फ्रेंड्स जल हमारे जीवन की विकट समस्या बनती जा रही है और जल प्रबंधन (Watershed Management in Hindi) भी आवश्यक हो गया है। इसलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपके साथ जल प्रबंधन करने के उपाय व विशिष्ट जानकारियाँ शेयर कर रहें है। आप इन्हें ध्यान से पढें और जल प्रबंधन का बढ़ावा दें।
जल प्रबंधन
’जल प्रबंधन आज की महती आवश्यकता’
- भारत सहित दुनिया के सभी विकासशील देश चाहे वह लेटिन अमेरिका हो, अफ्रीकी हो या एशियाई सभी पानी की कमी से परेशान हो रहे है।
- इस कमी का मुख्य कारण जल का प्रबंधन नहीं कर पाना है।
- भारत में लगभग 4000 अरब घन मी. प्राप्त होता है। जो कि भारत सहित सभी एशियाई राष्ट्रो को जरूरत के लिए पर्याप्त है लेकिन बेहतर जल प्रबंधन की कमी के कारण 1500 अरब घन मी. जल बहकर समुद्र में आ जाता है।
- यही 1500 अरब घनमीटर नदियों में मिलकर प्राकृतिक आपदा लाता है, जो बाढ़ का रूप लेती है।
भारत में हर साल 30 करोङ आबादी, करोङो पशु और अरबों रूपये की फसल बर्बाद हो जाती है। इस प्रकार पानी की कमी से 10 करोङ लोग प्रभावित होते है।
बेहतर प्रबंध कैसे करें
1. बाढ प्रबंधन
यदि हम बाढ़ के पानी को नदियों के माध्यम से सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचाकर संचित करने की कार्यप्रणाली को अपनाए तो हमें सूखे से राहत मिलेगी और उन करोङों रूपयों की बचत होगी। जो सरकार बाढ़ और सूखा पर हर सार्च खर्च करती है।
पेङ-पौधे बचाए नदियाँ
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसेी कुछ नदियाँ छोङ दिया जाए तो अधिकतर बङी नदियां घने जंगलों एवं पहाङों से निकलती है। ये घने पेङ-पौधे वर्षा के जल की मिट्टी में बांधे रखते है और नालियों के माध्यम से निचले भाग की ओर रिसते है।
जब अनेक नलियाँ एक जगह इकट्ठी होती है, तो वहीं से नदियों का जन्म होता है लेकिन कुछ दशकों से इन नदियों उद्गम स्रोतों के पास पेङों का बहुत ज्यादा कटाव हुआ है। इसके कारण नदियों का प्राकृतिक जलप्रवाह लगभग समाप्त हो गया है। अब जो प्रवाह होता है, वह शहरों से निकलने गंदे पानी का है।
वर्षा जल पुनः भण्डारण
आज से लगभग 2000 साल पहले जो जल उपलब्ध या वही आज है। लेकिन आज जनसंख्या बहुत ज्यादा है। तब पृथ्वी की आबादी आज का 1 प्रतिशत थी।
एक समय वर्षा जल को रोकने की स्थाई पद्धति काफी लोकप्रिय थी और यह रोका हुआ जल मानवीय प्रयोग में वर्ष भर होता है। इनमें बावङी बहुत ज्यादा लोकप्रिय थी। लेकिन समय के साथ इस पद्धति का स्थान ट्यूबबेलों ने ले लिया। पर ट्यूबबेल से मानव ने केवल पानी उलीचना सीखा। उसने वर्षा से पानी इकट्ठा करने का कोई प्रयत्न नहीं किया जिसके कारण देश का लगभग 80 प्रतिशत राज्यों में भूजल स्तर पाताल में पहुंच गया। बावङी वर्षा जल से स्वयं भर जाती है। इस प्रकार छोटे-छोटे तालाब वर्षा जल को पृथ्वी में सहेजने के बेहतरीन माध्यम है।
जल का पुनः उपयोग
भारत में 1947 में जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता 6000 घन मी. थी और आज 1600 घन मी. ही बची है। ऐसे में जल का पुनः उपयोग ही एक मात्र विकल्प है। यह मनुष्य को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराता है। इसके लिए ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाए, जो औद्योगिक पानी, मलमूत्र पानी, सीवेज के पानी को स्वच्छ पानी में बदल सके ताकि इनका उपयोग बाहरी कार्यों में किया जा सके।
इस तरह यदि हम पानी का पुनः उपयोग करना सीख गए तो 25 प्रतिशत तक पानी की खपत हो जाएगी। ऐसी ही तकनीक समुद्र के पानी के पीने लायक बनाने के लिए की जाती है।
बेहतर सिंचाई तकनीक
भारत में पानी का सबसे ज्यादा प्रयोग सिंचाई कार्यों में होता है। लेकिन हमारी सिंचाई तकनीक बहुत ज्याद पिछङी हुई है जिसके कारण हमारी 60 प्रतिशत जमीन बिना फसल उगाए पङी रहती है। यदि हम इजराइल की सिंचाई देखें तो वहां मात्र 25 सेमी. वर्षा होती है लेकिन अच्छी तकनीक के कारण वहां जमीन उपजाऊ होती है।
भारत में ड्रीम पद्धति, स्प्रिंकलर आदि के द्वारा सिंचाई की जाए तो पानी की बहुत मात्रा बचाई जा सकती है। इन पद्धति का उपयोज बंजर भूमि में फसल उगाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा क्षेत्र आधारित फसलें उगाकर पानी की बचत की जा सकती है। अर्थात् जिस क्षेत्र में जितनी जरूरत हो पानी की फसल उगाए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी वाली फसलें ही उगाए।
वास्तव में पानी की बेहतर उपलब्धता जल प्रबंधन पर निर्भर करती है।