आज की पोस्ट में हम राजस्थान के किलों में रणथम्भौर किला (Ranthambore Durg) की पूरी जानकारी पढेंगे ,इसमें हम महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे।
रणथम्भौर किला – Ranthambore Durg
रणथम्भौर दुर्ग राजस्थान का बहुत शानदार किला है, जिसका संबंध राज्य के चौहान शाही परिवार से है। रणथम्भौर का दुर्ग सवाई माधोपुर से लगभग 9 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग है। इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में अजमेर के चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था। एक मान्यता के अनुसार इसका निर्माण 994 ई. में रणथम्मन देव चौहान ने करवाया था। यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा हुआ था। यह किला रणथम्भौर नेशनल पार्क के जंगलों के बीच स्थित है, जहां पर नेशनल पार्क के घने जंगलों के बीच स्थित है। यह रणथम्भौर वन्यजीव अभ्यारण्य यहां रहने वाले बाघों के कारण बहुत प्रसिद्ध है और यह वन्यजीव अभ्यारण्य ही यहाँ आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।
रणथम्भौर किले को यूनेस्को द्वरा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया क्योंकि यह राज्य का एक खास पहाड़ी किला है। 1 नवंबर 1980 में रणथम्भौर दुर्ग को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया, यह राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है। राज्य सरकार ने रणथम्भौर दुर्ग को 1955 में अभ्यारण घोषित किया। यहां पार्क का रिजर्व क्षेत्र कई तरह के जानवरों और पक्षियों का घर है। यहां पर पर्यटकों को बहुत सारे बंदर भी देखने को मिलते है।
- अबुल फजल ने लिखा है कि ’अन्य सब दुर्ग नंगे हैं, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।’
- रणथम्भौर दुर्ग के बारे में जलालुद्दीन खिलजी ने कहा था, ’’ऐसे 100 दुर्गों को मैं मुसलमानों के एक बाल के बराबर नहीं समझता।’’
- अमीर खुसरो – ’’आज काफिरों का गढ़ इस्लाम का घर हो गया है।’’
- रणथम्भौर दुर्ग सात पहाड़ियों से घिरा हम्मीर की आन-शान का प्रतीक है।
- रणथम्भौर दुर्ग रण और थमन दो पहाड़ियों के मध्य निर्मित होने के कारण यह रणथम्भौर दुर्ग कहलाया।
- रणथम्भौर दुर्ग में राजस्थान का प्रथम साका 13 जुलाई 1301 ई. को हुआ।
- रणथम्भौर का मुख्य दरवाजा ’नौलखा दरवाजा’ है। तीन दरवाजों का समूह है।
रणथम्भौर किले की जानकारी:
रणथम्भौर किला | |
स्थान | राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में |
निर्माता | रणथम्मन देव |
निर्माणकाल | 994 ई. |
किले के दरवाजे | 7 दरवाजे |
दरवाजे के नाम | नवलाखा पोल, हथिया पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली पोल, सत्पोल, सूरज पोल |
दुर्ग का आकार | विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा |
दुर्ग के महल | हम्मीर महल, रानी महल, बादल महल, सुपारी महल। |
रणथम्भौर किले का इतिहास – Ranthambore ka kila
रणथम्भौर किले के निर्माण के समय के बारे में आज भी कुछ ज्ञात नहीं है और आज तक रणथंभौर किले रहस्य ही बना हुआ है। कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि रणथम्भौर किले का निर्माण 944 ईस्वी में चौहान वंश के राजपूत राजा सपलदक्ष के शासनकाल में शुरू हुआ। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जयंत के शासनकाल में 1110 ईस्वी में इस किले का निर्माण शुरू हुआ। राजस्थान सरकार के अंबर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण ने यह संभावना जताई है कि रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण सल्पालक्ष के समय 10 वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ और कुछ सदियों तक इसका निर्माण कार्य चलता रहा। राजस्थान के चौहान शाही परिवार ने किले का शेष निर्माण पूरा किया था।
जब चौहानों ने इस किले का प्रबंध किया था तब यह किला ’रणस्तंभ’ के नाम से विख्यात था। पृृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल में यह किला विशेष रूप से जैन धर्म से सम्बन्धित था, उसी समय जैन संत सिद्धसेनसूरी ने इस स्थान को जैनियों का पवित्र तीर्थ स्थल घोषित किया।
1192 में भारत के हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का युद्ध हुआ, इस युद्ध में मोहम्मद गौरी ने छलकपट से पृृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इस पराजय के बाद पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविंद राज ने रणथम्भौर को अपनी राजधानी बनाया। पृृथ्वीराज के अतिरिक्त इस किले पर कई हिंदू और मुस्लिम शासकों ने शासन किया, इनमें महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, राव सुरजन हाडा, हम्मीर देव चौहान और मुगल शासकों में अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह सूरी ने समय-समय पर इस दुर्ग पर शासन किया। राणा हम्मीर देव चौहान का शासनकाल रणथम्भौर दुर्ग का सबसे प्रसिद्ध काल माना जाता है।
हम्मीर देव (1282ई.-1301 ई.) ने 19 वर्ष के शासनकाल के समय रणथम्भौर की चारों ओर प्रसिद्धि फैली। हम्मीर ने अपने शासनकाल के दौरान 17 युद्ध किये थे जिनमें उसने 13 युद्ध में विजय हासिल की। मेवाड़ के राणा सांगा जब खानवा के युद्ध में घायल हो गए, तब उनके इलाज के लिए कुछ समय उन्होंने इस दुर्ग में व्यतीत किया था। हम्मीर देव के शासनकाल से पहले रणथम्भौर दुर्ग पर बहुत-से बाह्य आक्रमण हुए। इस दुर्ग पर युद्ध होते ही रहे।
रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार करने के लिए मुगल और राजपूत शासकों ने लगातार आक्रमण किये। कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर अकबर (मुगल शासक) के शासनकाल तक इस दुर्ग पर बहुत सारे आक्रमण हुए। यह आक्रमणों की शुरूआत 1192 में मोहम्मद गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हारने के बाद शुरू हुई, जो 18 वीं शताब्दी तक लगातार जारी रहा।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद 1209 ईस्वी में चौहानों ने मोहम्मद गौरी पर आक्रमण किया और पुनः इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद इस पर अनेक आक्रमण हुए। रणथम्भौर किले पर 1226 ई. में दिल्ली शासक इल्तुतमिश ने अधिकार कर लिया। 1236 ई. में रजिया सुल्तान ने यहाँ पर अधिकार कर लिया। 1259 में बलबन ने कई असफल प्रयासों के बाद जैतसिंह चौहान से किले पर अधिकार कर लिया। 1283 में जैतसिंह चौहान के उत्तराधिकारी शक्ति देव ने किले को जीत लिया और राज्य का विस्तार किया।
1290-92 में जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया। 1301 ई. में रणथम्भौर किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने दो बार आक्रमण किया और अधिकार कर लिया। मालवा के मुहम्मद खिलजी ने 1489 ईस्वी में इस किले पर आक्रमण किया।
1529 में मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने इस किले पर आक्रमण किया। गुजरात के बहादुर शाह ने 1530 ईस्वी में इस किले पर आक्रमण किया। 1543 ईस्वी में शेरशाह सूरी ने इस किले पर आक्रमण किया।
अकबर ने आमेर रियासत के राजाओं के साथ 1569 ईस्वी को इस दुर्ग पर आक्रमण कर दिया और उसी समय के रणथम्भौर दुर्ग के तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली। 17 वीं शताब्दी में रणथम्भौर किला जयपुर के कछवाहा महाराजाओं के अधिकार में आ गया। उसके बाद यह किला भारत की स्वतंत्रता तक जयपुर रियासत का अंग बना रहा।
18 वीं शताब्दी में सवाई माधोसिंह ने मुगल शासकों से प्रार्थना करके रणथम्भौर के आस-पास के गांव का विकास करना शुरू कर दिया, जिससे कि यह किला काफी सुदृढ़ हुआ और समय व्यतीत होने के साथ ही इस गांव का नाम ’सवाई माधोपुर’ रख दिया गया। 1964 के पश्चात् से रणथम्भौर किला ’भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ के नियंत्रण में है।
रणथम्भौर किले की वास्तुकला
रणथम्भौर किला बड़ी-बड़ी दीवारों से घिरा हुआ है जिसमें पत्थर के मजबूत मार्ग और सीढ़ियाँ हैं जो किले में ऊपर की तरह लेकर जाती है। यहां के पर्यटकों के लिए बड़े गेट, स्तंभ और गुंबदों, महल और मंदिरा के साथ इसकी राजस्थानी वास्तुकला यहां आने पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इसके बीच-बीच में गहरी खाइयां और नाले हैं। ये सारे नाले चम्बल एवं बनास नदियों में जाकर मिलते हैं।
रणथम्भौर दुर्ग ऊंचे गिरि शिखर पर बना हुआ है। इस तक पहुंचने के लिए संकरी घुमावदार घाटियों से होकर जाने वाले मार्ग से गुजरना पड़ता है। नौलखा दरवाजा, हाथी पोल, गणेश पोल, सूरज पोल और त्रिपोलिया को पार करके दुर्ग में पहुंचा जाता है। इसके पास से एक सुरंग महलों तक गयी है। इस महल में कक्ष और बालकनी है जो छोटे पारंपरिक दरवाजों और सीढ़ी से जुड़े हुए हैं।
रणथम्भौर किले की संरचना में एक बरामदा है जो भन के प्रत्येक स्तर तक लेकर जाता है। रणथम्भौर किले में एक 84 स्तंभों वाला एक बड़ा हाॅल भी है इसकी ऊंचाई 61 मीटर है। इस हाॅल को ’बादल महल’ के नाम से जाना जाता है और इसका उपयोग सम्मेलनों और बैठकों के लिए किया जाता है। इस दुर्ग में आने वाले पर्यटकों के लिए बहुत प्रसिद्ध गणेश मंदिर भी स्थित है। मान्यता है कि अगर कोई अपनी इच्छाओं को लेकर भगवान गणेश को पत्र लिखकर भेजता है तो उसकी इच्छाएं अवश्य पूरी होती है। हर वर्ष गणेश चतुर्थी पर यहां पूजा करने वालों की भीड़ होती है।
रणथम्भौर पहाड़ी के नीचे की पहाड़ी का नाम ’रण’ है। इस दुर्ग का वास्तविक नाम ’रन्तःपुर’ है। जिसका अर्थ है – रण की घाटी में स्थित नगर।
रणथम्भौर किले में एक बहुत विशाल सुरक्षा दीवार है। इसमें सात द्वार हैं – नवलखा पोल, हाथी पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली पोल, सतपोल और सूरज पोल हैं। इस किले में एक कचहरी भी स्थित है जिसको हम्मीर कचहरी कहते हैं, इस कचहरी में किले के अंदर हम्मीर सिंह के शासनकाल के दौरान बना एक महल भी स्थित है जिसको ’हम्मीर पैलेस’ कहा जाता है।
यह तीन मंजिला इमारत है जिसमें 32 खंभे है जो छत्रियों या गुंबदों को सपोर्ट देते हैं। इस किले के अंदर खम्भा छात्रा, हैमर बडी कच्छारी, हम्मीर पैलेस, छोटी कछारी जैसी कई संरचनाएं है।
रणथम्भौर दुर्ग में क्या प्रसिद्ध है?
रणथम्भौर दुर्ग में हम्मीर महल, रानी महल, हम्मीर की कचहरी, सुपारी महल, बादल महल, जौरां-भौरां, 32 खम्भों की छतरी, रनिहाड़ तालाब, जोगी महल, पीर सदरूद्दीन की दरगाह, लक्ष्मी नारायण मंदिर, जैन मंदिर तथा भारत प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थित है। इस किले के पाश्र्व में पद्मला तालाब तथा अन्य जलाशय देखे जा सकते हैं। इस दुर्ग के प्रमुख दरवाजे हैं – गणेशपोल, हाथीपोल, सूरजपोल एवं त्रिपोलिया दरवाजा।
बादल महल
राणा हम्मीर देव द्वारा निर्मित ’बादल महल’ समय के साथ खंडहर में बदल गया है, परंतु इस दुर्ग की भव्यता को आज भी प्रदर्शित करता है। हम्मीर देव द्वारा निर्मित 84 स्तंभ छतरी आज भी यहां पर बनी हुई है। राणा हम्मीर देव इसी जगह से अपनी सभा को सम्बोधित किया करते थे। ’बादलों के महल’ नाम से प्रसिद्ध ये महल किले के उत्तरी भाग में स्थित है।
रणथम्भौर दुर्ग में मंदिर
रणथम्भौर दुर्ग के अंदर हिन्दू और जैन धर्म से जुड़े हुए मंदिर देखने को मिलते है। इस किले में भगवान शिव, गणेश जी और रामलाल जी के तीन हिन्दू मंदिर देखने को मिलते है। इस मंदिर का निर्माण 12 वीं और 13 वीं शताब्दी में यहां पास के करौली जिले में मिलने वाले लाल पत्थर से करवाया गया। इस किले के अंदर जैन धर्म से जुड़े हुए कुछ मंदिर देखने को मिलते है। इस किले के अंदर भगवान सम्भवनाथ और 5 वें जैन तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ के जैन मंदिर का निर्माण हो रखा है।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर
रणथंभौर किले के पिछले भाग में त्रिनेत्र गणेश मंदिर में स्थित है। यह मंदिर ’रणतभँवर’ के नाम से विख्यात है। मान्यता है कि यह प्राचीन गणेश मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिर में से एक है। इसमें भगवान गणेश तीन नेत्र वाले रूप में विराजमान है। इसी कारण इन्हें त्रिनेत्र गणेश कहा जाता है। इस मूर्ति के अतिरिक्त गणेश जी की कुल चार गणेश प्रतिमाएं भारत के अलग-अलग स्थानों पर मौजूद है।
यह कहानी कही जाती है कि जब विदेशी आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर अधिकार करने के लिए कई महीनों तक इसे किले की घेरेबन्दी की, तब राणा हम्मीर देव को भगवान गणेश जी ने सपने में दर्शन दिए और राजा हम्मीर देव को उनकी पूजा करने के लिए कहा, तब सपने में बताये गए स्थान के अनुसार जब राणा हम्मीर देव उस पहुँचा, तो उसे वहां पर गणेश भगवान की प्रतिमा मिली। तब राणा हम्मीर देव ने उसी स्थान पर भगवान गणेश के मंदिर का निर्माण करवाया। भगवान गणेश की तीसरे नेत्र को ज्ञान का प्रतीक माना गया है।
इस मंदिर में भगवान अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान है उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि के साथ में ही भगवान के दोनों पुत्र शुभ और लाभ के दर्शन इस मंदिर में होते है। पूरे भारत में यह पहला एक ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान गणेश अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान है। वैसे तो पूरे भारत में ऐसे चार गणेश मंदिर है। इनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी का सबसे प्रथम स्थान है। हर वर्ष मंदिर में भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है और यहां लाखों भक्त गणेशजी के दर्शन करने के लिए आते है।
पद्म तालाब
रणथम्भौर वन्यजीव अभ्यारण्य की सबसे बड़ी झील ’पद्म तालाब’ है। यह झील चारों तरफ से घने जंगल और पहाड़ी से घिरी हुई है, इस झील के आसपास ही अनेक सुन्दर वनस्पति भी है। यह जंगल के बीच में स्थित है, इसी कारण शाम के समय यहां जंगली जानवर भी आते है।
अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आपको यहां शाम के समय चिंकारा भी देखने को मिल सकता है। पद्म तालाब ’रणथंभौर टाइगर रिजर्व’ में बना हुआ है। यह सुबह और शाम दिन में दो बार खुलता है।
जोगी महल
17 वीं शताब्दी में रणथंभौर जयपुर राजघराने के अधिकार में आ गया, उसके बाद जयपुर के राजाओं ने इस जगह को अपने शिकार और मनोरंजन के लिए विकसित करना शुरू कर दिया। लाल रंग में रंगे जोगी महल का निर्माण जयपुर के महाराजा ने अपने शिकारगाह के तौर पर करवाया था। यह पद्म तालाब के पास में बना हुआ हैं।
जयपुर के शाही घराने ने भी कई वर्षों तक इस स्थान का उपयोग अपने शिकार और मनोरंजन के लिए किया था। वर्तमान में इस जगह को वन विभाग ने पर्यटकों के रेस्ट हाउस के रूप में बदल दिया है। जोगी महल के पास ही एक पुराना बरगद का पेड़ है जिसके बारे में मान्यता है कि ये पेड़ भारत का दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है।
राजबाग खंडहर
राजबाग के खंडहर पद्म तालाब और राजबाग तालाब के बीच में बना हुआ है और आज पूरी तरह से खंडहरों में परिवर्तित हो गया है। आपको यहां पर फिल्मों जैसे दृश्य देखने को मिल जायेंगे। राजबाग रणथंभौर नेशनल पार्क के बीचोंबीच बना हुआ है, इसी कारण इन खड़हरों के आसपास का प्राकृतिक माहौल ऐसा होता है कि ऐसी जगह आप दूसरी जगह होने की कल्पना भी नहीं कर सकते।
सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव चौहान की कहानी
रणथम्भौर दुर्ग राणा हम्मीर देव चौहान की शौर्यगाथा का साक्षी रहा है। वह सन् 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए बलिदान हुआ।
हम्मीर देव चौहान रणथम्भौर का प्रसिद्ध शासक और सर्वाधिक पराक्रमी था। इन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मुहम्मदशाह को शरण दी। इससे ही अलाउद्दीन खिलजी क्रोधित हो गये और उन्होंने 1300 ई. में रणथंभौर किले पर आक्रमण कर दिया। अलाउद्दीन कई दिनों तक लड़ता रहा, परंतु उसे सफलता नहीं मिली, तो उसने हम्मीर के दो विश्वस्त मंत्रियों – रतिपाल एवं रणमल को अपनी ओर मिला लिया। जिन्होंने ही दुर्ग के गुप्त दरवाजे का भेद उसे बताया। अलाउद्दीन के सैनिक गुप्त दरवाजे के अंदर पहुँच गये।
राणा हम्मीर वीरगति को प्राप्त हो गया। 13 जुलाई, 1301 ई. को रानी रंगदेवी के साथ सभी रानियों व दुर्ग की स्त्रियों ने रणथम्भौर दुर्ग में जौहर किया, जो ’राजस्थान का प्रथम साका’ कहलाता है। साथ ही सभी वीरों ने केसरिया बाना पहना। 13 जुलाई, 1301 ई. को रणथम्भौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया।
रणथम्भौर किले की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय
रणथम्भौर दुर्ग की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय नवंबर और फरवरी के बीच है, क्योंकि इस समय राजस्थान में सर्दियों का मौसम होता है। इस किले में घूमने का सबसे अच्छा समय दिन में सुबह के समय ओर शाम के समय रहता है क्योंकि इस समय यहां तापमान काफी कम होता है। इस दुर्ग को आप गर्मियों के मौसम में नहीं देखने आ सकते। मानसून के मौसम में रणथंभौर वन्यजीव अभ्यारण बंद रहता है, उसके बाद अक्टूबर से लेकर जून तक खुला रहता है। आपको सर्दियों के मौसम में तो यहां जंगली जानवर या बाघ कम देखने को मिलेंगे। अगर आप मार्च के बाद रणथंभौर टाइगर रिजर्व आते है तो यहां अधिक बाघ देखने को मिलते है।
रणथम्भौर किला कैसे पहुंचे ?
हवाई जहाज से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे ?
अगर आप हवाई जहाज से रणथंभौर किले की यात्रा करना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि रणथम्भौर दुर्ग के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर हवाई अड्डा है। जयपुर से रणथंभौर की दूरी केवल 180 किलोमीटर है। जयपुर हवाई अड्डे से किले तक जाने के लिए कोई भी टैक्सी किराये पर ले जा सकते है या बस भी ले जा सकते है।
रेल से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे ?
अगर आप रणथंभौर किले की यात्रा रेल से करना चाहते है तो आपको रेल द्वारा रणथंभौर किले की यात्रा करने के लिए यहां के निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन सवाई माधोपुर के लिए ट्रेन पकड़नी होगी। यह रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से रणथंभौर जाने के लिए आप किसी भी कैब या टैक्सी से जा सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा रणथंभौर किला कैसे पहुंचे ?
अगर आप सड़क मार्ग से रणथंभौर दुर्ग जाने का प्लान बनाते है तो आपको रणथंभौर दुर्ग आने के लिए सवाई माधोपुर आना पड़ेगा और सवाई माधोपुर के एक जिला मुख्यालय होने कीे वजह से यह शहर देश के प्रमुख राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। जयपुर और कोटा से आपको सवाईमाधोपुर आने के लिए हर समय बस और टैक्सी की सहायता लेनी चाहिए।
FAQs
1. रणथंभौर दुर्ग कितनी पहाड़ियों से घिरा है ?
उत्तर – सात पहाड़ियों से
2. रणथंभौर दुर्ग का वास्तविक नाम क्या है ?
उत्तर – रन्तःपुर
3. रणथंभौर दुर्ग किस पहाड़ी पर बना हुआ है ?
उत्तर – थंब पहाड़ी
4. रणथम्भौर किला किस श्रेणी का दुर्ग हैं ?
उत्तर – वन दुर्ग
5. अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हम्मीर ने किस मंदिर मंे केसरिया किया ?
उत्तर – शिव मंदिर
6. दुर्गाधिराज के नाम से किस किले को जाना जाता है ?
उत्तर – रणथम्भौर दुर्ग को
7. पीर सदरूद्दीन की दरगाह राजस्थान मंे कहां स्थित है ?
उत्तर – रणथंभौर में
8. रणथम्भौर दुर्ग पर सर्वप्रथम किसने आक्रमण किया ?
उत्तर – कुतुबुद्दीन ऐबक
9. रणथंभौर दुर्ग के बारे में किसने कहा था कि आज ’कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया’।
उत्तर – अमीर खुसरो
10. रणथम्भौर दुर्ग के मुख्य द्वार का नाम क्या हैं ?
उत्तर – नौलखा दरवाजा
11. रणथंभौर दुर्ग की कुंजी किस दुर्ग को कहा जाता है ?
उत्तर – झाईन दुर्ग
12. महाराणा जैतसिंह की छतरी किस किले में स्थित है ?
उत्तर – रणथम्भौर किले में
13. रणथम्भौर दुर्ग का सहायक दुर्ग कौनसा है ?
उत्तर – खण्डार दुर्ग
14. राजस्थान का प्रथम साका कब और कहां हुआ था ?
उत्तर – हम्मीर देव चैहान की पत्नी रंगदेवी के साथ अन्य राजपूत स्त्रियों ने 1301 ई. में रणथंभौर दुर्ग में जल जौहर किया था, जिसे ’राजस्थान का प्रथम साका’ कहा जाता है।
15. त्रिनेत्र गणेश का मंदिर किस किले में स्थित है ?
उत्तर – रणथम्भौर किले में
16. अकबर से पूर्व रणथम्भौर दुर्ग पर किसका शासन था ?
उत्तर – सुरजन हाड़ा
17. सुपारी महल किस किले में स्थित हैं ?
उत्तर – रणथम्भौर दुर्ग
18. जोगी महल किस किले में स्थित है ?
उत्तर – रणथम्भौर दुर्ग
19. रणथम्भौर दुर्ग के बारे यह किसने कहा था कि ’’ऐसे 10 किलों को तो मैं मुसलमानों के मूंछ के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता’’ ?
उत्तर – फिरोज खिलजी
20. रणथम्भौर दुर्ग में करौली के लाल पत्थरों से बना महल कौनसा हैं ?
उत्तर – हम्मीर महल