी यहाँ प्रतिवर्ष सर्दियों में आते हैं। मानसून में प्रजनन करने वाले पक्षियों की यह एशिया की सबसे बङी प्रजनन स्थली है।
🔶 अजान बाँध – भरतपुर से 5 किमी दूर इस बाँध का निर्माण महाराजा सूरजमल ने लगभग अढ़ाई सौ वर्ष पूर्व करवाया था। गर्मियों में अजान बाँध से केवलादेव अभयारण्य को जलापूर्ति की जाती है।
🔷 उषा मंदिर (बयाना) – बयाना में गुर्जर प्रतिहार राजा लक्ष्मणसेन की पत्नी चित्रलेखा (चित्रांगदा) द्वारा 956 ई. में यह मंदिर बनवाया गया था। इल्तुतमिश ने इसे 1224 ई. में मस्जिद में बदल दिया।
🔶 खानवा – खानवा गंभीरी नदी के तट पर स्थित है जो रणस्थली के रूप में विख्यात है। यहाँ बाबर व राणा साँगा के मध्य 1527 ई. में खानवा का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी। गाजी का अर्थ बिजली गिराने वाला होता है। राजस्थान की सबसे बङी रणस्थली हल्दीघाटी था।
🔷 84 खंभा मंदिर – कामां से एक अत्यंत प्राचीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो 84 खंभा मंदिर कहलाता है। इस मंदिर के समस्त चैरासी खंभों पर सुंदर कलाकारों देखी जा सकती है।
🔶 भरतपुर अँचल की लोककलाएँ – रासलीला, नौटंकी, स्वाँग, हुरंगें, रामलीला, बमरसिया, जिकङी, भटनी, धोला, ब्याहुला, लांगूरिया व भगत विधाएँ हैं जिनमें ख्यालों की प्रधानता होती है।
🔷 लट्ठमार होली – यह ब्रज क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
🔶 मेवाती संस्कृति – अलवर, भरतपुर के मेवात क्षेत्र में यह संस्कृति फैली हुई है। इस क्षेत्र की भाषा मेवाती है। साहित्यिक दृष्टि से मध्यकालीन मेवात संपन्न था।
🔷 जसवंत पशु मेला – भरतपुर में यह मेला क्वार (आसोज) सूदी पंचम् से पूर्णिमा के बीच भरता है।
🔶 नौटंकी – नौटंकी लोकनाट्य का भरतपुर के ग्रामीण इलाकों में अत्यधिक महत्त्व है। विवाह, पुत्र उत्पत्ति, मेलों, त्योहारों एवं सामाजिक उत्सवों पर नौटंकी का आयोजन करवाना गौरव की बात समझा जाता है।
🔷 रासलीला – यह श्रीकृष्ण की लीलाओं का मंचन करने वाली भरतपुर क्षेत्र की दूसरी महत्त्वपूर्ण लोकनाट्य विद्या है। इस विधा में समस्त नवरसों का समावेश होता है। रासलीला का मुख्य विषय राधा और कृष्ण तथा ब्रज ललनाओं की प्रेम और प्रीति की लीलाओं का वर्णन है।
🔶 स्वाँग – यह विधा हास्यरस प्रधान होती है जिसमें विचित्र वेशभूषाओं में कलाकार हँसी-ठहाकों के जरिये लोगों का मनोरंजन करते हैं।
प्रतापगढ़
🔷 प्रतापगढ़ 33 वाँ जिला – राज्य सरकार ने गणतंत्र दिवस, 2008 के उपलक्ष्य में अजमेर में प्रतापगढ़ को 33 वाँ जिला घोषित किया है। इस प्रकार 26 जनवरी 2008 से प्रतापगढ़ 33 वें जिले के रूप में अस्तित्व में आ गया। उदयपुर संभाग में 6 जिले (उदयपुर, चित्तौङगढ़, राजसमंद, बाँसवाङा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़) हो गये।
🔶 प्रतापगढ़ जिले में चार उपखण्ड (प्रतापगढ़, अरनोद, छोटी सादङी व धरियावाद) हैं।
🔷 इसमें पाँच तहसील (प्रतापगढ़, अरनोद, पीपलखूंट, छोटी सादङी व धरियावाद) बनाई गई है।
🔶 सीतामाता अभयारण्य –
– चीतलों की मातृभूमि वाला अभयारण्य।
– उङन गिलहरी के लिए प्रसिद्ध अभयारण्य।
– यहाँ सागवान के वृक्ष भी पाये जाते हैं।
🔷 प्रतापगढ़ – अपनी प्राकृतिक दृश्यावली व सुनारों की थेवाकला के लिए राजस्थान में जाना जाता है।
– थेवा कला शासक सामंत सिंह के समय में फली-फूली।
🔶 थेवाकला – प्रतापगढ़ की इस कला में शीशे पर सोना मंढ़कर सुन्दर कलाकृतियां तैयार की जाती है।
– प्रतापगढ़ के स्वर्णकार थेवाकला के लिए विख्यात हैं। प्रतापगढ़ के पांच शिल्पकारों को थेवाकला क्षेत्र में राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है। जगदीश सोनी इनमें से एक एवं प्रमुख है।
– यूनेस्को द्वारा भी राजसोनी परिवार के विष्णु सोनी को उत्कृष्ट थेवा कार्य हेतु पुरस्कृति किया जा चुका है।
🔷 अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य –
– प्रतापगढ़ का दूसरा नाम राधानगरी है।
– प्रतापगढ़ का निकटतम रेलवे स्टेशन मध्यप्रदेश का मंदसौर है जो प्रतापगढ़ से 32 किमी. दूर है।
– 200 वर्ष पुराना मांजी साहिबा का, किला प्रतापगढ़ में स्थित है।
– गोतमेश्वर जी का सुप्रसिद्ध मंदिर अरनोद से 3 किमी. दूर स्थित है गोतमेश्वर जी गौतम ऋषि की तपोस्थली है।
– गोतमेश्वर जी मंदिर में 515 ई. का एक शिलालेख है।
– अन्य दर्शनीय स्थल – बाणमाता मंदिर, जूना जैन मंदिर, चेतालय जैन मंदिर, 200 वर्ष पुराना वटवृक्ष, अम्बाजी मंदिर, ताराकोटा का मंदिर।
– प्रतापगढ़ रियासत के अस्तित्व में आने से पहले देवगढ़ या देवलिया मेवाङ रियासत का ठिकाना था।
– आदिवासी भील मीणों के आराध्य देव गोतमेश्वर में प्रतिवर्ष वैशाखी पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिवसीय मेला भरता है। आदिवासी इस मेेले में अपने दिवंग्त परिवार जनों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।
🔶 राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक – प्रतापगढ़ तहसील के देवगढ़ गाँव में महल देवगढ़ को राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
– आंवलेश्वर गाँव में शूंगकालीन ब्राह्मी लिपि का लेख एवं विशेष क्षेत्र आंवलेश्वर भी राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है।
🔷 प्रतापगढ़ जिले में मथुरा तालाब स्थित है।
आदिवासी प्रथाएँ
🔶 ठंडी राखी – रक्षाबंधन के बाद आने वाली राखी के त्योहार को ठंडी राखी कहते हैं।
🔷 राड – रमण – वागङ क्षेत्र में होलिका दहन के दूसरे दिन राड खेला जाता है। राड एक प्रकार का लोकनाट्य है।
– रंग-बिरंगे वस्त्रों से सजे आदिवासी होलिका दहन स्थल पर इकट्ठे होकर पहले गैर नृत्य खेलते हैं फिर अपने अस्त्र-श़स्त्र, गोफण, तलवार, ढ़ाल, कटार, लाठी से युक्त होकर राड-रमण के लिए युद्ध भूमि की ओर जाते हैं।
🔶 पितृ पूजा महोत्सव – वनवासी अपने पूर्वजों को देवता मानते है। वे दीपावली के चैदह दिन बाद आने वाली कार्तिक शुक्ला चतुदर्शी को पूर्वजों की स्मृति में पितृ पूजा महोत्सव मनाते हैं।
– कार्तिक शुक्ल चैदस का देव दीवाली, काली चैदस व वागङी बोली में हरउती चैदस भी कहते है।
🔷 सीरा, सोकली व खाखलिया – वागङ के लोग कार्तिक शुक्ल पखवाङे में अपने पूर्वजों यथा पुरुषों, स्त्रियों व बालकों की पत्थर की प्रतिमाएं गांव के बाहर वृक्षों के नीचे रखवा देते हैं।
– इन मूर्तियों को क्रमशः सीरा, सोकली व खाखलिया कहा जाता है।
🔶 काली चैदस – कार्तिक शुक्ल चैदस।
🔷 लूगङा – वागङी बोली में स्त्रियों की साङियों को लूगङा कहते हैं।
अजमेर
🔷 जल संभर परियोजना – अजमेर जिले की इस परियोजना को इंडिया टेक एक्सीलेंस पुरस्कार दिया गया है।
🔶 राष्ट्रीय धरोहर – ब्रह्मा मंदिर को घोषित किया गया है।
🔷 पंजाबी अकादमी – इसका मुख्यालय अजमेर में स्थापित किया जायेगा।
🔶 अशोक शिवानी – ऊँटों के ब्यूटिशीयन, ऊँट साजसज्जा प्रतियोगिता में तीन बार प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके हैं।
🔷 भोमोदय पेयजल परियोजना – अजमेर जिले की भावी पेयजल परियोजना।
🔶 एक कतरा खून – अजमेर निवासी जे.डी. अश्वथामा द्वारा मंचित नाटक, हाल ही में इन्हें थियेटर डोरा मेवर मूर पुरस्कार से सम्मिलित किया गया है।
🔷 हाथीपट्टा गाँव – सोने तथा ताँबे के विशाल भंडार प्राप्त हुए हैं।
🔶 अरुणा राय – इनकी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र तिलोनिया गाँव हैं।
🔷 अजमेर का पुराना नाम – अजेयमेरु। तारागढ़ व बिठली दुर्ग ऊँचे पर्वत पर स्थित होने के कारण इतिहास में आज तक अजय होने के कारण इस नगर का नाम अजेयमेरु पङा। कुछ इतिहासकार 12 वीं शताब्दी के शासक अजयराज के साथ भी अजेयमेरू को जोङते हैं।
🔶 अजमेर जिले में प्रवाहित होने वाली नदियों में बनास, खारी, साबरमती, सरस्वती, रूपनगर आदि मुख्य है।
🔷 अजमेर जिले में पुष्कर, बुढ़ा पुरस्कार सरगांव तथा करांतिया नामक प्राकृति झीलें हैं। कृत्रिम झीलों में अनासागर, फायसागर, फूल सागर, बिसाला रामसर, दिलवाङ, कालिंजर जवाजा तथा मकरेङा प्रमुख हैं।
🔶 अजमेर जिले में अनेक अधात्विक खनिजों का खनन होता है जिसमें एस्बेस्टाॅस, बेरिल व पेगमेटाइट मुख्य हैं।
🔷 अजमेर में चौहान शासक अर्णोराज द्वारा निर्मित झील आनासागर में बांडी नदी का पानी गिरता है।
🔶 तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) – वह युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के मध्य लङा गया। गौरी इस युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ।
🔷 तराइन का दूसरा युद्ध (1192 ई. ) – यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के मध्य लङा गया। पृथ्वीराज इस युद्ध में परास्त हुआ व उसकी एक आँख फोङ दी गई।
🔶 चश्मा-ए-नूर – जहाँगीर ने अजमेर में इस महल का निर्माण करवाया।
🔷 तीस वर्षीय युद्ध – यह युद्ध औरंगजेब और मेवाङ तथा मारवाङ की संयुक्त सेनाओं के बीच हुआ था। यह युद्ध अजीतसिंह को जोधपुर का राजा बनाने के लिए लङा गया था।
🔶 दौराइ का युद्ध – यह युद्ध औरंगजेब और उसके पुत्र के मध्य अजमेर में दौराइ नामक स्थान पर हुआ था। यहाँ से अकबर को राठौङ वीर दुर्गादास बचा ले गया तथा अकबर को छत्रपति शिवाजी की शरण में पहुँचा दिया।
🔷 राजकीय महाविद्यालय, अजमेर – राजस्थान का प्रथम महाविद्यालय।
🔶 दयानंद सरस्वती – इनकी मृत्यु अजमेर में हुई थी।
🔷 पंजाब शाह का उर्स – अढ़ाई दिन के झोपङे के पास लगने वाला यह उस पहले अढ़ाई दिन तक लगता था।
🔶 मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह – सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती (ख्वाजा साहब) का जन्म फारस (ईरान) में हुआ। चिश्ती के गुरु का नाम गौस-उल-आजम था। ख्वाजा साहब ने अपने धर्मोपदेश ब्रज भाषा में दिये न कि अरबी और फारसी में।
🔷 सोनीजी की नसियां – इस नसियां के दो भाग हैं। इसमें से एक नसियां जी तथा दूसरा स्वर्ण नगरी कहलाता है। सोनीजी की नसियां में स्थित लाल मंदिर में 400 किलो सोने का प्रयोग हुआ है। इसका निर्माण 1864 ई. में मूलचंद नामक सेठ ने करवाया था।
🔶 अन्नासागर – यह झील भारत के सुंदरतम स्थानों में से एक है। इस झील का निर्माण अंतिम हिन्दू नरेश पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) के दादा अर्णोराज ने करवाया।
– अर्णोराज को चौहान आनाजी के नाम से भी जाना जाता है। अर्णोराज महाराजाधिराज, परमेश्वर और परम भट्टारक महाराजाधिराज व श्रीमद् जैसी उपाधियों से सम्मानित थे।
🔷 फायसागर – अजमेर रेलवे स्टेशन से 7 किमी. दूर फायसागर झील का निर्माण 1891-92 ई. में करवाया गया। फाय नामक अंग्रेज का इस झील के निर्माण में अहम भूमिका होने के कारण फायसागर कहलाई।
🔶 मेयो काॅलेज – वायसराय गवर्नर जनरल लाॅर्ड मेयो ने इस संस्था की स्थापना 1875 ई. में की थी। यह काॅलेज राजा-महाराजाओं के पुत्रों को बदलते परिवेश के अनुसार शिक्षा-दीक्षा देने के उद्देश्य से स्थापित की गई।
🔷 सालार गाजी – आनासागर-पुष्कर मार्ग पर एक छोटी-सी पहाङी पर सालार गाजी का चिल्ला बना हुआ है। सालर गाजी साहू का पुत्र था। गाजी अपने जीवन में कभी भी अजमेर नहीं आया फिर भी अजमेर में यह चिल्ला बना हुआ है।
🔶 रूठी राणी का महल – फायसागर से दक्षिण में यह महल स्थित है। जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ जहाँगीर से रूठकर आगरा से यहाँ चली आई।
🔷 तीर्थराज पुष्कर – अजमेर से 13 किमी. दूर उत्तर-पश्चिम में नाग पहाङियाँ में नाग पहाङियों की तलहटी में स्थित पुष्कर हिन्दूओं का सबसे बङा तीर्थ स्थल है।
अलवर
🔷 नीमराणा फोर्ट – नेशनल कौंसिल ऑफ एप्लाइड इकाॅनोमिक रिसर्च काॅन्फ्रेंस का तीन दिवसीय सम्मेलन यहाँ संपन्न हुआ।
– नीमराणा को विशेष आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत मल्टीनेशनल सेंटर के तौर पर विकसित किया जायेगा।
🔶 एग्रो फूड पार्क – इसका निर्माण अलवर शहर में किया गया है।
🔷 प्रथम जल विश्वविद्यालय – अलवर में निर्माणाधीन है।
🔶 भिवाङी – राज्य का तीसरा कंटेनर डिपो स्थापित किया जायेगा।
– भिवाङी में सर्वाधिक बहुर्राष्ट्रीय कंपनियां कार्यरत है।
🔷 कम्प्यूटर विश्वविद्यालय – अलवर में स्थापित किया जायेगा।
🔶 माॅडल जिला – जमाबंदी कंप्यूटरीकरण के मामले में राज्य सरकार द्वारा घोषित जिला।
🔷 प्याज मंडी – राज्य की प्रथम प्याज मंडी अलवर जिले में स्थापित की गई है।
🔶 जेरोली – राष्ट्रीय स्तर का पहला खेल गाँव घोषित किया गया है।
🔷 सरिस्का अभयारण्य – बाधों की खोज के लिए हाल ही में चर्चित सैटेनाइट एवं कैमरा ट्रैप पद्धति के कारण चर्चित अभयारण्य।
🔶 सौरभ शेखावत – राजस्थान के प्रथम व्यक्ति जो एवरेस्ट पर चढ़े।
🔷 राजेन्द्र सिंह – वाॅटर मैन ऑफ इंडिया और जोहङे वाले बाबा के उपनाम से प्रसिद्ध।
🔶 रूपारेल नदी – इस नदी पर निर्मित लावा का बास बाँध तेज बरसात के कारण ढह गया था।
🔷 टपूकङा – प्रथम एकीकृत औद्योगिक पार्क स्थापित किया गया है।
🔶 अलवर – राजस्थान में पंचायत समितियों की सर्वाधिक संख्या इस जिले में है।
🔷 अलवर – शराब उत्पादन में राजस्थान का स्काॅडलैंड कहलाता है।
🔶 यह राजस्थान का प्रथम जिला है जिसे राष्ट्रीय राजधानी में शामिल किया गया है।
🔷 मत्स्य उत्सव – सितंबर 2006 को अलवर में मनाया गया।
🔶 अलवर के प्राचीन नाम मत्स्य देश/आलौर था।
🔷 अलवर का संस्थापक – राजा प्रताप सिंह।
🔶 मूसी रानी का छतरी (अलवर) – यह छतरी हिंदू स्थापत्य कला का अनोखा उदाहरण है।
🔷 सिलीसेढ़ – अरावली पर्वत शृंखलाओं से थिरा एक सुरम्य पर्यटन स्थल। सिलीसेढ़ अलवर से 15 किमी. दूर स्थित है।
🔶 पांडव पोल – पांडव अलवर का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ हनुमानजी का अत्यंत भव्य मंदिर बना हुआ है। पांडवों ने अज्ञातवास यहीं बिताया था, ऐसा माना जाता है। यहाँ पर भादवा शुक्ल चतुर्थी व पंचमी को बङा मेला लगता है।
🔷 भर्तृहरि – उज्जैन के राजा योगीराज भर्तृहरि ने अलवर को अपना तपस्या स्थल बताया। अलवर शहर से 35 किमी. दूर यह स्थान भर्तृहरि के नाम से विख्यात है। प्रतिवर्ष भादवा और वैशाख में भर्तृहरि में मेला भरता है।
🔶 संत लालदासजी किस क्षेत्र के प्रसिद्ध संत थे – मेवात क्षेत्र के।
🔷 ’पीली किताब’ – अलवर के अंतिम राजा तेजसिंह द्वारा वनों के सीमांकन हेतु तैयार की गई रिपोर्ट।
🔶 कांकवाङी किलो – यह किला सरिस्का अभयारण्य में स्थित है। यहाँ मुगल शासक औरंगजेब ने अपने विद्रोही भाई दारा शिकोह को कैद में रखा था।
🔷 कुल का कुंड – ’कुल’ वंश के शासकों ने नारायणपुर के निकट कुल का कुंड बनवाया था। अब यह खंडहर अवस्था में है।
बाँसवाङा
🔶 बाँसवाङा – हाल ही में इस जिले में 2 करोङ 5 लाख टन स्वर्ण अयस्क के भंडार प्राप्त हुए हैं।
🔷 आनंदपुर-भूकिया – बाँसवाङा में यहीं पर एकमात्र सोने की खोज का कार्य किया जा रहा है।
🔶 बाँस – बाँस की अधिकता के कारण इस जिले का नामकरण बाँसवाङा पङा।
🔷 यह आदिवासी बहुत जिला है।
🔶 यहाँ पर माही बजाज सागर परियोजना स्थित है।
🔷 बांसिया नामक प्रतापी भील शासक ने बांसवाङा नगर बसाया था।
🔶 बांसवाङा के चारों ओर स्थित जिले – उदयपुर, चित्तौङगढ़, डूंगरपुर तथा मध्यप्रदेश राज्य के रतलाम और झाबुआ जिले। गुजरात राज्य के पंचमहल जिले को भी बांसवाङा जिला छुता है।
बीकानेर
🔷 विजय शंकर व्यास – वर्ष 2006 में पद्म भूषण से सम्मानित हुए।
🔶 अजीज भुट्टा – वर्ष 2006 में उदयन शर्मा स्मृति राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
🔷 अभिजीत सांवत – वर्ष 2005 में प्रथम इंडियन आयडन चुने गए।
🔶 बरसिंगसर – यहाँ लिग्नाइट आधारित पाॅवर प्रोजेक्ट संयंत्र स्थापित किया गया है।
🔷 रानेरी गाँव – निजो कंपनी मरुधर पाॅवर प्रा. लि. द्वारा लिग्नाइट आधारित देश में निजी क्षेत्र का प्रथम बिजली उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया है।
🔶 पहला वायदा बाजार – बीकानेर में स्थापित किया गया है।
🔷 महाजन रेंज – यहाँ दुनिया का सबसे बङा संयुक्त शस्त्र प्रशिक्षण केन्द्र बनाया गया है।
🔶 गोपाल खन्ना – ह्वाइट हाऊस के वित्त अधिकारी नियुक्त किए गए है।
🔷 बीकानेर – यहाँ चैथा फूड पार्क स्थापित करने की घोषण की गई है।
🔶 ओ. पी. जांगिङ – इनके द्वारा बीकानेर में पहला कोशिका लाइन कल्चर स्थापित किया जा रहा है।
🔷 डोडाथोरा – लघु पाषाणकालीन युग की पुरातात्त्विक सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं।
🔶 बीकानेर – यहाँ राजस्थान की सबसे बङी जेल का निर्माण किया जा रहा है।
🔷 बीकानेर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। पाकिस्तान के साथ बीकानेर की सीमा लगती है। बाङमेर, जैसलमेर (सर्वाधिक लम्बी सीमा), बीकानेर (सबसे कम सीमा) तथा गंगानगर की सीमाएँ पाकिस्तान के साथ लगती हैं।
🔶 बीकानेर के चारों ओर स्थित राजस्थान के जिले – जैसलमेर, जोधपुर, नागौर, चुरू, हनुमानगढ़ तथा गंगानगर सहित कुल 6 जिले।
🔷 बीकानेर की स्थापना राव बीका ने 1438 ई. से 1504 ई. के मध्य की।
🔶 बीकानेर जिले में कोई नदी नहीं बहती, क्योंकि बीकानेर राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी अंतःजल प्रवाह क्षेत्र में स्थित है।
🔷 पीवणा – पश्चिमी राजस्थान में पाये जाने वाला एक सर्प जो सोते व्यक्ति की साँस में अपना जहर छोङ देता है जिससे आदमी मर जाता है।
🔶 बीकानेर के राजा अनूप सिंह ने समस्त भारत से मूर्तियों को खरीदकर बीकानेर में संगृहीत करवाया ताकि उन्हें मुसलमानों के हाथों तोङने से बचाया जा सके।
🔷 राव बीका ने 1485 ई. में बीकानेर की राती घाटी में एक दुर्ग बनवाया। यह दुर्ग अब खंडहर के रूप में अवस्थित है। इसे बीका का किला कहते हैं। बीकानेर शहर के भवन अधिकांशतः लाल पत्थर के बने हैं।
🔶 ऊँट पर चढ़ी देवी – अन्ता देवी बीकानेर में स्थित है।
🔷 मुराद बख्श उस्ता – प्रसिद्ध बीकानेर रियासत का सुप्रसिद्ध चित्रकार जिसने भांडाशाह जैन मंदिर की दीवारों पर स्वर्णयुक्त मीनाकारी का कलात्मक कार्य किया।
🔶 जूनागढ़ – बीकानेर शासक राय सिंह ने विक्रम संवत् 1645 में जूनागढ़ की नींव रखी तथा गढ़ बनने में पाँच वर्ष लगे। जूनागढ़ में स्थित चन्द्रमहल, फूल महल, बादल महल, तथा अनूप महल शिल्पकला, वास्तुकला एवं चित्रकला की दृष्टि से अविश्वसनीय हैं।
🔷 चौतीना किसे कहते हैं – बीकानेर क्षेत्र के वे कुएँ जिनमें एक साथ चार डोल पानी निकालने हेतु डाले जा सकते हैं।
🔶 सारण क्या है – बैल जिस ढालू रास्ते से कुएँ से पानी का डोल या चङस खींचता था, उसे पश्चिमी राजस्थान में सारण कहा जाता था। शेखावाटी में सारण को गूण कहते हैं।
🔷 पौ-छुङाना किसे कहते हैं – गर्मियों में आम आदमी को निःशुल्क जल उपलब्ध करवाने के लिए सेठ-साहूकार कुओं का पैसा स्वयं भर देते थे जिससे हर आदमी को पानी मिल सके। उस समय उसे पौ-छुङाना कहते थे।
🔶 राजस्थान राज्य अभिलेखागार – एशिया के गिने-चुने अभिलेखागारों में से एक यह अभिलेखागार बीकानेर में स्थित है।
🔷 पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय – 1954 में राज्य का प्रथम पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय बीकानेर में प्रारंभ हुआ।
🔶 कोलायत तीर्थ – यहाँ पर कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया था। कार्तिक पूर्णिमा पर कोलायत में एक मेला भरता है।
🔷 करणीमाता मंदिर – देशनोक में स्थित करणी माता बीकानेर नरेशों की पूज्य देवी है। यहाँ पर चूहों की अधिकता के कारण इसे चूहों की देवी कहते हैं। चारण लोग करणीजी के पुजारी होते हैं।
बाङमेर
🔷 मुनाबाव – इस रेलवे स्टेशन पर शुल्क मुक्त शराब की दुकान खोली गई है।
🔶 शिव – केयर्न एनर्जी लि. ने इस क्षेत्र के 11 स्थानों पर तेल की खोज करने की घोषणा की है।
🔷 लिलाला – राज्य सरकार द्वारा तेल रिफायनरी के लिए चुना गया गाँव।
🔶 बाङमेर – भारत का दूसरा रिसर्च डिजाइन सेफ्टी आर्गेनाइजेशन यहाँ स्थापित किया जायेगा।
🔷 गिरल – लिग्नाइट आधारित विद्युत तापीय संयंत्र की दूसरी इकाई का निर्माण यहाँ किया जायेगा।
🔶 मंगला-1 – बाङमेर में केयर्न एनर्जी द्वारा खोजा गया तेल भंडार।
🔷 ढाक गाँव – देश की प्रथम ओरण पंचायत की स्थापना इस गाँव मे की गई है।
🔶 सरस्वती तेल क्षेत्र – बाङमेर क्षेत्र में खोजे गये तेल क्षेत्र को यह नाम दिया गया है।
🔷 सुजलम परियोजना – बाङमेर जिले में पेयजल समस्या के निदान के लिए बनाई गई परियोजना।
🔶 बाङमेर का नाम 13 वीं शताब्दी के राजा बाहङ राव के नाम पर प्रसिद्ध है। बाङमेर क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा सबसे बङा जिला है।
🔷 बाङमेर के चारों ओर स्थित जिले – जैसलमेर, जालौर, पाली व जोधपुर।
🔶 बाङमेर की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान का थारपारकर जिला स्थित है। बाङमेर की 270 किमी. सीमा पाकिस्तान से लगती है।
🔷 छप्पन की पहाङियाँ – बाङमेर जिले में स्थित है जबकि छप्पन का मैदान बाँसवाङा, डूंगरपुर जिलों में स्थित है।
🔶 लूनी – बाङमेर की सबसे बङी नदी है। इस नदी का जल बाङमेर की पचपदरा तहसील (बालोतरा) तक मीठा तथा इसके आगे यह खारा बन जाता है क्योंकि पचपदरा की भूमि से नदी जल में नमक घुल जाता है। लूनी आगे कच्छ के रण में विलीन हो जाती है।
🔷 राव धूहङ कर्नाटक से चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लाए और बाङमेर जिले के नागाणा गाँव मे उसको स्थापित करवाया जो अब नागणेचिया माता के नाम से जानी जाती है। नागणेची माता भार्टी राजपूतों की कुलदेवी है।
🔷 किलोण दुर्ग – भीमाजी राठौङ ने सुजेर भाखरी नामक पहाङी पर यह दुर्ग बनवाया। यह अभेद्य दुर्ग है।
🔶 बालोतरा – कपङे की रंगाई-छपाई व डाई उद्योग के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध बालोतरा बाङमेर जिला मुख्यालय से 96 किमी. दूर लूनी नदी के तट पर बसा है।
🔷 चारभुजा मंदिर (बिठूजा) – बालोतरा के निकट बिठूजा गाँव में स्थित चारभुजा मंदिर 12 वीं सदी मे पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की मूर्तियाँ सुंदर व कलात्मक है।
🔶 रेगिस्तान का जल महल – बाङमेर से 65 किमी. दूर स्थित बाटाडू कुआँ को रेगिस्तान का जल महल कहते हैं। राव गुलाब सिंह ने इस अनूठे कुएँ का निर्माण करवाया था। कुएँ पर लगी भव्य मूर्तियाँ कलात्मक हैं। इस कुएँ का जल कभी नहीं सूखता है।
🔷 चौहटन – बाङमेर से 48 किमी. दूर चैहटन एक पहाङी की तलहटी में बसा है। चैहटन पहाङियों की घाटी में कपाली तीर्थ दर्शनीय है जहाँ शिवजी का कपालेश्वर मंदिर बना हुआ है। प्रत्येक सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला भरता है। इस मेले को मरु कुंभ कहा जाता है। चैहटन तहसील में अत्यधिक गोंद पैदा होने के कारण इसे गोंद की राजधानी कहा जाता है।
🔶 सिवाना – बाङमेर में परमार राजा भोज के पुत्र वीर नारायण ने सिवाना की स्थापना विक्रम संवत् 1011 में की। यहाँ एक दुर्गम जंगली दुर्ग है। शेरशाह से परास्त होने के बाद मालदेव ने सिवाना के दुर्ग में शरण ली थी।
🔷 काठ की मूर्ति का मंदिर – पचपदरा के पास नागौणा गांव में नागणेचिया माता के मंदिर में काठ की मूर्ति अत्यंत प्राचीन है। नागोणा में भादवा माह में मेला भरता है।
🔶 किराडू – बाङमेर से 33 किमी. दूर बाङमेर-मुनाबाव रेलमार्ग पर किराडू स्थित है। किराडू राजस्थान का खजुराहो कहलाता है। किराडू शिल्प व स्थापत्य कला का अद्भुत खजाना है। किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप है।
🔷 बाङमेरी प्रिंट – अजरख प्रिंट के नाम से विख्यात बाङमेरी प्रिंट बाङमेर की शान है। फैशन की दुनिया में बाङमेर प्रिंट किसी से पीछे नहीं है। बाङमेर का पेचवर्क भी प्रसिद्ध होने लगा है।
बूँदी
🔷 बूँदी – यहाँ राजस्थान की प्रथम तेल रिफायनरी चम्बल नदी के किनारे स्थापित की गई है।
🔶 गरदङा – छाजा नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर बर्ड राइड राॅक पेन्टिंग प्राप्त हुई है।
🔷 केशोरायपाटन शुगर मिल्स – हाल ही में इसे बंद करने की घोषणा की गई है।
🔶 बूँदी का नाम बूँदी के अंतिम मीणा राजा जैता के दादा बंदू के नाम पर रखा गया। बूँदी को राजस्थान की छोटी काशी कहा जाता है क्योंकि यहाँ काशी की तरह हिन्दू मंदिरों का बाहुल्य है।
🔷 बूँदी जिले से लगने वाली अन्य जिलों की सीमाएँ – टोंक, भीलवाङा, चित्तौङगढ़ व कोटा।
🔶 बावन-बयालीस – बूँदी के दक्षिणी-पूर्वी भाग का उपनाम।
भीलवाङा
🔷 टैक्सटाइल पार्क – शीघ्र ही भीलवाङा में स्थापित होने जा रहा है।
🔶 जहाजपुर – यहाँ महाभारतकालीन अवशेष प्राप्त हुए है।
🔷 ग्रीन माउंट – मेजा बाँध की पाल पर निर्मित मेजा पार्क का नाम।
🔶 नया गाँव – बिजौलिया में स्थित गाँव जहाँ 1000 वर्ष पुराने विष्णु मंदिर का पता चलता है। भूमिज शैली का यह प्रथम विष्णु मंदिर है।
टोंक
🔶 रैढ़ – प्राचीन राजस्थान का टाटानगर कहलाता है। हाल में एशिया का सबसे बङा सिक्कों का भंडार यहाँ से उत्खनित हुआ है।
🔷 ईसरदा बाँध – टोंक व सवाई माधोपुर जिले की सीमा पर बनास नदी पर बना बाँध। इससे जयपुर शहर का पेयजल आपूर्ति की जायेगी।
🔶 बीसलपुर अभयारण्य – प्रस्तावित अभयारण्य।
सवाईमाधोपुर (Rajasthan Map)
🔷 रामेश्वरम् – इस स्थान पर एक बाँध बनाकर केवलादेव घना पक्षी विहार को जल उपलब्ध करवाया जायेगा।
🔶 रणथम्भौर अभयारण्य – हाल ही में बाधों के शिकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भ्रमण के कारण चर्चित अभयारण्य।
🔷 सफारी पार्क – राज्य सरकार द्वारा रणथम्भौर अभयारण्य को सफारी पार्क बनाने की घोषणा की गई है।
🔶 नमोनारायण मीणा – स.माधोपुर जिले से निर्वाचित सांसद तथा केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री।
सिरोही
🔷 केमिलोन – गिरगिट जाति का जंतु, माउंट आबू पर्वतों में देखा गया है। इसे स्थानीय भाषा में हालाडूला या गिरङा कहा जाता है।
🔶 इको फ्रेजाइल जोन – वर्ष 2005 में माउंट आबू को राज्य का इस तरह का पहला जोन बनाया गया।
🔷 चंद्रावती – प्राचीन काल में परमार राजाओं की राजधानी, हाल ही में यहाँ से 1800 मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
🔶 सिरोही का अर्थ है – सिर काटने वाली। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र अर्बुद प्रदेश के नाम से जाना जाता था। चन्द्रावती परमारों की प्राचीन राजधानी है।
🔷 सिरोही को सहसमल ने 1425 ई. में बसाया था। सिरोही की आबूरोङ तहसील को बम्बई राज्य से स्थानांतरित कर 1956 में राजस्थान में मिला दिया गया।
🔶 विमल शाह ने 1031 ई. में आबू पर्वत पर देलवाङा में आदिनाथ का भव्य मंदिर करोङों रु. की लागत से बनवाया जिसके समान आज अन्य कोई मंदिर नहीं है।
राजसमंद (Rajasthan Map)
🔷 HIV एड्स जाँच मोबाइल सेंटर – राजसमंद में स्थापित किया गया है।
🔶 गिलूंड – हङप्पा से भी पुरानी सभ्यता के अवशेष पाए गए हैं।
🔷 मनोहर कोठारी – पूर्व विधायक, हाल ही में निधन।
🔶 राजसमंद का नाम यहाँ स्थित कृत्रिम झील राजसमुद्र के नाम पर रखा गया है। यह झील कांकरोली रेल्वे स्टेशन से 8 किमी. दूर है।
🔷 राजसमंद से लगने वाले जिले के नाम – अजमेर, पाली, उदयपुर, भीलवाङा और चित्तौङगढ़।
पाली (Rajasthan Map)
🔷 टेंपल टाउन – पाली जिले में स्थित सूर्य मंदिर व आचार्य भिक्षु समाधि स्थल को टेंपल टाउन विकसित किया जा रहा है।
🔶 मेहंदी मंडी – सोजत स्थान पर स्थापित की जा रही है।
🔷 फोरेंसिक साइंस लैब – जयपुर तथा जोधपुर के बाद शीघ्र ही पाली में स्थापित की जा रही है।
🔶 सत्याग्रह उद्यान – पूर्व सांसद औंकार सिंह लखावत द्वारा निर्मित करवाया गया उद्यान।
नागौर (Rajasthan Map)
🔷 नावां – देश का पहला आदर्श लवण फार्म स्थापित किया जायेगा।
🔶 सलावत खां – राजस्थान वफ्फ बोर्ड के अध्यक्ष।
🔷 बनवारीलाल जोशी – दिल्ली के उपराज्यपाल।
🔶 अस्तअलीखां मल्खाण – राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का वर्ष 2005 के गणेशलाल उस्ताद पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
🔷 देवकिशन पुरोहित – शिवचंद भरतिया पुरस्कार प्राप्त किया।
🔶 नागौर के प्राचीन नाम – अहिच्छत्रपुर, नागपुर तथा अनन्तगोचर। अहि, नाग तथा अनन्त ये तीनों शब्द सर्प के पर्यायवाची है।
करौली (Rajasthan Map)
🔷 कालीबाई महिला साक्षरता उन्नयन पुरस्कार – राजस्थान में पहली बार यह पुरस्कार करौली निवासी कमलाबाई को प्रदान किया गया।
🔶 राजस्थान का 32 वाँ जिला करौली है।
🔷 करौली जिला राजस्थान का वृंदावन कहलाता है। राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित है।
🔶 करौली का प्राचीन नाम – कल्याणपुरी। यह शहर भद्रावती नदी के किनारे स्थित था। इस कारण इसे पहले भद्रावती नाम से भी जाना जाता था। करौली मत्स्य प्रदेश का भाग है।
राजस्थान का भौतिक विवरण
अंगारालैण्डः-
पेंजिया का उत्तरी भाग जिससे उत्तरी अमेरिका, यूरोप और उत्तरी एशिया का निर्माण हुआ है।
गोंडवानालैण्डः-
पेंजिया का दक्षिणी भाग जिससे दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण एशिया, आॅस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका का निर्माण हुआ है।
टेथिस सागरः-
यह एक भूसन्नति है जो अंगारालैण्ड व गोंडवानालैण्ड के मध्य स्थित है।
नोटः- राजस्थान का निर्माणः-
- अरावली व हाङौती भारत के प्रायद्वीप पठार का हिस्सा है जबकि मरूस्थल व मैदानी भाग भारत के उत्तरी विशाल मैदान का हिस्सा है।
राजस्थान: स्थिति एवं विस्तार
(अ) राजस्थान की स्थितिः-
- राजस्थान की स्थिति अक्षांश व देशान्तर के अनुसार- उत्तर-पूर्व
- ⋅राजस्थान की स्थिति भारत के अनुसार- उत्तर-पश्चिम
राजस्थान की अक्षांशीय स्थितिः-
अक्षांश- 230 03’ NL से 300 12’ NL
स्थान- बोरकुण्डा कोणा गाँव
जिला- बाँसवाङा श्रीगंगानगर
दूरी- दक्षिण 826 कि मी. उत्तर 230 03’ NL
नोटः- 1. 70 09’ अक्षांशों में राजस्थान का विस्तार है।
2. राजस्थान से निम्न जिलों से होकर गुजरती हैः-
21 जून
- राजस्थान और उत्तरी गौलार्द्ध का सबसे बङा दिन कर्क संक्रांति
- 2015 से अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस का दर्जा प्राप्त
राजस्थान की देशान्तरीय स्थितिः-
देशान्तर 69030’ EL से 78017’ EL
स्थान कटरा से सिलाना
जिला जैसलमेर से धौलपुर
दूरी पश्चिम से 869 कि मी. पूर्व
नोटः- 1. 8047- देशान्तरों में राजस्थान का विस्तार
2. मध्य गाँवः- स्थान- लापोलाई
सैटेलाइट सर्वे के अनुसार राजस्थान का मध्य गाँव गगराना को माना है।
3. देशान्तर रेखाओं को ’समय एवं तिथि रेखा’ कहा जाता है।
10 देशान्तर – 4 मिनट
1’ देशान्तर – 4 सैकेण्ड
4. राजस्थान के पूर्व (धौलपुर) व पश्चिम (जैसलमेर) में समय का अन्तराल – 35 मिनट और 8 सैकेण्ड
राजस्थान का विस्तार
(अ) राजस्थान का क्षेत्रफल
नोटः- देश के कुल क्षेत्रफल में राजस्थान का योगदान- 10.41 प्रतिशत
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का स्थान- प्रथम
नोटः-1. जैसलमेर जिला राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 11.22 प्रतिशत है।
2. 10 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल वाला एकमात्र जिला- जैसलमेर
3. धौलपुर जिला राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 0.89 प्रतिशत है।
4. राजस्थान का सबसे बङा जिला (जैसलमेर) सबसे छोटे जिले (धौलपुर) से 12.66 गुना बङा है।
- राजस्थान विश्व के कुल क्षेत्रफल का 0.25 प्रतिशत है (भारत- 2.42 प्रतिशत)
प्रमुख देश राजस्थान
जर्मनी बराबर
जापान बराबर
ब्रिटेन 2 गुना
श्रीलंका 5 गुना
इजराइल 17 गुना
राजस्थान की आकृतिः-
- रोमबस – T.H.
- विषमकोणीय चतुर्भुज
- पंतगाकार
राजस्थान की सीमा
नाम- सर सिरील रेड क्लिफ रेखा
निर्धारण तिथि- 17 अगस्त 1947
शुरूआत- हिन्दूमलकोट
अंत- शाहगढ़ (बाङमेर)
राजस्थान की कुल सीमा का 18 प्रतिशत है।
पाकिस्तान प्रान्त/राज्य – 2 (पंजाब व सिन्ध)
नोटः- श्रीगंगानगर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर सबसे निकटतम जिला मुख्यालय है। बीकानेर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा पर सर्वाधिक दूर जिला मुख्यालय है। धौलपुर सीमा रेखा से सर्वाधिक दूर जिला मुख्यालय है।
अन्तर्राज्यीय सीमाः-
सीमा- 4850 किमी.
पङौसी राज्य- 5
राजस्थान के पडौसी राज्य व जिले की स्थिति :
नोटः- 1. राजस्थान के वे जिले जो दो राज्यों के साथ सीमा बनाते है:-
हनुमानगढ़ – पंजाब + हरियाणा
भरतपुर – हरियाणा + उत्तरप्रदेश
धौलपुर – उत्तरप्रदेश + मध्यप्रदेश
बाँसवाङा – मध्यप्रदेश + गुजरात
2. कोटा व चित्तौङगढ़ः- राजस्थान के वे जिले है जो एक राज्य मध्यप्रदेश से दो बार सीमा बनाते है।
3. कोटा- राजस्थान का वह जिला है जो राज्य के साथ दो बार सीमा बनाता है व अविखण्डित है।
4. चित्तौङगढ़- राजस्थान का वह जिला है जो राज्य के साथ दो बार सीमा बनाता है व विखण्डित है।
5. भीलवाङा- चित्तौङगढ़ को 2 भागों में विखण्डित करता है।
7. 25 जिले: राजस्थान के सीमावर्ती जिले
- 23 जिले – अन्तर्राज्यीय सीमावर्ती
- 4 जिले – अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्ती
- 2 जिले – अन्तर्राज्यीय व अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्ती (श्रीगंगानगर $ बाङमेर)
8. 8 जिले: राजस्थान के वे जिले जो अन्तःस्थलीय सीमा बनाते है।
- अजमेर:- चित्तौङगढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा विखण्डित जिला
- राजसमन्द:- राजसमन्द अजमेर को दो भागों में विखण्डित करता है
- इसका जिला मुख्यालय इसके नाम से नहीं है।
- राजनगर राजसमन्द का जिला मुख्यालय है।
- पाली:- राजस्थान में सर्वाधिक जिलों के साथ सीमा बनाता है (8 जिले)
नागौरः- नागौर सर्वाधिक संभाग मुख्यालयों के साथ सीमा बनाता है
सीमावर्ती विवाद
मानगढ़ हिल्स विवादः-
स्थिति – बाँसवाङा
विवाद – राजस्थान-गुजरात के मध्य
बजट 2018-19 में इसके विकास के लिए 7 करोङ का प्रस्ताव रखा गया है।
राजस्थान के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक स्थानों की वर्तमान स्थिति
1. वागङः- राजस्थान के दक्षिणी भाग को कहा जाता है जहाँ वागङी बोली बोली जाती है।
इसमें शामिल जिले- बाँसवाङा, डूँगरपुर व प्रतापगढ़
2. बांगङः- अरावली का पश्चिमी भाग जहाँ पुरानी जलोढ़ मिट्टी स्थित है जिसका विस्तार पाली, नागौर, सीकर झुंझुनू में है।
3. थली:- मरुस्थल के ऊँचे उठे हुए भाग को थली कहा जाता है
इसमें शामिल जिले- बीकानेर व चुरू जहाँ कोई नदी नहीं है।
4. तल्ली:- पश्चिमी राजस्थान में बालूका स्तपों के मध्य भूमि को तल्ली या प्लाया कहा जाता है। ये सर्वाधिक जैसलमेर में पाई जाती है।
5. राठी:- 25 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र को राठी कहा जाता है।
इसमें शामिल जिले:- बीकानेर, जैसलमेर व बाङमेर। इस क्षेत्र में पाई जाने वाली गाय की नस्ल को भी राठी कहा जाता है।
6. राठ/अहीरवाटी:- अहीर यादव वंश शासित प्रदेश, जिसका विस्तार मुख्यतः अलवर व जयपुर की कोटपुतली तहसील में है।
7. माल/हाङौतीः- बेसाल्ट लावा के द्वारा निर्मित भौतिक प्रदेश जिसका विस्तार कोटा, बूँदी, बारां व झालावाङ में है।
मालवः- मध्यप्रदेश के मालवा पठार का विस्तार राजस्थान के जिन जिलों में है उन्हें मालव कहा जाता है।
इसमें शामिल जिले:- प्रतापगढ़ व झालावाङ
8. शेखावाटी:- शेखावतों के द्वारा शासित प्रदेश जिसमें चुरू, सीकर व झुंझनू जिले शामिल है।
9. तोरावाटी:- काँतली नदी के अपवाह क्षेत्र को तोरावाटी कहा जाता है। इसमें शामिल जिले:- सीकर, झुुंझनू
10. मरू:- अरावली के पश्चिम का शुष्क प्रदेश/ मरूस्थलीय प्रदेश जिसमें मुख्यतः जोधपुर संभाग शामिल है।
11. मेरू:- मेरू अरावली को कहा जाता है जो राजस्थान का प्राचीनतम भौतिक प्रदेश है।
12. मत्स्य संघ:- राजस्थान के एकीकरण के प्रथम चरण को मत्स्य संघ कहा जाता है जिसका गठन 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली को मिलाकर किया गया।
13. मेवातः- मेवात अलवर, भरतपुर जिले को कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में मेव जाति का आधिपत्य रहा है।
14. मेवल:- डूँगरपुर व बाँसवाङा के मध्य के पहाङी क्षेत्र को मेवल कहा जाता है यह मुख्यतः भील जनजाति का क्षेत्र है।
15. बीङः- शेखावटी के झुंझनू जिले में पाई जाने वाली चारागाह भूमि को बीङ कहा जाता है।
16. बीहङ/डांग:- चम्बल नदी के क्षेत्र में अवनालिका अपरदन के कारण भूमि उबङ-खाबङ हो जाती है, उसे बीहङ कहते है।
इसमें शामिल जिलेः- करौली, धौलपुर और सवाईमाधोपुर
17. भोराट:- उदयपुर की गोगुन्दा पहाङी व राजसमन्द की कुम्भलगढ़ पहाङी के मध्य का पठारी भाग
यह राजस्थान का दूसरा ऊँचा पठार है (1225 मीटर)
18. भोमट:- उदयपुर का दक्षिणी भाग व मुख्यतः डूँगरपुर के मध्य का पहाङी क्षेत्र भोमट कहलाता है। इस क्षेत्र में मुख्यतः भील जनजाति पाई जाती है।
19. ब्रजनगर:- झालावाङ के झालारापाटन का प्राचीन नाम
20. बृजनगर:- राजस्थान के भरतपुर जिले को कहा जाता है जो मुख्यतः उत्तरप्रदेश से लगता हुआ है।
21. मारवाङ:- पश्चिमी राजस्थान को कहा जाता है जहाँ मुख्यतः मारवाङी बोली बोली जाती है। इसका विस्तार मुख्यतः जोधपुर संभाग में है।
22. मेवाङ:- ऐतिहासिक काल में उदयपुर, चित्तौङगढ़ व राजसमन्द, भीलवाङा मेदपाट/प्राग्वाट को मेवाङ कहा जाता था।
23. मारवाङः- मारवाङ व मेवाङ के मध्य स्थित क्षेत्र जिसका विस्तार मुख्यतः अजमेर व आंशिक रूप में राजसमन्द शामिल है। एकीकरण के अन्तिम चरण (1 नवम्बर, 1956) में इसे राजस्थान में मिलाया गया।
24. यौद्धेय:- राजस्थान के उत्तरी भाग को कहा जाता है जिसमें गंगानगर व हुनमानगढ़ शामिल है।
25. जांगल:- बीकानेर व जोधपुर के उत्तरी भाग को कहा जाता है जहाँ मुख्यतः कँटीली वनस्पति पाई जाती है। इसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर थी।
26. अहिच्छत्रपुर:– ऐतिहासिक काल में नागौर को कहा जाता था। जांगल की राजधानी थी।
27. सपादलक्ष:- ऐतिहासिक काल में अजमेर को कहा जाता था जहाँ चैहानों का शासन था।
28. ढूँढाङ:- ढूंढ नदी के कारण मुख्यतः जयपुर व दौसा, टोंक क्षेत्र को ढूंढाङ कहा जाता था।
29. शूरसेन:- ऐतिहासिक जनपदकाल में राजस्थान के पूर्वी भाग को शूरसेन कहा जाता था।
जिसमें शामिल जिलेः-
- भरतपुर
- करौली
- धौलपुर
- इसकी राजधानी मथुरा थी।
30. हयाहय:- ऐतिहासिक काल में कोटा व बूँदी के क्षेत्र को हयाहय कहा जाता था।
31. शिवी:- उदयपुर, चित्तौङगढ़ क्षेत्र को कहा जाता था जिसकी राजधानी नगरी/मज्झमिका/मध्यमिका थी।
32. चन्द्रावती:- सिरोही का प्राचीन नाम जहाँ से भूकम्परोधी इमारतों के अवशेष प्राप्त हुए है।
33. जाबालीपुर:- जाबाली ऋषि की भूमि जिसे वर्तमान में जालौर कहा जाता है। इस क्षेत्र में जाल वृक्ष अधिक पाए जाते है।
34. मालाणी:- प्राचीन समय में बाङमेर को मालाणी कहा जाता था।
35. मांड:- पश्चिमी राजस्थान में मांड गायिकी के क्षेत्र को मांड कहा जाता था जिसके चारों ओर का क्षेत्र जैसलमेर में वल्ल के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान के भौतिक प्रदेश
1. उच्चावच व जलवायु के आधार पर राजस्थान को चार भौतिक प्रदेशों में बाँटा जाता हैः-
भौतिक प्रदेशों की सामान्य जानकारी:-
(क) उत्तरी-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेशः-
- निर्माणकाल – टर्शयरीकाल, क्वार्टनरी काल में प्लीस्टोसीन
- लम्बाई – 640 किमी.
- चौङाई – 300 किमी.
- औसत ऊँचाई – 200-300 मीटर
- राजस्थान में कुल मरूस्थलीय ब्लाॅक- 85
मरूस्थल का ढ़ालः-
नोटः- ’’ 25 सेमी’’ समवर्षा रेखा’’ मरूस्थल को शुष्क व अर्द्धशुष्क दो भागों में बाँटती है।
शुष्क मरूस्थलः-
25 सेमी से कम वर्षा वाले भौतिक प्रदेश को शुष्क मरूस्थल कहा जाता है।
शुष्क मरूस्थल को पुनः दो भागों में बाँटा जाता हैः-
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